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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

सरकार पर अन्ना और रामदेव का डबल अटैक

जन लोकपाल और काले धन के खिलाफ अलग-अलग अभियान चला रहे अन्ना हजारे और बाबा रामदेव अब एक साथ आंदोलन चलाने जा रहे हैं। रामदेव एक मई (मंगलवार) से छत्तीसगढ़ के दुर्ग से और अन्ना हजारे महाराष्ट्र के शिरडी से आंदोलन की शुरुआत करेंगे।


अन्ना का आंदोलन महाराष्ट्र के 35 जिलों में चलेगा। हजारे धार्मिक स्थल शिरडी से एक मई को रवाना होंगे और तीन जून को दिल्ली पहुंचेंगे। आज ही रामदेव छत्तीसगढ़ से दिल्ली की ओर यात्रा के लिए चलेंगे। वे छत्तीसगढ़ से विभिन्न राज्यों का दौरा कर 2 जून को दिल्ली आएंगे। इसके बाद दोनों 3 जून को दिल्ली में एक साथ एक दिन के सांकेतिक अनशन पर बैठेंगे।


बाबा रामदेव तीसरे चरण की भारत स्वाभिमान यात्रा के लिए सोमवार सवेरे टीम के साथ दुर्ग (छत्तीसगढ़) के लिए रवाना हुए। जहां से जंतर-मंतर पहुंचने वाली उनकी तीसरी यात्रा शुरू होगी। मई दिवस पर दुर्ग जैसे औद्योगिक नगर से यात्रा शुरू कर बाबा विश्व भर के मजदूरों को काले धन के खिलाफ संदेश देंगे।


बाबा रामदेव तीन जून को दिल्ली के जंतर-मंतर पर भ्रष्टाचार और कालेधन के विरुद्ध आंदोलन कर रहे हैं। उनकी यह यात्रा उसी की तैयारियों के लिए शुरू हुई है। यह यात्रा एक महीना दो दिन चलेगी और दिल्ली के आसपास रहेगी। आंदोलन की कुछ योजनाएं बाबा और उनकी टीम गुप्त रख रही है। बाबा के दिल्ली आंदोलन की बागडोर स्वाभिमान ट्रस्ट के शीर्ष पदाधिकारियों के सुपुर्द कर दी है। इनमें ट्रस्ट के संयोजक जयदीप आर्य, डा. वेद प्रताप वैदिक, अजय आर्य, के. तिजारावाला, सुनीता पोद्दार आदि शामिल हैं।


बाबा ने दुर्ग रवाना होने से पहले बताया कि काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में भारी सहयोग मिल रहा है। दुर्ग से यात्रा शुरू कर बाबा ग्वालियर, भिंड, मुरैना, मेरठ, सहारनपुर, जींद, चुरु, झूंझनु, अलवर, पलवल, रिवाड़ी, झर्झर, बहादुरगढ़, नोएडा, गाजियाबाद होते हुए जंतर-मंतर पहुंचेंगे। 13 से 16 मई तक दिल्ली भी आएंगे। दो जून को बाबा दिल्ली में रहेंगे और उस दिन कोई सभा नहीं होगी।

आदर्श घोटाला, अशोक चव्हाण के खिलाफ मामला दर्ज

आदर्श सोसाइटी मामले में सोमवार को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण समेत 14 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है.


प्रवर्तन निदेशालय ने आदर्श सोसायटी घोटाले को लेकर मुख्यमंत्री पद गंवाने वाले अशोक चव्हाण सहित सभी के खिलाफ मनी लांड्रिंग का केस दर्ज किया है. यह केस आदर्श सोसायटी घोटाले से जुड़ा हुआ है.


प्रवर्तन निदेशालय ने बाम्बे हाईकोर्ट के बताया कि वह चव्हाण के खिलाफ आगे की कार्रवाई तभी करेगा जब सीबीआई अपनी जांच पूरी कर लेगी.


गौरतलब है कि आदर्श मामले की जांच सीबीआई कर रही है. आदर्श सोसायटी प्रकरण की जांच के लिए नियुक्त न्यायिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आदर्श सोसायटी की जमीन करगिल शहीदों के परिजनों के लिए नहीं थी. आयोग ने कहा है कि जमीन सरकार की है.

देश के सामने कई चुनौतियां : रामदेव

हरिद्वार : पतंजलि विवि के वार्षिकोत्सव अभ्युदय का रविवार को भव्य समापन हुआ। इस दौरान छात्रों ने रंगारंग प्रस्तुतियां भी दी।


इस अवसर पर मुख्य अतिथि योगगुरू बाबा रामदेव ने कहा कि देश के समक्ष कई चुनौतियां हैं। भूख, प्यास और बेबसी का जीवन जी रहे देशवासियों को उनका हक दिलाने को योगपीठ प्रयासरत है। उन्होंने स्वदेशी उत्पादों को अपनाने पर जोर देते हुए कहा कि विदेशी संस्कृति देश के लिए घातक है। योग और आयुर्वेद से देश को नई दिशा दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि युवाओं को अपनी शक्ति समझनी होगी। युवा शक्ति आगे बढ़ी तो देश का विकास होगा। इससे पूर्व प्रति कुलपति ब्रिगेडियर करतार सिंह ने क्विज का शुभांरभ किया। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रतियोगिताओं से विद्यार्थियों का ज्ञान बोध बढ़ता है। कार्यक्रम में कुल सचिव प्रो. जवाहर ठाकुर, प्रो. जीडी शर्मा, डा. हेमंत बिष्ट आदि उपस्थित थे।

बच्चों ने भ्रष्टाचार पर की चोट

गौरीडीह ग्राम के एसबी बाल विद्या मंदिर में छात्र, छात्राओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम मचायी। दर्शकों ने उनके गीतों को खूब सराहा। छात्रा प्रिया, पूनम, आरती, अंजू, गरिमा, रंजना और बबिता ने भ्रष्टाचार पर प्रहार करते हुये गीतों के माध्यम से जनता को जगाया। सामूहिक नृत्य में सुमन, अंजू और उनकी सखियों ने यशोदा मइया तेरो कन्हैया गीत पर दर्शक झूम उठे। जब ले बबुआ मुलायम सरकार रहिये तुम नंबर 420 से पार रहिये। भीम और उनके साथियों ने नकल पर कटाक्ष किया। उक्त कार्यक्रम में बच्चों ने एकांकी, नृत्य, प्रहसन, लोकगीत समूह गीत के माध्यम से जनता का जगाया। उक्त अवसर पर ब्लाक प्रमुख प्रतिनिधि शम्भू यादव ने कहा कि शिक्षा से व्यक्ति का विकास होता है। उक्त अवसर पर अमीचन्द यादव, राकेश कन्नौजिया, रविन्द्र वर्मा, रामानन्द यादव, दीपक, अन्द्रिका प्रसाद यादव, जितेन्द्र राय, रमाकांत यादव आदि रहे।

अन्ना का महाराष्ट्र दौरा मंगलवार से

अन्ना हजारे का ये दौरा मजबूत लोकायुक्त विधेयक को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए है. यह जानकारी उनके एक सहयोगी ने दी है.


मुम्बई में दिसम्बर 2011 के अनशन के बाद अन्ना का महाराष्ट्र का यह पहला बड़ा दौरा है.


मुम्बई में अन्ना के अनशन को उतना समर्थन नहीं मिल पाया था. अन्ना अपने राज्यस्तरीय दौरे के हिस्से के रूप में दो जून को मुम्बई में होंगे. वह तीन जून को नई दिल्ली भी जाएंगे, जहां वह जंतर-मंतर पर योग गुरु बाबा रामदेव के अनशन में हिस्सा लेंगे.


अन्ना मंगलवार सुबह अपने गृह जनपद अहमदनगर में राहटा गांव में सभा के साथ अपने दौरे का शुभारम्भ करेंगे और अगले दिन पड़ोसी जिले औरंगाबाद के लिए प्रस्थान कर जाएंगे.


सहयोगी ने सोमवार को बताया कि अन्ना हर जिले में जाएंगे और वहां एक दिन रहेंगे और लोगों के साथ बातचीत करेंगे. अन्ना मजबूत लोकायुक्त विधेयक की आवश्यकता, भ्रष्टाचार और इससे सम्बंधित मुद्दों के बारे में लोगों के साथ बातचीत करेंगे.


अन्ना जालना, बीड़, उस्मानाबाद, लातूर, परभड़ी, नांदेड़, हिंगोली, वाशिम, यवतमाल, चंद्रपुर, गड़चिरौली, गोंदिया, भंडारा, नागपुर, वर्धा, अमरावती, अकोला, बुलढाना, जलगांव, धुले, नंदुरबार, नासिक, पुणे, सोलापुर, सतारा, सांगली, कोल्हापुर, सिंधुदुर्ग, रत्नागिरि, रायगढ़ और मुम्बई का दौरा करेंगे.


अन्ना तीन जून को थोड़े समय के लिए दौरा बीच में छोड़कर नई दिल्ली जाएंगे, जहां जंतर-मंतर पर योगगुरु बाबा रामदेव के अनशन में हिस्सा लेंगे.


उसके बाद वह वापस महाराष्ट्र लौटेंगे और चार पांच जून को ठाणे और नवी मुम्बई के दौरे के साथ इस अभियान का समापन करेंगे.

संसद में सचिन, कांग्रेस की "डर्टी पिक्चर" : ठाकरे

सचिन तेंदुलकर के राज्यसभा में जाने की खुशी जहां केंद्र सरकार के मंत्रियो के चेहरे और बयानों में दिखाई दे रही है, वहीं शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे ने सचिन तेंदुलकर को राज्यसभा में नॉमिनेट करने को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधा है। ठाकरे ने कहा है कि सचिन को राज्यसभा में मनोनीत करना कांग्रेस की डर्टी पिक्चर है और इसके लिए कांग्रेस पार्टी ने सचिन पर दबाव बनाया।


ठाकरे ने कहा कि राज्यसभा सचिन के लिए मुफीद जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि सचिन पर कांग्रेस ने दबाव बनाकर राज्यसभा सदस्य के लिए राजी किया है। अपने सम्मान में आयोजित एक समारोह में बाल ठाकरे ने सचिन तेंदुलकर और अभिनेत्री रेखा को राज्यसभा में भेजे जाने पर तीखी प्रतिक्रिया दी।


ठाकरे ने कहा कि सचिन को राज्यसभा में मनोनीत करना कांग्रेस की डर्टी पिक्चर है। उन्होंने कहा कि राज्यसभा सचिन के लिए मुफीद जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि सचिन पर कांग्रेस ने दबाव बनाकर राज्यसभा सदस्य के लिए राजी किया है।


दूसरी ओर कांग्रेस नेता श्रीप्रकाश जयसवाल ने सचिन को राज्सभा के लिए मनोनीत करने के फैसले को कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक बताया है। उन्होंने कहा कि इसी वजह से विपक्षी पार्टियों के नेताओं के पेट में दर्द होना स्वाभाविक है।

एक आग का जर्रा

विभीषण नहीं, अन्ना हजारे का भक्त हूं : कासमी

बिजनौर। अन्ना की कोर कमेटी से निष्कासन के बाद बिजनौर लौटे मुफ्ती शमऊन कासमी ने कहा कि वह अन्ना का सम्मान करते हैं और भ्रष्टाचार के विरोधी उनकी मुहिम से जुडे़ रहेंगे। उन्हें राजनीति से भी कोई परहेज नहीं है।


जासूसी के आरोप में 22 अप्रैल को अन्ना की कोर कमेटी से निकाले गए बिजनौर निवासी मुफ्ती शमऊन कासमी का कहना है कि वह 'विभीषण' नहीं, बल्कि अन्ना के भक्त हैं। उन पर लगाए गये आरोप बेबुनियाद हैं। उन्होंने कोर कमेटी से हटने का खुद ही फैसला लिया है। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया, किरन बेदी व प्रशांत भूषण ने अन्ना को कैप्चर कर रखा है। वह अन्ना का सम्मान करते हैं, लेकिन ये चारों जनता के पैसे का बंदरबांट कर रहे हैं। उनके संघ अथवा किसी भी राजनैतिक दल से संबंध नहीं हैं। एक सवाल के जवाब में कहा कि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव से हवाई जहाज में मुलाकात अचानक हुई थी। मेरठ में शनिवार को सपा नेता अरशद मक्की के घर प्रेस वार्ता करने पर कहा कि उनसे पुराने संबंध हैं। उन्हें भी राजनीति से कोई परहेज नहीं है। प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बहुत आशाएं हैं। मुफ्ती शमऊन कासमी का कहना था कि वह एक सप्ताह तक अज्ञातवास में नहीं रहे, बल्कि इस अवधि के दौरान दिल्ली में धार्मिक नेताओं से भेंट की और भ्रष्टाचार खत्म करने में सहयोग की अपील की। वह देवबंद दारूल उलूम के वाइस चांसलर व लखनऊ में धार्मिक नेताओं से मुलाकात करेंगे। उन्होंने कहा कि कोर कमेटी की बैठक से बाहर आने के बाद वह विचलित हो गये थे। इसलिए वह भूलवश कह गये कि मुस्लिम होने के कारण ही उन पर आरोप लगाये गये हैं, जबकि वह यह कहना चाहते थे कि कमेटी में किसी मुस्लिम के न होने पर विपरीत प्रभाव पडे़गा।

नकली नोट रिसर्व बैंक और सरकार

देश के रिज़र्व बैंक के वाल्ट पर सीबीआई ने छापा डाला. उसे वहां पांच सौ और हज़ार रुपये के नक़ली नोट मिले. वरिष्ठ अधिकारियों से सीबीआई ने पूछताछ भी की. दरअसल सीबीआई ने नेपाल-भारत सीमा के साठ से सत्तर विभिन्न बैंकों की शाखाओं पर छापा डाला था, जहां से नक़ली नोटों का कारोबार चल रहा था. इन बैंकों के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा कि उन्हें ये नक़ली नोट भारत के रिजर्व बैंक से मिल रहे हैं. इस पूरी घटना को भारत सरकार ने देश से और देश की संसद से छुपा लिया. या शायद सीबीआई ने भारत सरकार को इस घटना के बारे में कुछ बताया ही नहीं. देश अंधेरे में और देश को तबाह करने वाले रोशनी में हैं. आइए, आपको आज़ाद भारत के सबसे बड़े आपराधिक षड्‌यंत्र के बारे में बताते हैं, जिसे हमने पांच महीने की तलाश के बाद आपके सामने रखने का फ़ैसला किया है. कहानी है रिज़र्व बैंक के माध्यम से देश के अपराधियों द्वारा नक़ली नोटों का कारोबार करने की.


नक़ली नोटों के कारोबार ने देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह अपने जाल में जकड़ लिया है. आम जनता के हाथों में नक़ली नोट हैं, पर उसे ख़बर तक नहीं है. बैंक में नक़ली नोट मिल रहे हैं, एटीएम नक़ली नोट उगल रहे हैं. असली-नक़ली नोट पहचानने वाली मशीन नक़ली नोट को असली बता रही है. इस देश में क्या हो रहा है, यह समझ के बाहर है. चौथी दुनिया की तहक़ीक़ात से यह पता चला है कि जो कंपनी भारत के लिए करेंसी छापती रही, वही 500 और 1000 के नक़ली नोट भी छाप रही है. हमारी तहक़ीक़ात से यह अंदेशा होता है कि देश की सरकार और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया जाने-अनजाने में नोट छापने वाली विदेशी कंपनी के पार्टनर बन चुके हैं. अब सवाल यही है कि इस ख़तरनाक साज़िश पर देश की सरकार और एजेंसियां क्यों चुप हैं?


एक जानकारी जो पूरे देश से छुपा ली गई, अगस्त 2010 में सीबीआई की टीम ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के वाल्ट में छापा मारा. सीबीआई के अधिकारियों का दिमाग़ उस समय सन्न रह गया, जब उन्हें पता चला कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के ख़ज़ाने में नक़ली नोट हैं. रिज़र्व बैंक से मिले नक़ली नोट वही नोट थे, जिसे पाकिस्तान की खु़फिया एजेंसी नेपाल के रास्ते भारत भेज रही है. सवाल यह है कि भारत के रिजर्व बैंक में नक़ली नोट कहां से आए? क्या आईएसआई की पहुंच रिज़र्व बैंक की तिजोरी तक है या फिर कोई बहुत ही भयंकर साज़िश है, जो हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था को खोखला कर चुकी है. सीबीआई इस सनसनीखेज मामले की तहक़ीक़ात कर रही है. छह बैंक कर्मचारियों से सीबीआई ने पूछताछ भी की है. इतने महीने बीत जाने के बावजूद किसी को यह पता नहीं है कि जांच में क्या निकला? सीबीआई और वित्त मंत्रालय को देश को बताना चाहिए कि बैंक अधिकारियों ने जांच के दौरान क्या कहा? नक़ली नोटों के इस ख़तरनाक खेल पर सरकार, संसद और जांच एजेंसियां क्यों चुप है तथा संसद अंधेरे में क्यों है?


अब सवाल यह है कि सीबीआई को मुंबई के रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया में छापा मारने की ज़रूरत क्यों पड़ी? रिजर्व बैंक से पहले नेपाल बॉर्डर से सटे बिहार और उत्तर प्रदेश के क़रीब 70-80 बैंकों में छापा पड़ा. इन बैंकों में इसलिए छापा पड़ा, क्योंकि जांच एजेंसियों को ख़बर मिली है कि पाकिस्तान की खु़फ़िया एजेंसी आईएसआई नेपाल के रास्ते भारत में नक़ली नोट भेज रही है. बॉर्डर के इलाक़े के बैंकों में नक़ली नोटों का लेन-देन हो रहा है. आईएसआई के रैकेट के ज़रिए 500 रुपये के नोट 250 रुपये में बेचे जा रहे हैं. छापे के दौरान इन बैंकों में असली नोट भी मिले और नक़ली नोट भी. जांच एजेंसियों को लगा कि नक़ली नोट नेपाल के ज़रिए बैंक तक पहुंचे हैं, लेकिन जब पूछताछ हुई तो सीबीआई के होश उड़ गए. कुछ बैंक अधिकारियों की पकड़-धकड़ हुई. ये बैंक अधिकारी रोने लगे, अपने बच्चों की कसमें खाने लगे. उन लोगों ने बताया कि उन्हें नक़ली नोटों के बारे में कोई जानकारी नहीं, क्योंकि ये नोट रिजर्व बैंक से आए हैं. यह किसी एक बैंक की कहानी होती तो इसे नकारा भी जा सकता था, लेकिन हर जगह यही पैटर्न मिला. यहां से मिली जानकारी के बाद ही सीबीआई ने फ़ैसला लिया कि अगर नक़ली नोट रिजर्व बैंक से आ रहे हैं तो वहीं जाकर देखा जाए कि मामला क्या है. सीबीआई ऱिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पहुंची, यहां उसे नक़ली नोट मिले. हैरानी की बात यह है कि रिज़र्व बैंक में मिले नक़ली नोट वही नोट थे, जिन्हें आईएसआई नेपाल के ज़रिए भारत भेजती है.


रिज़र्व बैंक आफ इंडिया में नक़ली नोट कहां से आए, इस गुत्थी को समझने के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश में नक़ली नोटों के मामले को समझना ज़रूरी है. दरअसल हुआ यह कि आईएसआई की गतिविधियों की वजह से यहां आएदिन नक़ली नोट पकड़े जाते हैं. मामला अदालत पहुंचता है. बहुत सारे केसों में वकीलों ने अनजाने में जज के सामने यह दलील दी कि पहले यह तो तय हो जाए कि ये नोट नक़ली हैं. इन वकीलों को शायद जाली नोट के कारोबार के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं था, स़िर्फ कोर्ट से व़क्त लेने के लिए उन्होंने यह दलील दी थी. कोर्ट ने जब्त हुए नोटों को जांच के लिए सरकारी लैब भेज दिया, ताकि यह तय हो सके कि ज़ब्त किए गए नोट नक़ली हैं. रिपोर्ट आती है कि नोट असली हैं. मतलब यह कि असली और नक़ली नोटों के कागज, इंक, छपाई और सुरक्षा चिन्ह सब एक जैसे हैं. जांच एजेंसियों के होश उड़ गए कि अगर ये नोट असली हैं तो फिर 500 का नोट 250 में क्यों बिक रहा है. उन्हें तसल्ली नहीं हुई. फिर इन्हीं नोटों को टोक्यो और हांगकांग की लैब में भेजा गया. वहां से भी रिपोर्ट आई कि ये नोट असली हैं. फिर इन्हें अमेरिका भेजा गया. नक़ली नोट कितने असली हैं, इसका पता तब चला, जब अमेरिका की एक लैब ने यह कहा कि ये नोट नक़ली हैं. लैब ने यह भी कहा कि दोनों में इतनी समानताएं हैं कि जिन्हें पकड़ना मुश्किल है और जो विषमताएं हैं, वे भी जानबूझ कर डाली गई हैं और नोट बनाने वाली कोई बेहतरीन कंपनी ही ऐसे नोट बना सकती है. अमेरिका की लैब ने जांच एजेंसियों को पूरा प्रूव दे दिया और तरीक़ा बताया कि कैसे नक़ली नोटों को पहचाना जा सकता है. इस लैब ने बताया कि इन नक़ली नोटों में एक छोटी सी जगह है, जहां छेड़छाड़ हुई है. इसके बाद ही नेपाल बॉर्डर से सटे बैंकों में छापेमारी का सिलसिला शुरू हुआ. नक़ली नोटों की पहचान हो गई, लेकिन एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि नेपाल से आने वाले 500 एवं 1000 के नोट और रिज़र्व बैंक में मिलने वाले नक़ली नोट एक ही तरह के कैसे हैं. जिस नक़ली नोट को आईएसआई भेज रही है, वही नोट रिजर्व बैंक में कैसे आया. दोनों जगह पकड़े गए नक़ली नोटों के काग़ज़, इंक और छपाई एक जैसी क्यों है. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि भारत के 500 और 1000 के जो नोट हैं, उनकी क्वालिटी ऐसी है, जिसे आसानी से नहीं बनाया जा सकता है और पाकिस्तान के पास वह टेक्नोलॉजी है ही नहीं. इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि जहां से ये नक़ली नोट आईएसआई को मिल रहे हैं, वहीं से रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया को भी सप्लाई हो रहे हैं. अब दो ही बातें हो सकती हैं. यह जांच एजेंसियों को तय करना है कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों की मिलीभगत से नक़ली नोट आया या फिर हमारी अर्थव्यवस्था ही अंतरराष्ट्रीय मा़फ़िया गैंग की साज़िश का शिकार हो गई है. अब सवाल उठता है कि ये नक़ली नोट छापता कौन है.


हमारी तहक़ीक़ात डे ला रू नाम की कंपनी तक पहुंच गई. जो जानकारी हासिल हुई, उससे यह साबित होता है कि नक़ली नोटों के कारोबार की जड़ में यही कंपनी है. डे ला रू कंपनी का सबसे बड़ा करार रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ था, जिसे यह स्पेशल वॉटरमार्क वाला बैंक नोट पेपर सप्लाई करती रही है. पिछले कुछ समय से इस कंपनी में भूचाल आया हुआ है. जब रिजर्व बैंक में छापा पड़ा तो डे ला रू के शेयर लुढ़क गए. यूरोप में ख़राब करेंसी नोटों की सप्लाई का मामला छा गया. इस कंपनी ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को कुछ ऐसे नोट दे दिए, जो असली नहीं थे. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की टीम इंग्लैंड गई, उसने डे ला रू कंपनी के अधिकारियों से बातचीत की. नतीजा यह हुआ कि कंपनी ने हम्प्शायर की अपनी यूनिट में उत्पादन और आगे की शिपमेंट बंद कर दी. डे ला रू कंपनी के अधिकारियों ने भरोसा दिलाने की बहुत कोशिश की, लेकिन रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने यह कहा कि कंपनी से जुड़ी कई गंभीर चिंताएं हैं. अंग्रेजी में कहें तो सीरियस कंसर्नस. टीम वापस भारत आ गई.


डे ला रू कंपनी की 25 फीसदी कमाई भारत से होती है. इस ख़बर के आते ही डे ला रू कंपनी के शेयर धराशायी हो गए. यूरोप में हंगामा मच गया, लेकिन हिंदुस्तान में न वित्त मंत्री ने कुछ कहा, न ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कोई बयान दिया. रिज़र्व बैंक के प्रतिनिधियों ने जो चिंताएं बताईं, वे चिंताएं कैसी हैं. इन चिंताओं की गंभीरता कितनी है. रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ डील बचाने के लिए कंपनी ने माना कि भारत के रिज़र्व बैंक को दिए जा रहे करेंसी पेपर के उत्पादन में जो ग़लतियां हुईं, वे गंभीर हैं. बाद में कंपनी के चीफ एक्जीक्यूटिव जेम्स हसी को 13 अगस्त, 2010 को इस्ती़फा देना पड़ा. ये ग़लतियां क्या हैं, सरकार चुप क्यों है, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया क्यों ख़ामोश है. मज़ेदार बात यह है कि कंपनी के अंदर इस बात को लेकर जांच चल रही थी और एक हमारी संसद है, जिसे कुछ पता नहीं है.


5 जनवरी, 2011 को यह ख़बर आई कि भारत सरकार ने डे ला रू के साथ अपने संबंध ख़त्म कर लिए. पता यह चला कि 16,000 टन करेंसी पेपर के लिए रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने डे ला रू की चार प्रतियोगी कंपनियों को ठेका दे दिया. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने डे ला रू को इस टेंडर में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित भी नहीं किया. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और भारत सरकार ने इतना बड़ा फै़सला क्यों लिया. इस फै़सले के पीछे तर्क क्या है. सरकार ने संसद को भरोसे में क्यों नहीं लिया. 28 जनवरी को डे ला रू कंपनी के टिम कोबोल्ड ने यह भी कहा कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ उनकी बातचीत चल रही है, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि डे ला रू का अब आगे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ कोई समझौता होगा या नहीं. इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी डे ला रू से कौन बात कर रहा है और क्यों बात कर रहा है. मज़ेदार बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ख़ामोश रहा.


इस तहक़ीक़ात के दौरान एक सनसनीखेज सच सामने आया. डे ला रू कैश सिस्टम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को 2005 में सरकार ने दफ्तर खोलने की अनुमति दी. यह कंपनी करेंसी पेपर के अलावा पासपोर्ट, हाई सिक्योरिटी पेपर, सिक्योरिटी प्रिंट, होलोग्राम और कैश प्रोसेसिंग सोल्यूशन में डील करती है. यह भारत में असली और नक़ली नोटों की पहचान करने वाली मशीन भी बेचती है. मतलब यह है कि यही कंपनी नक़ली नोट भारत भेजती है और यही कंपनी नक़ली नोटों की जांच करने वाली मशीन भी लगाती है. शायद यही वजह है कि देश में नक़ली नोट भी मशीन में असली नज़र आते हैं. इस मशीन के सॉफ्टवेयर की अभी तक जांच नहीं की गई है, किसके इशारे पर और क्यों? जांच एजेंसियों को अविलंब ऐसी मशीनों को जब्त करना चाहिए, जो नक़ली नोटों को असली बताती हैं. सरकार को इस बात की जांच करनी चाहिए कि डे ला रू कंपनी के रिश्ते किन-किन आर्थिक संस्थानों से हैं. नोटों की जांच करने वाली मशीन की सप्लाई कहां-कहां हुई है.


हमारी जांच टीम को एक सूत्र ने बताया कि डे ला रू कंपनी का मालिक इटालियन मा़िफया के साथ मिलकर भारत के नक़ली नोटों का रैकेट चला रहा है. पाकिस्तान में आईएसआई या आतंकवादियों के पास जो नक़ली नोट आते हैं, वे सीधे यूरोप से आते हैं. भारत सरकार, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया और देश की जांच एजेंसियां अब तक नक़ली नोटों पर नकेल इसलिए नहीं कस पाई हैं, क्योंकि जांच एजेंसियां अब तक इस मामले में पाकिस्तान, हांगकांग, नेपाल और मलेशिया से आगे नहीं देख पा रही हैं. जो कुछ यूरोप में हो रहा है, उस पर हिंदुस्तान की सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया चुप है.


अब सवाल उठता है कि जब देश की सबसे अहम एजेंसी ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बताया, तब सरकार ने क्या किया. जब डे ला रू ने नक़ली नोट सप्लाई किए तो संसद को क्यों नहीं बताया गया. डे ला रू के साथ जब क़रार ़खत्म कर चार नई कंपनियों के साथ क़रार हुए तो विपक्ष को क्यों पता नहीं चला. क्या संसद में उन्हीं मामलों पर चर्चा होगी, जिनकी रिपोर्ट मीडिया में आती है. अगर जांच एजेंसियां ही कह रही हैं कि नक़ली नोट का काग़ज़ असली नोट के जैसा है तो फिर सप्लाई करने वाली कंपनी डे ला रू पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई. सरकार को किसके आदेश का इंतजार है. समझने वाली बात यह है कि एक हज़ार नोटों में से दस नोट अगर जाली हैं तो यह स्थिति देश की वित्तीय व्यवस्था को तबाह कर सकती है. हमारे देश में एक हज़ार नोटों में से कितने नोट जाली हैं, यह पता कर पाना भी मुश्किल है, क्योंकि जाली नोट अब हमारे बैंकों और एटीएम मशीनों से निकल रहे हैं.
डे ला रू का नेपाल और आई एस आई कनेक्शन


कंधार हाईजैक की कहानी बहुत पुरानी हो गई है, लेकिन इस अध्याय का एक ऐसा पहलू है, जो अब तक दुनिया की नज़र से छुपा हुआ है. इस खउ-814 में एक ऐसा शख्स बैठा था, जिसके बारे में सुनकर आप दंग रह जाएंगे. इस आदमी को दुनिया भर में करेंसी किंग के नाम से जाना जाता है. इसका असली नाम है रोबेर्टो ग्योरी. यह इस जहाज में दो महिलाओं के साथ स़फर कर रहा था. दोनों महिलाएं स्विट्जरलैंड की नागरिक थीं. रोबेर्टो़ खुद दो देशों की नागरिकता रखता है, जिसमें पहला है इटली और दूसरा स्विट्जरलैंड. रोबेर्टो को करेंसी किंग इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह डे ला रू नाम की कंपनी का मालिक है. रोबेर्टो ग्योरी को अपने पिता से यह कंपनी मिली. दुनिया की करेंसी छापने का 90 फी़सदी बिजनेस इस कंपनी के पास है. यह कंपनी दुनिया के कई देशों कें नोट छापती है. यही कंपनी पाकिस्तान की आईएसआई के लिए भी काम करती है. जैसे ही यह जहाज हाईजैक हुआ, स्विट्जरलैंड ने एक विशिष्ट दल को हाईजैकर्स से बातचीत करने कंधार भेजा. साथ ही उसने भारत सरकार पर यह दबाव बनाया कि वह किसी भी क़ीमत पर करेंसी किंग रोबेर्टो ग्योरी और उनके मित्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करे. ग्योरी बिजनेस क्लास में स़फर कर रहा था. आतंकियों ने उसे प्लेन के सबसे पीछे वाली सीट पर बैठा दिया. लोग परेशान हो रहे थे, लेकिन ग्योरी आराम से अपने लैपटॉप पर काम कर रहा था. उसके पास सैटेलाइट पेन ड्राइव और फोन थे.यह आदमी कंधार के हाईजैक जहाज में क्या कर रहा था, यह बात किसी की समझ में नहीं आई है. नेपाल में ऐसी क्या बात है, जिससे स्विट्जरलैंड के सबसे अमीर व्यक्ति और दुनिया भर के नोटों को छापने वाली कंपनी के मालिक को वहां आना पड़ा. क्या वह नेपाल जाने से पहले भारत आया था. ये स़िर्फ सवाल हैं, जिनका जवाब सरकार के पास होना चाहिए. संसद के सदस्यों को पता होना चाहिए, इसकी जांच होनी चाहिए थी. संसद में इस पर चर्चा होनी चाहिए थी. शायद हिंदुस्तान में फैले जाली नोटों का भेद खुल जाता.




नकली नोंटों का मायाजाल
सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि 2006 से 2009 के बीच 7.34 लाख सौ रुपये के नोट, 5.76 लाख पांच सौ रुपये के नोट और 1.09 लाख एक हज़ार रुपये के नोट बरामद किए गए. नायक कमेटी के मुताबिक़, देश में लगभग 1,69,000 करोड़ जाली नोट बाज़ार में हैं. नक़ली नोटों का कारोबार कितना ख़तरनाक रूप ले चुका है, यह जानने के लिए पिछले कुछ सालों में हुईं कुछ महत्वपूर्ण बैठकों के बारे में जानते हैं. इन बैठकों से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि देश की एजेंसियां सब कुछ जानते हुए भी बेबस और लाचार हैं. इस धंधे की जड़ में क्या है, यह हमारे ख़ुफिया विभाग को पता है. नक़ली नोटों के लिए बनी ज्वाइंट इंटेलिजेंस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि भारत नक़ली नोट प्रिंट करने वालों के स्रोत तक नहीं पहुंच सका है. नोट छापने वाले प्रेस विदेशों में लगे हैं. इसलिए इस मुहिम में विदेश मंत्रालय की मदद लेनी होगी, ताकि उन देशों पर दबाव डाला जा सके. 13 अगस्त, 2009 को सीबीआई ने एक बयान दिया कि नक़ली नोट छापने वालों के पास भारतीय नोट बनाने वाला गुप्त सांचा है, नोट बनाने वाली स्पेशल इंक और पेपर की पूरी जानकारी है. इसी वजह से देश में असली दिखने वाले नक़ली नोट भेजे जा रहे हैं. सीबीआई के प्रवक्ता ने कहा कि नक़ली नोटों के मामलों की तहक़ीक़ात के लिए देश की कई एजेंसियों के सहयोग से एक स्पेशल टीम बनाई गई है. 13 सितंबर, 2009 को नॉर्थ ब्लॉक में स्थित इंटेलिजेंस ब्यूरो के हेड क्वार्टर में एक मीटिंग हुई थी, जिसमें इकोनोमिक इंटेलिजेंस की सारी अहम एजेंसियों ने हिस्सा लिया. इसमें डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, इंटेलिजेंस ब्यूरो, आईबी, वित्त मंत्रालय, सीबीआई और सेंट्रल इकोनोमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रतिनिधि मौजूद थे. इस मीटिंग का निष्कर्ष यह निकला कि जाली नोटों का कारोबार अब अपराध से बढ़कर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन गया है. इससे पहले कैबिनेट सेक्रेटरी ने एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई थी, जिसमें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, आईबी, डीआरआई, ईडी, सीबीआई, सीईआईबी, कस्टम और अर्धसैनिक बलों के प्रतिनिधि मौजूद थे. इस बैठक में यह तय हुआ कि ब्रिटेन के साथ यूरोप के दूसरे देशों से इस मामले में बातचीत होगी, जहां से नोट बनाने वाले पेपर और इंक की सप्लाई होती है. तो अब सवाल उठता है कि इतने दिनों बाद भी सरकार ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की, जांच एजेंसियों को किसके आदेश का इंतजार है?

बोफोर्स के दलालों की हर सरकार ने की अनदेखी : आर एस एस

दिल्‍ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कहना है कि बोफोर्स दलाली मामले में एक के बाद एक हर सरकार को मालूम था कि दोषी कौन है लेकिन इसके बावजूद सबने इस बात को नज़रअंदाज़ करना बेहतर समझा। उसने आरोप लगाया कि इस मामले में भारत की राजनीतिक जमात आपस में मजबूत बंधन में एकजुट है। बोफोर्स दलाली मामले की घटना के बाद छह साल यानी 1998 से 2004 तक भाजपा नीत राजग सरकार के सत्ता में रहने को देखते हुए संघ की इस टिप्पणी को दिलचस्प माना जा रहा है।


संघ के मुखपत्र आर्गेनाइज़र के ताज़ा अंक के संपादकीय में इस टिप्पणी के साथ आगे कहा गया है, बोफोर्स घोटाले के बाद सीबीआई के 16 निदेशक हुए। लेकिन उनमें से किसी ने एक बार भी इस केस के बारे में कभी कुछ नहीं कहा। इसमें कहा गया है कि इस घोटाले के उजागर होने के बाद देश ने कई गैर कांग्रेस सरकारें देखीं, लेकिन कोई मामले को अंजाम तक नहीं ले गई। स्वीडन के पूर्व पुलिस प्रमुख स्टेन लिंडस्ट्राम के हवाले से संपादकीय में कहा गया है, कई राजनीतिक स्वीडन गए और मामले की जानकारी मांगी तथा वायदा किया कि सत्ता में आने पर वे जांच में मदद करेंगे लेकिन बाद में उन्होंने अपने वायदे पूरे नहीं किए।


संघ ने इस बारे में खेद व्यक्त किया है कि फिलिपींस और बांग्लादेश जैसे छोटे देशों ने सत्ता का दुरूपयोग करने वाले इरशाद और मार्कोस जैसे अपने शासकों को दंडित किया लेकिन भारत में राजनीतिकों के विरूद्ध मामलों को उनके अंजाम तक नहीं पंहुचाया गया। उसने कहा है, इस मामले में हमारे राजनीतिकों की पूरी जमात मजबूत बंधन में बंधी है। संपादकीय में इस बात पर भी हैरानी जताई गई है कि बोफोर्स दलाली खाने में जिस इतालवी व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोची का नाम प्रमुखता से सामने आ रहा है उसका गांधी परिवार से परिचय कराने वाली सोनिया गांधी का कोई नाम क्यों नहीं ले रहा है।



इसमें कहा गया है, बोफोर्स दलाली मामले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम की चर्चा हो रही है, अरूण नेहरू का नाम घसीटा गया लेकिन सोनिया का नाम नहीं लिया गया। संपादकीय ने कहा है, हैरी पॉटर श्रृंखला के एक चरित्र की तरह मानो यह तय कर लिया गया है कि यह वह कुलीन महिला है जिसका नाम नहीं लिया जाये।

टीम अन्ना आंदोलन: बुंदेलखंड में विस्तार प्रक्रिया तेज

 भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को तेज करने के लिए अन्ना टीम ने संगठन को विस्तार देने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है।


भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के लिए इण्डिया अगेंस्ट करप्शन को मजबूत बनाने की अन्ना हजारे की घोषणा को अमलीजामा पहनाने के लिए अन्ना टीम ने कसरत शुरू कर दी है। आगामी लोकसभा चुनाव के पहले ब्लॉक स्तर तक संगठन पहुँचाने की योजना है। इसके लिए बुंदेलखंड के सातों जनपदों से ब्लॉक स्तर के पाँच सक्रिय कार्यकर्ताओं को यहाँ बुलाया जा रहा है। 


इनको 29 अप्रैल को यहाँ प्रशिक्षण देने के साथ संगठन के विस्तार के बारे में बताया जाएगा। प्रशिक्षण में टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल व संजय सिंह के हिस्सा लेने की संभावना है। संगठन के उच्च न्यायालय प्रभाग इलाहाबाद के संयोजक अरविंद त्रिपाठी ने बताया कि संगठन की दिशा व दशा तय करने के लिए कार्यकर्ताओं से राय ली जाएगी। साथ ही संगठन कोविस्तार के लिए तैयार किया जाएगा। इसके लिए ब्लॉक स्तर पर पाँच-छह अच्छे कार्यकर्ताओं की पहचान कर बैठक में बुलाया गया है।

प्लाट घोटाले में PM के पूर्व प्रधान सचिव

नई दिल्लीः अब एक और खुलासा सामने आया है. अंग्रेजी अखबर 'द हिन्दू' ने दावा किया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार टीकेए नायर की भांजी और उनकी एक करीबी दोस्त को गलत ढंग से प्लॉट आवंटित करके फायदा पहुंचाया गया था और बाद में शिकायत होने पर दोनों प्लॉट लौटा दिए गए.

अंग्रेजी अख़बार 'द हिन्दू' का दावा है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार टीकेए नायर की भांजी प्रीति प्रभा और उनकी एक करीबी महिला उमा देवी नांबियार को बैंगलोर के दक्षिणी इलाके में गलत ढंग से प्लॉट आवंटित किए गए थे.

अखबार के मुताबिक इस धांधली में टाट्रा घोटाले में शिकायत का सामना कर रहे बीईएमएल के सीएमडी वीआरएस नटराजन का भी हाथ था. आरोप है कि बीईएमएल कर्मचारियों की हाउसिंग सोसाइटी में नियमों को ताक पर रखकर ये प्लॉट दिए गए. ये आवंटन दिसंबर 2008 में किए गए थे.

जब बीईएमएल के एक पूर्व-कर्मचारी ने इसकी शिकायत प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से की तो दिसंबर 2010 में बिना कोई कारण बताए दोनों प्लॉट लौटा दिए गए.

दक्षिण बैंगलोर के पॉश इलाके की सोसाइटी के ये प्लॉट नायर के करीबियों को सिर्फ 450 रुपये प्रति वर्गफुट की दर से दे दिए गए, जबकि उस वक्त इनकी बाजार में कीमत 2500-3000 रुपये प्रति वर्गफुट थी.

यानी 60 से 72 लाख रुपये के ये प्लॉट सिर्फ 10 लाख 80 हज़ार रुपये में दे दिए गए थे. पीएम और राष्ट्रपति से इस मामले की शिकायत करने वाले के एस पेरियास्वामी का दावा है कि ये आवंटन टाट्रा घोटाले में पीएमओ को खामोश रखने के इरादे से किया गया था.

वीआरएस नटराजन पर आरोप
बीईएमएल के सीएमडी वीआरएस नटराजन पर भी बीईएमएल कर्मचारियों के लिए बनी हाउसिंग सोसाइटी में घोटाला करने का आरोप लगा है. तहलका का दावा है कि बतौर चेयरमैन नटराजन ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए सोसाइटी में कई प्लॉट झपट लिए.

तहलका के मुताबिक नटराजन 2002 से बीईएमएल के सीएमडी हैं, लेकिन वो कंपनी के कर्मचारी नहीं हैं. इस नाते हाउसिंग सोसाइटी में उन्हें कुछ नहीं मिलना चाहिए था, लेकिन उन्हें सिर्फ 8.5 लाख में 6,000 हजार वर्ग फुट के दो प्लॉट मिले. जिस साल वो सीएमडी बने थे तभी उन्हें ये फ्लैट दिए गए थे.

साल 2005 में फिर से सोसाइटी के नियमों की अनदेखी करते हुए नटराजन को एक और प्लॉट 5330 वर्गफुट का मिला. नियम के मुताबिक सोसाइटी में जिसके पास प्लॉट है, उसे फिर से प्लॉट नहीं मिल सकता है.

नटराजन का नाम आजकल चर्चा में है. टाट्रा ट्रक घोटाले में सीबीआई उनसे पूछताछ कर चुकी है.
वीआरएस नटराज की सफाई

इस खबर पर बीईएमएल के चेयरमैन वीआरएस नटराजन का कहना है कि आरोप पूरी तरह बेबुनियाद है.

नटराजन के मुताबिक हो सकता है कि टीकेए नायर की भांजी और दोस्त को सोसाइटी की एसोसिएट मेंबरशिप दी गई है. जमीन के जिस मालिक से जमीन खरीदी गई है, उसे दिए जाने वाले प्लॉट के हिस्से को वो जिसे कहता है उसे अलॉट कर दिया जाता है. अलॉटी सोसाइटी के एसोसिएट मेंबर हो सकते हैं.

शिकायतकर्ता करने वाले केएस पेरियास्वामी को अभद्र बर्ताव और सहकर्मियों के साथ झगड़े की कई शिकायतों के बाद बर्खास्त किया गया था. इसी के कारण वो ऐसे आरोप लगा रहे हैं. बर्खास्तगी के खिलाफ उनकी याचिका पर सुनवाई लेबर कोर्ट में चल रही है.

नटराजन का कहना है कि बीईएमएल की तीन कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी हैं. तीनों की मॉनिटरिंग और कंट्रोल पर बीईएमएल मैनेजमेंट का कोई दखल नहीं है. रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज़ कंट्रोल करती है.

वहीं, अंग्रेजी अखबार 'द हिंदु' से बात करते हुए प्रीति प्रभा ने माना है कि उन्होंने विवादों के चलते प्लॉट वापस कर दिए. उन्होंने यह भी बताया कि नटराजन उनके पारिवारिक दोस्त हैं और वो उन्हें अंकल कहा करती हैं, लेकिन प्लॉट नटराजन से संपर्क के कारण नहीं मिले थे.

कौन हैं टीकेए नायर
टीकेए नायर इस समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार हैं. नायर को राज्यमंत्री का दर्जा मिला हुआ है. उनका नाम पीएमओ के अधिकारियों की लिस्ट में सबसे ऊपर है. केरल के रहने वाले नायर 1963 बैच के पंजाब कैडर के आईएएस अधिकारी हैं. वे पंजाब के मुख्य सचिव रह चुके हैं.

टीकेए नायर मनमोहन सिंह से पहले पूर्व प्रधानमंत्री आईके गुजराल और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भी प्रधानमंत्री कार्यालय में काम कर चुके हैं.

साल 2008 में जब उनकी भांजी प्रीति प्रभा और करीबी उमादेवी को प्लॉट मिले थे तब वो प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रमुख सचिव हुआ करते थे. नायर के बाद पुलक चटर्जी इस समय प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव हैं.

देश को भ्रष्टाचार के दलदल से निकाले सरकार: रामदेव बाबा

विदेशों में जमा काले धन को देश में वापस लाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम को और तेज करते हुए योग गुरु बाबा रामदेव ने शनिवार को भारत स्वाभिमान यात्रा के तीसरे चरण का ऐलान किया।


एक संवाददाता सम्मेलन में रामदेव ने कहा कि यह यात्रा एक मई को छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले से शुरू होकर तीन जून को दिल्ली के जंतर-मंतर पर खत्म होगी। रामदेव ने कहा कि इस दौरान यह यात्रा ग्वालियर, भिंड, मुरैना, मेरठ, सहारनपुर, हरिद्वार, जींद, चुरू, झुंझनू, बहरोड़, तिजारा, पलवल, गुड़गांव, रेवाड़ी, बहादुरगढ़, नोएडा और गाजियाबाद होते हुए दिल्ली के जंतर-मंतर पहुंचेगी।


यात्रा के तीसरे चरण को अगस्त महीने से आर-पार की लड़ाई और राष्ट्रव्यापी आंदोलन का आगाज बताते हुए रामदेव ने समाजसेवी अन्ना हजारे के आंदोलन के साथ अपनी मुहिम के विलय की खबरों से इंकार करते हुए कहा, जहां-जहां जरूरी होगा हम मंच साझा करेंगे। दोनों आंदोलनों ने कभी भी विलय की बात नहीं की।


अन्ना हजारे के साथ मिलकर आंदोलन करने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि कुटिल कॉरपोरेट और भ्रष्ट राजनीतिक व्यक्तियों को बाबा-अन्ना का साथ रास नहीं आ रहा।




रेखा को राज्यसभा सदस्य मनोनीत किए जाने के बारे में पूछे जाने पर योग गुरू ने कहा कि राजनीतिक दल सारे अभिनेताओं-अभिनेत्रियों को राज्यसभा का सदस्य बना दें लेकिन काला धन वापस लाएं और देश को भ्रष्टाचार के दलदल से बाहर निकालें।

अन्ना का जागरूकता अभियान एक मई से



प्रसिद्ध समाज सेवी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजाने वाले अन्ना हजारे एक मई से महाराष्ट्र में 36 दिवसीय जागरूकता अभियान अहमद नगर जिला के शिरडी से शुरू करेंगे. हजारे एक सशक्त लोकपाल बिल के लिए राज्य में जागरूकता अभियान शुरू करेंगे.


हजारे एक मई को अहमदनगर और दो मई को राहटा में जनसभा को संबोधित करेंगे. तीन से 9 मई के बीच मराठवाडा के अन्य सात जिलों में जागरूकता अभियान के तहत लोगों को संबोधित करेंगे.


इसके बाद 10 से 20 मई के बीच विदर्भ क्षेत्र के अन्य हिस्सों का दौरा करेंगे. हजारे 21 मई से खानदेश क्षेत्र के जलगांव से दौरा शुरू करेंगे और 22 मई को धुले, 23 मई को नंदूरबार और 24 मई को नासिक में लोगों को संबोधित करेंगे.


राज्य के पश्चिमी क्षेत्र पुणे में 25 को, सोलापुर में 26 मई को, सतारा में 27 मई को सांगली में 28 मई को और कोल्हापुर में 29 मई को हजारे जागरूकता अभियान में हिस्सा लेंगे. कोंकण क्षेत्र के सिंधु दुर्ग में 30 मई को, रत्नागिरी में 31 मई को और रायगढ़ में एक जून को संबोधित करेंगे.


हजारे अभियान के अंतिम चरण में दो जून को मुंबई में लोगों को संबोधित करेंगे और उसके बाद तीन जून को दिल्ली में तथा चार जून को ठाणे में, पांच जून को नवी मुंबई में संबोंधित करेंगे.

वेश्यावृति से भी गंभीर बुराई है भ्रष्टाचार : कोर्ट

नई दिल्ली: "मेरे विचार से भ्रष्टाचार वेश्यावृति से भी ज्यादा गंभीर बुराई है।" वेश्यावृति से जहां एक व्यक्ति की नैतिकता प्रभावित होती है, वहीं भ्रष्टाचार पूरे समाज को खतरे में डालता है। यह गंभीर टिप्पणी फर्जी रक्षा सौदा मामले में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को दी गई सजा के दौरान द्वारका कोर्ट के विशेष सीबीआइ जज कंवलजीत अरोड़ा ने की।


अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार की समस्या पूरे देश को उद्वेलित कर रही है। लोगों में आक्रोश का भाव पैदा कर रही है। यह सच है कि हमारा समाज भ्रष्टाचार को सार्वजनिक रूप से मिटाना चाहता है, लेकिन व्यक्तिगत रूप से लोग इसमें स्वयं लिप्त रहते हैं। यह स्थिति इस पूरे मामले को गंभीर बना देती है। ऐसी स्थिति में यह आत्ममंथन का विषय है कि क्या सचमुच हम भ्रष्टाचार से मुक्त समाज चाहते हैं? समाज और देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का कार्य ठीक उसी तरह है, जैसे छोटे से छिद्र में बड़ा पत्थर रखने की कोशिश। लेकिन हमें अपनी उम्मीद को कायम रखना है, ताकि भ्रष्टाचार को समाप्त किया जा सके, ताकि समाज में सामाजिकता, आध्यात्मिकता व नैतिकता प्रबल हो सके।


भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी भावना प्रदर्शित करते हुए अदालत ने कहा कि आज लोगों की ईमानदारी तभी तक है जब तक उनके पास बेईमानी करने का मौका नहीं है। मौका मिलते ही व्यक्ति बेईमानी करने से बाज नहीं आता। इस परिस्थिति में आज सभी को नैतिक मूल्यों से युक्त शिक्षा (वैल्यू एजूकेशन) की जरूरत है। इस तरह की शिक्षा से ही समाज में लोग उच्च नैतिक मूल्यों से भरे जिम्मेदार नागरिक बनेंगे। ऐसे नागरिक जिनका चरित्र अभाव से भरे दौर में भी नहीं डगमगाएगा। अपने फैसले में अदालत ने कहा कि बंगारू लक्ष्मण ने अपने हित को राष्ट्रहित से ऊपर रखा। निजी फायदे के लिए उन्होंने देश की सुरक्षा को दरकिनार कर दिया। देश की सुरक्षा में तैनात सेना के लाखों जवानों की जान की परवाह नहीं की। कोर्ट ने कहा कि सौदा करते समय इस बात को भी जानने की कोशिश नहीं की गई कि उपकरण जरूरत आधारित मानकों पर खरे उतरते हैं या नहीं। यह सब बहुत शर्मनाक है।

अन्ना और मेरी फ्रिक्वेंसी मिलती है: बाबा रामदेव

योग गुरु बाबा रामदेव ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के साथ सहयोग के मुद्दे पर कहा है कि उनके और अन्ना के गठजोड़ से कुछ नेताओं और कुछ उद्योगपतियों को परेशानी है। बाबा रामदेव ने कहा, मेरी और अन्ना की फ्रिक्वेंसी मिलती है। जरूरत पड़ी तो मैं और अन्ना-दोनों साथ-साथ खड़े होंगे। लेकिन अन्ना और मेरे आंदोलन का विलय नहीं हो रहा है।'


टीम अन्ना के कुछ सदस्यों द्वारा अपना विरोध किए जाने के सवाल पर बाबा रामदेव ने कहा, 'टीम अन्ना में मेरा कोई विरोध नहीं कर रहा है।' टीम अन्ना से मतभेद के मुद्दे पर योग गुरु ने कहा कि जो बातें अन्ना और हम लोग कर रहे हैं, मीडिया को उस पर ध्यान देना चाहिए।


अन्ना हजारे के बयान कि चुनाव में पैसे और शराब का लालच देकर वोट हासिल किए जाते हैं, पर योग गुरु ने कहा कि यह बात तो चुनाव आयोग कई बार कह चुका है कि चुनाव में धनबल का जमकर प्रयोग होता है। चुनाव लड़ने के सवाल पर योग गुरु ने कहा, 'मैं यहां लड़ने या लड़वाने नहीं आया हूं। बल्कि व्यवस्था परिवर्तन करने आया हूं।'

100 के नोट और शराब की बोतल में बिकता है वोट : अन्‍ना

नई दिल्‍ली। हाल में उत्‍तर प्रदेश समेत पांच राज्‍यों में विधानसभा चुनाव के दौरान न तो अन्‍ना हजारे दिखे और न उनकी टीम के सदस्‍य, अब जब सरकारें बन गई हैं, तो समाजसेवी अन्‍ना हजारे कह रहे हैं कि देश में वोटर अभी भी जागरूक नहीं है। यहां 100 के नोट और एक बोतल शराब में वोट बिक जाते हैं।


अन्‍ना से मीडिया ने पूछा कि क्‍या वो कभी चुनाव लड़ेंगे। तो उन्‍होंने जवाब दिया कि देश के मतदाता जागरूक नहीं हैं, इसलिए वो चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्‍होंने आगे कहा कि देश में तमाम राजनीति पार्टियां हैं जो वोट के बदले में नोट बांटती हैं और लोगों को शराब की बोतलें देती हैं। खास बात यह है कि जनता भी उस शराब के बदले अपना कीमती वोट बेच देती है। ऐसे में चुनाव नहीं लड़ सकता। रही बात महिलाओं को कोई उन्‍हें महज एक साड़ी दे दे, बस वो कहीं भी मुहर लगाने को तैयार हो जाती हैं।


अन्‍ना ने आगे कहा "इन हालातों में अगर मैं चुनाव लड़ा तो मेरी तो जमानत जब्‍त हो जायेगी, क्‍योंकि न तो मेरे पास देने के लिए पैसा है और न शराब की बोतल या साड़ी।"


वहीं प्रशांत भूषण भी अन्‍ना की इस बात से इत्‍तेफाक रखते हैं। प्रशांत भूषण का कहना है कि चुनाव धन और बल पर ही लड़ा जा सकता है। और इस व्‍यवस्‍था को बदलने के लिए चुनाव आगोग को आगे आना होगा। जब तक आयोग कोई ठोस कदम नहीं उठाता तब तक ऐसे ही चुनाव होते रहेंगे, सरकारें बनती रहेंगी और भ्रष्‍टाचार के मामले सामने आते रहेंगे।

क्या शस्त्र निर्माता दिसम्बर 2011 में राहुल गांधी से मिले थे?

सचिन के बहाने राजनीति कर रही है सरकारः रामदेव

योग गुरु बाबा रामदेव ने सचिन तेंदुलकर के राज्य सभा में मनोनयन पर केंद्र सरकार की आलोचना की है। बाबा ने कहा कि यदि सरकार सच में सचिन को सम्मान देना चाहती है तो उसे भारत रत्न से सम्मानित करे। वास्तव में सरकार सचिन के बहाने राजनीति कर अपनी साख बढ़ाने की कोशिश कर रही है। वह महंगाई, भ्रष्टाचार और काले धन जैसे असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाना चाहती है।


रामदेव और अन्ना के आंदोलन का विलय नहीं
नई दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस में रामेदव ने साफ किया कि उनके और अन्ना हजारे के आंदोलन का विलय नहीं होगा। वे दोनों आम लोगों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। चुनाव लड़ने पर टीम अन्ना में मतभेद की खबरों पर उन्होंने कहा कि यदि टीम अन्ना का कोई सदस्य चुनाव लड़ना चाहता है तो उनका स्वागत है।


सच तो यह है कि अन्ना और रामदेव को एक साथ आना सरकार को रास नहीं आ रहा है और वह इसे कमजोर करने की कोशिश में है।

तहलका काण्ड : भाजापा के पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मण बांगरू भ्रष्ट करार

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को छद्म हथियार सौदागरों से एक लाख रूपये की रिश्वत लेने के ११ साल पुराने मामले में केन्द्रीय जांच ब्यूरो की विशेष अदालत ने आज दोषी ठहराने के साथ ही जेल भेज दिया।


सीबीआई की विशेष अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कंवलजीत अरोड़ा ने लक्ष्मण को हथियार सौदे के लिए बतौर पेशगी एक लाख रूपये की रिश्वत लेने का दोषी करार दिया। इस फैसले के बाद कानूनी औपचारिकताएं पूरी करके लक्ष्मण को तिहाड़ जेल ले जाया गया।


सीबीआई अदालत इस मामले में सजा का ऐलान कल करेगी। इसके लिए लक्ष्मण को अदालत में पेश किया जायेगा। लक्ष्मण पर वर्ष २००१ में खोजी समाचार वेबसाइट तहलका डाट काम के पत्रकारों से सेना को थर्मल दूरबीन की आपूॢत का ठेका दिलाने के लिये एक लाख रूपये की रिश्वत लेने का आरोप था। ये पत्रकार हथियारों के सौदागरों के रूप में लक्ष्मण से मिले थे और उनसे अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुये दूरबीन का ठेका दिलाने का अनुरोध किया था। तहलका डाट काम ने कुछ दिनों बाद ही लक्ष्मण के रियपत लेने वाली वीडियो फुटेज जारी करके भाजपा की अगुवायी वाली तत्कालीन केन्द्र सरकार को सकते में डाल दिया था। हालांकि लक्ष्मण ने उस समय इन आरोपों को सिरे से नकार दिया था लेकिन उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। करीब ११ वर्षों की लंबी अदालती कार्यवाही के बाद इस चॢचत मामले पर फैसला हो सका है।


न्यायाधीश अरोड़ा ने अपना फैसला सुनाते हुये कहा कि सीबीआई लक्ष्मण पर लगाये गये आरोपों को साबित करने में सफल रही है और इस आधार पर आरोपी को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा ९ के तहत दोषी करार दिया जाता है। अदालत का फरमान सुनते ही लक्ष्मण बड़ी देर तक कठघरे में ंस्तब्ध स्थिति में खड़े रहे। फैसला सुनाये जाने के बाद उन्होंने किसी से भी कोई बात नहीं की। बाद में पुलिस ने उन्हें अपनी हिरासत में लिया और तिहाड़ जेल लेकर चली गयी। इस दौरान लक्ष्मण के वकील ने अदालत से जमानत मंजूर करने की गुहार लगायी जिसे न्यायाधीश अरोड़ा ने यह कहते हुये ठुकरा दिया कि सजा का ऐलान होने के बाद ही वह इस अर्जी पर विचार करेंगे।

टीम अन्ना ने किया रक्षा दलाली नेटवर्क का पर्दाफाश

टीम अन्ना ने काग्रेस के खिलाफ नया मोर्चा खोलते हुए रक्षा सौदे में दलाली के बड़े नेटवर्क के सक्रिय होने के आरोपों के साथ कुछ सनसनीखेज कागजात पेश किए हैं।

अरविंद केजरीवाल का कहना है कि ये कागजात सरकार के शीर्ष स्तर से इस नेटवर्क को संरक्षण हासिल होने का सबूत हैं। सरकारी जाच एजेंसिया इन दलालों को पकड़ने की बजाय संरक्षण दे रही हैं। यहा तक कि एजेंसिया इन सबूतों को लेने तक से इंकार कर रही हैं।

टीम अन्ना ने आरोप लगाया है कि नौसेना वार रूम लीक घोटाले में आरोपी अभिषेक वर्मा खुद को काग्रेस व सरकार का प्रतिनिधि बता रक्षा सौदों में दलाली कर रहा है। कुछ साल पहले तक उसके साझेदार रहे अमेरिकी नागरिक सी एडमंड एलन ने अब उससे झगड़े के बाद इस धंधे के बहुत से सबूत भारतीय जाच एजेंसियों को भेजे हैं, लेकिन एजेंसिया इन सबूत को लेने तक से इंकार कर रही हैं। आखिरकार उसने ये सबूत टीम अन्ना को भेजे हैं।

केजरीवाल ने दस्तावेज पेश करते हुए दावा किया कि रक्षा दलाली के आरोपी अभिषेक वर्मा ने अमेरिकी नागरिक सी एडमंड एलन के साथ दो अलग- अलग समझौते कर दो हजार करोड़ रुपये दिए हैं।

भूषण के मुताबिक उन्होंने अमेरिकी अदालत के रिकार्ड की जाच में पाया है कि वर्मा ने इस रकम की वापसी के लिए मुकदमा दायर किया है। उन्होंने सवाल उठाया कि इतनी मोटी रकम आखिर किसकी है और क्या वर्मा ने इसके बारे में टैक्स एजेंसियों को जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि अभिषेक वर्मा के माता और पिता दोनों लंबे समय तक काग्रेस सासद रहे हैं। स्कार्पियन सौदे में सामने आए दस्तावेजों में साफ है कि वह खुद को काग्रेस और सरकार का प्रतिनिधि बता चार फीसदी दलाली माग रहा था, लेकिन वार रूम लीक मामले में जमानत पर रिहा होने में जाच एजेंसिया उसकी मदद कर रही हैं। यही कारण है कि अगस्ता वेस्टलैंड को हेलीकाप्टर सौदे में मदद चाहिए हो, जर्मन कंपनी आरएडी को काली सूची से नाम हटवाना हो, या फिर इजराइली दूरसंचार कंपनी ईसीआइ को एंटी डंपिंग शुल्क वापस करवाना हो, ऐसे सभी गैर कानूनी कामों के लिए ये कंपनिया अभिषेक वर्मा से ही संपर्क करती हैं। केजरीवाल ने कहा कि इन कागजातों को देख कर साफ लगता है कि सरकार के शीर्ष स्तर पर वर्मा को संरक्षण मिला हुआ है।

टीम अन्ना के अहम सदस्य प्रशात भूषण ने कहा, उन्होंने इस संबंध में अपने स्तर पर मामले की सत्यता की पड़ताल की है। कुछ कागजों की सत्यता जाच एजेंसिया ही परख सकती हैं। उन्होंने कहा, आरोप इतने गंभीर हैं कि इन पर चुप रहना किसी बड़े अपराध से कम नहीं। जाच एजेंसिया इसके बाद भी हरकत में नहीं आई तो वे इस मामले को अदालत ले जाने पर विचार करेंगे।

इस राज्य में भ्रष्टाचारियों में बैठ गया डर, मई में आंदोलन करेंगे अन्ना

हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में टीम अन्ना को मिली कामयाबी के बाद टीम अन्ना हिमाचल में विधानसभा चुनाव के दौरान भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने की मुहिम चलाएगी।


टीम अन्ना हिमाचल प्रदेश में मजबूत लोकायुक्त कानून बनवाने के लिए विधानसभा चुनाव के दौरान जागरूकता अभियान चलाएगी। अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया मई में प्रदेश के सभी जिलों का दौरा करेंगे।


तैयार हो चुकी है जमीन
सूबे में विधानसभा चुनाव के दौरान अभियान चलाने को लेकर टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, प्रशांत भूषण और संजय सिंह शिमला, कांगड़ा और मंडी में जमीन तैयार कर चुके हैं।


जून में आएंगे अन्ना
मनीष सिसोदिया ने बताया कि टीम अन्ना मई से ही हिमाचल प्रदेश में अपना जागरूकता अभियान शुरू करेगी। प्रदेश के सभी जिलों में बैठकें कर लोगों को भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा किया जाएगा। अन्ना जून में यहां आएंगे।


फेसबुक पर अपडेट
प्रदेश में मजबूत लोकायुक्त कानून को लेकर ऑनलाइन मुहिम टीम अन्ना ने शुरू कर दी है। इंडिया अंगेसट करप्शन की ओर से आईएसी हिमाचल प्रदेश के नाम से फेसबुक पर विशेष पेज बनाया गया है। इसे नियमित तौर पर अपडेट किया जा रहा है।


‘बिजली में भ्रष्टाचार’
मनीष सिसोदिया ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत परियोजनाओं में जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है। कांग्रेस और भाजपा के कई नेता भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। इसे रोकना है तो प्रदेश के युवाओं को आगे आना होगा।

अब तक थाने में पड़ी है अन्ना की ....

सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की प्रतिमा अब तक सिविल लाइन में पुलिस की अभिरक्षा में है। हालांकि अन्ना की प्रतिमा के साथ जब्त किए गए ट्रॉली ट्रैक्टर को हरियाणा बेरोजगार संघ के अध्यक्ष पीएल कटारिया ने दो दिन पहले अदालत से अपनी सुपरदारी में ले लिया है। बताया जाता है कि अन्ना की प्रतिमा कटारिया की है।




इसके प्रमाण में वे प्रतिमा खरीद से संबंधित बिल नहीं दे पा रहे हैं। सेक्टर चार/सात चौक पर पंद्रह अप्रैल को अन्ना की प्रतिमा स्थापित करने की कोशिश के दौरान गुड़गांव पुलिस ने कटारिया को उनके तीन अन्य सहयोगियों के साथ गिरफ्तार किया था।


उसी दिन अन्ना की प्रतिमा भी पुलिस ने अपनी अभिरक्षा में ले लिया था। अन्ना समर्थक कुलदीप जांघू ने उपायुक्त गुड़गांव के कैंप कार्यालय में ज्ञापन देकर प्रतिमा सौंपने की मांग की थी। हालांकि उन्हें भी प्रतिमा नहीं मिली। इस बात को 11 दिन बीत चुके हैं लेकिन अन्ना समर्थक अब तक उनकी प्रतिमा को थाने से नहीं निकाल सके हैं।




इस बाबत पूछे जाने पर जमानत पर कई दिनों पहले ही बाहर आए कटारिया ने कहा कि फाइल तैयार कर ली गई है। उम्मीद है कि शुक्रवार को अन्ना की प्रतिमा अदालत में प्रार्थन पत्र देकर ले ली जाएगी।

कांग्रेस के करीबी अभिषेक के पास कहां से आए 2000 करोड़ : टीम अन्ना

टीम अन्ना ने कुछ विस्फोटक दस्तावेज पेश करते हुए आरोप लगाया है कि रक्षा सौदों में दलालों का बड़ा नेटवर्क सक्रिय है और उनकी पहुंच सरकार में टॉप लेवल तक है। नौसेना वॉर रूम लीक मामले में आरोपी अभिषेक वर्मा के खिलाफ सबूत पेश करते हुए अन्ना के सहयोगियों ने कांग्रेस और सरकार को घेरने की कोशिश की है।


टीम अन्ना के मुताबिक, 'अभिषेक वर्मा खुद को कांग्रेस और सरकार का प्रतिनिधि बताकर रक्षा सौदों में दलाली कर रहा है। उसने कुछ साल पहले तक अपने पार्टनर रहे अमेरिकी नागरिक सी. एडमंड्स एलन को निवेश के लिए करीब 2000 करोड़ रुपये दिए थे। अब दोनों के बीच झगड़ा हो गया है और एडमंड्स ने इस धंधे के बहुत से सबूत भारतीय जांच एजेंसियों को भेजे हैं, लेकिन अब तक किसी एजेंसी ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। आखिरकार उन्होंने सबूत टीम अन्ना को भेजे हैं।'


गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में टीम अन्ना ने साफ किया कि दस्तावेज कितने प्रामाणिक हैं यह तो उन्हें नहीं पता, लेकिन अगर ये सही हैं तो पूरे देश के लिए बेहद खतरनाक हालात के संकेत देते हैं। टीम अन्ना के मुताबिक, अभिषेक वर्मा न केवल हथियार सौदों में दलाली करता दिखता है बल्कि वह कांग्रेस की तरफ से बात करता है और उसकी सत्ता के सर्वोच्च स्तर तक मिलीभगत के प्रमाण हैं। टीम अन्ना ने कहा कि इन दस्तावेजों से एक बार फिर यह साबित होता है कि जब तक सीबीआई, ईडी और अन्य जांच एजेंसियों को सरकार और सत्तारूढ़ नेताओं के चंगुल से निकाला नहीं जाता, तब तक एजेंसियां करप्शन के मामलों की सही ढंग से जांच नहीं कर पाएंगी।


देखें: यह पूरा विस्फोटक दस्तावेज यहां...


केजरीवाल ने दस्तावेज पेश करते हुए दावा किया कि अभिषेक वर्मा ने एडमंड्स एलन के साथ दो अलग-अलग समझौते कर दो हजार करोड़ रुपये दिए थे। इसके बाद सन् 2010 में दोनों अलग हो गए और वर्मा ने एडमंड्स को पैसे लौटाने का नोटिस भेजा। जब एडमंड्स ने कोई जवाब नहीं दिया तो वर्मा ने उसके खिलाफ केस दायर कर दिया। भूषण के मुताबिक, उन्होंने अमेरिकी अदालत के रिकॉर्ड की जांच की है और पाया कि वर्मा ने इस रकम की वापसी के लिए एडमंड्स के खिलाफ केस दायर किया है। उन्होंने सवाल उठाया कि इतनी मोटी रकम आखिर अभिषेक वर्मा के पास कहां से आई, पैसे का असली मालिक कौन है और क्या वर्मा ने इसके बारे में टैक्स एजेंसियों को जानकारी दी है।


टीम अन्ना ने कहा,'अभिषेक वर्मा के माता-पिता श्रीकांत वर्मा और वीणा वर्मा लंबे समय तक कांग्रेस सांसद रहे हैं। स्कॉर्पीन सौदे में सामने आए दस्तावेजों में साफ है कि वह खुद को कांग्रेस और सरकार का प्रतिनिधि बता 4% दलाली मांग रहा था। उसके रसूख की वजह से अगस्ता वेस्टलैंड को हेलिकॉप्टर सौदे में मदद चाहिए हो, जर्मन कंपनी आरएडी को ब्लैक लिस्ट से नाम हटवाना हो या फिर इस्राइली टेलिकॉम कंपनी ईसीआइ को ऐंटि डंपिंग शुल्क वापस करवाना हो, ऐसे सभी गैर-कानूनी कामों के लिए ये कंपनियां अभिषेक वर्मा से ही संपर्क करती हैं।'


जब टीम अन्ना से पूछा गया कि अगर आपको इन दस्तावेजों के सही होने का इतना ही भरोसा है तो आप इस पर कोर्ट क्यों नहीं जाते, तो टीम अन्ना के अहम सदस्य प्रशांत भूषण ने कहा,'अगर इन दस्तावेजों के सार्वजनिक करने के बाद भी संबंधित सरकारी एजेंसियां कोई कदम नहीं उठातीं तो हम कोर्ट जाएंगे।' उन्होंने कहा कि मैंने अपने स्तर पर मामले की सत्यता की पड़ताल की है, लेकिन कुछ कागजों की सत्यता जांच एजेंसियां ही परख सकती हैं।

रामदेव-अन्‍ना की जुगलबंदी

रामदेव ने दस्तक दी और टीम अन्ना दोराहे पर पहुंच गई। पहले एकजुट नजर आ रही टीम अन्ना रामदेव के प्रवेश लेते ही जैसे बिखर गई। उसमें हर किसी की मंशा खुलकर सतह पर आ गई। रामदेव भी अपने गुणा-भाग के साथ संघर्ष का झोला उठाए हुए हैं। इसलिए जैसे ही अन्ना-रामदेव मुलाकात में जमीनी मुद्दे और जमीन के ऊपर खड़े वैचारिक मुद्दे टकराए तो दोनों को लगा कि उनकी सीमाएं ही उनकी ताकत हैं। रामदेव ने अपनी सीमा अपने भगवा वस्त्र से बांधी तो अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार की सत्ता को तोडऩे के लिए सत्ता से ही गुहार लगाने की अपनी सीमा तय कर ली। जैसे ही अन्ना ने अपनी सीमा तय की, टीम अन्ना के सदस्यों ने भी अपने-अपने संघर्ष की परिभाषा गढ़ ली।


रामदेव जानते हैं कि उनकी महाभारत कांग्रेस से है और इस महाभारत के लिए कोई अलग रामलीला मैदान बनाने का मतलब है दोबारा मात खाना। इसकी जगह भाजपा के मैदान पर खड़े होकर कांग्रेस को ज्यादा आसानी से मात दी जा सकती है। इसलिए, वह टीम अन्ना के इस फैसले के साथ खड़े हो ही नहीं सकते कि कांग्रेस-भाजपा दोनों से अलग अपना मंच बनाकर चुनाव मैदान में कूदा जाए। वजह यह कि जैसे ही संघर्ष का अलग रास्ता राजनीतिक दिशा में जाएगा, उसका सबसे अधिक घाटा भाजपा को हो सकता है, जबकि अन्ना-रामदेव के मिलेजुले गैर-चुनावी संघर्ष का राजनीतिक तौर पर सबसे ज्यादा लाभ भाजपा को ही होगा। इसलिए रामदेव ने टीम अन्ना की उस कड़ी को पकड़ा, जिसमें कांग्रेस के प्रति गुस्सा है। यह कमजोर कड़ी किरण बेदी निकलीं। दिल्ली का पुलिस कमिशनर न बन पाने का मलाल किरण बेदी को आज भी है और वह इसके लिए कांग्रेसी सत्ता के खेल को ही गुनाहगार भी मानती हैं। किरण बेदी के गुस्से को जगह भाजपा की छांव तले मिलती है। इसलिए रामदेव ने किरण बेदी के जरिए अन्ना हजारे के साथ बैठक तय की। पहली बार अन्ना हजारे के साथ परछाई की तरह रहने वाले अरविंद केजरीवाल इस बैठक में नहीं थे। फिर, रालेगण सिद्धि से लेकर हरिद्वार तक जिस तरह कांग्रेस और भाजपा के नेताओं ने इसी दौर में अन्ना और रामदेव के संघर्ष को मान्यता देते हुए अपनी बिसात बिछाई, उसका असर यह हुआ कि सियासत के प्यादे बनकर संघर्ष को समेटने की कोशिश शुरू हो गई।


पहले रालेगण में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और तात्कालिन केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख ने बिसात बिछाई। हरिद्वार में भाजपा और संघ ने गोटियां बिछाईं। इस बीच दिल्ली में टीम अन्ना 14 केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की चार्जशीट तैयार कर रही थी जिसमें सबसे पहला नाम विलासराव देशमुख का ही था। इससे रालेगण और पुणे में विलासराव की चौकड़ी सक्रिय हुई। उसने अन्ना को समझाया कि पहले महाराष्ट्र की लड़ाई लडऩी जरूरी है। महाराष्ट्र में लोकायुक्त की नियुक्ति होनी चाहिए। अन्ना के संघर्ष की नींव महाराष्ट्र में रही है तो उन्होंने ठीक उसी वक्त को महाराष्ट्र यात्रा के लिए समय दे दिया, जो वक्त दिल्ली में टीम अन्ना हिमाचल प्रदेश समेत देश यात्रा के लिए तय कर रही थी।


विलासराव देशमुख के निशाने ने दोहरा काम किया। अन्ना ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को निशाने पर लेकर जैसे ही लोकायुक्त का सवाल उठाया, वैसे ही दिल्ली में देशमुख यह कहते हुए सक्रिय हुए कि उनके कार्यकाल में कभी भ्रष्टाचार का मामला इस तरह नहीं उठा। फिर, अन्ना ने दिल्ली पहुंचकर 14 मंत्रियों की उस फाइल को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया, जिसमें पहला नाम देशमुख का था। तय हुआ था कि अन्ना इस फाइल को सार्वजनिक करके प्रधानमंत्री से जवाब मांगेगे कि जब उनके मंत्रिमंडल में 14 भ्रष्टाचार के आरोपी मंत्री हैं तो फिर जिम्मेदारी कौन लेगा। लेकिन नाम जारी नहीं हुए तो सबसे ज्यादा राहत मनमोहन सिंह को मिली और सबसे होशियार खिलाड़ी के तौर पर देशमुख का कद भी बढ़ा।


दूसरी तरफ भाजपा और संघ के वरिष्ठ और प्रभावी नेताओं ने रामदेव को राजनीति का यह ककहरा पढ़ाया कि उंगलियों के मिलने से मुठ्ठी बनती है और संघर्ष पैना होता है। अलग-अलग राह पकडऩे से उंगली टूट सकती है और संघर्ष भोथरा साबित होता है।


रामदेव समझ गए कि उनका संगठन दवाई बेचने और योग सिखाने वालों के जमघट से आगे जाता नहीं, लेकिन संघ का संगठन राजनीतिक दिशा देने में माहिर है। इस तरह राजनीतिक कवायद की जगह जागृति फैला कर कांग्रेस और केंद्र सरकार को देश भर में कठघरे में खड़ा करने का फैसला हुआ। अन्ना को भी उस चुनावी रास्ते पर जाने से रोकने की बात हुई, जिस पर वे निकल पड़े तो भाजपा का समूचा लाभ घाटे में बदल सकते हैं। यह पूरा खेल टीम अन्ना की कोर कमेटी की बैठक में कुछ इस तरह खुला कि हर सदस्य एक दूसरे पर शक करने लगा।


अन्ना ने हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक कवायद चलाने का विरोध किया, किरण बेदी ने रामदेव की लाइन पकड़ी और चुनाव मैदान में कूदने का खुला विरोध किया। काजमी ने लड़ाई को अपने राजनीतिक मुनाफे का हथियार बनाया। वे मुलायम सिंह यादव के साथ दिल्ली से लखनऊ सफर करते रहे हैं। चूंकि मुलायम के खिलाफ भी टीम अन्ना लगातार दस्तावेज जुटा रही है जिसके विरोध का नया तरीका बैठक में किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल के टकराव को मोबाइल में रिकार्ड कर किया। यह भी खुला कि कोर कमेटी के एक कवि सदस्य भाजपा के उन मुख्यमंत्रियों को बचाने में लगे रहे, जिनके खिलाफ टीम अन्ना मोर्चा खोलना चाहती है।


उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री निशंक और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए काम करने वाले इस सदस्य पर 'दलाली' करने के आरोप भी लगे। असल में इस बैठक ने टीम अन्ना के उस सच को सामने ला दिया, जो जनलोकपाल के आंदोलन के दौर में अपने आप बनते गया। जिसने मंच संभाला, जिसने तिरंगा थामा, जो सरकार से बातचीत के लिए निकले, वे सभी कोर कमेटी के सदस्य बन गए और देश भर में टीम अन्ना का चेहरा भी। चूंकि देश भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों के आक्रोश का कोई चेहरा इससे पहले था नहीं। हर शहर में बनते जंतर-मंतर और वहां जमा होते लोग वैसे ही संघर्ष करने वाले फौजी थे, जिनका अपना कोई चेहरा होता नहीं।




चेहरा बनने की इस कवायद में हर कोई संघर्ष करता तो दिखा, लेकिन एक वक्त के बाद जब चेहरे बड़े हो गए और संघर्ष छोटा, तो किसी ने अपने संघर्ष की सौदेबाजी की, किसी ने संघर्ष को राजनीतिक औजार बना लिया। जो आखिरी कतार संघर्ष को करते रहना चाहती है उसके सामने अब दो ही रास्ते हैं। एक वह अन्ना के हर संघर्ष (चाहे महाराष्ट्र तक ही सीमित क्यों न हो) में अपने आप को खपा दें या फिर संघर्ष के ऐसे रास्ते तैयार करे, जहां संघर्ष के मुद्दों के जरिए राजनीतिक विकल्प का सवाल इस तरह खड़ा करे कि अन्ना को भी देश के लिए दिल्ली लौटना पड़े।

बाल ठाकरे ने अन्ना को नहीं दिया मिलने का वक्त; अन्ना ने भी किया वार

मजबूत लोकायुक्त कानून बनवाने की मुहिम में जुटे अन्ना हजारे और शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के बीच तनातनी कायम है। गुरुवार को अन्ना हजारे मजबूत लोकायुक्त कानून की मांग को लेकर प्रमुख राजनीतिक दलों से बात करने मुंबई पहुंचे। लेकिन इस दौरान शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने उन्हें मुलाकात का समय नहीं दिया। इसके जवाब में अन्ना ने कटाक्ष करते हुए कहा कि वे अपने बाल बच्चों के लिए लोकपाल कानून की मांग नहीं कर रहे हैं। गौरतलब है कि बाल ठाकरे अन्ना हजारे के आंदोलन और उसके तौर तरीकों की तीखी आलोचना करते रहे हैं। उन्होंने लोकायुक्त कानून का भी विरोध किया है।




गुरुवार की सुबह अन्ना ने सबसे पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण से उनके निवास पर मुलाकात की। बाद में चव्हाण ने बताया कि मजबूत लोकायुक्त कानून पर अन्ना की मांगों पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। इसके बाद वे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे से मिले। राज ठाकरे ने भी अन्ना की मांगों का समर्थन किया है। शाम को गांधीवादी समाजसेवी ने शिवसेना की सहयोगी पार्टी बीजेपी के नेताओं से मुलाकात की।


महाराष्ट्र बीजेपी ने अन्ना की सशक्त लोकायुक्त कानून बनाने की मांग का पुरजोर समर्थन किया है। अपनी मांगों को और धार देने और दबाव बनाने के लिए अन्ना 1 मई यानी महाराष्ट्र स्थापना दिवस से पूरे राज्य में अभियान शुरू करेंगे। इसके तहत वे राज्य के अलग-अलग इलाकों का दौरा करेंगे।

बोफोर्स से भी बड़ा : रक्षा सौदों में कमीशन भुगतान की कहानी

'कमिशन राज' का प्रतीक बन गई है भारत सरकारः टीम अन्ना

नई दिल्ली ।। टीम अन्ना ने कुछ विस्फोटक दस्तावेजों के हवाले से आरोप लगाया है कि देश में कमिशन राज चल रहा है और टॉप लेवल तक इसमें मिलीभगत है।


गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में टीम अन्ना ने हथियार सौदों में कमिशन से जुड़े ये दस्तावेज जारी किए। प्रेस कॉन्फ्रेंस में अरविंद केजरीवाल , प्रशांत भूषण , मनीष सिसोदिया , गोपाल राय मौजूद थे। टीम अन्ना ने साफ किया कि ये दस्तावेज उन्हें एक अमेरिकी नागरिक सी एडमंड एलन से मिले हैं। वे दस्तावेज कितने प्रामाणिक हैं यह तो उन्हें नहीं पता , लेकिन अगर ये सही हैं तो पूरे देश के लिए बेहद खतरनाक हालात के संकेत देते हैं। ये दस्तावेज विभिन्न सरकारी एजेंसियों को भी भेजे गए हैं लेकिन अब तक किसी एजेंसी ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।


टीम अन्ना के मुताबिक अगर ये दस्तावेज सही हैं तो अभिषेक वर्मा न केवल हथियार सौदों में दलाली करता दिखता है बल्कि वह कांग्रेस की तरफ से बात करता है और उसकी सत्ता के सर्वोच्च स्तर तक मिलीभगत के साफ संकेत मिलते हैं।


टीम अन्ना ने कहा कि इन दस्तावेजों से एक बार फिर यह साबित होता है कि जब तक सीबीआई , ईडी और अन्य सरकारी एजेंसियों को सरकार और सत्तारूढ़ नेताओं के चंगुल से निकाला नहीं जाता , तब तक ये एजेंसियां भी करप्शन के मामलों की सही ढंग से जांच नहीं कर पाएंगी।


जब टीम अन्ना से पूछा गया कि अगर आपको इन दस्तावेजों के सही होने का इतना ही भरोसा है तो आप इस पर कोर्ट क्यों नहीं जाते , तो टीम अन्ना के अहम सदस्य प्रशांत भूषण ने कहा कि ' अगर इन दस्तावेजों के सार्वजनिक करने के बाद भी संबंधित सरकारी एजेंसियां कोई कदम नहीं उठातीं तो हम कोर्ट जाएंगे। '

2जी केस: लपेटे में अब चिदंबरम के बेटे भी

नई दिल्‍ली: जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने गृह मंत्री पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्ती चिदंबरम पर सनसनीखेज आरोप लगाए हैं. स्वामी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक खत लिखकर का है कि कार्ती के रिश्‍ते 2-जी घोटाले की दोषी कंपनियों से थे और इससे जो पैसा कमाया गया उसे विदेश भेज दिया.


प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी में स्वामी ने आरोप लगाया है कि कार्ती की कंपनी 'एडवांटेज स्ट्रैटेजिक कंसल्टिंग' ने एयरसेल टेलीवेंचर में 26 लाख रुपये लगाए थे. एयरसेल टेलीवेंचर तब सी शिवशंकरन की कंपनी थी. कार्ती की कंपनी के एयरसेल में पैसे लगाने के कुछ महीने बाद ही मलेशिया की मैक्सिस ने एयरसेल में 4 हजार करोड़ में 74 फीसदी का हिस्सा खरीदा.



इस निवेश को एफआईपीबी ने मई 2006 में मंजूरी दी थी. जब मैक्सिस के निवेश को मंजूरी मिली तब चिदंबरम वित्त मंत्री थे. एयरसेल-मैक्सिस डील के बाद एयरसेल टेलीवेंचर ने 1300 करोड़ रुपये से ज्यादा का लोन दिया, इस लोन का कोई हिसाब-किताब नहीं है.


स्वामी के मुताबिक मैक्सिस के निवेश को तभी मंजूरी मिली जब यह तय हो गया कि कार्ती को इससे फायदा मिलेगा. स्वामी का आरोप है कि कार्ती की 'एडवांटेज स्ट्रैटेजिक कंसल्टिंग'नाम की एक कंपनी सिंगापुर में भी है.


रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक कार्ती की भारत की कंपनी ने सिंगापुर की कंपनी को हर महीने लाखों डॉलर भेजे. इन पैसों के बारे में रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी को जानकारी नहीं दी गई.


स्वामी का कहना है कि कार्ती की एक और कंपनी कैसर सूर्या समुद्र रिसॉर्ट्स भी है. कैसर सूर्या ने कांचीपुरम जिले में 2009 में समुद्र तट की 4.62 हेक्टेयर यानी करीब 11.4 एकड़ जमीन खरीदी. यह जमीन मालिकों पर दबाव बनाकर खरीदी गई, जहां पर 100 रूम का लक्जरी रिसॉर्ट बनाने का प्रस्ताव था और तब की करुणानिधि सरकार ने नियमों को ताक पर रखकर प्रोजेक्ट को मंजूरी दी.


रिकॉर्ड के मुताबिक कंपनी के पास सिर्फ 1.5 लाख रुपये थे जो उसे पी चिदंबरम की पत्नी नलिनी से कर्ज में मिले थे. स्वामी ने सवाल उठाए हैं कि जमीन और प्रोजेक्ट का काम कैसे हुआ, जबकि कंपनी के पास पैसे ही नहीं थे.

लोकायुक्त विधेयक के लिए नेताओं से मिले अन्ना

समाजसेवी अन्ना हजारे ने मजबूत लोकायुक्त विधेयक के लिए प्रस्तावित राज्य भ्रमण से ठीक पहले इस मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने के लिए सभी राजनीतिक दलों से दो दिवसीय चर्चा शुरू कर दी है। एक अधिकारी ने गुरुवार को यह जानकारी दी।


हजारे ने रालेगण सिद्धि से आने के बाद बुधवार रात को रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के प्रमुख रामदास अठावले से चर्चा की।


हजारे गुरुवार को महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख मानिक राव ठाकरे, मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान, उप मुख्यमंत्री अजित पवार एवं गृह मंत्री आर.आर. पाटील से मुलाकात करेंगे। इसके अलावा हजारे मजबूत लोकायुक्त विधेयक के लिए समर्थन के लिए अपने घोर आलोचक एवं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे से भी मुलाकात करेंगे।


हजारे का राजनीतिक दलों से चर्चा के क्रम में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष सुधीर मुंगनतिवार, पार्टी के विधायक एवं विधान परिषद में नेता विपक्ष विनोद तावडेम् और शिव सेना नेताओं से मुलाकात करने का कार्यक्रम है।


राज्य में मजबूत लोकायुक्त विधेयक के निर्माण के प्रति लोगों को जागरुक करने एवं समर्थन प्राप्त करने के लिए हजारे एक मई से राज्य की यात्रा पर निकलने की तैयारी में हैं। पिछले महीने ही हजारे ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर लोकायुक्त को और शक्तियां देने की मांग की थी।

Will Team Anna take a plunge into politics?

अन्ना ने पीएम को याद दिलाया 9 साल पुराना वादा

समाजसेवी अन्ना हजारे ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर उनसे भ्रष्टाचार के विरूद्ध 2003 के संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव और राजनीति में अपराधीकरण की समस्या का अध्ययन करने के लिए गठित ए. एन वोहरा समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू कराने का आग्रह किया है।


हजारे ने पत्र में प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि भारत ने भ्रष्टाचार के विरूद्ध संयुक्त राष्ट्र के 2003 के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे। जब उसने देश में भ्रष्टाचार के खतरे को खत्म करने की आवश्यकता समझी थी। उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए नौ वर्ष बीत चुके हैं। पर जमीनी आधार पर स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है क्यों कि भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया।


भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जनलोकपाल विधेयक लाने के वास्ते राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाने वाले हजारे ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में जांच एजेंसियों को प्रभावी और दबावमुक्त कार्य करने की खातिर आवश्यक स्वतंत्रता देने की बात कही गई है। पर भारत सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। इसीलिए उन्होंने और उनकी टीम ने देश की प्रमुख जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग की है।


हजारे ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के बावजूद सरकार भ्रष्टाचार के विरद्ध लड़ने के लिए स्थापित संस्थानों को स्वतंत्र रप से काम करने नहीं दे रही है। उन्होंने पूछा कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने की क्या जरूरत थी। क्या इससे यह नहीं समझा जाए कि सरकार ऐसे संस्थानों को मजबूत करना नहीं चाहती है। उन्होंने कहा कि जब तक भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंका नहीं जाएगा तब तक देश का भविष्य धुंधला ही रहेगा।


अन्ना हजारे ने कहा कि भ्रष्टाचार हैजे की तरह है जो लोकतंत्र, न्यायपालिका और रोजाना के कामकाज को संक्रमित करता है और लंबे समय बाद सरकार के क्रियाकलाप को प्रभावित करना है। उन्होंने मांग की कि सरकार ए.एन. वोहरा समिति की रिपोर्ट में की गई सिफारिशें को लागू करे जिसमें राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के सुझाव दिए गए हैं।

Sunil Joshi murder: 'NIA offered Rs 1 cr to name RSS leaders'

New Delhi: Two accused in the 2007 Ajmer Dargah blast case, in separate petitions before courts in Bhopal and Ajmer, have alleged that officials of the National Investigation Agency (NIA) offered them Rs 1 crore each and asked them to name three senior RSS functionaries in the murder of RSS activist Sunil Joshi.
The alleged offer came during their questioning by the NIA officials in connection with the Sunil Joshi murder case, according to their petitions. The NIA has refuted the allegations.



The petitions filed before the special courts in Ajmer and Bhopal alleged that the NIA officials questioned the two — Mukesh Vasani and Raj Singh alias Harshad — at Ajmer prison from April 16 to April 19.


According to NIA, Vasani and Singh allegedly procured explosives and planted them at the dargah on October 11, 2007. The NIA took over the case in 2011 and filed a supplementary chargesheet against Vasani and Singh in April last year.


Jagdish Rana, the counsel for Vasani and Singh, said, “The petition at the Bhopal court has been filed by Singh while the one at the Ajmer court was filed by Vasani. The NIA had sought permission to question the two in connection with the Sunil Joshi murder case.”


Singh’s petition says, “The NIA officials for three days questioned for five hours each day and forced to name three senior functionaries of RSS saying that Joshi was murdered at their instance. I was threatened and lured with the offer of Rs 1 crore and also promised that the charges against me would be withdrawn. During the three-day questioning, the NIA officials... mentally harassed me to give a statement against RSS officials...The NIA officials are doing the entire exercise at the behest of the central government and creating false evidences.”


Vasani’s petition also made the same allegations.


NIA officials termed the allegations as baseless. IG Sanjeev Kumar Singh said, “The two were examined after obtaining permission from the designated courts. We have examined them in connection with the Sunil Joshi case as well and the entire proceedings were conducted inside the prison.” Sources also said that both the petitioners are co-accused in the case and their testimony in any form would not have “much relevance”.


The Rajasthan ATS, which was initially probing the Dargah blast case, had in its first chargesheet mentioned the name of senior RSS leader Indresh Kumar. However, the NIA has so far not been able to find evidence against him.


The petitions filed by Vasani and Singh also gave the name of NIA officials who visited them at the Ajmer prison, including a DIG.

कई सांसद करते हैं संसद का अपमान : सिसौदिया

टीम अन्ना के अहम सदस्य मनीष सिसौदिया ने कहा कि संसद में बैठे बहुत सारे सांसद ही संसद का अपमान करते हैं, जबकि लोग टीम अन्ना पर इस तरह के आरोप लगाते हैं जो गलत है। आंदोलन को लेकर बाबा रामदेव से मतभेद के सवाल पर कहा कि ऐसी खबरें प्लांट करवाई जा रही हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ हम सब एक हैं। वह मंगलवार को यहां पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि सांसद देश को एक अच्छा लोकपाल देंगे, ऐसा कतई नहीं लगता। सभी दल इस पर राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि लोग टीम अन्ना पर संसद के अपमान का आरोप लगा रहे हैं। संसद में बैठे लोग कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा संसद की कार्यवाही देखकर लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि टीम अन्ना का मानना है कि जिस दिन जनता के हिसाब से काम होगा, उस दिन ही सही मायने में लोकतंत्र जिंदा होगा। टीम अन्ना में बिखराव के सवाल पर मनीष ने कहा कि कोई बिखराव नहीं है। जिन्होंने गलत काम किया वो अलग हो गए। शमून कासमी के आरोपों पर कहा कि बैठक के दौरान वह स्पाई कैमरे से रिकार्डिग कर रहे थे। इसीलिए उन्हें बैठकों में आने से रोका गया है। जिस प्रकार वह रिकार्डिग कर रहे थे वह जासूसी की श्रेणी में आता है।

अन्ना-रामदेव में फूट डाल रही सरकार : बालकृष्ण

बाबा रामदेव के निकट सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने आज आरोप लगाया कि योग गुरु और गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के बीच सरकार फूट डालने की कोशिश कर रही है, ताकि भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दों को लेकर जारी साझा आंदोलन को कमजोर किया जा सके।


बालकृष्ण ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘सरकार पूरी ताकत लगाकर इन दोनों के बीच दरार डालने की कोशिश कर रही है। सरकार मुद्दों पर बात नहीं करना चाहती और विदेशों में जमा काले धन को देश में वापस नहीं लाना चाहती।’ रामदेव और अन्ना हजारे में फूट की खबरों पर उन्होंने कहा, ‘जब सारे दुष्ट इकट्ठे हो सकते हैं तो सज्जन साथ क्यों नहीं आ सकते। वैसे यह तो आप जानते ही हैं कि जब सज्जन इकट्ठे होते हैं तो दर्द किसको होता है।’ उन्होंने कहा, ‘सज्जनों में फूट नहीं पड़नी चाहिए। आपस की दूरियों को साथ बैठकर दूर किया जाना चाहिए। दूरियों से आंदोलन कमजोर पड़ता है।’


बालकृष्ण ने जोर देकर कहा कि रामदेव और अन्ना हजारे में कोई फर्क नहीं है। उन्होंने कहा, ‘रामदेव भी अन्ना हजारे की तरह निर्लिप्त और निश्छल हैं। आंदोलन के अग्रणी लोगों को एक-दूसरे को समझने का प्रयास करना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दों पर योग गुरु की अगुवाई में देश भर में ‘पूरी ताकत से’ आंदोलन जारी रहेगा।

अन्ना हज़ारे चिट्ठी (२५/०४/२०१२ ) प्रधानमंत्री के नाम



दिनांक: 25/04/2012
सेवा में,
माननीय श्रीमान मनमोहन सिंह जी,
प्रधानमंत्री, भारत सरकार,
नई दिल्ली

विषय: दिनांक 31 अक्टूबर 2003 को संयुक्त राष्ट्र संघ के जिस भ्रष्टाचार विरोधी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किये गए थे, उस पर अमल करने के बारे में…

सम्मानीय महोदय,
सस्नेह वंदे !
संयुक्त राष्ट्र संघ की वर्ष 2003 में हुई परिषद में विचारार्थ मसौदे के आमुख में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्कालीन महासचिव श्री कोफी अन्नान का कथन था कि भ्रष्ट्राचार अत्यंत हानिकारक तथा सभी स्तरों पर समाज को व्यापक दुष्परिणाम पहुंचाने वाली घातक बीमारी है।
भ्रष्टाचार के कारण लोकतंत्र का तथा कानून व्यवस्था का ह्रास होता है, मानवी अधिकारों का उल्लंघन होता है, व्यापार विनिमय ध्वस्त होते हैं, इंसान का जीना दूभर होता है, सामूहिक अपराध वृत्ति को बल मिलता है, आतंकवाद व मानवीय जीवन को खतरा पहुंचाने वाली अनेक प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलता है, जनता को प्राथमिक सेवा सुविधा मुहैया करवाने की सरकार की क्षमता पर विपरीत असर पड़ता है। दरिद्रता निर्मूलन तथा विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार की ही है।
उक्त परिषद में इन सभी बातों को सोच समझ कर सरकार ने दस्तावेज़ पर सहमति निदर्शक दस्तखत किये थे।भ्रष्टाचार की वजह से लोकतंत्र, नैतिकता तथा न्यायपालिका खतरे में पड़ जाती है और आगे चल कर स्थायी विकास और कानून व्यवस्था चरमरा जाती है। संयुक्त राष्ट्र की इस महत्वपूर्ण परिषद् में भ्रष्टाचार जैसे मुखर दस्तावेज़ पर हमने दस्तखत किये हुए नौ वर्ष बीत चुके हैं। हमारा दुर्भाग्य है कि भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिये ठोस कार्रवाई होती नहीं दिखती। सन् 1993 में सरकार द्वारा नियुक्त एन.एन. वोरा समिति की रिपोर्ट भी सरकार को सादर हो चुकी है। इस रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के गंभीर परिणामों की ओर स्पष्ट निर्देश किया गया है। रिपोर्ट में यूं भी बताया गया है कि यह बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देता है कि देश के विभिन्न भागों में आपराधिक गिरोह, पुलिस, नौकरशाह तथा राजकर्ताओं के बीच सांठगांठ होती रही है।
व्यक्तिगत अपराध की रोकथाम के लिए बनी हमारी प्रचलित न्याय व्यवस्था इन संगठित अपराधियों का बंदोबस्त करने के मामले में नाकाफी साबित हो रही है। संगठित आपराधिक तत्व व माफिया गिरोह के पास बड़ी संख्या में गुंडे हैं, धन संपत्ति की कोई कमी नहीं, सरकारी यंत्रणा, राजनेता व सभी संबंधितों से सांठ-गांठ बनी है। भ्रष्टाचार का फैलाव खतरनाक मोड़ पर जा चुका है। भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए बनी विद्यमान सभी यंत्रणाएं भ्रष्टाचार का सामना करने में नाकाफी व नाकामयाब साबित हो रही है। इन यंत्रणाओं को तथा भ्रष्टाचार विरोधी कानून को जर्जर कर देने वाले इस भ्रष्टाचार रूपी राक्षस का डट कर मुकाबला करना जरूरी है। उक्त रिपोर्ट को दाखिल हुए बीस वर्ष होने में है, मगर उस पर अमल करने के बारे में एकदम कोरा चिट्ठा ही है।
यूएनसीएजी (संयुक्त राष्ट्र संघ का भ्रष्टाचार विरोधी दस्तावेज़) के परिच्छेद 6(2) के अनुसार हर राष्ट्र ने इस परिच्छेद के आरंभ में निर्देशित भ्रष्टाचार विरोधी यंत्रणा अथवा यंत्रणाओं को कानून यंत्रणा के मूलभूत तत्वों के बारे में स्वायत्तता देना जरूरी है। दस्तावेज़ पर दस्तखत करने के बावजूद हमारी सरकार भ्रष्टाचार की रोकथाम में लगे संस्थानों को स्वायत्तता देने को राज़ी नहीं है। फिर संयुक्त राष्ट्र संघ के दस्तावेज़ पर दस्तखत करने का मतलब ही क्या? मतलब साफ है कि भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की इच्छाशक्ति का सरकार में है नहीं। फिर सत्ता में बने रह कर सरकार चलाने का उद्देश्य ही क्या है? जब तक नहीं भ्रष्टाचार रुकेगा, तब तक देश का भविष्य उज्वल नहीं हो सकता। संयुक्त राष्ट्र परिषद भी यही बताती है और एन.एन. वोरा कमिटी भी यही तो बताती है। फिर भी इलाज नहीं होता है। बड़ी चिंता की बात है।
मैं आग्रह पूर्वक अनुरोध करना चाहता हूं कि संयुक्त राष्ट्र संघ के जिस दस्तावेज़ पर हमारी सरकार ने सहमति के हस्ताक्षर किये हैं उस दस्तावेज़ को आप तथा आप की सरकार के मंत्रीगण फिर से पढ़ें। संभव है, आपके व्यस्त कार्यकलापों में आपको उस दस्तावेज़ का विस्मरण हुआ हो। उसी प्रकार सरकार द्वारा नियुक्त एन.एन. वोरा कमिटी की वर्ष 1993 की रिपोर्ट भी पढ़ें तथा पढ़कर अह्वाल की सिफारिशों पर अमल करें।

भवदीय,
कि. बा. उपनाम अण्णा हज़ारे
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