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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

प्रधानमंत्री को अन्ना की चिट्ठी


सेवा में,
माननीय डॉ. मनमोहन सिंहजी,
पंथप्रधान, भारत सरकार,
नई दिल्ली

विषय:- संसद सर्वोपरी हैं, उसका निर्णय अंतिम हैं, कॅबिनेट उसमें बदलाव नही कर सकती|

सम्मानीय पंथप्रधानजी
सादर प्रमाण...

महोदय,

संसद का बजेट सत्र शीघ् रही शुरू होने जा रहा हैं और आप उसकी तैय्यारीओं में व्यस्त होंगे| आशा करता हूं की इस व्यस्तता के बावजूद आप मेरे इस पत्र मे उपस्थित किये गये मुद्दों पर गौर करेंगे|

जैसा की आप जानते हैं कि 16 अगस्त 2011 मे रामलीला मैदान पर जो अनशन किया था| 10 दिन के बाद आपने स्वयं मुझे दि. 27 अगस्त को पत्र लिखकर संसद के दोनो सदनोने पारित किये हुए रिजोल्युशन का हवाला देकर अनशन समाप्त करने का अनुरोध किया था| आपके अनुरोध एवं इस रिजोल्युशन व्दारा संसदने तीन मुद्दोंपर अपनी प्रतिबध्दता जताई थी|

1. सिटीजन चार्टर

2. सभी श्रेणी के कर्मचारियों को लोकपाल कानून मे सम्मीलीन करना |

3. उपयुक्त जरियेसे राज्योंमे लोकायुक्त का गठन करना तिनो मुद्दे को लोकपाल के दायरे में लायेंगे|

इन तीनों मुद्दों को लेकर विगत देढ सालमें चर्चा हो रही हैं और अब यह जरूरी हुआ है की मै आप तक मेरी भावनाएँ पहूंचा दूं|

1. सिटीजन चार्टर के मुद्दे को सरकार ने मुझे लिखीत आश्वासन देने के बावजूद लोकपाल बिल से अलग कर दिया और कहां की उसको अलग कानून के रूप में लाया जायेगा| अगस्त 2011 में सत्ता-पक्ष एवं समुचे विपक्ष ने पुरी सहमती के साथ संसद के दोनों सदनोंमे रिजोल्युशन कर जिन मुद्दे पर देशवासियोंको वचन दिया था| वह अभी तक पुरा नही हो पाया| क्या हमारी सरकार इतनी दुबली बन चुकी हैं की संसद मे सर्व समहमीसे पास किया हुआ रिजोल्युशन के आधार पर दिया गया वचन निभाने मे वह सक्षम नही हैं?

2. सभी श्रेणीयोंके कर्मचारियों को लोकपाल के दायरें में लाने पर संसदने पुरी प्रतिबध्दता उक्त रिजोल्युशन व्दारा जताई थी| हाल ही में गठीत राज्यसभा की सिलेक्ट कमिटीने जो रिपोर्ट सदन को पेश किया हैं उसमें भी इस प्रतिबध्दता को दोहराया था| अ,ब,क,ड श्रेणी के कर्मचारी, अधिकारी लोकपाल के अधिन लाना हैं, गौर तलब है के सिलेक्ट कमिटी मे भी सभी राजनैतिक दलोंके के प्रतिनिधी शामील हैं| अब मिडीया के जरिये यह पता चला हैं कि कॅबिनेटने अपने मिटींग मे यह तय किया हैं की श्रेणी 3 एवं श्रेणी 4 के कर्मचारि योंको लोकपालके दायरे से बाहर रखा जाएं| मुझे इस बात पर बडा आश्‍चर्य हो रहा है की जिस विषयमें संसद आम सहमीसे निर्णय कर चुकी हैं उस मुद्दोको कॅबिनेट खारिज कैसे कर सकती हैं| हमारे जनतांत्रिक ढांचे मे संसद सर्वोपरी हैं, या कॅबिनेट? प्रश्न निर्माण होता हैं|

अगर संसद सर्वोपरी हैं, तो कॅबिनेट कौन से कानून के अधिकरोंके तहत संसद के फैसले को बदल सकती हैं? क्या कॅबिनेट का एैसा करना संसद की अवमानना नही हैं? गांव एवं कसबों में बसा 'आम आदमी' भ्रष्टाचारसे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं| ग्रामसेवक, मंडल अधिकारी जैसे निचले स्तर के अधिकारीयोंके भ्रष्टाचार से जिनसे आम आदमी को आये दिन झुंझना पडता हैं| फिर इन अफसरोंको आपकी सरकार लोकपाल के दायरे से क्यों बचाना चाहती हैं? मेरी दृष्टीसे यह मुद्दा इसलिए भी अहमियत रखता हैं की अगर संसद के फैसले को कॅबिनेट बिना किसी संवैधानिक अधिकारके अपने मतानुसार बदल दें तो इससे हमारे संवैधानिक ढांचे परही सवालिया निशान लगता हैं| हो सकता है के कॅबिनेट जो करने जा रही है उसके परिणाम देश को हर बार भुगतनेे पडे और संसदका महत्व कम हो कर कॅबिनेट ही सर्वोपरी बन जाए| फिर इस देशको शायद भगवान ही बचा पाएं| आप संसदके नेता हैं और मंत्रीमंडल के मुखियां| आपको स्वयं निर्णय करना हैं की देश को संसद चलाएगी या सिर्फ सरकार| अत:मेरा आपसे नम्र अनरोध है की आप संसद की गरीमा को अहमियत देकर सभी श्रेणीयोंके कर्मचारियोंको लोकपाल के दायरे में लाकर संसद की प्रतिबध्दता को निभाएं|

३.संसद के उक्त रिजोल्युन मे यह बात कही गई थी की उचित उपायोंव्दारा राज्योंमे लोकायुक्त का गठन किया जायेगा| केंद्र, राज्य संबंधो के अहम मुद्दोंको लेकर भी संसद मे चर्चा हुई थी| अब अगर केंद्र सरकार यह कह रही है की लोकायुक्त का निर्माण राज्य सरकारों व्दारा किया जाए तो प्रश्न उपस्थित होता हैं की क्या इसे हम राज्य सरकारोंकी अपनी मर्जी पर छोड रहे हैं? ऐसा नही होना चाहिए अन्यथा अलग राज्योंके लोगोंको भ्रष्टाचार के विषयमें अलग न्याय मिलेगा जो उचित नही हैं| मैं इस बात का आग्रह करता हूं की अगर इस लोकायुक्त का निर्माण राज्योंके अधीन किया जा रहा हैं तो केंद्र सरकार आम सहमतीसे लोकायुक्त कानून का अच्छा मसौदा आम सहमीसे तैयार करे और फिर राज्य सरकारोंको अनुरोध करे की इस मसौदे को ही अपनाएं जाएं| भारत के लोकतंत्र में हर राज्यके लोगों को अलग न्याय नही होना चाहिए| किसी राज्यके नागरिक होनेसे पहलेे हम सब भारत के नागरिक है इस बात को नजर अंदाज नही किया जा सकता| अत: आपसे प्रार्थना है की लोकायुक्त के मसले को राज्यों पर ना छोडे और एक अच्छा मसौदा बनाए जो सभी राज्योंके लिये अनिवार्य हो| सिव्हील सोसायटी ने एक मसौदा आपकी सरकार को भेजा है, उत्तराखंड का मसौदा जनहित के लिये अच्छा मसौदा हैं|

इन तीन मुद्दोंके अलावा एक और अहम मुद्दे पर मै आप का ध्यान आकर्षित करना चाहुंगा| देश मे भ्रष्टाचार की जड है हमारा कॉर्पोरेट क्षेत्र| काला एवं भ्रष्टाचार का पैसा यहांसे ही ज्यादातर निर्माण होता हैं| जल, जमीन और जंगल पर निजी कब्जा जमाने हेतू कॉर्पोरेट क्षेत्र भ्रष्टाचार को बडे पैमाने पर बढावा देता हैं| मै हैरान हुं की वामपंथी दलोंको छोड सभी राजनैतिक दल कॉर्पोरेट क्षेत्र के संरक्षण बनकर इस बात को सुनिश्‍चित कर रहे है की कॉर्पोरेट क्षेत्र लोकपाल के दायरे मे ना आये| यह दूर्भाग्यपूर्ण है और जनतंत्र की घोर विडंबना भी हैं| कॉग्रेस सहित देश की अन्य पार्टिया क्यों कॉर्पोरेट क्षेत्र को लोकपाल से बचाना चाहती हैं? इन राजनैतिक दलोंके और कॉर्पोरेट के कौनसे ऐसे संबंध हैं जिस संबंधो की वजह से इस देश के आम आदमी बजाय कॉर्पोरेट क्षेत्र के हीत की सबको चिंता लगी हुयी हैं? इस प्रश्न को लेकर मै बहुत दुखी हूं| इसका महत्व पूर्ण कारण हैं कि पर्यावरण के प्रश्न पर दुनिया के लोग चिंताग्रस्त हैं| वह पर्यावरण का असमतोल कार्पोरेट सेक्टर से जादा बढ रहा हैं| आज देश के कही गांव में पिने का पानी नही मिल रहा, पेट्रोल, डिझेल, रॉकेल, कोयाला की स्थिती को हम अनुभव कर रहे हैं| आनेवाले 150/200 सालमें देशमें बहुत बडा खतरा निर्माण होगा|

अंतत: मै आपसे प्रार्थना करूंगा के इस देश की आम जनता के प्रति अपना दायित्व आप निभाएं| उक्त चार अहम मुद्दोपर जनता के पक्ष में निर्णय हो| मै आशा करता हूं की आप शीघ्रही मेरे इस पत्र पर गौर करेंगे और इस पत्र का जवाब देंगे|

मै भगवान से प्रार्थना करता हूं की आपका अच्छा स्वास्थ एवं दीर्घायुष्य प्रदान करें|

भवदीय,

(कि.बा.उपनाम अण्णा हजारे)

12.02.2013

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