" "

भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

तो यह है तेल का असली खेल

Click on photo to enlarge to read it well
यह रिटर्न गिफ्ट देने की कांग्रेसी अदा है। यूपीए-2 के तीन साल पूरे होने पर आम आदमी के लिए टेसुए बहा रही सरकार ने पुराने तर्कों का हवाला देकर पेट्रोल की कीमतों में साढ़े सात रुपए की बढ़ोतरी कर दी है। हर बार की तरह इस बार भी भाजपा और ममता बनर्जी ने रस्मी विरोध किया है, मगर तेल के खेल से जुड़े सुलगते सवालों का जवाब देने को वे तैयार नहीं हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि अर्थशास्त्रियों और वकीलों से अटी पड़ी कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार पेट्रोल को अमीरों का ईंधन मान बैठी है। हकीकत यह है कि देश के साठ फीसदी से ज्यादा दुपहिया-तिपहिया वाहनों की बिक्री छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में होती है। महानगरों में निम्न मध्यवर्ग ही पेट्रोल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। जापान की होंडा मोटर्स दुनियाभर में पेट्रोल कारों के लिए जानी जाती है मगर भारत में डीजल कारें भी बनाती है क्योंकि हमारी सरकार ने लक्जरी डीजल कारों को खैरात बांटने की शपथ ले रखी है।


एक और विडंबना देखिए। भारत के 90 फीसदी तेल कारोबार पर सरकारी कंपनियों का नियंत्रण है और सरकार की मानें तो ये कंपनियां जनता को सस्ता तेल बेचने के कारण भारी घाटे में हैं। दूसरी ओर, फॉच्र्यून पत्रिका के मुताबिक दुनिया की आला 500 कंपनियों में भारत की तीनों सरकारी तेल कंपनियां- इंडियन ऑयल (98), भारत पेट्रोलियम (271) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम (335)- शामिल हैं। तेल और गैस उत्खनन से जुड़ी दूसरी सरकारी कंपनी ओएनजीसी भी फॉच्र्यून 500 में 360वीं रैंक पर है। आखिर यह कैसे संभव है कि सरकार घाटे का दावा कर रही है लेकिन तेल कंपनियां की बैलेंसशीट खासी दुरुस्त है। दरअसल भारत में रोजाना 34 लाख बैरल ( एक बैरल में 159 लीटर) तेल की खपत होती है और इसमें से 27 लाख बैरल तेल आयात किया जाता है। आयात किए गए कच्चे तेल को साफ करने के लिए रिफाइनरी में भेज दिया जाता है। तेल विपणन कंपनियों के कच्चा तेल खरीदने के समय और रिफाइनरी से ग्राहकों को मिलने वाले तेल के बीच की अवधि में तेल की कीमतें ऊपर-नीचे होती हैं। यहीं असली पेंच आता है। फिलहाल अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 110 डॉलर प्रति बैरल है और अंडररिकवरी हमेशा मौजूदा कीमतों के आधार पर तय की जाती है। विडंबना देखिए, सरकार 120 डॉलर प्रति बैरल के पुराने भाव से अंडररिकवरी की गणना करके भारी-भरकम आंकड़ों से जनता को छलती है।


तेल विपणन कंपनियों का कथित घाटा भी आंकड़ों की हेराफेरी है। सकल रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) इसका सबूत है। कच्चे व शोधित तेल की कीमत के बीच के फर्क को रिफाइनिंग मार्जिन कहा जाता है और भारत की तीनों सरकारी तेल विपणन कंपनियों का जीआरएम दुनिया में सबसे ज्यादा है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में तेल विपणन कंपनियों का जीआरएम चार डॉलर से सात डॉलर के बीच रहा है। चीन भी भारत की तरह तेल का बड़ा आयातक देश है जबकि अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक चीन का रिफाइनिंग मार्जिन प्रति बैरल शून्य से 2.73 डॉलर नीचे है। यूरोप में तेल भारत से महंगा है लेकिन वहां भी जीआरएम महज 0.8 सेंट प्रति बैरल है। दुनिया में खनिज तेल के सबसे बड़े उपभोक्ता अमेरिका में रिफाइनिंग मार्जिन 0.9 सेंट प्रति बैरल है। अमेरिका और यूरोप में तेल की कीमतें पूरी तरह विनियंत्रित हैं और बाजार भाव के आधार पर तय की जाती हैं। अंडररिकवरी की पोल खोलने वाला दूसरा सबूत शेयर पर मिलने वाला प्रतिफल यानी रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई) है। आरओई के जरिए शेयरहोल्डरों को मिलने वाले मुनाफे का पता चलता है। भारतीय रिफाइनरियों का औसत आरओई 13 फीसदी है, जो ब्रिटिश पेट्रोलियम (बीपी) के 18 फीसदी से कम है। अगर हकीकत में अंडररिकवरी होती तो मार्जिन नकारात्मक होता और आरओई का वजूद ही नहीं होता। जाहिर है, भारत में तेल विपणन मुनाफे का सौदा है और भारतीय ग्राहक दुनिया में सबसे ऊंची कीमतों पर तेल खरीदते हैं।


महंगे तेल की एक और वजह है। हमारे देश में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने तेल विपणन को खजाना भरने का जरिया बना लिया है। पेट्रोल पर तो करों का बोझ इतना है कि ग्राहक से इसकी दोगुनी कीमत वसूली जाती है। ताजा बढ़ोतरी के बाद दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 73.14 रुपए है और जबकि तेल विपणन कंपनियों के सारे खर्चों को जोड़कर पेट्रोल की प्रति लीटर लागत 30 रुपए के आस-पास ठहरती है। केंद्र सरकार जहां कस्टम ड्यूटी के रूप में साढ़े सात फीसदी लेती है वहीं एडिशनल कस्टम ड्यूटी के मद में दो रुपए प्रति लीटर, काउंटरवेलिंग ड्यूटी के रूप में साढ़े छह रुपए प्रति लीटर, स्पेशल एडिशनल ड्यूटी के मद में छह रुपए प्रति लीटर, सेनवेट के मद में 6.35 रुपए प्रति लीटर, एडिशनल एक्साइज ड्यूटीदो रुपए प्रति लीटर और स्पेशल एडिशनल एक्साइज ड्यूटी के मद में छह रुपए प्रति लीटर लेती है। राज्य सरकारें भी वैट, सरचार्ज, सेस और इंट्री टैक्स के मार्फत तेल में तड़का लगाती हैं। दिल्ली में पेट्रोल पर 20 फीसदी वैट है जबकि मध्य प्रदेश में 28.75 फीसदी, राजस्थान में 28 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 22 फीसदी है। मध्य प्रदेश सरकार एक फीसदी इंट्री टैक्स लेती है और राजस्थान में वैट के अलावा 50 पैसे प्रति लीटर सेस लिया जाता है।


भारत दुनिया का अकेला ऐसा देश हैं जहां सरकार की भ्रामक नीतियों के कारण विमान में इस्तेमाल होने वाला एयर टरबाइन फ्यूल यानी एटीएफ, पेट्रोल से सस्ता है। दिल्ली में पेट्रोल और एटीएफ की कीमतों में तीन रुपए का फर्क है और नागपुर जैसे शहरों में तो एटीएफ, पेट्रोल से 15 रुपए तक सस्ता है। एटीएफ और पेट्रोल की कीमतों के बीच यह अंतर काउंटरवेलिंग शुल्क और मूल सेनवैट शुल्क की अलग-अलग दरों के कारण है। सरकार सब्सिडी खत्म करने का भी तर्क देती है। सब्सिडी को अर्थशास्त्र गरीब मानव संसाधन में किया गया निवेश मानता है लेकिन हमारी सरकार इस सब्सिडी को रोककर तेल कंपनियों का खजाना भरना चाहती है।
" "