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CBI जांच पर टीम अन्ना को भरोसा नहीं : कोयला घोटाला

कोयला घोटाला मामले में बीजेपी से मिली शिकायत को सीवीसी ने सीबीआई को सौंप दिया है. भले ही अभी कुछ साबित नहीं हुआ हो लेकिन अगर सीबीआई को जांच में कुछ गड़बड़ मिलती है, तो 2जी की तरह इसे भी बवाल बनते देर नहीं लगेगी.


इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा करने वाली टीम अन्ना अब भी खास, खुश नहीं. उन्हें तो सीबीआई की जांच पर ही भरोसा नहीं. किरण बेदी ने इस मुद्दे पर ट्वीट किया है कि सीबीआई को सियासी छल-कपट से मुक्त किया जाना चाहिए ताकि इस संस्था पर भरोसा हो सके.


सत्ता से बाहर रहने पर सभी राजनीतिक पार्टियों ने आरोप लगाए हैं कि सीबीआई पक्षपात पूर्ण जांच करती है.


टीम अन्ना खुश हो या नहीं, लेकिन अब जांच सीबीआई के हवाले ही है. सीबीआई की जांच से ही अब साफ होगा कि देश की जनता से कितना बड़ा छल हुआ है औऱ इस छल के गुनहगार कौन हैं?


क्या है मामला:


सीवीसी ने सीबीआई को जो शिकायत दी है उसके मुताबिक खदान आवंटित होने के बाद प्राइवेट कंपनियां, इसकी आउटसोर्सिंग कर रही थी, जबकि ये नियम के खिलाफ है.


प्राइवेट कंपनियां बिचौलियों की भूमिका निभाते हुए मुनाफा कमा रही थी और दूसरी कंपनियों को महंगी कीमत पर कोयला खदान दे रही थी. सीवीसी के मुताबिक 64 कोयला खदान करीब 50 प्राइवेट कंपनियों को दिए गए. सूत्रों के मुताबिक सीएजी की रिपोर्ट में भी इन कंपनियों के नाम है.


जिस कोयला घोटाले के आरोपों में प्रधानमंत्री भी घिरते नजर आ रहे हैं उसका खेल साल 2004 में शुरू हुआ था. सीएजी की रिपोर्ट की माने तो 28 जून 2004 तक सिर्फ 39 कोयला खदानों का आवंटन किया गया था.


2004 में ही कोयला खदान आवंटन की प्रक्रिया में बदलाव की बात सामने आ गई थी. उस समय के कोयला सचिव ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर साफ कहा था कि कोयला खदान आवंटन बोली लगाकर ही किया जाना चाहिए. कोयला सचिव ने ये भी लिखा था कि मौजूदा प्रक्रिया में अधिकारियों को कई तरह दबाव झेलने पड़ते है.


तब कोयला सचिव के सुझावों को सिर्फ इसलिए सिरे से खारिज कर दिया गया ताकि आवंटन जल्दी हो सके. सीएजी की रिपोर्ट साफ कहती है कि कोयला खदान आवंटन में बिल्कुल भी पारदर्शिता नहीं है.


प्रधानमंत्री ने बोली लगाने की प्रक्रिया में जानबूझकर देरी होने दी. प्रधानमंत्री ने कोयला सचिव के सुझावों को भी नज़रअंदाज किया जिस वक्त कोयले खदानों का आवंटन हुआ था, उस वक्त कोयला मंत्रालय खुद प्रधानमंत्री के पास था. अब जब ये मामला सीबीआई तक पहुंच चुका है तो विपक्षी बीजेपी जताने में जुटी है कि ये तो उनकी कोशिशों का नतीजा है.

टीम अन्ना की जांच की मांग को किया खारिज

नई दिल्ली : विधि मंत्री सलमान खुर्शीद ने आज टीम अन्ना की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और 14 केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने संबंधी मांग को खारिज कर दिया। खुर्शीद ने कहा कि सरकार ऐसी मांगों के आगे नहीं झुकेगी।


टीम अन्ना के सदस्यों की ओर से सिंह और अन्य केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ एसआईटी जांच कराने की मांग पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए खुर्शीद ने कहा कि हम इसके आगे नहीं झुकेंगे। टीम अन्ना के सदस्यों के आरोपों पर खुर्शीद ने कहा कि मैं नहीं समझता कि हमें मीडिया द्वारा की जाने वाली सुनवाई पर ध्यान देना चाहिए, आम जनता द्वारा की जाने वाली सुनवाई पर ध्यान देना चाहिए और मंत्रियों और निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री को भूल जाना चाहिए। हम ऐसे देश में हैं जहां कानून के तहत शासन चलता है।


उन्होंने कहा कि कुछ लोग उच्चतम न्यायालय गए हैं कि किसी को कोई भी मौजूद संस्थानों के समक्ष जाने से नहीं रोक रहा है।

टीम अन्ना पर कांग्रेस का चौतरफा हमला

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर लगाए गए आरोपों से बिफरी कांग्रेस ने बुधवार को टीम अन्ना पर चौतरफा हमला बोला। पार्टी ने एकतरफ जहां कहा कि टीम अन्ना ने प्रधानमंत्री पर जो आरोप लगाए हैं वे बेबुनियाद हैं और ऐसे आरोप तो कभी विपक्ष ने भी नहीं लगाए वहीं कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने इन आरोपों का जांच एसआईटी से कराने की टीम अन्ना की मांग खारिज कर दी।

हालांकि कांग्रेस ने यह भी कहा है कि अगर टीम अन्ना के पास भ्रष्टाचार से जुड़े दस्तावेज हैं तो उनके सामने कानूनी मदद का रास्ता भी खुला है। इसके अलावा पार्टी भले ही प्रधानमंत्री का बचाव कर रही हो लेकिन खुद पार्टी के भीतर ऐसी चर्चाएं हैं कि प्रधानमंत्री को इन आरोपों पर इतना भावुक नहीं होना चाहिए था कि वह संन्यास की बात कहें।

कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कहा कि प्रधानमंत्री की ईमानदारी पर किसी को शक नहीं है। टीम अन्ना पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि टीम ने प्रधानमंत्री पर जैसे आरोप लगाए हैं वैसा आरोप तो कभी विपक्षी पार्टियांे ने भी नहीं लगाया। यहां तक कि उनके दुश्मनों की भी हिम्मत इस तरह का इल्जाम लगाने की नहीं हुई। अल्वी ने दलील दी कि प्रधानमंत्री किसी पार्टी का नहीं बल्कि देश और जनता का होता है। प्रधानमंत्री के साथ देश का सम्मान और गरिमा जुड़ी होती है और उनके लिए ऐसी भाषा का प्रयोग निंदनीय है। योजना मंत्री अश्विनी कुमार ने भी इन आरोपों को गलत बताया और इन पर ध्यान नहीं देने की बात कही है।

दूसरी तरफ, सलमान खुर्शीद ने प्रधानमंत्री पर लगाए गए आरोपों की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने की टीम अन्ना की मांग को बुधवार को खारिज कर दिया। खुर्शीद ने कहा, मुझे नहीं लगता हम मीडिया ट्रायल पर कार्रवाई करेंगे, किसी के लिए स्ट्रीट ट्रायल नहीं होगा, मंत्रियों और खासकर प्रधानमंत्री के बारे में तो भूल ही जाइए। हम ऐसे देश में रहते हैं जहां कानून का राज है।

05 जून से ‘‘अन्ना सन्देश यात्रा’’

19 जून को लखनऊ में पूरा होगा यात्रा का प्रथम चरण
भ्रष्ट मंत्रियों व दागी विधायकों को किया जाएगा बेनकाब


लखनऊ, 16 मई 2012 (आईपीएन)। इंडिया अगेन्स्ट करप्शन द्वारा आगामी 5 जून से लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्म स्थली सिताब दियरा, बलिया से पूरे प्रदेश में ’’अन्ना सन्देश यात्रा’’ का प्रारम्भ किया जा रहा है।


यात्रा चार चरणों में रखी गई है। 5 जून बलिया से प्रारम्भ प्रथम चरण की यात्रा 19 जून को लखनऊ में पूरी होगी।


टीम अन्ना के राष्ट्रीय कोर कमेटी सदस्य संजय सिंह ने यहां संवाददाता सम्मलेन में कहा कि देश भर में लगातार हो रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए केन्द्र सरकार व संसद में पिछले वर्ष 27 अगस्त को सभी राजनैतिक दलों द्वारा सर्वसम्मति से लाये गये प्रस्ताव का पालन न करने व जनलोकपाल कानून न पारित किए जाने के विरोध में यह जन जागरण यात्रा की जा रही है। यात्रा का प्रारम्भ 5 जून 1975 के सम्पूर्ण कं्राति दिवस की याद मेें निर्धारित किया गया है। इस ’’अन्ना सन्देश यात्रा’’ में संसद में 543 में से 163 दागी सांसदों व 34 केन्द्रीय मंत्रियों में 16 भ्रष्ट मंत्रियों व पूरे देश में 4200 विधायको में से 1170 दागी विधायकों को जनता के बीच बेनकाब किया जायेगा। संजय ने यह कहा कि एक तरफ तो भ्रष्टाचारी ए. राजा, कनीमोझी व कलमाणी को जमानत मिल गयी है व दूसरी तरफ संसद में लालू यादव जैसे नेता नागरिक समाज को लगातार अपमानित कर रहे हैं। यही नेता दोबारा भ्रष्टाचार करके चुनाव जीत कर संसद व विधान सभा में आ जाते हैं। ऐसे में संसद की गरिमा बचाने के लिए साफ-सुथरी छवि के लोगों को ससंद में भेजना होगा। 


संजय ने कहा कि इसके लिए जनता में भ्रष्टाचार के खिलाफ जन-जागरण की आवश्यकता है। जिससे ऐसे नेता पुनः चुनाव जीत कर न आ सके और भष्टाचार समाप्त हो सके। संजय ने बताया कि आगामी दो माह में पूरे प्रदेश में इडिया अगेन्स्ट करप्शन में 5 लाख सदस्य बनाये जायेगें व ग्राम ब्लाक, जिला व राज्य स्तर पर कमेटियों का गठन भी किया जायेगा।

जनलोकपाल के दुश्मन

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लाखों बच्‍चे भूखे हैं तो आपको नींद कैसे आती है प्रधानमंत्री जी: केजरीवाल

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दिल्‍ली। टीम अन्ना ने एक बार फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर निशाना साधा है। टीम अन्ना के अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल ने पूछा है कि देश के लाखों बच्चे जब भूखे हैं तो प्रधानमंत्री को नींद कैसे आती है। प्रधानमंत्री के इस बयान पर कि वो दोषी पाए जाते हैं तो राजनीति से संन्यास ले लेंगे, केजरीवाल ने कहा है कि भले पीएम पर कोयला घोटाले की सीधी ज़िम्मेदारी न बनती हो लेकिन एक लाख 80 हजार करोड़ का कोयला घोटाला तो हुआ ही है।


केजरीवाल ने कहा कि दोषी या निर्दोष होने का सवाल तो तब खड़ा होगा, जब इस मामले की जांच कराई जाए, लेकिन सवाल यह उठता है कि निष्पक्ष जांच कराएगा कौन? केजरीवाल के साथ टीम अन्ना के एक और अहम सदस्य प्रशांत भूषण ने कहा कि उनकी मांग महज़ यह है कि अगर वह और उनका मंत्रिमंडल निर्दोष हैं तो फौरन जांच का आदेश दे दें।


केजरीवाल ने मनमोहन सिंह की नीयत पर सवाल खड़े करते हुए कहा, "हमें भी ऐसा लगता है कि पीएम ईमानदार हैं और सीधे फायदा नहीं लिया होगा लेकिन किसी ने तो फायदा लिया है।" कोयला घोटाले का सवाल खड़ा करते हुए केजरीवाल आगे कहते हैं, "हम आम आदमी है जो भ्रष्टाचार और महँगाई से पीड़ित है। आज की सियासत से परेशान हैं। देश के बच्चों के मुंह से निवाला छीना जा रहा है। प्रधानमंत्री जी ऐसी स्थिति में आपको नींद कैसे आ जाती है।"

टीम अन्ना ने पीएम से पूछे ४ सवाल

नई दिल्ली।। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर करप्शन के आरोपों को लेकर टीम अन्ना अपने रुख पर कायम है। टीम अन्ना ने आरोपों को बेबुनियाद बताने पर बुधवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर सवाल दागे। पीएम ने कहा था कि अगर आरोप सही हुए तो वह राजनीति से संन्यास ले लेंगे।


टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस की। केजरीवाल ने कहा कि पीएम पर आरोप उन्होंने नहीं बल्कि सीएजी की रिपोर्ट में लगाए गए हैं। सीएजी के मुताबिक कोल ब्लॉक की नीलामी न करने से सरकार को 1 लाख 80 हजार करोड़ रुपये की चपत लगी। सरकार ने रॉयल्टी की कीमत तक नहीं बढ़ाई।


केजरीवाल ने कहा कि हमें लगता है कि पीएम ईमानदार हैं। उन्हें इसका सीधा फायदा नहीं हुआ होगा, लेकिन इसका फायदा किसी को तो हुआ ही है। उन्होंने कहा कि पीएम को इस मामले की स्वतंत्र एजेंसी से जांच करवानी चाहिए।
उन्होंने कहा प्रधानमंत्री जी हम आपसे पूछना चाहते हैं कि देश के करोड़ों भूखे बच्चों के पिता होने के नाते आपको नींद कैसे आती है? जनता के मन में कुछ सवाल हैं जो प्रधानमंत्री जी से पूछना चाहेंगे...


1.अगर कोई मंत्री करप्शन करे तो वह कौन सी एजेंसी है जो सरकार से स्वतंत्र है और जहां उस करप्शन की रिपोर्ट दर्ज कराई जा सके?


2.जिस मंत्री के खिलाफ करप्शन के आरोप लगे हैं यदि वह कहे कि उसने करप्शन नहीं किया या पीएम कहें कि उन्होंने करप्शन नहीं किया, तो क्या बिना निष्पक्ष जांच के देश इस बात को मान ले?


3.क्या यह सच है कि तत्कालीन कोयला सचिव ने कई बार आपको कोयला खदानों की नीलामी करने की सलाह दी थी? क्या यह सच है कि पीएमओ ने वह सलाह खारिज कर दी? क्या आपने खुद उन फाइलों पर दस्तखत किए थे?


4.सीएजी का आकलन है कि कोयला खदानों की नीलामी न करने से देश को 1.8 लाख करोड़ का नुकसान हुआ। अगर इतना करप्शन न होता तो पेट्रोल पर टैक्स कम किया जा सकता था। क्या आप मानते हैं कि तब पेट्रोल की कीमतें बढ़ाने की जरूरत न पड़ती और आम आदमी को महंगाई की मार से बचाया जा सकता था?


पीएम जेल जाने की बात क्यों नहीं करते?
उधर, टीम अन्ना के सदस्य मनीष सिसौदिया ने कहा, 'पीएम कोयला घोटाले में जांच से क्यों बच रहे हैं? पीएम कहते हैं कि आरोप सही हुए तो वह संन्यास ले लेंगे। वह यह क्यों नहीं कहते कि आरोप सही पाए गए तो वह बाकी जिंदगी जेल में काटेंगे?इसका मतलब यह है कि पीएम यह स्वीकार कर रहे हैं कि करप्शन के आरोप साबित होने के बाद भी नेता ऐश के साथ जिंदगी बिता सकते हैं।'

खनन घोटाले में शामिल रहे हैं कृष्णा: टीम अन्ना

गाजियाबाद। टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने मंगलवार को विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा पर आरोप लगाया कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए वह राज्य में खनन घोटाले में शामिल रहे हैं, जिस कारण राजस्व का भारी नुकसान हुआ था। कांग्रेस ने हालांकि इस आरोप का खंडन किया है।

भूषण ने यहां संवाददाताओं से कहा कि कृष्णा 1999 से 2004 के बीच कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे। इस दौरान एक खनन घोटाला हुआ था, जिसमें उनकी संलिप्तता रही है। यह मामला अदालत में विचाराधीन है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने हालांकि इस आरोप को तथ्यहीन बताया है जबकि उन्हें पता है कि राज्य में खनन सौदे में भ्रष्टाचार हुआ था। उन्होंने कहा, ""हमने पाया है कि आरोप सही हैं और इससे राज्य के राजकोष को हजारों करो़ड रूपये का नुकसान होना पाया गया है।"" भूषण ने दावा किया कि सबूत है जो कथित तौर पर राज्य के लोकायुक्तको मुहैया नहीं कराया गया।

उन्होंने कहा कि आरोप के जबाब में कृष्णा ने कहा है कि यह मामला अदालत में विचाराधीन है और सर्वोच्चा न्यायालय इस मामले में लोकायुक्त की कार्यवाही पर रोक लगा चुका है। भूषण ने आरोप लगाया कि पूर्व मुख्यमंत्री को इसलिए राहत मिली हुई है क्योंकि राज्य सरकार ने लोकायुक्त के समक्ष कैबिनेट का वह नोट पेश नहीं किया जिस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर हैं। यह नोट 11,620 वर्ग किलोमीटर वन भूमि लौह अयस्क के खनन के लिए निजी कम्पनियों को देने की सिफारिश करता है। भूषण ने कहा कि वह कैबिनेट नोट और सरकारी महकमों के अन्य दस्तावेज टीम अन्ना के पास है।

टीम अन्ना के आरोप साबित हुए तो संन्यास: मनमोहन

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने टीम अन्ना की ओर से खुद पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को खारिज कर दिया है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि यदि कोल ब्लॉक आवंटन में गड़बड़ी के आरोप साबित होते हैं तो वह सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लेंगे।

टीम अन्ना को करारा जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि तथ्यों की पुष्टि किए बिना ही कोल ब्लॉक आवंटन में अनियमितता के गैरजिम्मेदाराना आरोप लगा दिए गए। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री के तौर पर, राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में और अब प्रधानमंत्री के तौर पर मेरा पूरा सार्वजनिक जीवन एक खुली किताब की तरह है। प्रधानमंत्री म्यांमार की अपनी यात्रा से लौटते समय विमान में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।

मनमोहन सिंह ने कहा कि यदि आरोपों में जरा भी सच्चाई निकली तो मैं अपना सार्वजनिक छोड़ दूंगा। उन्होंने जनता को भी संदेश दिया कि वही फैसला करे कि क्या देश में इस तरह की सियासत को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। टीम अन्ना के सदस्यों प्रशांत भूषण और शांति भूषण की ओर से खुद पर लगाए गए आरोपों पर प्रधानमंत्री की यह पहली प्रतिक्रिया आई है।

मालूम हो कि यूपीए सरकार के कई मंत्रियों पर पहले से भ्रष्टाचार के आरोप लगाती रही टीम अन्ना ने पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री पर भी निशाना साध दिया था। टीम ने कहा था कि जब कोयला मंत्रालय का प्रभार मनमोहन सिंह के पास था, तब कोल ब्लॉक आवंटन में गड़बड़ी हुई थी। टीम अन्ना के सदस्यों ने कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट का हवाला देते हुए यह आरोप लगाए थे। टीम अन्ना ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी समेत 14 मंत्रियों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।

प्रधानमंत्री ने पत्रकारों के समक्ष एक बयान भी पढ़ा। इसमें कहा गया है कि कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट के लीक हुए अंशों के आधार पर कोल ब्लॉक आवंटन में गड़बड़ी के आरोप लगाए जा रहे हैं। हमें इस संबंध में एक पत्र भी मिला है। कोयला मंत्री ने इन आरोपों के जवाब में विस्तृत तथ्यात्मक ब्यौरा मुहैया कराया है। कोयला मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर पूरी जानकारी भी डाल दी है।

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि सरकार को अब तक कैग रिपोर्ट नहीं मिली है। उन्होंने कहा कि जब रिपोर्ट मिलेगी तो सरकार संवैधानिक प्रक्रिया के मुताबिक इस पर अपना विस्तृत जवाब लोक लेखा समिति के सामने पेश करेगी। लेकिन मसौदा रिपोर्ट के लीक अंशों के आधार पर गैरजिम्मेदाराना आरोप लगाना दुर्भाग्यपूर्ण है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि तथ्यों की पुष्टि किए बिना ही कोल ब्लॉक आवंटन में अनियमितता के गैरजिम्मेदाराना आरोप लगा दिए गए। वित्त मंत्री के तौर पर, राज्यसभा में विपक्ष के नेता और अब प्रधानमंत्री के रूप में मेरा पूरा सार्वजनिक जीवन एक खुली किताब की तरह है।--प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह

अन्ना को उनके साथियों से बचाना बेहद जरूरी: खुर्शीद
कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि देश को भ्रष्टाचार के नासूर से बचाना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला रहे समाजसेवी अन्ना हजारे को उनके साथियों से बचाना है। खुर्शीद ने अरविंद केजरीवाल पर पलटवार करते हुए कहा कि उन्होंने तो आयकर विभाग के अधिकारियों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं।

खुर्शीद ने केजरीवाल का नाम लिए बिना व्यंग्य के लहजे में कहा कि आयकर विभाग में एक ही तो ईमानदार अधिकारी था और उसने भी विभाग छोड़ दिया। गौरतलब है कि भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी केजरीवाल 2006 में सेवा से इस्तीफा देने से पहले आयकर विभाग के संयुक्त आयुक्त थे।

क्या लगाए आरोप
प्रधानमंत्री के कोयला मंत्रालय का कार्यभार संभालने के दौरान कोल ब्लॉक कौड़ियों के दाम बेचे गए। 2006-09 के दौरान कोयला सचिव के सुझावों को दरकिनार कर कोल ब्लॉक आवंटित करने के लिए नीलामी की प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।

जांच की मांग भी की
टीम ने मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी और 13 अन्य मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की है। उसने चेताया है कि यदि 24 जुलाई तक उसकी मांगें नहीं मानी गईं तो 25 जुलाई से टीम अन्ना के सदस्य दिल्ली में अनिश्चितकालीन अनशन करेंगे।

टीम अन्ना ने मंत्री एस.एम.कृष्णा को दिया जवाब


नई दिल्ली।। टीम अन्ना के अहम सदस्य प्रशांत भूषण ने मंगलवार को विदेश मंत्री एस.एम.कृष्णा को चिट्ठी के जरिए उनके उस लेटर का जवाब भेजा है, जो उन्होंने टीम अन्ना के प्रमुख मेंबर अरविंद केजरीवाल को भेजा था। भूषण ने चिट्ठी में लिखा है कि लगता है कि विदेशी मंत्री ने उन पर लगे आरोपों वाला जो पत्र टीम अन्ना ने पीएम को भेजा है, ढंग से नहीं पढ़ा है।


उन्होंने लिखा है कि टीम अन्ना के अपने पहले लेटर में सब कुछ तथ्यों के साथ पेश किया था। कृष्णा के माइनिंग माफिया से गठजोड़ का आरोप लगाते हुए कहा गया है कि कर्नाटक हाई कोर्ट और स्पेशल कोर्ट द्वारा जांच के आदेश पर विदेश मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट से स्टे ऑर्डर भी लिया था।


गौरतलब है कि विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने पूर्व लोकायुक्त एन संतोष हेगडे़ की रिपोर्ट के आधार पर उन्हें भ्रष्ट कहे जाने पर टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण को कानूनी नोटिस भेजा था।

तो यह है तेल का असली खेल

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यह रिटर्न गिफ्ट देने की कांग्रेसी अदा है। यूपीए-2 के तीन साल पूरे होने पर आम आदमी के लिए टेसुए बहा रही सरकार ने पुराने तर्कों का हवाला देकर पेट्रोल की कीमतों में साढ़े सात रुपए की बढ़ोतरी कर दी है। हर बार की तरह इस बार भी भाजपा और ममता बनर्जी ने रस्मी विरोध किया है, मगर तेल के खेल से जुड़े सुलगते सवालों का जवाब देने को वे तैयार नहीं हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि अर्थशास्त्रियों और वकीलों से अटी पड़ी कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार पेट्रोल को अमीरों का ईंधन मान बैठी है। हकीकत यह है कि देश के साठ फीसदी से ज्यादा दुपहिया-तिपहिया वाहनों की बिक्री छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में होती है। महानगरों में निम्न मध्यवर्ग ही पेट्रोल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। जापान की होंडा मोटर्स दुनियाभर में पेट्रोल कारों के लिए जानी जाती है मगर भारत में डीजल कारें भी बनाती है क्योंकि हमारी सरकार ने लक्जरी डीजल कारों को खैरात बांटने की शपथ ले रखी है।


एक और विडंबना देखिए। भारत के 90 फीसदी तेल कारोबार पर सरकारी कंपनियों का नियंत्रण है और सरकार की मानें तो ये कंपनियां जनता को सस्ता तेल बेचने के कारण भारी घाटे में हैं। दूसरी ओर, फॉच्र्यून पत्रिका के मुताबिक दुनिया की आला 500 कंपनियों में भारत की तीनों सरकारी तेल कंपनियां- इंडियन ऑयल (98), भारत पेट्रोलियम (271) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम (335)- शामिल हैं। तेल और गैस उत्खनन से जुड़ी दूसरी सरकारी कंपनी ओएनजीसी भी फॉच्र्यून 500 में 360वीं रैंक पर है। आखिर यह कैसे संभव है कि सरकार घाटे का दावा कर रही है लेकिन तेल कंपनियां की बैलेंसशीट खासी दुरुस्त है। दरअसल भारत में रोजाना 34 लाख बैरल ( एक बैरल में 159 लीटर) तेल की खपत होती है और इसमें से 27 लाख बैरल तेल आयात किया जाता है। आयात किए गए कच्चे तेल को साफ करने के लिए रिफाइनरी में भेज दिया जाता है। तेल विपणन कंपनियों के कच्चा तेल खरीदने के समय और रिफाइनरी से ग्राहकों को मिलने वाले तेल के बीच की अवधि में तेल की कीमतें ऊपर-नीचे होती हैं। यहीं असली पेंच आता है। फिलहाल अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 110 डॉलर प्रति बैरल है और अंडररिकवरी हमेशा मौजूदा कीमतों के आधार पर तय की जाती है। विडंबना देखिए, सरकार 120 डॉलर प्रति बैरल के पुराने भाव से अंडररिकवरी की गणना करके भारी-भरकम आंकड़ों से जनता को छलती है।


तेल विपणन कंपनियों का कथित घाटा भी आंकड़ों की हेराफेरी है। सकल रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) इसका सबूत है। कच्चे व शोधित तेल की कीमत के बीच के फर्क को रिफाइनिंग मार्जिन कहा जाता है और भारत की तीनों सरकारी तेल विपणन कंपनियों का जीआरएम दुनिया में सबसे ज्यादा है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में तेल विपणन कंपनियों का जीआरएम चार डॉलर से सात डॉलर के बीच रहा है। चीन भी भारत की तरह तेल का बड़ा आयातक देश है जबकि अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक चीन का रिफाइनिंग मार्जिन प्रति बैरल शून्य से 2.73 डॉलर नीचे है। यूरोप में तेल भारत से महंगा है लेकिन वहां भी जीआरएम महज 0.8 सेंट प्रति बैरल है। दुनिया में खनिज तेल के सबसे बड़े उपभोक्ता अमेरिका में रिफाइनिंग मार्जिन 0.9 सेंट प्रति बैरल है। अमेरिका और यूरोप में तेल की कीमतें पूरी तरह विनियंत्रित हैं और बाजार भाव के आधार पर तय की जाती हैं। अंडररिकवरी की पोल खोलने वाला दूसरा सबूत शेयर पर मिलने वाला प्रतिफल यानी रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई) है। आरओई के जरिए शेयरहोल्डरों को मिलने वाले मुनाफे का पता चलता है। भारतीय रिफाइनरियों का औसत आरओई 13 फीसदी है, जो ब्रिटिश पेट्रोलियम (बीपी) के 18 फीसदी से कम है। अगर हकीकत में अंडररिकवरी होती तो मार्जिन नकारात्मक होता और आरओई का वजूद ही नहीं होता। जाहिर है, भारत में तेल विपणन मुनाफे का सौदा है और भारतीय ग्राहक दुनिया में सबसे ऊंची कीमतों पर तेल खरीदते हैं।


महंगे तेल की एक और वजह है। हमारे देश में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने तेल विपणन को खजाना भरने का जरिया बना लिया है। पेट्रोल पर तो करों का बोझ इतना है कि ग्राहक से इसकी दोगुनी कीमत वसूली जाती है। ताजा बढ़ोतरी के बाद दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 73.14 रुपए है और जबकि तेल विपणन कंपनियों के सारे खर्चों को जोड़कर पेट्रोल की प्रति लीटर लागत 30 रुपए के आस-पास ठहरती है। केंद्र सरकार जहां कस्टम ड्यूटी के रूप में साढ़े सात फीसदी लेती है वहीं एडिशनल कस्टम ड्यूटी के मद में दो रुपए प्रति लीटर, काउंटरवेलिंग ड्यूटी के रूप में साढ़े छह रुपए प्रति लीटर, स्पेशल एडिशनल ड्यूटी के मद में छह रुपए प्रति लीटर, सेनवेट के मद में 6.35 रुपए प्रति लीटर, एडिशनल एक्साइज ड्यूटीदो रुपए प्रति लीटर और स्पेशल एडिशनल एक्साइज ड्यूटी के मद में छह रुपए प्रति लीटर लेती है। राज्य सरकारें भी वैट, सरचार्ज, सेस और इंट्री टैक्स के मार्फत तेल में तड़का लगाती हैं। दिल्ली में पेट्रोल पर 20 फीसदी वैट है जबकि मध्य प्रदेश में 28.75 फीसदी, राजस्थान में 28 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 22 फीसदी है। मध्य प्रदेश सरकार एक फीसदी इंट्री टैक्स लेती है और राजस्थान में वैट के अलावा 50 पैसे प्रति लीटर सेस लिया जाता है।


भारत दुनिया का अकेला ऐसा देश हैं जहां सरकार की भ्रामक नीतियों के कारण विमान में इस्तेमाल होने वाला एयर टरबाइन फ्यूल यानी एटीएफ, पेट्रोल से सस्ता है। दिल्ली में पेट्रोल और एटीएफ की कीमतों में तीन रुपए का फर्क है और नागपुर जैसे शहरों में तो एटीएफ, पेट्रोल से 15 रुपए तक सस्ता है। एटीएफ और पेट्रोल की कीमतों के बीच यह अंतर काउंटरवेलिंग शुल्क और मूल सेनवैट शुल्क की अलग-अलग दरों के कारण है। सरकार सब्सिडी खत्म करने का भी तर्क देती है। सब्सिडी को अर्थशास्त्र गरीब मानव संसाधन में किया गया निवेश मानता है लेकिन हमारी सरकार इस सब्सिडी को रोककर तेल कंपनियों का खजाना भरना चाहती है।

अन्ना की अपील पर अखिल गोगोई ने तोड़ा अनशन

गुवाहाटी : सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की अपील पर असम के किसान नेता और बांध विरोधी कार्यकर्ता अखिल गोगोई ने सोमवार की शाम अपना अनशन खत्म कर दिया। वह 10 दिनों से अनशन कर रहे थे। उन्होंने अपना आंदोलन और तेज करने का ऐलान किया।


सोमवार को यहां पहुंचे टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने फोन पर अन्ना की अखिल से बात कराई। अखिल के आंदोलन का समर्थन करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने उनसे अनशन खत्म करने की अपील की और कहा कि बड़े बांधों के निर्माण के ख्लिाफ आंदोलन जारी रखने के लिए यह जरूरी है कि उनका स्वास्थ्य ठीक रहे।


अखिल पूर्वोत्तर क्षेत्र में बनाए जा रहे बांधों के खिलाफ 19 मई से आमरण अनशन कर रहे थे। जूस पीकर अनशन तोड़ने के बाद अखिल ने मीडया से कहा, अन्ना जी ने मुझसे अनशन खत्म करने के लिए कहा औ मैंने उनकी बात मान ली, लेकिन हम बड़े बांधों के खिलाफ आंदोलन को और तेज करने जा रहे हैं।


इससे पहले केजरीवाल गुवाहाटी मेडिकल कालेज एवं अस्पताल में जाकर अखिल से मिले। अनशन कर रहे अखिल को असम सरकार ने 25 मई को जबरन अस्पताल में भर्ती कराया था। बाद में केजरीवाल ने लखीधर बोरा खेत्र में एक जनसभा को सम्बोधित किया जहां अखिल ने अनशन शुरू किया था।


केजरीवाल ने मीडियाकर्मियों से कहा, अन्ना जी स्वयं अखिल के साथ अनशन पर बैठेंगे, उन्होंने बड़े बांधों के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन करने की जरूरत महसूस करते हुए अखिल से कोई तारीख तय करने के लिए कहा है।

शिमला निकाय चुनाव : 26 साल बाद कांग्रेस की हार

शिमला। नगर निगम शिमला में महापौर व उपमहापौर के पदों के लिए पहली मर्तबा हुए सीधे चुनाव में मतदाताओं ने कांग्रेस व भाजपा को नकार दिया है। दोनों पदों पर मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी [माकपा] ने रिकार्ड जीत दर्ज की है।

मेयर पद पर संजय चौहान ने भाजपा के डॉ. एसएस मिन्हास को हराकर जीत दर्ज की, वहीं डिप्टी मेयर पद पर माकपा के ही टिकेंद्र सिंह पंवर ने भाजपा के दिग्विजय सिंह को हराकर यह पद जीता है। भाजपा को 12 वार्डो में जीत मिली तो कांग्रेस को 10 व माकपा को तीन वार्डो में विजय हासिल हुई। निगम चुनाव के लिए रविवार को हुए मतदान की सोमवार को उपायुक्त कार्यालय में मतगणना हुई। माकपा पोलित ब्यूरो ने इसे ऐतिहासिक जीत करार देते हुए पार्टी की प्रदेश इकाई को बधाई दी है। साथ ही शिमला की जनता के प्रति आभार व्यक्त किया है।

नगर निगम चुनाव में भाजपा ने 12 वार्डो में जीत दर्ज की है। हालांकि उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। कांग्रेस 10 वार्डो और माकपा तीन वार्डो में जीती है। भाजपा को भराडी, रूल्दूभट्ठा, टुटू, अनाडेल, फागली, लोअर बाजार, कृष्णानगर, जाखू, बैनमोर, संजौली चौक, ढली व कसुम्पटी वार्डो में जीत मिली है। कांग्रेस के खाते में बालूंगज, टूटकंडी, नाभा, रामबाजार, इंजनघर, मल्याणा, छोटा शिमला, पटियोगी, खलीनी व कनलोग वार्ड गए हैं।

माकपा ने कैथू, समरहिल व चमियाणा में जीत दर्ज की है। मेयर पद पर कुल सात उम्मीदवार मैदान में थे लेकिन मुख्य मुकाबला माकपा, भाजपा व कांग्रेस में ही हुआ। इस तिकोनी टक्करमें माकपा के संजय चौहान को 21903 मत मिले, जबकि भाजपा के डॉ. मिन्हास को 14035 और कांग्रेस की मधु सूद [निवर्तमान मेयर] को 13278 मत प्राप्त हुए। इसी प्रकार डिप्टी मेयर के पद पर माकपा के टिकेंद्र सिंह पंवर को 21196 मत मिले। भाजपा के दिग्विजय सिंह को 16418 और कांग्रेस के देवेंद्र चौहान को 13205 मत प्राप्त हुए। निगम के इतिहास में यह पहली बार है कि कांग्रेस के गढ़ रहे निगम पर लाल दुर्ग ने कब्जा किया है। इस चुनाव में भाजपा सरकार के लिए मेयर व डिप्टी मेयर के सीधे चुनाव करवाने का दाव उल्टा पड़ा है।

भाजपा भले ही निगम में सबसे बड़ी पार्टी उभरकर सामने आई है, लेकिन महापौर व उपमहापौर पदों पर माकपा ने कब्जा जमा लिया। कांग्रेस अब पहले से तीसरे स्थान पर खिसक गई है। निगम के इन चौंकाने वाले नतीजों से साफ हो गया है कि शिमला की जनता ने भाजपा व कांग्रेस के प्रति प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर रोष जताते हुए उनकी नीतियों पर भरोसा नहीं जताया है। निगम चुनाव में कुल 79956 मतों से 51235 मत पड़े। वर्ष 2007 में पड़े 58 फीसद की तुलना में इस बार 65 फीसद मतदान हुआ।

भाजपा मजबूत हुई है। लोगों ने कांग्रेस को नकार दिया है। नगर निगम चुनाव कभी भी विस चुनाव का रुझान नहीं रहे। सरकार विकास में सहयोग देगी। -प्रेम कुमार धूमल, मुख्यमंत्री

नगर निगम चुनाव में कांग्रेस की हुई हार के कारणों की समीक्षा की जाएगी। पेट्रोल मूल्यवृद्धि व महंगाई भी पार्टी की हार का कारण रहे। -कौल सिंह, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष

चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया गया। पेट्रोल के दामों में की गई बढ़ोतरी व टिकट आवंटन हार के कारण रहे। -विद्या स्टोक्स, नेता प्रतिपक्ष

कांग्रेस का वोट माकपा की ओर शिफ्ट हो गया, जिस कारण कांग्रेस तीसरे नंबर पर चली गई। भाजपा का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा है। वार्ड स्तर पर 12 पार्षद चुनाव जीतकर आए हैं। -सतपाल सत्ती, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष

नगर निगम के फैसले जनता से मिलकर लिए जाएंगे। ग्रामसभा की तर्ज पर हर वार्ड में तीन माह बाद वार्ड सभा होगी, जिसमें जनसमस्याओं के निराकरण का प्रयास किया जाएगा। -संजय चौहान, नवनिर्वाचित महापौर

लोगों ने हम पर विश्वास जताया है, जिसका उत्तर विकास से दिया जाएगा। हर वार्ड में मुलभूत सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी। लोगों का पैसा उनके विकास पर खर्च किया जाएगा। -टिकेंद्र पंवर, नवनिर्वाचित उप महापौर

कांग्रेस के शिखंडी हैं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह : प्रशांत भूषण


दिल्ली। लगातार अपने द्वारा दिए गए विवादस्पद बयानों से सुर्खियों में रहने वाली टीम अन्ना थमने का नाम नहीं ले रही है। उनके द्वारा एक के बाद एक आपत्तिजनक बयान दिए जा रहे है। या यूँ भी कहा जा सकता है की जनलोकपाल और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बयान देते देते टीम अन्ना अपनी जुबान पर नियंत्रण खो चुकी है।


आपको बताते चलें की आज टीम अन्ना के वरिष्ठ सदस्य प्रशांत भूषण की तरफ से एक ऐसा बयान दिया गया है जिससे समूचे राजनैतिक गलियारे में हलचल हो गयी है और सभी दलों के नेता एक सुर में टीम अन्ना के खिलाफ मुहीम चलाने की सोंच रहे हैं। टीम अन्ना के वरिष्ठ सदस्य प्रशांत भूषण ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तुलना महाभारत के प्रसिद्द पात्र शिखंडी से की है। प्रशांत भूषण ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाते हुए कहा है कि मनमोहन सिंह आज देश कि प्रमुख समस्या भ्रष्टाचार पर चुप्पी साधे बैठे हुए हैं जबकि एक देश का प्रधानमंत्री होने के नाते उनको इस विषय पर कोई ठोस कदम उठाना चाहिए था।


साथ ही भूषण ने ये भी कहा कि मनमोहन सिंह का इस्तेमाल कांग्रेस द्वारा भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए एक ढाल जैसे शिखंडी के रूप में किया जा रहा है। उन्होंने ये भी कहा कि आज सारे भ्रष्ट लोगों को कांग्रेस का संरक्षण प्राप्त है। प्रशांत भूषण ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस बात का जवाब माँगा है कि जब वो अपने को पाक साफ़ कहते हैं तो उनकी कैबिनेट क्यों नहीं ठीक है उन्होंने मनमोहन से ये भी पूछा है कि वो क्यों शिखंडी की तरह सिर्फ इस्तेमाल हो रहे हैं और अब तक कोई जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं।


प्रशांत भूषण द्वारा प्रधानमंत्री के ऊपर दिए गए ऐसे बयान पर आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री सिर्फ प्रधानमंत्री नहीं है बल्कि वो एक कुशल नेता भी हैं और किसी भी साफ़ सुथरी छवि वाले नेता पर इस तरह की टिपण्णी अशोभनीय है। जिसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जायगा।


गौरतलब है की शिखंडी महाभारत काल में एक ऐसा चरित्र था जिसकी गिनती न तो स्त्री में और न ही पुरुषों में होती थी। जिसका इस्तेमाल पांडवों ने एक ढाल के रूप में भीष्म पितामाह का वध करने के लिए किया था। जहाँ अर्जुन ने शिखंडी को ढाल बनाकर के उनके ऊपर बाणों की वर्षा करते हुए उनका वध किया था।

टीम अन्ना के आरोप से बौखलाई सरकार, किया पलटवार

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री पर टीम अन्ना के आरोप के बाद सरकार बौखला गई है। आज पीएमओ के राज्यमंत्री नारायण सामी ने टीम अन्ना पर पलटवार किया कि वो सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए बेबुनियाद आरोप लगा रही है। उधर बीजेपी ने भी टीम अन्ना के सुर में सुर मिलाते हुए सरकार के सफाई मांगी है।


दरअसल सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ आरापों की झड़ी ने सरकार को तिलमिला कर रख दिया है। विपक्ष के तमाम हमलों के बावजूद अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी ताकत उनकी साफ-सुथरी छवि ही थी। लेकिन टीम अन्ना ने दस्तावेजों के आधार पर प्रधानमंत्री को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। पहले से ही साख के संकट से जूझ रही सरकार इसलिए तुरंत अपने बचाव में उतरी। प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्यमंत्री नारायण सामी ने बयान जारी कर अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधा। केजरीवाल ने समझने की क्षमता खो दी है। प्रधानमंत्री और बाकी मंत्रियों के खिलाफ लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं, उनकी आलोचना होनी चाहिए। ये लोग बिना तथ्य के सिर्फ लोकप्रियता हासिल करने के लिए ऐसा कर रहे हैं।

केंद्रीय मंत्री के अलावा टीम अन्ना पर जनता पार्टी अध्यक्ष सुब्रह्मणयम स्वामी ने भी जोरदार हमला बोला। अब तक भ्रष्टाचार के खिलाफ टीम अन्ना की मुहिम का समर्थन करने वाले स्वामी ने कहा कि टीम अन्ना नक्सलियों जैसा बर्ताव कर रही है।

शनिवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में टीम अन्ना ने प्रधानमंत्री समेत 15 मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगाए थे। टीम अन्ना का आरोप था कि जिस वक्त कोयला खदानों के आवंटन में गड़बड़ी हुई उस वक्त कोयला मंत्रा पीएम के ही पास था, इसलिए जवाबदेही भी मनमोहन सिंह की बनती है। उधर मौके की तलाश में बैठी बीजेपी ने भी टीम अन्ना के आरोप पर सरकार से जवाब मांग लिया है।

25 जुलाई आनिश्चितकालीन अनशन : साँझा करना न भूलें


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लोकसभा चुनाव से पहले अन्ना करेंगे बड़ा आंदोलन

अन्ना हजारे ने कहा है कि अगर लोकपाल विधेयक नहीं लाया जाता तो वे लोकसभा चुनाव से पहले एक बड़ा आंदोलन शुरु करेंगे. वे इंतजार कर रहे हैं कि लोकसभा चुनाव की घोषणा हो और वे सरकार के खिलाफ आंदोलन खड़ा करें.


अन्ना हजारे ने सतारा में कहा कि हमारा आंदोलन ‘अभी नहीं या कभी नहीं’ के समान होगा. यदि तब तक मजबूत लोकपाल नहीं आता है तो मैं देश भर का दौरा करूंगा और लोकसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही रामलीला मैदान, दिल्ली में रहूंगा.


मनमोहन सिंह सरकार को लिखे पत्रों का हवाला देते हुये उन्होंने कहा कि सरकार भ्रष्टाचार मुक्त भारत नहीं बनाना चाहती है. लोकसभा में आठ बार पेश किए जाने के बावजूद लोकपाल विधेयक पारित नहीं हो सका है. अगर विधेयक पहले पारित हो गया होता तो आधे मंत्री सलाखों के पीछे होते.


उन्होंने कहा कि पिछले साल हमारे आंदोलन को कमजोर करने के लिये गृहमंत्री पी चिदंबरम ने अपनी पूरी ताकत लगा दी. सरकार ने तरह-तरह से हमारी टीम के लोगों को प्रताड़ित करने का काम किया और जनता में कुप्रचार किया.

India's Tainted Ministers : The Janlokpal Sabotage

Video of press conference held on 26 May in Delhi to release evidence of corruption by 15 cabinet ministers...

मनमोहन सीधे-सादे इंसान हैं : अन्ना

नासिक / नई दिल्ली: टीम अन्ना द्वारा प्रधानमंत्री समेत केंद्र के 15 मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के मामलों में लिप्त होने के आरोप लगाने के एक दिन बाद ही खुद अन्ना हजारे ने कहा है कि प्रधानमंत्री एक सीधे-सादे इंसान हैं और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं है।


अन्ना द्वारा प्रधानमंत्री को क्लीन चिट दिए जाने से एक बार फिर टीम और अन्ना के बीच मतभेद साफ तौर पर सामने आ गया है। गौरतलब है कि भ्रष्टाचार और लोकपाल के मुद्दे पर सरकार से दो-दो हाथ कर रही टीम अन्ना ने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर प्रधानमंत्री समेत 15 मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए इन मामलों की जांच की मांग की।


प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए टीम के सदस्य प्रशांत भूषण ने कहा कि जब प्रधानमंत्री कोयला मंत्रालय का कामकाज भी देख रहे थे, तब औने−पौने दामों में कोल ब्लॉक बेचे गए। टीम अन्ना ने प्रणब मुखर्जी, विदेशमंत्री एसएम कृष्णा समेत अन्य मंत्रियों का नाम भी लिया था।


वहीं, विदेशमंत्री एसएम कृष्णा ने कहा है कि उन पर लगाए आरोप गलत हैं। उन्होंने कहा है कि कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने अपनी रिपोर्ट में कभी उनका नाम नहीं लिया। कृष्णा ने कहा कि वह इस मामले में टीम अन्ना को कानूनी नोटिस भेजेंगे।

Does Healthcare Need Healing?

People trust medical practitioners, believing that they are equipped with the knowledge and skills to safeguard their health. But when this knowledge is misused to exploit this trust, medical care becomes a nightmare. Full episode of Satyamev Jayate

लोकपाल पर फैसला जनता को करना है : किरन बेदी

जनलोकपाल के लिए काम कर रही पूर्व पुलिस अधिकारी किरन बेदी ने बीबीसी हिंदी के पाठकों के साथ चैट के दौरान कहा है कि वो जनलोकपाल लाने की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी जनता की है और जनता को दबाव बनाना ही होगा.


फेसबुक पर बीबीसी हिंदी के श्रोताओं ने किरन बेदी से काफी कठिन सवाल भी पूछे.


एक पाठक अरमान अंसारी ने पूछा कि क्या जनलोकपाल लागू हो जाने से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा जिसके जवाब में किरन बेदी ने कहा, ‘‘ सारा भ्रष्टाचार तो नहीं खत्म होगा लेकिन नेताओं पर नौकरशाहों पर दबाव तो बढ़ेगा. लगाम लगेगी जिसका फायदा तो होगा ही लोगों को.’’


सुरेश विश्वास साह का सवाल था कि क्या लोकपाल से सरकारी कर्मचारियों की कार्यक्षमत घट नहीं जाएगी तो किरन बेदी का कहना था, ‘‘ मेरी समझ से कार्य क्षमता बढ़ जाएगी. अभी तो सरकारी कर्मचारी सेवा नहीं करते लेकिन मेवा की चिंता करते हैं. लोकपाल रहेगा तो वो घूस नहीं लेंगे और काम करेंगे इसलिए कार्यक्षमता बढ़ेगी.’’


संजय करीर ने पूछा कि क्या टीम अन्ना में ही पारदर्शिता की कमी है तो क्यों उन पर भरोसा किया जाए. किरन बेदी ने कहा कि ये हर आदमी की स्वतंत्र राय है कि वो टीम अन्ना पर भरोसा करे या न करे और वो किसी को बाध्य नहीं कर सकतीं भरोसे के लिए.


इसके अलावा कई और पाठकों, संदीप महतो, रिज़वान खान, राम पाल फारुक सिद्दीकी आदि ने सवाल पूछे जिसके जवाब दिए गए.

मुकदमे की धमकी का टीम अन्ना ने किया स्वागत

नई दिल्ली। भ्रष्टाचार के आरोप से तिलमिलाए विदेश मंत्री एसएम कृष्णा द्वारा मानहानि के मुकदमे की चेतावनी का जवाब देते हुए टीम अन्ना ने उनके कदम का स्वागत किया है।


टीम अन्ना के अहम सदस्य प्रशांत भूषण ने रविवार को कहा कि यदि कृष्णा ने कुछ भी गलत नहीं किया है तो वह क्यों डरे हुए हैं। हम उनके मानहानि के मुकदमे का स्वागत करेंगे।


टीम अन्ना ने शनिवार को विदेश मंत्री एसएम कृष्णा समेत 15 कैबिनेट मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे जिसे खारिज करते हुए कृष्णा ने आगाह किया था कि टीम अन्ना के कदम न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप हो सकते हैं। यदि पर आरोप सफाई नहीं दी गई तो वह मानहानि का मुकदमा करेंगे।


टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल को लिखे पत्र में कृष्णा ने याद दिलाया कि यह मामला अदालत में विचाराधीन है और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्थगनादेश दिया है। कृष्णा के करीबी सूत्रों ने कहा कि अगर उन्हें संतोषप्रद जवाब नहीं मिलता है तो वह केजरीवाल के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करेंगे।


कृष्णा ने पत्र में लिखा, 'आपके द्वारा ऐसे मामले में लगाए गए आरोपों से मैं हैरान हूं, जो अदालत में विचाराधीन है।'

Document listing allegations and leads against ministers and PM


जेल भेजो भ्रष्ट मंत्रियों को : भ्रष्ट मंत्रियों पर टीम अन्ना की सरकार को चिट्ठी



टीम अन्ना ने मनमोहन सिंह को बनाया निशाना

‘चिट्ठी बम’ को लेकर आरोपों का सामना कर रही टीम अन्ना ने अब कोयला घोटाले को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर निशाना साधा है। टीम अन्ना ने उन पर कोयला घोटाले में शामिल होने के साथ ही 15 मंत्रियों पर भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाए हैं।


टीम अन्ना के प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को एक प्रेस सम्मेलन में कहा कि प्रधानमंत्री को एक चिट्टी भेजी गई है जिसमें प्रधानमंत्री के साथ 15 मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में बात की गई है। चिट्टी में प्रधानमंत्री को दस्तावेज भी भेजे गए हैं। चिट्टी में प्रधानमंत्री से मांग की गई है कि इन आरोपों की जांच 6 माह में पूरी की जाए।


जांच के लिए टीम अन्ना ने 6 नाम सुझाए हैं। टीम का कहना है कि इन में से कोई भी 3 जज जांच करें। टीम ने कहा सीबाआई से जांच कराए जाने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इन आरोपों की जांच सीबीआई नहीं कर सकती। टीम अन्ना ने ‌कहा कि यदि जांच शुरू नहीं हुई तो 25 जुलाई से हम आंदोलन करेंगे। केजरीवाल ने कहा कि टीम अन्ना पर भी जो आरोप हैं उनकी जांच कराई जाए।

अधिकारों का विकेंद्रीकरण किया जाये : मनीष सिसोदिया

यदि किसी व्यक्ति या संस्था को असीमित अधिकार दिए जाते हैं तो भ्रष्टाचार की आशंका बढ़ जाती है. यदि मुख्यमंत्री, सांसद या विधायक का पद महंगा होगा तो उस पर सुशोभित व्यक्ति अपने आप ही भ्रष्ट हो जायेगा. इसलिए यह आवश्यक है कि उनके अधिकारों का विकेंद्रीकरण किया जाये.


हमें ग्राम पंचायतों को भी अधिक अधिकार देने होंगे, जिससे सत्ता का विकेंद्रीकरण होगा. यदि इस व्यवस्था में भी भ्रष्टाचार आंशिक रूप से रह जाता है तो भी वह वर्तमान व्यवस्था से कम ही होगा. विकेंद्रीकरण किये जाने से जनभागीदारी भी बढ़ेगी और व्यवस्था में शामिल लोगों की स्पष्ट रूप से जवाबदेही भी तय हो सकेगी.


भ्रष्टाचार की वर्तमान लड़ाई केवल एक शुरुआत या प्रतीक भर है. जिसके आगामी चरणों में हमें व्यवस्था परिवर्तन, सत्ता का विकेंद्रीकरण और जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार जैसे मुद्दों को सम्मिलित करना होगा. तभी भ्रष्टाचार मुक्त, सुदृढ़ लोकतान्त्रिक व्यवस्था के अंतर्गत भारत की आगे की राह तय हो पायेगी.

अन्ना ने केजरीवाल को लगाई फटकार

नई दिल्ली। देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने वाली टीम अन्ना में लगातार मतभेद की खबरें आती रही हैं। अब टीम अन्ना के दो सदस्यों अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी में एनजीओ को मिलने वाले फंड में अनियमितता को लेकर मतभेद की खबरें आ रही हैं। इसके लिए अन्ना ने भी केजरीवाल को फोन पर सख्त हिदायत दी है।


इस मतभेद के पीछे बेदी का अन्ना को किया गया वह ई-मेल बताया जा रहा है जिसमें उन्होंने अरविंद केजरीवाल की एनजीओ पब्लिक काउज रिसर्च फाउंडेशन [पीसीआरएफ ] में फंड में अनियमितता बरतने का संदेह जताया है। खबर है कि इस ई-मेल के बाद अन्ना ने केजरीवाल को फोन कर ऐसा दोबारा न होने की हिदायत दी है।


एक अंग्रेजी दैनिक अखबार के मुताबिक इस मसले पर केजरीवाल को अन्ना ने कोई पत्र नहीं लिखा है। लेकिन खबर है कि इन दिनों टीम अन्ना के सदस्यों को केजरीवाल को संबोधित एक पत्र को बांटा जा रहा है और इस पर किए गए हस्ताक्षर भी अन्ना के हस्ताक्षर से मिलते-जुलते हैं।


यह पत्र तीन मार्च को लिखा गया था। इस पत्र में किरण बेदी ने पीसीआरएफ के लिए एक बजट तय करने, इसका ब्यौरा देने और ऑडिट किए जाने की बात कही है। इसमें लिखा है कि इस फंड से किए गए हर खर्च की जानकारी आईएसी के ट्रस्टियों और कोर कमेटी के सदस्यों को दी जानी चाहिए।

इंडियन एक्सप्रेस की एक और झूठी खबर : अरविंद केजरीवाल

नई दिल्ली। इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी खबर के बाद अरविंद केजरीवाल ने चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा है कि इंडियन एक्सप्रेस की एक और फेक स्टोरी की है। उन्होंने ये भी लिखा कि अभी अन्ना से बात हुई और अन्ना ने इन बातों से साफ इनकार किया है। अरविंद ने अपने ट्वीट में ये भी लिखा है कि वो अखबार को लीगल नोटिस भेजेंगे


इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक किरण बेदी ने अरविंद केजरीवाल को लेकर अन्ना को एक चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी में जिक्र किया गया है कि अरविंद के एनजीओ में पैसे का हिसाब-किताब ठीक से रखा जाए। अखबार में ये भी लिखा गया है कि इस चिट्ठी के जवाब में अन्ना ने अरविंद को पत्र लिखा।

यूपीए पूरी तरह से वेंटीलेटर पर: बाबा रामदेव

गुडग़ांव। योग गुरु बाबा रामदेव ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह ज्यादा दिन तक चलने वाली नहीं है। यह सरकार पूरी तरह से वेंटीलेटर पर है। अगर देश को मजबूत बनाना है तो काला धन वापस लाना होगा। देश में बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। नेताओं ने अपना सारा पैसा विदेशों में जमा कर रखा है। जब तक यह पैसा देश में वापस नहीं आएगा तब तक देश गरीबी से नहीं उभर सकेगा।

बाबा गुरुवार को होडल के त्यागी मंदिर के मैदान में जनसभा को संबोधित कर रहे थे। जनसभा की अध्यक्षता भारत विकास परिषद के प्रांतीय संयोजक डॉ. जेके मित्तल ने की। बाबा ने किसानों के बारे में कहा कि किसानों के लिए पानी, बिजली, खाद उचित मात्रा में मिलना तभी संभव हो सकेगा जब विदेशों व देश में छुपे हुए काले धन को वापस लाया जाएगा। यह कार्य सिर्फ केंद्र सरकार ही कर सकती है लेकिन सरकार पूरी तरह से भ्रष्ट है।

उन्होंने कहा गरीब व अमीर लोगों के बच्चों को बराबर की शिक्षा मिलती चाहिए। बाबा रामदेव के यहां पहुंचे पर जोरदार स्वागत किया गया। इस मौके पर स्वामी श्रद्धानंद शास्त्री, प्रदेश प्रभारी सत्या चौधरी, किशन चंद खेत्रपाल, श्याम सुंदर गर्ग, राजेश गर्ग, रामकिशन सिकरैया, जगमोहन गोयल, ओमप्रकाश गर्ग, राजकुमार रावत, बंटू जेलदार, जयसिंह सौरोत, डॉ. सुरेश चंद बघेल, चमनलाल गर्ग, शेर सिंह गढी, कमल खन्ना के अलावा हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे।

बाबा रामदेव गुडग़ांव में 26 व 27 मई को सुबह 5 से 7.30 बजे तक हुडडा मैदान, सेक्टर -5 में नि:शुल्क योग विज्ञान एवं राष्ट्र निर्माण शिविर को संबोधित करेंगे इसके अलावा विशाल राष्ट्र निर्माण सभा जोकि 26 व 27 मई को होनी है में भी पहुंचेंगे। यह सभा 4.30 बजे पातली गेट के सामने, फरूखनगर में 26 को तथा 27 मई को जगमाल स्टेडियम गांव भौंडसी में आयोजित होगी।

तेल कंपनियां या सरकारः देश कौन चला रहा है?



यह कैसी सरकार है, जो जनता के खर्च को बढ़ा रही है और जीवन स्तर को गिरा रही है. वैसे दावा तो यह ठीक विपरीत करती है. वित्त मंत्री कहते हैं कि सरकार अपनी नीतियों के ज़रिए नागरिकों की कॉस्ट ऑफ लिविंग को घटाना और जीवन स्तर को ऊंचा करना चाहती है. पर वह कौन सी मजबूरी है, जिसकी वजह से पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ाए जाते हैं. पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी कहते हैं कि वह अर्थशास्त्र और लोकप्रियता के बीच फंस गए. वैसे यह अच्छा बहाना है. वह कहते हैं कि दाम इसलिए बढ़ाए गए हैं, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का दाम बढ़ गया है. यह एक झूठ है. वह इसलिए, क्योंकि स़िर्फ पेट्रोल को सरकार ने डी-रेगुलेट किया है. मतलब यह कि स़िर्फ पेट्रोल की क़ीमत का रिश्ता अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत से है. मिट्टी तेल, डीजल और रसोई गैस का जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से कुछ लेना-देना नहीं है तो फिर सरकार ने डीजल और रसोई गैस की क़ीमतों में क्यों इज़ा़फा किया? सरकार इस झूठ के साथ-साथ कई और झूठ फैला रही है. एक झूठ यह है कि तेल कंपनियां घाटे में चल रही हैं. मई के महीने में महंगाई की दर 9 फीसदी के आसपास थी. डीजल के दाम बढ़ते ही सारी चीज़ों के दामों में इज़ा़फा हो गया. महंगाई की दर 10 फीसदी से ज़्यादा हो जाए, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है. इस बीच प्रधानमंत्री खुद के चुने हुए पांच अ़खबारों के संपादकों से बातचीत करते हैं. वह उन्हें बताते हैं कि मार्च 2012 तक महंगाई पर नियंत्रण कर लिया जाएगा. प्रधानमंत्री ने साथ में एक शर्त भी रख दी कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत में बढ़ोत्तरी नहीं होती है.


ऐसा लगता है कि तेल कंपनियों को सरकार नहीं चलाती है, तेल कंपनियां ही सरकार को चला रही हैं. अगर ऐसा नहीं है तो क्या वजह है कि जब देश पहले से ही महंगाई की मार झेल रहा है तो ऐसे में तेल की क़ीमत बढ़ा दी जाती है. जबसे मनमोहन सिंह की सरकार बनी, तबसे वह पेट्रोलियम से सरकारी नियंत्रण हटाने की जुगत में लग गई. डीजल और किरोसिन के दाम बढ़ते ही देश में हाहाकार मचा गया, लेकिन एक देश की सरकार है, जो आंकड़े दिखाकर सफलता का ढिंढोरा पीट रही है, ग़रीबों का मज़ाक उड़ा रही है.

पांच राज्यों के चुनाव खत्म हुए और केंद्र की यूपीए सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ा दिए. सरकार कहती है कि तेल कंपनियों को घाटा हो रहा है. इसके बाद प्रणव मुखर्जी ने राज्य सरकारों से टैक्स कम करने की अपील क्यों की? कांग्रेस शासित दो राज्यों में दाम कम भी किए गए. पता नहीं, राजनीतिक दलों को यह भ्रम कैसे हो गया है कि देश की जनता मूर्ख है. क्या सरकार ऐसे फरमान जारी करके यह साबित करना चाहती है कि वह जनता के दु:ख-दर्द के प्रति चिंतित है? असलियत तो यह है कि सरकार जनता की समस्याओं को लेकर संवेदनहीन हो चुकी है. उसकी प्राथमिकता केवल निजी कंपनियों और उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाना है.

जब पेट्रोल की क़ीमत बढ़ाई गई, तब सरकार ने देश से सबसे बड़ा झूठ बोला कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत बढ़ गई है. एक बात समझ में नहीं आई कि जिस दिन पेट्रोल के दाम बढ़ाए गए, उस दिन अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत 112 डॉलर प्रति गैलन थी. आज इसकी क़ीमत लगभग 90 डॉलर प्रति गैलन है. सरकार अगर यह दलील देती है कि कच्चे तेल की क़ीमत बढ़ने से दाम बढ़ाए गए हैं तो अब जब इसकी क़ीमत में गिरावट आई है तो उसे देश में पेट्रोल की क़ीमत कम करनी चाहिए थी. सवाल यह उठता है कि क्या सरकार तेल उस तरह खरीदती है, जिस तरह घर में सब्ज़ियां खरीदी जाती हैं. क्या भारत हर दिन के हिसाब से अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से कच्चा तेल खरीदता है. हम कच्चा तेल खरीदते हैं, उसे देश में लेकर आते हैं, जामनगर जैसी रिफाइनरी में प्रोसेसिंग के बाद उसे ट्रकों में भरा जाता है, चेकिंग वग़ैरह होती है, फिर कहीं उसे पेट्रोल पंपों में भेजा जाता है. कच्चा तेल खरीदने और उसे पेट्रोल पंपों तक पहुंचाने में कम से कम 75 दिनों का व़क्त लगता है. सवाल यह उठता है कि मान लीजिए, तीन दिन पहले कच्चे तेल का दाम बढ़ जाता है तो उसका असर 75 दिनों के बाद दिखना चाहिए. सरकार को इतनी हड़बड़ी क्यों मची है कि वह अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में दाम बढ़ते ही देश में क़ीमत बढ़ा देती है, लेकिन जब दाम गिर जाते हैं तो फिर रोलबैक नहीं करती? पेट्रोल की क़ीमत बढ़ाने के साथ-साथ उसे तेल आपूर्ति करने वाली कंपनियों के साथ किए गए क़रार को भी सार्वजनिक करना चाहिए, ताकि देश की जनता को यह पता चले कि सरकार ने किस रेट पर कच्चा तेल खरीदने का सौदा तय किया है.

अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में जब कच्चे तेल के दामों में वृद्धि होती है तो सरकार तुरंत पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ा देती है, लेकिन जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दामों में गिरावट आती है तो सरकार उसे देश में लागू क्यों नहीं करती.

समझने वाली बात यह है कि क्या भारत सरकार तेल को घर के सामान की तरह खरीदती है. दुकानदार कहता है कि आज दाम बढ़ गए हैं तो साबुन के दाम दो रुपये ज़्यादा हो गए हैं. जितने भी तेल के सौदे होते हैं, उन्हें फाइनेंस के टर्म में कमोडिटी डेरीवेटिव्स कहते हैं, उसे हम फ्यूचर्स कहते हैं. कहने का मतलब यह है कि जब सौदेबाज़ी होती है, वह किसी सट्टे की तरह होती है. बेचने वाला और खरीदने वाला अनुमान लगाता है. दोनों ही अनुमान लगाते हैं कि अगले सात महीनों में पेट्रोल का दाम क्या होने वाला है. खरीदने वाले की मजबूरी यह है कि उसे पता है कि पूरे मुल्क की ज़रूरत क्या है. भारत के अनुभव से यह साबित हो चुका है कि जब तक कच्चे तेल की क़ीमत 90 डॉलर प्रति गैलन रहे, तब तक भारत की इकोनॉमी पर कुछ भी फर्क़ नहीं पड़ता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि जब अमेरिका में गिरावट आई, तब वे 40 डॉलर प्रति गैलन से कच्चे तेल की क़ीमत 90 डॉलर तक लेकर चले गए. यह वायदा कारोबार की वजह से हुआ. वायदा कारोबार करने वालों ने एक गिरोह खड़ा कर लिया. ये लोग असल में तेल नहीं खरीदते, बल्कि काग़ज़ खरीदते हैं और जब वास्तव में तेल लेने का समय आता है तो ये उसे बेच देते हैं. अक्सर होता यह है कि एक निर्धारित समय पर डिमांड अचानक से बढ़ जाती है और तेल के दाम बढ़ जाते हैं. हालत यह हो गई कि जो तेल 40 डॉलर प्रति गैलन बिक रहा था, इस वायदा कारोबार की वजह से उसकी क़ीमत 140 डॉलर प्रति गैलन तक पहुंच गई. तेल की क़ीमत तब बढ़ती है, जब इसकी खपत बढ़ती है. दो सौ साल तक कच्चे तेल की क़ीमत 40 डॉलर प्रति गैलन से कम रही. सवाल यह उठता है कि पिछले कुछ सालों में ऐसा क्या हुआ कि इसकी क़ीमत आसमान छूने लगी. कच्चे तेल की क़ीमत बढ़ने का कारण खपत में वृद्धि नहीं है, बल्कि वायदा कारोबार है. जबसे अमेरिका के उद्योगपति वायदा कारोबार में शामिल हुए, पेट्रोलियम का बाज़ार उनके हाथों बंधक बन गया.

अगर सरकार भ्रष्टाचार से लड़ना चाहती है तो सबसे पहले उसे पेट्रोलियम मंत्रालय को दुरुस्त करना होगा. देश में पेट्रोल, केरोसिन और डीजल का कारोबार माफिया चलाते हैं. सरकार को जवाब देना चाहिए कि तेल की चोरी और कालाबाज़ारी के चलते हर साल 70,000 करोड़ रुपये का नुक़सान होता है, उसे खत्म करने के लिए उसने क्या किया है.

चलिए एक हिसाब लगाते हैं कि आ़खिर पेट्रोल की सही क़ीमत क्या हो. जिस समय पेट्रोल के दाम बढ़ाए गए, उस समय अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत 112 डॉलर प्रति बैरल थी यानी 5085 रुपये के क़रीब. एक बैरल में 158.76 लीटर होते हैं. तो इसका मतलब है कच्चे तेल की क़ीमत 32 रुपये प्रति लीटर बनती है. तेल कंपनियों के मुताबिक़, कच्चे तेल को रिफाइन करने में 52 पैसा प्रति लीटर खर्च होता है और अगर रिफाइनरी की कैपिटल कॉस्ट को इसमें जोड़ जाए तो तेल की क़ीमत में क़रीब 6 रुपये और जोड़ने पड़ेंगे. इसके अलावा ट्रांसपोर्ट का खर्च ज़्यादा से ज़्यादा 6 रुपये और डीलरों का कमीशन 1.05 रुपये प्रति लीटर. इन सबको अगर जोड़ दिया जाए तो एक लीटर पेट्रोल की कीमत 45.57 रुपये होती है. लेकिन दिल्ली में 63.4 रुपये, मुंबई में 68.3 रुपये और बंगलुरू में 71 रुपये प्रति लीटर की दर से पेट्रोल बिक रहा है. अब सवाल उठता है कि यह पैसा हम क्यों खर्च कर रहे हैं, यह पैसा कहां जा रहा है? इसका जवाब है कि हम टैक्स में दे रहे हैं. यह बहुत ही कम लोगों को पता है कि केंद्र और राज्य सरकार पेट्रोल से कितना टैक्स वसूलती है. कुछ राज्यों में तो 50 फीसदी से ज़्यादा टैक्स लिया जा रहा है. और तो और, यह टैक्स तेल के बेसिक दाम पर लगता है. इसका मतलब यह है कि तेल के दाम बढ़ाने से सरकार को फायदा होता है. फिर सरकार यह घड़ियाली आंसू क्यों बहा रही है कि तेल कंपनियों को नुक़सान हो रहा है. इस टैक्स को तर्कसंगत करने की ज़रूरत है. इससे सरकारी कंपनियों को फायदा होगा, वरना यही समझा जाएगा कि सरकार निजी कंपनियों को लूट मचाने की खुली छूट दे रही है. सवाल तो यह उठता है कि क्या आज तक मुकेश अंबानी या दूसरी अन्य तेल कंपनियों ने यह कहा कि उन्हें घाटा हो रहा है, तेल कंपनियों को घाटे की वजह से बंद करना पड़ सकता है. हक़ीक़त यह है कि निजी कंपनियां ज़्यादातर माल विदेशी बाज़ार में बेचकर मुना़फा कमा रही हैं. आज अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की जो क़ीमत है, उसके मुताबिक़ पेट्रोल का दाम 35 रुपये प्रति लीटर से एक भी पैसा ज़्यादा नहीं होना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत मई 2011 में 112 डॉलर प्रति गैलन थी, जो अब घटकर 90 डॉलर के आसपास हो गई है. आने वाले दिनों में इसकी क़ीमत में और भी गिरावट होने की संभावना है. फिर भी देश में पेट्रोल की क़ीमत गिरने वाली नहीं है. पेट्रोल की क़ीमत में गिरावट तो दूर, तेल कंपनियों के दबाव में सरकार डीजल, केरोसिन और रसोई गैस की क़ीमत भी बढ़ाने को मजबूर हो गई. इसके बाद अगर कोई यह आरोप लगाए कि भारत की सरकार तेल कंपनियों के हाथों की कठपुतली बन गई है तो इसका क्या जवाब होगा. इसके बावजूद बड़ी निर्लज्जता से यह दलील भी जाती है कि तेल कंपनियों को ऩुकसान हो रहा है, ताकि कोई सरकार के फैसले पर सवाल न खड़ा कर सके. तो क्या सरकार ने तेल कंपनियों को हुआ घाटा पूरा करने के लिए पेट्रोल का दाम बढ़ा दिया?

सवाल स़िर्फ क़ीमत बढ़ाने के फैसले का नहीं है. अगर केंद्र सरकार भ्रष्टाचार से लड़ने के बारे में सोचती है तो सबसे पहले उसे पेट्रोलियम मंत्रालय को दुरुस्त करना होगा. देश में पेट्रोल, केरोसिन और डीजल का कारोबार माफिया चलाते हैं. सरकार को इस बात का जवाब देना चाहिए कि तेल की चोरी और कालाबाज़ारी की वजह से हर साल 70,000 करोड़ रुपये का नुक़सान होता है, उसे खत्म करने के लिए उसने क्या किया है. यह सवाल इसलिए उठाना ज़रूरी है, क्योंकि कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र में तेल माफिया ने एक एडिशनल डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर को ज़िंदा जला दिया था. तेल की सप्लाई से लेकर पेट्रोल पंप के आवंटन तक की जो पूरी प्रक्रिया है, उसमें पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ने क्या किया है. क्या तेल माफिया इसलिए बेलगाम हैं, क्योंकि उन्हें नेताओं का संरक्षण हासिल है. या यूं कहें कि सरकार इसलिए खामोश है, क्योंकि तेल के कारोबार पर देश के राजनीतिक नेताओं का कंट्रोल है. तेल की क़ीमत बढ़ाने से पहले सरकार को इस सेक्टर में मौजूद कालाबाज़ारी को खत्म करने की पहल करनी चाहिए.

पेट्रोल और डीजल का महंगाई से गहरा रिश्ता है. इनके दाम बढ़ते ही ट्रांसपोर्टेशन कास्ट बढ़ जाती है, जिससे सारी चीज़ें महंगी हो जाती हैं. जब देश में पेट्रोलियम का उदारीकरण हुआ तो उस व़क्त देश पहले से ही महंगाई की मार झेल रहा था. ऐसे समय में उदारीकरण करना सरकार की संवेदनहीनता को दर्शाता है, अर्थशास्त्र के सारे तर्क भी झुठला देता है. जबसे कच्चा तेल वायदा कारोबारियों की गिरफ्त में आया, तबसे इसकी क़ीमत में भूचाल आ गया, इसकी क़ीमत में कभी स्थिरता नहीं आई. यह अपने आप में एक वजह है कि पेट्रोलियम के उदारीकरण को लागू न किया जाए. लेकिन सरकार पर तेल कंपनियों का, खासकर निजी कंपनियों का दबाव था. सरकार ने नया तरीक़ा निकाला, उसने रंगराजन कमेटी बना दी. इस कमेटी से सरकार को उम्मीद थी कि यह पेट्रोलियम की क़ीमतों और करों के उदारीकरण का सुझाव देगी, लेकिन रंगराजन कमेटी ने उदारीकरण की सलाह नहीं दी. सरकार ने दूसरी कमेटी बना दी. इस बार योजना आयोग के पूर्व सदस्य किरीट पारिख को एक्सपर्ट ग्रुप का प्रमुख बनाया गया. इस बार उदारीकरण का सुझाव दिया गया. सरकार ने तुरंत इस सुझाव को मान लिया. सरकार की तऱफ से दलील दी गई कि तेल कंपनियों को नुक़सान हो रहा है, इसलिए पेट्रोल के दाम को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से जोड़ना ज़रूरी हो गया है. अब सवाल यह है कि सरकार ने ऐसा क्यों किया. सबसे सीधा जवाब तो यही है कि सरकार ने जनता को राहत देने के बजाय निजी तेल कंपनियों को फायदा पहुंचाना उचित समझा. खासकर उन निजी तेल कंपनियों को, जिन्हें पेट्रोलियम सेक्टर में घुसने और विस्तार करने का हर मौक़ा दिया गया. सरकार की क्या मजबूरी है कि तेल कंपनियों को फायदा पहुंचाना उसने अपना परम कर्तव्य मान लिया है?

देश की सरकार वर्ल्ड बैंक के इशारे पर काम करने में कोई गुरेज़ नहीं करती, लेकिन उसकी ग़रीबी रेखा की परिभाषा को नहीं मानती. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक़, जिस आदमी की रोजाना आमदनी एक डॉलर से कम है, उसे ग़रीबी रेखा के नीचे माना जाए. एक डॉलर का मतलब 42 रुपये के लगभग की आमदनी. इस परिभाषा के मुताबिक़ भारत के 75 फीसदी लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं, जिनका ज़्यादातर पैसा ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी भोजन पर खर्च होता है. भारत सरकार तो अर्थशास्त्रियों की सरकार है. ग़रीब जनता पर जब महंगाई की मार पड़ती है तो वह क्या करे, कैसे ज़िंदा रहे? दाम बढ़ाने से पहले सरकार को भारत के इन 75 फीसदी लोगों की परेशानी नज़र नहीं आई. भारत में महंगाई दर 9.06 फीसदी है, जो अमेरिका की तुलना में दोगुनी है और जर्मनी से चार गुनी. इसी महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी है, वह केवल किसी तरह अपनी ज़िंदगी जीने को मजबूर है. डीजल और केरोसिन के दाम बढ़ते ही देश की ग़रीब जनता में हाहाकार मच जाता है. क्या सरकार को यह पता नहीं है कि देश के 75 फीसदी लोगों का 80 फीसदी खर्च स़िर्फ खाने-पीने पर होता है. सरकार ने तेल की क़ीमत बढ़ाकर जनता को महंगाई की मार झेलने के लिए बेसहारा छोड़ दिया है. सरकार अगर महंगाई से लड़ना चाहती है तो हर सरकारी विभाग को एक समग्र योजना पर काम करना होगा. सबसे पहले भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना होगा. तेल के उत्पादन और वितरण में पारदर्शिता लाने की ज़रूरत है. समस्या यह है कि सरकार भ्रष्टाचार, राजनीति और उद्योग के भंवर में फंस गई है. अपनी ग़लतियों की वजह से वह इस तरह फंसी है, जैसे कोई मकड़ी अपने ही जाल में फंस जाती है. वह जितना हाथ-पैर चलाती है, मुश्किल उतनी ही बढ़ जाती है.
सरकार पर रिलायंस को फायदा पहुंचाने का आरोप

आजकल सरकार बेचैन है. रिलायंस इंडस्ट्रीज को फायदा पहुंचाने का आरोप लग रहा है. आरोप बेबुनियाद नहीं है. आरोप का आधार सीएजी रिपोर्ट है. वैसे यह आधिकारिक रूप से संसद के सामने पेश नहीं हुई है, इसकी खबर मीडिया में लीक हो गई है. सरकार पर आरोप यह है कि उसने जान-बूझकर रिलायंस कंपनी को फायदा पहुंचाया और इससे देश को बहुत बड़ा आर्थिक नुक़सान हुआ. यह नुकसान 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले से भी बड़ा है. रिलायंस कंपनी पर सरकार ने दरियादिली का इज़हार कुछ ऐसे किया कि कृष्णा-गोदावरी बेसिन के गैस की क़ीमत तय करने के लिए सचिवों का एक समूह बना. पिछले कैबिनेट सचिव के एम चंद्रशेखर इसके अध्यक्ष बनाए गए. आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी की तीन चिट्ठियों को आधार बनाया गया था. रेड्डी का सुझाव था कि सरकारी कंपनी एनटीपीसी से रिलायंस को 2.97 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू गैस मिलती थी. यह दर वैश्विक प्रतिस्पर्धा के ज़रिए तय की गई थी, सो इसे ही बाज़ार दर माना जाए. इस समूह ने यह भी कहा कि गैस की क़ीमत अगर एक डॉलर भी बढ़ती है तो रासायनिक खाद सेक्टर का खर्च बढ़ेगा, जिससे सरकार पर कई हज़ार करोड़ रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी का बोझ आएगा. पर मंत्री समूह ने इन सारी दलीलों को खारिज कर गैस की क़ीमत 4.2 डॉलर तय की. इस तरह रिलायंस को फायदा पहुंचाया गया. सरकार को कितना नुक़सान हुआ, इसका आकलन करने में सीएजी ने हाथ खड़े कर दिए हैं. सीएजी का कहना है कि नुक़सान का आंकड़ा इतना बड़ा होगा कि उसका हिसाब लगाना मुश्किल है. ज़ाहिर है, संसद के अगले सत्र में संचार के साथ-साथ पेट्रोलियम घोटाला भी एक बड़ा मुद्दा बनेगा. अगर यह मुद्दा नहीं बना तो आप स्वयं ही समझ लीजिए कि सरकार के साथ-साथ देश के दूसरे राजनीतिक दलों को कौन चला रहा है.

अन्‍ना आंदोलन से बुझाएंगे पेट्रोल की आग

पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी के विरोध में बड़े आंदोलन की तैयारी हो रही है. इस आंदोलन में अन्ना हजारे भी शामिल होंगे.

एनडीए ने 31 मई को भारत बंद का ऐलान किया है. लेफ्ट पार्टियां भी इसी दिन आंदोलन करने वाली हैं.

अन्ना हजारे ने ऐलान कर दिया है कि आने वाले दो दिनों में पेट्रोल की कीमतों को लेकर बड़ा आंदोलन होगा. हालांकि अन्ना ने यह खुलासा नहीं किया कि आंदोलन की शुरुआत कौन करेगा, लेकिन उन्‍होंने यह साफ कर दिया कि उस आंदोलन में वे भी शामिल होंगे.

पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर अन्ना हजारे ने एक बार फिर केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि सरकार जनता के साथ अन्याय कर रही है.

इस बीच 31 मई को पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी और महंगाई को लेकर एनडीए ने भारत बंद का ऐलान किया है. लेफ्ट पार्टियां भी उसी दिन महंगाई को लेकर आंदोलन करेंगी. लेफ्ट पार्टियों ने यह भी साफ किया है कि सरकार दाम बढ़ाकर थोड़ी राहत देने का जो खेल करती है, वह इस बार कतई मंजूर नहीं होगा.

अक्सर ऐसा होता है कि सरकार पहले तेल के दाम में अच्छा-खासा इजाफा करती है, फिर जब जनता और जनता के नुमाइंदे नाराज होते हैं, सहयोगी पार्टियां दबाव डालती हैं, तो सरकार कीमतों में मामूली कमी करके वाहवाही लूटती है.

देखने वाली बात होगी कि इस बार लोगों के विरोध, सियासी पार्टियों के आंदोलन और सहयोगी पार्टियों के दबाव को सरकार कैसे झेलती है.

अन्ना - रामदेव के अनशन को दिल्ली पुलिस की हरी झंडी

नई दिल्ली।। बढ़ती महंगाई और पेट्रोल के दाम में बेतहाशा बढ़ोतरी के बाद केंद्र सरकार राजनीतिक दलों के निशाने पर है। जून के पहले हफ्ते अब उसे एक और मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। दिल्ली पुलिस ने काला धन और जन लोकपाल को लेकर बाबा रामदेव और अन्ना हजारे को जंतर-मंतर पर एक दिन के लिए अनशन करने की अनुमति दे दी है। इसके लिए दिल्ली पुलिस ने कई शर्तें भी रखी हैं।

काला धन और जन लोकपाल को लेकर आंदोलन चला रहे बाबा रामदेव और अन्ना हजारे को 3 जून को दिल्ली में आंदोलन करने की अनुमति मिल गई है। दिल्ली पुलिस ने उन्हें जंतर-मंतर पर धरना पर बैठने की अनुमति दी है। साथ दिल्ली पुलिस ने शर्त रखी है कि धरना स्थल पर 5,000 से ज्यादा लोगों की भीड़ नहीं होनी चाहिए। आसपास पार्किंग नहीं होनी चाहिए।

गौरतलब है कि पिछले अप्रैल में अन्ना और बाबा रामदेव ने काला धन और जन लोकपाल के लिए संयुक्त आंदोलन चलाने का निर्णय लिया था। दोनों ने एक 1 मई से अपनी मुहिम की शुरुआत की है। अन्ना ने साईं की नगरी शिरडी से अपनी मुहिम की शुरुआत की, वहीं रामदेव ने छत्तीसगढ़ के दुर्ग से करप्शन के खिलाफ लड़ाई का आगाज किया।

अन्ना और रामदेव की ये यात्राएं अलग-अलग चल रही हैं। तपती गर्मी में अन्ना महाराष्ट्र के 35 जिलों का चक्कर लगा रहे हैं, तो रामदेव देश के अलग-अलग राज्यों में अलख जगाने का काम कर रहे हैं। दोनों महीने भर अलग-अलग यात्रा करने के बाद 3 जून को दिल्ली में एक दिन के सांकेतिक अनशन पर बैठेंगे।

गौरतलब है कि बाबा और अन्ना ने ऐलान किया है कि अगर सरकार फिर भी नहीं चेती तो अगस्त से आर-पार की लड़ाई शुरू हो जाएगी।

मैं फिट हूं, मुहिम जारी रहेगीः अन्ना

लोकपाल मुद्दे पर महाराष्ट्र के दौरे के दौरान तबीयत खराब होने पर नासिक पहुंचे अन्ना हजारे को थकान और कमजोरी की शिकायत हुई जिसके बाद दो अस्पतालों में विभिन्न जांच करायी गयी. जांच के बाद डॉक्टरों ने हजारे की हालत सामान्य बतायी है. हजारे का इलाज करने वाले हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अमित सिनकर ने पत्रकारों से कहा कि गांधीवादी नेता दोपहर के वक्त जांच कराने के लिए उनके अस्पताल आए थे.
सिनकर ने बताया, ‘हमने उनकी छाती का एक्स-रे, ईसीजी, सीटी स्कैन कराया जिनकी रिपोर्ट सामान्य आयी है. उनका स्वास्थ्य अच्छा है. हमने अन्ना को एक दिन आराम करने के लिए कहा है.’

जब सिनकर से यह सवाल किया गया कि हजारे तीन जून को नई दिल्ली के जंतर मंतर पर आयोजित अनशन में हिस्सा लेने के लिए फिट हो जाएंगे, इस पर उन्होंने कहा कि वायरल संक्रमण की वजह से उन्हें बुखार था और यदि वह अनशन में हिस्सा लेते हैं तो शरीर में पानी की कमी की समस्या पैदा हो सकती है. हालांकि सिनकर ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह हजारे को इस मामले में कोई सलाह नहीं देंगे.

बाद में हजारे ने खुद ही पत्रकारों से कहा, ‘मैं पूरी तरह फिट हूं और मेरे कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं हुआ है. मैं कमजोरी महसूस कर रहा था और मैंने जांच करायी है.’ इससे पहले, अन्ना के सहयोगियों ने बताया था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाले 74 वर्षीय समाज सेवी की स्थिति स्थिर है तथा वह शहर के सर्किट हाउस में विश्राम कर रहे हैं.

हजारे बुधवार की सुबह धुले शहर से पहुंचे और इसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया. लोकायुक्त विधेयक के मुद्दे पर हजारे एक मई से महीने भर के राज्य के दौरे पर हैं. उन्हें पहले साईंबाबा हार्ट इंस्टीट्यूट एवं रिसर्च सेंटर ले जाया गया जहां चिकित्सकों ने उनकी जांच की.

अस्पताल के सूत्रों ने बताया कि साईंबाबा हार्ट इंस्टीट्यूट के चिकित्सकों ने हजारे का रक्तचाप नापा तथा उनकी दो अन्य चिकित्सा जांच की। इकोकार्डियोग्राम जांच भी की गयी. उन्हें सीटी स्केन के लिए बाद में विनचुरकर अस्पताल में ले जाया गया.

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की नासिक इकाई के अध्यक्ष पी बी करंजकर ने बताया कि हजारे यहां सर्किट हाउस में विश्राम कर रहे हैं.

जनवरी में हजारे को एक हफ्ते के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था. इसी के चलते उन्हें विधानसभा चुनाव वाले पांच राज्यों का अपना दौरा बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. करंजकर ने बताया कि हजारे को गुरुवार की शाम यहां एक जनसभा को संबोधित करना है.

रूपये की गिरावट का सच जानिये

1..रूपये की गिरावट सरकार हमेशा विश्व बैंक और विश्व मुद्रा कोष के इशारे पर करती है ताकि सरकार को बाहरी कर्ज मिल सकें


2. क्या सिर्फ सयोंग है की मार्च 2012 में विश्व बैंक और विश्व मुद्रा कोष के मुखियाओं ने भारत की यात्रा की उसके बाद से रूपये में 15 % की भारी गिरावट आई है


3..क्या ये महज संयोग है की मार्च में ही सरकार ने 12 वी पंचवर्षीय योजना पर काम करना शुरू किया है .ये वही योजना है जिसके बहाने से सरकार कर्ज लेती है


4. आप आजादी के बाद के रूपये के अवमूल्यन का इतिहास देखिये जब जब पंचवर्षीय योजना शुरू की गयी तब तब विशव बैंक के कहने पर रूपये में सरकार ने भारी गिरावट की


5.इस बार सरकार ने रूपये में गिरावट पेट्रोल की कीमत बढ़ाने के लिए भी की .क्योंकी सरकार पेट्रोल पर 8 से 10 रूपये बढ़ाना चाहती है अब वो गिरावट का बहाना लेकर
कीमत बढाएगी जबकी गिरावट से नुक्सान सिर्फ 2 रूपये / ली है


6. कभी कभी रूपये में गिरावट ,सॉफ्टवेर ,कपड़ा उद्योग ,शेयर बाज़ार निर्यात करने वाली विदेशी कंपनियां को फायदा पहुंचाने के लिए भी किया जाता है इसके बदले में राजनेताओ को मोटी दलाली मिलती है


7.आजादी के समय रूपये की कीमत डालर के मुकाबले 1 रूपये थे अव वो 56 रूपये हो गयी है कही भारत बर्बाद तो नहीं हो चूका है सोचिये जरा !
हा एक और बात आम आदमी न तो सॉफ्टवेर बनाता है ,ना ही धागा बनता है ,ना ही निर्यात करता है ना है शेयर मार्केट में पैसा लगाता है वो तो पुरे दिन भर दो वक्त की रोटी खाने के लिए मेहनत करता है अब वो रोटी भी महँगी हो जायेगी .इसको ही तो अन्याय कहते हैं

पेट्रोल की ये है असली सच्चाई, जो सरकार ने अब तक थी छुपाई

पेट्रोल की कीमतों के बढ़ने के पीछे सरकार जरूर बाजार के हालात की दुहाई दे रही है, लेकिन इसकी असली सच्चाई तो कुछ और ही है। कीमतों में इजाफा तो खुद सरकार द्वारा लगाए जा रहे टैक्स के चलते हो रहा है। हालांकि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी इस बात को नहीं मानते हैं।


उन्होंने हाल ही में संसद में कहा था कि केंद्र सरकार तेल पर टैक्स नहीं वसूलती है, बल्कि राज्य इस पर फैसला लेता है। जबकि जानकार केंद्र सरकार को भी बतौर टैक्स इससे फायदा होने की बात कर रहे हैं। अगर ये सारे टैक्स पूरी तरह से खत्म कर दिए जाएं, तो आज से ही आप केवल 35 रुपये में पेट्रोल खरीद सकेंगे।


अगर केंद्र और राज्य सरकार पेट्रोल पर से पूरी तरह से टैक्स हटा दे, तो इसकी कीमतों में 35 रुपये से ज्यादा की कमी आ जाएगी। दरअसल, जिस दाम पर हम पेट्रोल खरीदते हैं, उसका करीब 48 फीसदी हिस्सा ही आधार मूल्य होता है। इसके अलावा बाकी का पैसा सरकार की जेब में टैक्स के रूप में जाता है। वहीं पेट्रोल पर करीब 35 फीसदी एक्साइज ड्यूटी, 15 फीसदी सेल्स टैक्स, 2 फीसदी कस्टम ड्यूटी लगा होता है। बिक्री कर को कई राज्यों में वैट के रूप में भी वसूला जाता है।



अगर हम दिल्ली में पेट्रोल की वर्तमान कीमत 73.14 रुपये को उदाहरण के तौर पर माने, तो टैक्स न लगने पर इसकी बेस प्राइस यानि असली कीमत केवल 35 रुपये ही रह जाएगी। अभी बाकी के 38 रुपये सीधे सरकार की जेब में जा रहे हैं।


तेल के बेस प्राइस में कच्चे तेल की कीमत, प्रॉसेसिंग चार्ज और कच्चे तेल को शोधित करने वाली रिफाइनरियों का चार्ज शामिल होता है। एक्साइज ड्यूटी कच्चे तेल को अलग-अलग पदार्थों जैसे पेट्रोल, डीज़ल और किरोसिन आदि में तय करने के लिए लिया जाता है। वहीं, सेल्स टैक्स यानी बिक्री कर संबंधित राज्य सरकार द्वारा लिया जाता है।

अन्ना हजारे का स्वास्थ्य खराब, अस्पताल में भर्ती

नासिक: अन्ना हजारे को थकान और कमजोरी की शिकायत के बाद आज यहां के एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल के सूत्रों ने कहा कि मजबूत लोकायुक्त के लिए पूरे राज्य के दौरे पर निकले हजारे आज सुबह यहां धुले शहर से पहुंचे। उन्हें साईंबाबा हार्ट इंस्टीट्यूट एवं रिसर्च सेंटर ले जाया गया जहां चिकित्सक उनकी जांच कर रहे हैं।


भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के नासिक इकाई के अध्यक्ष पी. बी. करंजकर ने कहा, ‘‘थकान और कमजोरी के कारण हजारे ने नंदरबार जिले का दौरा रद्द कर दिया ।’’बहरहाल उन्होंने कहा कि हजारे के स्वास्थ्य के बारे में कोई गंभीर बात नहीं है और कहा कि गांधीवादी नेता कल शाम यहां एक आम सभा को संबोधित करेगे।


लोकायुक्त विधेयक के मुद्दे पर हजारे एक मई से महीने भर के राज्य के दौरे पर हैं। हजारे को जनवरी में एक हफ्ते के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था जिस कारण उन्हें उन पांच राज्यों का दौरा रद्द करना पड़ा था जहां चुनाव होने थे।

CAG का खुलासा : दिल्ली एयरपोर्ट के आधुनिकीकरण में 2G जैसा घोटाला....

नई दिल्ली। कैग की रिपोर्ट में दिल्ली एयरपोर्ट के आधुनिकीकरण के नाम पर करोड़ों रुपए की हेराफेरी का मामला सामने आया है। रिपोर्ट की मानें तो यह टेलीकॉम घोटाले जैसा ही बड़ा है। कैग रिपोर्ट के मुताबिक एयरपोर्ट घोटाला 1 लाख 63 हजार करोड़ रुपए का है जबकि टेलीकॉम घोटाला करीब 1 लाख 76 हजार करोड़ का था।


कैग की रिपोर्ट में एयरपोर्ट घोटाले के लिए दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट अथॉरिटी यानी डायल की खिंचाई की गई है। डायल एक निजी कंपनी है और उसने 1813 करोड़ रुपए निवेश कर दिल्ली एयरपोर्ट के संचालन का ठेका 60 सालों के लिए हासिल किया है।


कैग रिपोर्ट के मुताबिक एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और डायल के बीच हुए ऑपरेशन, मैनेजमेंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट के मुताबिक एयरपोर्ट की पांच फीसदी जमीन पर डायल विकास का काम कर सकती है। ये हिस्सा करीब 240 एकड़ बनता है।


रिपोर्ट के मुताबिक इस जमीन से डायल को 58 सालों में करीब 1 लाख 63 हजार करोड़ रुपए की कमाई होने का अनुमान है। इस जमीन को डायल को महज 100 रुपए सालाना के लीज रेंट पर दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक विकास शुल्क के नाम पर डायल को होने वाली कमाई कॉन्ट्रेक्ट की शर्तों से अलग है। इतना ही नहीं यात्रियों से टैक्स के नाम पर 3,415 करोड़ रुपए वसूले जा रहे हैं जो डायल की अतिरिक्त कमाई है।
कैग की रिपोर्ट डायल को कॉन्ट्रैक्ट देने जैसे बिंदुओ पर लिए गए फैसलों की ओर इशारा कर रही है। रिपोर्ट बता रही है कि गलत फैसलों की वजह से ही यह ऐसा हुआ। उधर नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने कैग को बताया है कि एयरपोर्ट के आधुनिकीकरण का फैसला कैबिनेट का था।

कर्ज के भंवर में डूबा देश

31 दिसंबर 2011 तक भारत सरकार पर 33 लाख 82 हजार करोड़ रुपए का ऋण था। यह तो गनिमत है कि इस भारी भरकम कर्ज में विदेशी हिस्सा महज 3 लाख 40 हजार करोड़ का ही है। यदि पिछले दो सालों का ब्योरा देखें तो हर साल एक लाख करोड़ का ऋण भार भारत पर चढ़ा है। अगली केंद्र सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो उसके मत्थे 10 लाख करोड़ के ऋण की अदायगी अभी से तय है। कर्ज का बढ़ता बोझ यह साबित करता है कि सरकार की आमदनी तो घटी ही है साथ ही आमदनी की पूर्ति के लिए उसने आवश्यक कदम नहीं उठाए। यह हालात तब हैं जब देश में अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री, वरिष्ठ और अनुभवी वित्तमंत्री के रूप में प्रणब मुखर्जी और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ मोंटेक सिंह अहलुवालिया योजना आयोग के उपाध्यक्ष हैं। देश के आर्थिक सेहत का दारोमदार मुख्यत: इन्ही तीन स्तंभों पर टिका होता है। क्या यह माना जाए कि पिछले दो सालों में विश्व व्यापी मंदी, देश में बेतहाशा बढ़ी महंगाई और आर्थिक अनुशासनहीनता ने देश को कर्ज के भंवर में फंसा दिया है? बावजूद इसके यह कहना फिलहाल जल्दबाजी होगी कि भारत भी मंदी के चपेट में रहा। अन्यथा क्या कारण है कि विगत दो वर्षों में देश पर दो लाख करोड़ का ऋण भार बढ़ गया। ऐसा लगता है देश के आर्थिक रणनीतिकारों से स्थितियों को भांपने में गड़बड़ी हुई है। लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रिया में जब सत्ता पर काबिज रहना राजनीतिक दलों का ध्येय बन जाता है तब सियासी लाभ-हानि के मद्देनजर लुभावने वायदों की पूर्ति की जाती है। जनहित सरकार का धर्म है, चुनावी वायदों को निभाना फर्ज है। संप्रग सरकार की पहली पारी में किसानों का करोड़ों रुपए का ऋण माफ किया गया, अभी दो माह पूर्व बुनकरों के लिए विशेष पैकेज पर अमल शुरू हुआ, अन्य सबसिडी पर भी खजाने से भारी भरकम राशि जा रही है। यह सब हो रहा है कर्ज के पैसों से। अनेक योजनाओं पर काम चल रहा है। खजाना खाली है पर काम होते रहना है। मूलधन तो अपनी जगह है ब्याज अदा करने में भी सरकार को पसीने छूट रहे हैं। सरकार के लिए राहत की बात यही है कि आगामी वर्षों में जो बड़े ऋणों का चुकारा होना है वह भारतीय बैंकों को ही करना है जो प्रतिभूतियों की शक्ल में हैं। व्यक्तिगत ऋण और सरकारी ऋण की अदायगी में बड़ा फर्क यह है कि व्यक्ति से वसूली आसान है जबकि सरकार से वसूली कठिन है। सरकारी प्रबंधकों को इस बात की फिक्र नहीं होती कि उसे समय पर कर्ज चुकाना है। कर्ज अदा करने का सरकार के पास राजस्व वसूली सबसे बड़ा साधन है। जाहिर है वसूली अपेक्षित नहीं है। वसूली का एक हिस्सा कर्ज और ब्याज चुकाने में किया जाना चाहिए, संभवत: सरकारी प्रबंधक उसमें भी चूक गए हैं। आमदनी बढ़ाए बिना कर्ज अदायगी सरल नहीं होती। यह तभी होता जब सरकार वसूली में सख्त और पाबंद हो। चाहे प्रश्न आम लोगों का हो या किसानों-बुनकरों का हो अथवा बड़े औद्योगिक घरानों से टैक्स वसूली का हो सरकार को सचेत रहना होगा। संप्रग सरकार अगले आम चुनाव से पूर्व खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने की जिद ठान बैठी है। देश की 75 प्रतिशत आबादी को रियायती अनाज देने उत्पादन पर्याप्त नहीं है, जाहिर है विदेशों से खाद्यान्न आयात करना होगा, उसके लिए सरकार कहां से रकम जुटाएगी? हालिया दिनों में डालर के मुकाबले रुपया बेहद कमजोर स्तर पर आ गया, इससे आयात पर बोझ बढ़ा। यह सुनिश्चित करने का प्रयास होना चाहिए कि आयात-निर्यात में समुचित संतुलन रहे। अभी आयकर विभाग 22 सौ ऐसे सौदों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है जिन पर दो हजार करोड़ के अवैध लेन-देन का शक है। सरकार को न सिर्फ मितव्ययता की ओर कदम उठाना होगा वरन् 'ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत, यावत् जीवेत् सुखम जीवेत्Ó की भावना का त्याग भी करना है। काश देश को भी घर समझ कर चलाया जाता।

अन्ना ने नितिन राउत को याद दिलाई बीवी की मार

मुंबई।। जलसंरक्षण मंत्री नितिन राउत एवं अन्ना हजारे के बीच हफ्ते भर से चल रहे वाकयुद्ध में एक और चैप्टर जुड़ गया है। यह स्तरहीन बयानबाजी की मिसाल हो सकता है।


अन्ना को 'हिटलर' कहने वाले मंत्री राउत की औकात पर सवाल उठाते हुए अन्ना ने कहा 'जो बीवी से पिट चुका हो, वह और क्या कहेगा? उससे क्या उम्मीद कर सकते हैं?'


उल्लेखनीय है कि साल भर पहले यह बात फैली थी कि आमदार निवास में किसी गैर महिला के साथ पाए गए राउत की उनकी बीबी ने पिटाई की। इस खबर को दबाया गया था, इसलिए उसकी पुष्टि नहीं हुई थी, पर मंत्रालय में महीने भर तक इसी घटना की चर्चा थी।


गत गुरुवार को नागपुर में राउत समर्थकों ने एक सभा में अन्ना पर हमला किया। राउत ने इस हमले का जोरदार समर्थन किया था। तब से दोनों में आरोप प्रत्यारोप का दौर चला है। मंत्री ने अन्ना पर कांग्रेस को बदनाम करने और उनका आंदोलन खोखला होने का आरोप लगाया है।


इस पर बौखलाए अन्ना ने जलगांव में पत्रकारों से बातचीत में मंत्री पर पलटवार किया। बीबी द्वारा उनकी कथित पिटाई का जिक्र कर पुराने किस्से को दोहराया। दिलचस्प यह है कि मंत्री ने इस बारे में कोई सफाई नहीं दी थी और मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने चुप्पी साध ली थी।


इस बीच राऊत ने पत्रकारों को बताया कि अन्ना द्वारा उन पर लगाए गए व्यक्तिगत आरोपों को वे कानूनी चुनौती देंगे। इस बारे में वे वकीलों से मशविरा कर रहे हैं।
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