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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

अन्ना का हर आंदोलन में देंगे साथ : अरविंद केजरीवाल


नई दिल्‍ली : सामाजिक कार्यकर्ता अन्‍ना हजारे के नए संगठन बनाने का संभावनाओं के बीच अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने सोमवार को उनसे मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद केजरीवाल ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अन्‍ना हजारे और हम लोगों के बीच कोई लड़ाई-झगड़ा या दरार वाली बात नहीं है।

केजरीवाल ने इस बात पर जोर देकर कहा कि अन्‍ना जो भी करेंगे हम उनके साथ हैं। भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लड़ाई में वह हमेशा अन्‍ना के साथ रहेंगे। हर फैसले में अन्‍ना के साथ हैं। अन्‍ना के साथ रिश्‍ता बना हुआ है और हम उनसे आगे भी मिलते रहेंगे। चूंकि अन्‍ना दिल्‍ली में हैं, इसलिए वह उनसे मिलने आए। अन्‍ना जब कभी चाहेंगे हम लोग उनके साथ मौजूद रहेंगे।

मंजिलें एक हैं, पर रास्‍ते अलग-अलग वाली बात को दोहराते हुए केजरीवाल ने कहा कि भ्रष्‍टाचार को इस देश से खत्‍म करने के लिए कई तरह के रास्‍ते अपनाने की दरकार है। उन्‍होंने कहा कि आज कई शक्तियां हमारे पीछे पड़ी हैं और कई तरह के बेबुनियाद आरोप लगाए जा रहे हैं। राजनीतिक आरोपों का तो मैं हमेशा से निशाना रहा हूं।

मनीष सिसोदिया के साथ मिलने पहुंचे केजरीवाल ने यह दोहराया कि हम लोगों के बीच कोई मतभेद नहीं है। हमारा लक्ष्‍य एक है। केजरीवाल ने यूपीए सरकार और राजनीतिक तबके पर टीम अन्‍ना में दरार डालने का आरोप मढ़ा। इस आरटीआई कार्यकर्ता ने हालांकि यह भी स्‍वीकार किया कि अन्‍ना भ्रष्‍टाचार विरोधी आंदोलन के राजनीतिक स्‍वरूप लेने के अब भी खिलाफ हैं।

इस बीच, खबरें यह भी हैं कि केजरीवाल मंगलवार को नई पार्टी का ऐलान नहीं करेंगे। केजरीवाल ने कहा कि राजनीतिक पार्टी का ऐलान 26 नवंबर को करेंगे। पार्टी के नाम को लेकर सर्वे किया जाएगा। कल से राजनीतिक क्रांति की शुरुआत की जाएगी।

अरविन्द केजरीवाल का एक साक्षात्कार दिनांक 29/09/2012


आम धारणा है कि अरविंद केजरीवाल राजनीतिक पार्टी बनाना चाहते थे जबकि अन्ना हजारे हमेशा इसका विरोध करते रहे. अन्ना से अलग होने के बाद पहली बार एक विस्तृत साक्षात्कार में अरविंद केजरीवाल अतुल चौरसिया को बता रहे हैं कि यह सही नहीं है

बमुश्किल साढ़े पांच फुट कद वाले अरविंद केजरीवाल से मिलना कहीं से भी संकेत नहीं देता कि यही शख्स बीते दो सालों में कई बार कई-कई दिनों के लिए ताकतवर भारतीय राजव्यवस्था की आंखों की नींद उड़ा चुका है. जब तक अरविंद किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर बात न करें , उनके साधारण चेहरे-पहनावे और तौर-तरीकों को देखकर विश्वास ही नहीं होता कि वे कभी इन्कम टैक्स कमिश्नर थे, देश में आरटीआई कानून लाने में उनकी एक महत्वपूर्ण भूमिका थी. पिछले साल देश के एक-एक व्यक्ति की जुबान पर उनका नाम था और यही व्यक्ति देश को एक वैकल्पिक राजनीतिक व्यवस्था देने के सपने खुद भी देखता है और औरों को भी दिखाता है. अरविंद की घिसी मोहरी वाली पैंट, साइज से थोड़ी ढीली शर्ट और पैरों में पड़ी साधारण फ्लोटर सैंडलें उस आम आदमी की याद दिलाती हंै जो हमारे गांव- कस्बों और गली-कूचों में प्रचुरता में मौजूद है.

अरविंद से बातचीत करना भी उतनी ही सहजता का अहसास कराता है. अर्थ और कानून जैसे जटिल विषय को जिस सरलता से वे आम आदमी को समझाते हैं उससे उनके असाधारण हुनर का कुछ अंदाजा मिलता है. उनके हर आह्वान पर जब सैंकड़ों युवा गुरिल्ला शैली में केंद्रीय दिल्ली की सड़कों पर निकल पड़ते है तब उनकी जबरदस्त संगठन क्षमता का भी दर्शन होता है. उनके साथ थोड़ा अधिक समय बिताने पर एक ऐसा व्यक्तित्व उभरता है जिसकी देशभक्ति और ईमानदारी तमाम संदेहों से परे हो.

लेकिन उन पर ये आरोप भी लगते रहे हैं कि उन्होंने अन्ना का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को साकार करने के लिए किया. हालांकि अरविंद अपने राजनीतिक जुड़ाव को आंदोलन की तार्किक परिणति मानते हैं, मगर उनके और उनके इस कदम के विरोधियों का मानना है कि उनकी तो शुरुआत से ही यही मंशा थी. अरविंद सवाल करते हैं कि यही लोग पहले हमें संघ और भाजपा का मुखौटा कहते थे और अब राजनीतिक महत्वाकांक्षी कह रहे हैं. तो वे लोग पहले यह तय कर लें कि वे किस बात पर कायम रहना चाहते हैं.

एक समाजसेवी के रूप में अन्ना की प्रतिष्ठा ज्यादातर महाराष्ट्र तक ही सीमित थी. आज अगर अन्ना देश के घर-घर में पहुंचे हैं तो इसके पीछे अरविंद केजरीवाल की भूमिका बहुत बड़ी रही है. आज अन्ना और अरविंद के रास्ते अलग हो चुके हैं. अन्ना ने खुद को राजनीति से दूर रखने और साथ ही अपना नाम और फोटो राजनीति के लिए इस्तेमाल नहीं करने देने के संकल्प का एलान कर दिया है. इतने बड़े झटके के बाद भी तहलका से हुई पहली विस्तृत बातचीत में अरविंद के उत्साह में किसी भी कमी के दर्शन नहीं होते, न ही लक्ष्य के प्रति उनके समर्पण में कोई कमी समझ में आती है. अन्ना के साथ रिश्तों की ऊंच-नीच, उन पर लग रहे विभिन्न आरोपों, राजनीतिक पार्टी और उसके भविष्य पर अरविंद केजरीवाल के साथ बातचीत

राजनीतिक पार्टी ही आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए क्यों जरूरी है?

हम लोगों के पास चारा ही क्या बचा था. सब कुछ करके देख लिया, हाथ जोड़कर देख लिया, गिड़गिड़ाकर देख लिया, धरने करके देख लिया, अनशन करके देख लिया, खुद को भूखा मारकर देख लिया. दूसरी बात है कि देश जिस दौर से गुजर रहा है उसमें हम क्या कर सकते हैं. कोयला बेच दिया, लोहा बेच दिया, पूरा गोवा आयरन ओर से खाली हो गया, बेल्लारी खाली हो गया. उड़ीसा में खदानों की खुलेआम चोरी चल रही है. महंगाई की कोई सीमा नहीं है, इस देश में डीजल-पेट्रोल की कीमतें आसमान पर हैं. कहने का अर्थ है कि हमारे पास कोई विकल्प ही नहीं बचा है. व्यवस्था में परिवर्तन लाए बिना यहां कोई बदलाव ला पाना संभव नहीं है.
पर कहा यह जा रहा है कि आपने जुलाई से काफी पहले ही राजनीतिक पार्टी बनाने का मन बना लिया था. जुलाई का अनशन जिसमें आप भी भूख हड़ताल पर बैठे थे- एक तरह से स्टेज मैनेज्ड था. आप राजनीतिक दल की घोषणा करने से पहले जनता को इकट्ठा करना चाहते थे. और फिर आपने राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा कर दी.

किसने आपसे कहा कि हमने पहले ही राजनीतिक पार्टी बनाने का फैसला कर लिया था.

टीम के ही कई लोगों का यह कहना है. बाद में आपसे अलग हो गए लोग भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि जनवरी में पालमपुर में हुई आईएसी की वर्कशॉप में ही चुनावी राजनीति में उतरने का फैसला कर लिया गया था.

 चर्चा में आने की वजह यह थी कि उसी समय पुण्य प्रसून वाजपेयी अन्ना से मिले थे. अन्ना उस समय अस्पताल में भर्ती थे. अस्पताल में ही दोनों के बीच दो घंटे लंबी बातचीत चली थी. मैं उस मीटिंग में नहीं था. पुण्य प्रसून ने ही अन्ना को इस बात के लिए राजी किया था कि यह आंदोलन सड़क के जरिए जितनी सफलता हासिल कर सकता था उतनी इसने कर ली है. अब इसे जिंदा रखने के लिए इसे राजनीतिक रूप देना ही पड़ेगा वरना यह आंदोलन यहीं खत्म हो जाएगा. अन्ना को प्रसून की बात पसंद आई थी. मीटिंग के बाद उन्होंने मुझे बुलाया. उन्होंने मुझसे कहा कि प्रसून जो कह रहे हैं वह बात ठीक लगती है. बल्कि हम दोनों ने तो मिलकर पार्टी का नाम भी सोच लिया है - भ्रष्टाचार मुक्त भारत, पार्टी का नाम होगा. फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि तुम्हें क्या लगता है. मेरे लिए यह थोड़ा-सा चौंकाने वाली बात थी. मैं तुरंत कोई फैसला नहीं कर पाया. तो मैंने अन्ना से कहा कि मुझे थोड़ा समय दीजिए. मैं सोचकर बताऊंगा. दो-तीन दिन तक सोचने के बाद मैंने अन्ना से कहा कि आप जो कह रहे हैं मेरे ख्याल से वह ठीक है. हमें चुनावी राजनीति के बारे में सोचना चाहिए. उसी समय पहली बार इसकी चर्चा हुई. उसके बाद अन्ना तमाम लोगों से मिले और उन्होंने इस संबंध में उन लोगों से विचार-विमर्श भी किया. तो राजनीतिक विकल्प की चर्चा तो चल ही रही थी लेकिन जो लोग यह कह रहे हैं कि पहले से फैसला कर लिया गया था और हमारा अनशन मैच फिक्सिंग था वह गलत बात है. अगर यह मैच फिक्सिंग होती तो इसे दस दिन तक खींचने की क्या जरूरत थी. मैं तो शुगर का मरीज था. मेरे पास तो अच्छा बहाना था. दो दिन बाद ही मैं डॉक्टरों से मिलकर अनशन खत्म कर देता. दो दिन बाद मैं एक नाटक कर देता कि मेरी तबीयत खराब हो गई है और मैं अस्पताल में भर्ती हो जाता और हम राजनीतिक पार्टी की घोषणा कर देते.

आप कह रहे हैं कि राजनीतिक दल बनाने का प्रस्ताव अन्ना का था. खुद अन्ना ने भी मंच से कई बार यह बात कही थी कि हम राजनीतिक विकल्प देने पर विचार करेंगे. और अब अन्ना मुकर गए हैं. तो क्या आप इसे इस तरह से देखते हैं कि अन्ना ने धोखा दिया है आपको?

मैं इसे धोखा तो नहीं कहूंगा लेकिन उनके विचार तो निश्चित तौर पर बदल गए हैं. अब वे क्यूं बदले हैं इसका मेरे पास कोई जवाब नहीं है. देखिए, धोखा कोई नहीं देता. इतने बड़े आदमी हैं अन्ना तो मैं इसे धोखा तो नहीं कहूगा. पर उनके विचार क्यों बदले हैं इस बात का जवाब मेरे पास नहीं है न ही उनके मन बदलने का कोई मेरे पास सबूत है. 19 तारीख को कंस्टीट्यूशन क्लब में जो बैठक हुई थी उसमें हम सबने यही तो कहा उनसे कि अन्ना आप ही तो सबसे पहले कहते थे कि हम राजनीतिक पार्टी बनाएंगे तो अब यह बदलाव क्यों. तो उनका जवाब था कि पहले मैं वह कह रहा था अब यह कह रहा हूं. जब पहले मेरी बात मान ली थी तो अब भी मान लो. उनके विचार तो बदल गए हैं इस दौरान, चाहे वे मानें या न मानें.

आप भी हमेशा कहते थे कि जो अन्ना कहेंगे हम वह मान लेंगे. तो अब आप ही उनकी बात क्यों नहीं मान लेते, यह मनमुटाव क्यों?

मैं आपकी बात से सहमत हूं. मैंने कहा था कि अगर अन्ना कहेंगे कि पार्टी मत बनाओ तो मैं मान जाऊंगा. अब मेरे सामने यह धर्म संकट है. मुझे लगता था कि अन्ना पूरा मन बना कर ही राजनीतिक विकल्प की बात कर रहे हैं. और फिर उन्होंने अपना मन बदल दिया. मैं धर्मसंकट में फंस गया हूं. एक तरफ मेरा देश है दूसरी तरफ अन्ना हैं. दोनों में से मैं किसको चुनूं. तो मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा है सिवाय इसमें कूदने के क्योंकि मेरे सामने सवाल है कि भारत बचेगा या नहीं. जिस तरह की लूट यहां मची है संसाधनों की उसे देखते हुए पांच-सात साल बाद कुछ बचेगा भी या नहीं यही डर बना हुआ है.

एक समय था, अरविंद जी जब आप कहते थे कि मैं अन्ना को सिर्फ दफ्तरी सहायता मुहैया करवाता हूं, नेता तो अन्ना ही हैं. फिर आप यह भी कहते रहे कि अन्ना अगर कहेंगे तो मैं राजनीतिक पार्टी नहीं बनाऊंगा. और अब आप अलगाव और राजनीतिक पार्टी की जिद पर अड़ गए हैं. क्या इससे यह संकेत नहीं मिलता कि यह सिर्फ आपकी महत्वाकांक्षा के चलते हो रहा है?

किस चीज की महत्वाकांक्षा?

राजनीतिक सत्ता की महत्वाकांक्षा.

लोग किसलिए राजनीति में जाते हैं. सत्ता से पैसा और पैसा से सत्ता. अगर पैसा ही कमाना होता मुझे तो इनकम टैक्स कमिश्नर की नौकरी क्या बुरी थी मेरे लिए. एक कमिश्नर एक एमपी से तो ज्यादा ही कमा लेता है. अगर सत्ता का ही लोभ होता तो कमिश्नर की नौकरी छोड़ पाना बहुत मुश्किल होता मेरे लिए. आप सोचिए कि सत्ता का मोह होता तो इस तरह की नौकरी छोड़ पाने की मानसिकता मैं कभी बना पाता? कुछ लोगों का कहना है कि आपने तो शुरू से ही राजनीति में आने का तय कर रखा था. ये बड़ी दिलचस्प बात है. 2010 के सितंबर में मैंने जन लोकपाल बिल का मसौदा तैयार किया, फिर मैंने सोचा कि अब मैं इन-इन लोगों को एक साथ लाऊंगा, फिर अन्ना से संपर्क करूंगा, फिर अन्ना चार अप्रैल को अनशन पर बैठेंगे, फिर खूब भीड़ आ जाएगी और फिर संयुक्त मसौदा समिति बनेगी जो बाद में हमे धोखा देगी और फिर उसके बाद अगस्त का आंदोलन होगा जिसमें पूरा देश जाग जाएगा, और फिर संसद तीन प्रस्ताव पारित करेगी, फिर संसद भी धोखा दे देगी, और फिर मैं राजनीतिक पार्टी बना लूंगा. काश कि मैं अगले तीन साल के लिए इतनी रणनीति बना पाऊं.

आप लोगों ने एक सर्वेक्षण की आड़ में राजनीतिक दल की जरूरत को स्थापित करने की कोशिश की. पर उस सर्वेक्षण की अहमियत क्या है? न तो उसका कोई वैज्ञानिक आधार है न ही सैंपल का क्राइटेरिया है. अस्सी फीसदी लोगों ने दल का समर्थन किया है. जब तक हम सैंपल, एज ग्रुप, विविध समुदायों की बात नहीं करेंगे तब तक इसकी क्या अहमियत है? किसी खास सैंपल ग्रुप में हो सकता है कि सारे लोग नक्सलियों को सड़क पर खड़ा करके गोली मारने के पक्षधर हों, या फिर सारे लोग समुदाय विशेष को देश से निकाल देने के पक्षधर हों ऐसे में आपका सर्वेक्षण कोई वैज्ञानिक आधार रखता है?

दो चीजें आपके प्रश्न में हैं. एक तो ये कहना कि जो लोग इस आंदोलन से जुड़े थे वे इस मानसिकता के थे या उस मानसिकता के थे. मैं इस बात से सहमत नहीं हूं. ये सारे लोग इसी देश का हिस्सा हैं. इस देश के लोगों को इस तरह से बांटना ठीक नहीं है. दूसरी बात जो आप कह रहे हैं मैं उससे सहमत हूं कि सर्वे इसी तरह से होते हैं. तमाम लोग सर्वे करवाते हैं. हर सर्वे किसी न किसी सैंपल पर आधारित होता है. अब यह आप पर निर्भर है कि आप उसे तवज्जो देना चाहते हैं या नहीं. उस सर्वे के आधार पर आप कोई निर्णय लेना चाहें या न लेना चाहें यह आपके ऊपर निर्भर है. यह तो अन्ना जी ने ही कहा था कि एक बार सर्वे करवा कर जनता का मिजाज जान लेते हैं. देखते हैं वह क्या सोचती है. उनके कहने पर हम लोगों ने सर्वे करवाया. अन्नाजी ने ही कहा था कि इस विधि से सर्वे करवाया जाए. हमने उसी तरीके से सर्वे करवाया. लेकिन उस सर्वे के बावजूद अन्नाजी ने अपना निर्णय इसके खिलाफ दिया. ये यही दिखाता है कि सर्वे आप करवाकर लोगों का मिजाज भांप सकते हैं फिर निर्णय आप अपना ले लीजिए. उस सर्वे ने हमारे निर्णय को प्रभावित किया हो ऐसा मुझे नहीं लगता, लेकिन सर्वे आपको एक मोटी-मोटा आइडिया तो देता है.

ये बात बार-बार आ रही है कि चुनावी विकल्प का इनीशिएटिव अन्ना का था...

इनीशिएटिव अन्ना का था, लेकिन बाद में वे ही पीछे हट गए.

हम इसको कैसे देखें... 19 तारीख की बैठक के बाद आपकी इस संबंध में फिर से अन्ना से कोई बात हुई?

उसके बाद तो कोई बात नहीं हुई लेकिन उसके पहले मैं लगातार उनके संपर्क में था. लेकिन उनके निर्णय की वजह क्या रही मैं खुद नहीं समझ पा रहा हूं.

दोनो व्यक्ति मिलकर एक-दूसरे को संपूर्ण बनाते थे. अरविंद की संगठन और नेतृत्व क्षमता और अन्ना की भीड़ को खींच लाने की काबिलियत मिलकर दोनों को संपूर्णता प्रदान करती थी. उनके जाने से इस पर कितना असर पड़ा है? इस नुकसान को कैसे भरेंगे?

अन्नाजी के जाने से नुकसान तो हुआ ही है. इस पर कोई दो राय नहीं है.

कोई संभावना शेष बची है अन्ना के आपसे दुबारा जुड़ने की..

बिल्कुल. अन्ना एक देशभक्त व्यक्ति हैं. देश के लिए जो भी अच्छा काम होता है अन्नाजी उसका समर्थन जरूर करेंगे ऐसा मुझे विश्वास है.

हमारी राजनीतिक व्यवस्था में धनबल और बाहुबल का बहुत महत्व रहता है. उससे निपटने का कोई वैकल्पिक तरीका है आपके पास या फिर उन्हीं रास्तों पर चल पड़ेंगे?

नहीं. उसी को तो बदलने के लिए हम राजनीति में जा रहे हैं. आज की जो राजनीति है वही तो सारी समस्या की जड़ है. आज हमारे सरकारी स्कूल ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, सरकारी अस्पतालों में दवाइयां नहीं मिलतीं, सिर्फ इसलिए क्योंकि हमारी राजनीति खराब है. बिजली, पानी, सड़कें ये सब इस अक्षम राजनीति की वजह से ही आज तक खराब बनी हुई हैं. यह तो भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुकी है. पैसे और बाहुबल का जोर है. उसी को बदलने के लिए हम राजनीति में जा रहे हैं.

तो तरीका क्या है? क्योंकि पैसे के बिना तो इतने बड़े देश में आप राजनीति नहीं कर पाएंगे, यह सच्चाई है.

इधर बीच मुझसे कई ऐसे लोग मिले हैं जिन्होंने कम से कम पैसे में चुनाव जीतकर दिखाया है. उन लोगों से हम उनके तरीकों पर विचार करेंगे और उन्हें अपनाने की कोशिश करेंगे.

जैसे... कौन लोग हैं?

जैसे बिहार के विधायक हैं सोम प्रकाश. उन्होंने सिर्फ सवा लाख रुपये खर्च करके चुनाव जीता था. और यह पैसा भी वहां के स्थानीय लोगों ने ही इकट्ठा किया था. ऐसे कई लोग आजकल मुझसे मिल रहे हैं देश भर से. बाला नाम का एक लड़का है जिसने अमेरिका से वापस आकर जिला परिषद का चुनाव जीता है. उसके पास भी पैसा नहीं था. पर उसने जीतकर दिखाया है. ये लोग हमसे जुड़ भी रहे हैं.

तो उम्मीदवारों के चयन की क्या प्रक्रिया होगी? इसी तरह के लोग जुटाए जाएंगे?

हम लोग कई सारे मॉडलों का अध्ययन कर रहे हैं. बहुत सारे सुझाव लोगों की तरफ से भी आए हैं. यह कोई पार्टी नहीं है, यह इस देश के लोगों का सपना है. हमने लोगों से पूछा कि इसका नाम क्या होना चाहिए, उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया क्या होनी चाहिए, पार्टी का एजेंडा क्या होना चाहिए आदि. बीस हजार लोगों ने हमें चिट्ठियां भेजी हैं. भारत सरकार ने जब जन लोकपाल बिल पर लोगों से सुझाव मांगे थे तब तेरह हजार सुझाव आए थे. तब सरकार ने अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन भी दिए थे. हमारे पास कोई विज्ञापन मशीनरी नहीं है सिर्फ जुबानी आह्वान पर बीस हजार से ज्यादा सुझाव लोगों के आ गए. ये दिखाता है कि जनता के भीतर इसको लेकर कितना उत्साह है. इन सभी सुझावों को संकलित करके हमने कुछ ड्राफ्ट तैयार किए हैं. दो अक्टूबर को हम यह पहला ड्राफ्ट जनता के सामने रखेंगे. यह एक तरह से पहला ड्राफ्ट होगा जिसे आगे फाइन ट्यून किया जाएगा लोगों के सुझाव के आधार पर.

बार-बार ड्राफ्टिंग-रीड्राफ्टिंग से जनता का उत्साह कम नहीं हो जाएगा? यह हमने जन लोकपाल की ड्राफ्टिंग के समय भी देखा था.

जनता तो इसमें इंटरेस्ट ले रही है. जितनी बार हम उनसे राय मांगते हैं, लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. जनता तो नीतियों के बनाने में हिस्सेदारी चाहती है.

पार्टियों के साथ हमने देखा है कि जब चुनाव सिर पर आते हैं तब वे सभी विचारधारा को त्याग कर जाति-धर्म और समीकरणों के आधार पर उम्मीदवार चुनती हैं. ये समस्या आपके सामने भी आएगी. तो इससे निपटने का क्या तरीका होगा आपके पास?

देखिए, जब जन चेतना जागती है तब बहुत सारी दीवारें टूटती हैं. जैसे पिछली बार जब अगस्त का आंदोलन चल रहा था तब मुझसे दिल्ली पुलिस का एक कांस्टेबल मिला. उसने मुझे बताया कि मैं पिछले 16 साल से रिश्वत ले रहा था लेकिन पिछले दस दिन से मैंने रिश्वत नहीं ली है. जितने आनंद का अनुभव मैंने इन दस दिनों में किया है वह पहले कभी नहीं किया था. उसके भीतर से ही चेतना जागी. गुड़गांव में एक अल्टो गाड़ी डेढ़ साल पहले चोरी हो गई थी. उस पर अन्ना का स्टीकर चिपका हुआ था. इस बार जुलाई में जब हम अनशन कर रहे थे तब उस व्यक्ति ने कार एक थाने के पास ले जाकर छोड़ दी. उसने कार पर एक चिट लगाकर छोड़ दी कि अन्ना की गाड़ी अन्ना को मुबारक. जब जन चेतना जागती है तब यह धर्म-जाति की सारी दीवारें तोड़ देती है. मुझे विश्वास है कि भारत में वह समय आ गया है. ये वर्जनाएं धीरे-धीरे टूटेंगी.

चुनाव से पहले या बाद में किसी राजनीतिक पार्टी से गठबंधन करेंगे?

कभी नहीं.

किरण बेदी को लेकर सवाल उठ रहे हैं. शुरुआत से ही वे साथ रही हैं. अब लग रहा है कि वे दुविधा में हैं. अन्ना के साथ भी दिखना चाहती हैं और आईएसी के साथ भी.

उनकी क्या योजनाएं है ये तो उनसे ही पूछना पड़ेगा. इस बारे में वही बता पाएंगी. उनके मन की दुविधा को मैं नहीं समझ सकता हूं.

दुविधा में हैं वो...

निश्चित तौर पर दुविधा में तो हैं. पर उनके प्रश्न आप उन्हीं से पूछें.

आप लोग लंबे समय से साथ रहे हैं, बातचीत के स्तर पर, कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी के स्तर पर आप उन्हें किस दशा में पाते हैं. कुछ तो संकेत मिल रहा होगा..

मैं कैसे बाताऊं उनके मन की बात.

तो मैं ये मान लूं कि पहले वाली गरमाहट रिश्तों में नहीं रही?

यह बात तो साफ ही है कि वे राजनीतिक विकल्प के साथ नहीं जुड़ना चाहती. उनके अपने कारण हैं उसके लिए. मैं क्या कहूं.

किरण और अन्ना के अलावा सारे लोग आपकी राय से सहमत हैं...

सारे लोग.

शिवेंद्र सिंह चौहान (जिन्होंने फेसबुक पर पहली बार इंडिया अगेंस्ट करप्शन का पन्ना तैयार किया था) आंदोलन के शुरुआती लोगों में से थे. उनसे आपकी किस बात को लेकर तनातनी हो गई?

मुझे कोई आइडिया नहीं है कि शिवेंद्र क्यों नाराज हैं.

आपने उन्हें मनाने की कोशिश की...

मैंने कई बार कोशिश की.

कोई नाम सोचा है आपने अपनी पार्टी का?

अभी तो कोई नहीं.

अगली गतिविधि क्या होगी?

दो अक्टूबर से पहले 29 सितंबर को एक बार दिल्ली के सारे वॉलेंटियर्स की एक बैठक होगी. यह छोटी सी बैठक है.

जब आप राजनीति में उतरेंगे तो सिर्फ भ्रष्टाचार के ऊपर तो राजनीति नहीं होगी. तब आपको कश्मीर से लेकर नक्सलवाद और अयोध्या विवाद जैसे मुद्दों पर एक स्पष्ट राय रखनी पड़ेगी. जो लोग आपका राजनीति में उतरने का समर्थन करते हैं, वही लोग प्रशांत जी के कश्मीर पर विचार का विरोध करते हैं. इनसे कैसे निपटेंगे?

सारे लोग मिलकर बातचीत के जरिए यह बात तय करेंगे. चार लोग बैठकर पूरे देश की नीति तय कर देते हैं. ऐसे ही तो यहां राजनीतिक पार्टियां काम करती हैं. हम सबके साथ बैठकर बात करेंगे कि आखिर देश क्या चाहता है. हम एक ऐसा मंच तैयार करना चाहते हैं जहां सारे लोग बैठकर आपस में मुद्दे सुलझा सकें. किसी मुद्दे पर अगर समाज दो हिस्सों में बंटा है तो उस पर चर्चा होनी चाहिए.

देश का जो मौजूदा राजनीतिक संकट है और जिस तरह की अवसरवादी राजनीति हो रही हैं उस पर कोई टिप्पणी करना चाहेंगे?

हम यही तो कह रहे हैं कि सब के सब एक जैसे ही हैं. पर्याय कौन देगा. पर्याय हमारे आपके बीच से ही तो कोई देगा. आप किसी के ऊपर भरोसा नहीं करेंगे तो कैसे काम चलेगा. और जब हम पर्याय देने की बात करते हैं तब लोग कहते हैं कि महत्वाकांक्षी हो गया है. मेरा सवाल है कि देश को पर्याय कहां से मिलेगा और देश के सामने उम्मीद क्या बची है. जो रवैया है राजनीतिक पार्टियों का उससे यह देश बर्बाद नहीं हो जाएगा कुछ दिनों में?

राजनीतिक विकल्प आ जाने के बाद भी क्या आंदोलन किसी रूप में बचा रहेगा या फिर यह खत्म हो जाएगा? और अगर रहेगा तो इसका स्वरूप क्या होगा?

यह आंदोलन ही रहेगा पार्टी नहीं बनेगा. पहले आंदोलन के पास तीन-चार हथियार थे - अनशन एक हथियार था, धरना एक हथियार था, याचिका दायर करना एक हथियार था. अब उसके अंदर राजनीति एक और हथियार जुड़ गया है. मुख्य मकसद आंदोलन ही है, राजनीति एक अतिरिक्त हथियार के तौर पर जुड़ जाएगी.


भ्रष्टाचार के खिलाफ देश भर में होगा आंदोलन : अन्ना


अन्‍ना हजारे ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए नई टीम बनाने का संकेत दिया है। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग के लिए अपनी रणनीति बदलने का भी ऐलान किया है। उन्होंने कहा है कि देश में परिवर्तन लाने के लिए राजनीति का रास्ता सही नहीं है, इसके लिए देश भर में आंदोलन करना होगा। अरविंद केजरीवाल से अलग होने के बाद रविवार को पहली बार दिल्ली पहुंचे अन्ना हजारे ने कहा कि देश में एक बड़े आंदोलन की जरूरत है। अन्ना दो दिन दिल्ली में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर, रिटायर्ड आईएस, आईपीएस अधिकारियों से मुलाकात करेंगे। 

पुणे से दिल्ली रवाना होने से पहले अन्ना ने कहा कि वो लोकपाल के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। हजारे ने अपने ब्लॉग पर अलगाव के लिए केजरीवाल के नेतृत्व वाले पार्टी समर्थक समूह पर आरोप लगाया था जिसके बाद उनकी बैठक हो रही है। सूत्रों ने कहा कि बैठक में कार्यकर्ता मेधा पाटेकर, डॉ. सुनीलम एवं अन्य हिस्सा ले सकते हैं। हजारे ने शनिवार को अपने ब्लॉग में कहा था 'राजनीति ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को बांट' दिया और पार्टी समर्थक समूह उनकी इच्छा के खिलाफ गए।

शनिवार को पुणे में अन्ना ने आगे से अनशन न करने की रणनीति का जिक्र करते हुए कहा कि अब वह आंदोलन करेंगे। साथ ही कहा कि वह संसद में अच्छे लोगों को भेजने के लिए काम करते रहेंगे। उन्होंने देश के युवाओं में विश्वास व्यक्त करते हुए उनसे देश के भविष्य के प्रति निराशावादी न होने की अपील की। उनके मुताबिक देशभर से तमाम लोग उनसे संपर्क कर रहे हैं। इनमें कई राज्यों के सेवानिवृत पुलिस महानिदेशक, आइएएस अधिकारी और सेना के पूर्व ब्रिगेडियर इत्यादि शामिल हैं।

रिटायर्ड अधिकारियों व सेनानियों की सेना बनायेंगे अन्‍ना


नई दिल्‍ली: गांधीवादी विचारधारा को लेकर भ्रष्‍टाचार के खिलाफ जंग को नया रूप देने जा रहे अन्‍ना हजारे अब रिटायर्ड अधिकारियों, कर्मचारियों और सेनानियों की फौज तैयार करेंगे। यानी भ्रष्‍ट नेताओं के खिलाफ एक तरफ से अरविंद केजरीवाल के युवाओं की सेना हमला करेगी तो दूसरी तरफ से अन्‍ना की अनुभवी लोगों की फौज।

अपनी फौज तैयार करने के लिये अन्‍ना हजारे दो दिन के लिये दिल्‍ली आ रहे हैं। केजरीवाल से रिश्‍ता टूटने के बाद पहली बार अन्‍ना राजधानी आ रहे हैं। अन्‍ना यहां रविवार को एक्‍स सर्विसमैन यानी सेवानिवृत्‍त सेनानियों, रिटायर्ड सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों से मुलाकात करेंगे। इसी बैठक में अन्‍ना अपने आंदोलन की आगे की रणनीति तय करेंगे।

वैसे खबर है कि रिटायर्ड सेन‍ानियों को जुटाने का काम पूर्व सेनाध्‍यक्ष वीके सिंह कर रहे हैं। खैर यह बात तभी साफ होगी जब वीके सिंह खुलकर यह बात कहेंगे। वैसे अन्‍न की यह सोच देश को एक नई राह दिखा सकती है, क्‍यों कि अगर देश के लाखों वृद्ध अन्‍ना के साथ इस मिशन में शामिल हो जायें, तो भ्रष्‍टाचार के खिलाफ जीत मिल सकती है।

ज्ञात हो कि शनिवार को अन्‍ना ने रालेगण सिद्धी में ही अपने ब्‍लॉग पर लिखा कि अब वो अनशन नहीं, आंदोलन करेंगे। अब वो भ्रष्‍ट नेताओं के खिलाफ आर-पार की जंग लड़ेंगे।

अन्ना ने कहा, अब मैं अनशन नहीं करूंगा


पुणे : बुजुर्ग समाजसेवी अन्ना हजारे ने ऐलान किया है कि भविष्य में वह कोई अनशन नहीं करेंगे। उन्होंने कहा है कि आगे वह अपने मकसद की लड़ाई आंदोलनों के जरिए ही लड़ेंगे। अन्ना ने यह भी कहा कि देश के युवाओं में उनका पूरा भरोसा है और निराश होने का कोई कारण नहीं है।

पिंपरी चिंचवड़ इंडस्ट्रियल टाउनशिप में आयोजित एक गणपति समारोह में पिछली रात अन्ना ने कहा कि उन्होंने फैसला कर लिया है, अब आगे से वह कोई अनशन नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी लड़ाई समाप्त हो गई। जिन मकसदों के लिए वह अब तक लड़ते रहे हैं, उनके लिए अब भी लड़ेंगे, लेकिन आगे की सारी लड़ाई अनशन के जरिए नहीं बल्कि आंदोलनों के जरिए लड़ी जाएगी।

अन्ना ने यह भी कहा कि वह संसद में अच्छे लोगों को भेजना भी जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में रिटायर्ड आईएएस ऑफिसरों ने उनसे संपर्क किया है। वे देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लक्ष्य को लेकर चलाई जा रही उनकी मुहिम से जुड़ना चाहते हैं। अन्ना ने कहा कि देश के युवाओं में उनका भरोसा कमजोर नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि किसी को निराश होने की जरूरत नहीं है।

गौरतलब है कि अन्ना ने पिछले साल तीन बार अनशन किया। इससे पहले भी जन लोकपाल बिल लाने की मांग करते हुए और अन्य मांगों पर जोर देने के लिए वह लंबे-लंबे अनशन कर चुके हैं। अन्ना खुद को महात्मा गांधी से प्रेरित बताते रहे हैं जिनके लिए अनशन आध्यात्मिक उन्नति का जरिया था। मगर, अब अन्ना कह रहे हैं कि भविष्य में वह कोई अनशन नहीं करेंगे।

केजरीवाल के कारण लोकपाल आंदोलन बिखरा: अन्ना

anna kejriwal


 अन्ना हजारे ने अप्रत्यक्ष रूप से अरविंद केजरीवाल पर हमला बोला है। हजारे ने कहा कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन पार्टी बनाने के निर्णय से विभाजित हुआ है। पार्टी के समर्थन में आने से आंदोलन के तेवर पर असर पड़ा। अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल से मतभेद के बाद बाबा रामदेव से नजदीकी का हवाला देकर आरएसएस और सांप्रदायिक ताकतों से जोड़ने की कड़ी निंदा की।

अन्ना हजारे ने कहा कि जो पार्टी बनाने के पक्ष में थे उनसे मेरी असहमति साफ थी। इसके बावजूद मेरे निर्णय के खिलाफ पार्टी बनाने की योजना पर अमल किया गया। अन्ना ने कहा, 'कई लोग कहते हैं कि मैंने पार्टी बनाने पर सहमति दे दी थी लेकिन यह सही नहीं है।

75 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता ने अपने ताजा ब्लॉग में लिखा है कि पिछले दो सालों में यूपीए सरकार की लाख कोशिश के बावजूद आंदोलन विभाजित नहीं हुआ। वही मजबूत आंदोलन बिना सरकार की कोशिश के विभाजित हो गया। इसकी प्रमुख वजह एक ग्रुप के चुनावी राजनीति में जाने के फैसले रही। अन्ना हजारे ने कहा कि दुर्भाग्य से आंदोलन विभाजित नहीं हुआ होता तो लोकपाल बिल 2014 के आम चुनाव से पहले ही पास हो गया होता। एक ग्रुप ने चुनावी राजनीति में जाने का निर्णय लिया और दूसरा आंदोलन के साथ खड़ा है।

अन्ना हजारे ने इस बात पर दुख जताया कि उन्हें सांप्रदायिक संगठनों के साथ जोड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि अब तक जीवन में मेरा किसी भी संगठन से कोई रिश्ता नहीं रहा। अन्ना हजारे ने कहा कि मैं जीवन के अंतिम सांस तक किसी पार्टी या संगठन का हिस्सा नहीं बनूंगा। उन्होंने कहा कि आंदोलन राजनीति की वजह से विभाजित हुआ। हजारे ने कहा कि चुनाव करीब आ रहा है। कुछ पार्टी मेरा नाम चुनाव में अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि आंदोलन केवल आंदोलन रहेगा क्योंकि यह पवित्र है।

भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण के लिये गांवस्तर तक जन संघटन होना जरुरी है :अन्ना




"भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण के लिये
 गांवस्तर तक जन संघटन होना जरुरी है"



          भ्रष्टाचार संपूर्ण रुख जायेगा ऐसे कहना अतिशोक्ती होगी, लेकीन कूछ  हद तक भ्रष्टाचार को रोख सकते है, इसमे दो राह होनेका कारण नही है। मै बीस (20) सालोंसे भ्रष्टाचार के विरोध में लड़ाई लढ़ रहा हूँ। जबतक व्यवस्था परिवर्तन नहीं होगा, तबतक भ्रष्टाचार को रोकथाम नहीं लगेगा। इसलिए  देशमे व्यवस्था परिवर्तन करनेका प्रयास करना है। महाराष्ट्रमे जनशक्ति का दबाव निर्माण करने से सरकारने सुचना का अधिकार, ग्रामसभा को जादा अधिकार, दफ्तर दिरंगाई जैसे सात  महत्वपूर्ण कानून बनवाये। ऐसे कानून बननेसे व्यवस्थामे परिवर्तन आ गया है और भ्रष्टाचार को कुछ हद तक रोकथाम लग गई।

          व्यवस्था परिवर्तन करके देश का भ्रष्टाचार कुछ हदतक कम हो जाए इसलिए सरकारने जनलोकपाल कानून बनाना चाहिए इसलिए दिल्लीमे कही बार आयएसी के माध्यमसे उपोषण आन्दोलन करना पड़ा। आज़ादीके 65 सालके बाद पहली बार इस आंदोलनसे देश जाग गया। देशका युवक जाग  गया। फिरभी रामलीला मैदान और जंतर मंतर के आन्दोलनसे जन लोकपाल कानून नहीं बना। क्योंकी  सरकारकी नियत साफ नहीं थी।  भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण की सरकारकी मंशा नहीं है। लेकिन देशका भ्रष्टाचार रोखनेके लिए जनता में जो जागृती आयी, करोडो रूपया खर्च करके भी जो जागृती नहीं आनी थी। वह जागृती  16 अगस्त 2011 के आंदोलन से पुरे देशमे आयी है।

          अब ऐसा विश्वास हो रहा है  की 2014 से पहले सरकार को कानून बनवाना ही पड़ेगा। कारण 16 अगस्त 2011 के वक्त कोई भी चुनाव नहीं था। अब 2014 में लोकसभा का चुनाव होनेवाला है। इस कारन सरकारको कानून बनवानाही पड़ेगा। लेकिन दुर्दैवसे कानून बननेसे पहलेही हमारे आंदोलन के दो हिस्से बन गए। एक चुनाव के रास्तेसे जानेवाला हिस्सा और दूसरा आंदोलन के रास्तेसे जानेवाला हिस्सा। सरकारके कही लोग चाहते थे की टिम अन्नाको कैसे तोड़े? सरकारने लगातार दो साल प्रयास करनेके बावजूद भी टिम नहीं टूटी थी।

          लेकिन इस वक्त सरकार की कोशिश ऩा रहते हुए भी सिर्फ राजनीती का रास्ता अपनानेसे टिम टूट गयी। यह इस देश की जनता के लिए दुर्भाग्य की बात है। शायद टिम  टूटने के कारन सरकारके कही लोगोने ख़ुशी मनाई होगी। राजनीती के रास्तेसे जानेवाला ग्रुप बार बार ये कहते रहा था की अन्ना कहे तो हम पक्ष और पार्टी नहीं बनायेंगे। लेकिन पार्टी नहीं बनानेके मेरे निर्णय के बावजूद पार्टी बनानेका फैसला लिया गया। कभी कभी मेरा नाम लेकर यह भी कहा गया की अन्ना के कहनेसे ही हमने  पार्टी बनाने का निर्णय लिया है, यह बात ठीक नहीं है।

          जनताको विकल्प देनाही पड़ेगा, लेकिन चुनावके लिए पैसा कहाँ से आएगा? पार्टी में आनेवाले लोग चरित्र्यशील होंगे इसलिए उनके चयन का तरीका क्या होगा? आज स्वार्थ के कारन दस लोग इकठ्ठा नहीं रह सकते, पुरे देशके कार्यकर्ताओंको इकठ्ठा कैसे रखेंगे? चुनावके बाद बुद्धिका पालट होता है, यह खुर्ची का गुणधर्म बन गया है। ऐसे स्थितिमे पर्याय क्या होगा ऐसे प्रश्नोंके जबाब मिलनेसे विकल्पकी बात सोच सकते है। लेकिन जबाब ही नहीं मिला।

          4 अगस्त 2012 को जंतर मंतर पर मैंने स्पष्ट किया था की मै  कोई पक्ष पार्टी नहीं बनाऊंगा। मै बीस साल  से आंदोलन के  रास्ते पर चलते आया हूँ। और आगे भी आंदोलन के रास्तेपरही चलते रहूँगा। हमारे रास्ते  अलग अलग हो गए है, लेकिन मंजिल एकही है। और वो है भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण। एक बात अच्छी हुई की देशके जम्मू-कश्मीर से लेके कन्याकुमारी तक हजारो कार्यकर्ता इस आन्दोलन से जुड़ने के लिए आगे आये है। विशेष तौरपर कही राज्योंसे निवृत्त डायरेक्टर जनरल ओफ पुलिस के सात  सदस्य आंदोलन से जुड़ रहे है। आयएएस के नौ सदस्य, फौज के ब्रिगेडीअर, कर्नल, जनरल इस पदोंसे पचास सदस्य और अलग अलग स्वयंसेवी संस्थांके अच्छे लोग आगे आये है। और   आंदोलन के साथ जुड़ रहे है। 

भ्रष्टाचार मुक्त भारत के आन्दोलन के लिए यह एक आशादायी  चित्र है।  आज हमारे पास कोई पैसा नहीं है। कारन जीवनमे  कही  बैंक बलेंस नहीं रखा। दिल्लीमें जनता के समन्वय के लिए आंदोलन का दफ्तर होना जरुरी है। लेकिन पैसे के कारन दफ्तर नहीं बनवा पाए। जंतर मंतर और रामलीला मैदान में जनताने जो आर्थिक मदद की थी उनमेसे मैंने पाँच रुपया भी अपने लिए नहीं रखा। सभी पैसा इंडिया अगेंस्ट करप्शन के पास रखा। कारन वह आन्दोलन के लियेही खर्च हो। लेकिन मुजे विश्वास हो रहा है की जनताने 5 रुपया, 10 रुपया दिया तो भी पैसोकी कमी नहीं पड़ेगी। 20 साल से आंदोलन  में मैंने यही रास्ता अपनाया है। कोई उद्योगपती या विदेशका पैसा नहीं लिया गया। और आगेभी मै नहीं लेना चाहता। जनता ने दिया हुआ 5 रुपया, 10 रुपया मुजे महत्वपूर्ण लगता है। जल्द ही आंदोलन  का दफ्तर दिल्लीमे शुरू करनेका मनोदय है। ताकि आंदोलन  से देशके विभिन्न भागोंसे जुडनेवाले कार्यकर्ताओंका समन्वय के लिए आसान  रहेगा। 

आगे आनेवाले कुछ दिनोमे कार्यकर्ताओंकी मद्तसे देश के हर राज्योमे और राज्योंके हर गाँव तक यह आंदोलन पहोंचाने का प्रयास करना है। टेक्नोलोजी बहुत विकसित हुई है। इस कारण ये असंभव नहीं है। जन संघटन के माध्यमसे सामाजिक दबाव बढ़ गया तो ना कहनेवाली सरकारको हां कहना पड़ेगा। अथवा सत्तासे जाना पड़ेगा। गाँव से दिल्ली तक जनशक्ति का संघटन बन गया तो आज संसद में दागी लोग जाने के कारन जन लोकपाल, राइट टू  रिजेक्ट, ग्रामसभा को जादा अधिकार, दफ्तर दिरंगाई, जनता की सनद ऐसे कानून नहीं बन रहे है, उस संसद में जनताने अपना चरित्र्यशील उम्मीदवार चुनकर भेजना है। उम्मीदवार सही है या गलत है इस बात को आंदोलन के लोग देखेंगे।

          देश के 6 लाख गाँव तक संघटन बन गया तो ये असंभव नहीं है। संसद लोकशाही का पवित्र मंदिर है। ऐसे पवित्र मंदिरमे जनताने  पवित्र लोगोंको भेजना है। ये लोकशिक्षा और लोक जागृती  काम आन्दोलन करेगा, बाकी  सबकुछ जनताने  करना है। जनतंत्र में जनता का तंत्र होना चाहिए। देश में जन संघटन बन गया तो भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए कही कानून बनवाने के साथ साथ किसानोंके प्रश्न है, मजदुरोंके प्रश्न है, शिक्षा क्षेत्र में जो अनागोंदी हो रही है उसमे सुधार  लाना है। ऐसे परिवर्तन का काम  आंदोलन  के माध्यमसे हो सकते है। परिवर्तन की प्रक्रिया जल्दबाजी में नहीं होगी। आंदोलन के माध्यमसे प्रदीर्घ निरंतर चलनेवाली ये प्रक्रिया है। संविधान और कानून का आधार लेकर हमें बहुत लम्बी लड़ाई लड़नी होगी। लेकिन जन लोकपाल कानून 2014 तक बन सकता है, ऐसा हमें विश्वास हो गया है। अक्तूबर-नवम्बर में देशकी यात्रा शुरू करनी है। बिहार में जेपीने जहासे आंदोलन शुरू किया था वही  गाँधी मैदानसे इस यात्राका प्रारंभ करने का मनोदय है। लोकशिक्षा और लोक जगृतिके लिए देश के हर राज्योमे यह यात्रा चलेगी। आंदोलन के दो हिस्से बन गए यह देश का दुर्भाग्य है। अभी भी कही  लोग इस आंदोलन  को तोड़फोड़ करनेकी कोशिश कर रहे है।

           मुझे  कही पक्ष, पार्टी, सांप्रदायिक संघटन के साथ जोडनेका प्रयास करते है। मेरे जीवन में मै किसी पक्ष-पार्टी या संघटन के साथ जुड़ने का प्रयास किया नही। और शरीर में प्राण है तब तक किसी पक्ष, पार्टी या सांप्रदायिक संघटन के साथ नहीं जाऊंगा। मैंने व्रत लिया है की जीवनमे सिर्फ देश और जनता की सेवा करनी है। और वह सेवा निष्काम भावसे करनी है। ऐसी सेवाही मेरी इश्वर की पूजा है। जनता से मेरी नम्र प्रार्थना है की राजनीती के कारन आंदोलन के दो हिस्से बन गए। अब जो आंदोलन बचा है उस आंदोलन को तोड़ने  के लिए उलट पुलट बाते आती है। तो जनताने ऐसी बातोंपर विश्वास नहीं करना है। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते जायेगा, वैसेही कही पक्ष-पार्टी वोट मिलने के लिए मेरे नाम का दुरूपयोग करने की कोशिश करेंगे। मुझे किसी पक्ष-पार्टी के साथ जोड़ेंगे। आंदोलन  का नाम लेकर दुरूपयोग होगा। लेकिन उसपर किसीने विश्वास नहीं करना है। आंदोलन सिर्फ आंदोलन  ही रहेगा। क्यों की आंदोलन  एक पवित्र व्यवस्था है। पावित्र्य संभालते हुए आंदोलन चलाना है। देश की जनता गाँव से लेकर दिल्ली तक जितनी संघटित होगी उतनी ही भ्रष्टाचार को रोकनेमे सफलता मिलेगी।

आपका  


कि. बा. तथा अन्ना हजारे.


                                       



राळेगणसिद्धी
दि. 28 सप्टेंबर 2012

गडकरी साफ करें, शरद पवार से क्या डील है : अरविंद केजरीवाल


 सिंचाई घोटाला धीमे-धीमे महाराष्ट्र सरकार पर संकट के बादल की तरह छा गया है.

महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी तो अभी तक इससे परेशान थीं ही, लेकिन अब ये घोटाला बीजेपी के भी जी का जंजाल बन गया है. 

इंडिया अगेंस्ट करप्शन की अंजलि दमानिया ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी पर घोटाला दबाने में भूमिका हेने का आरोप लगाया. अब अरविंद केजरीवाल ने भी खुल कर बोल दिया है गडकरी पर हमला. 

अरविंद ने कहा है कि," अंजलि दमानिया ने ये आरोप लगाया है कि वो नितिन गडकरी जी से मिली थीं और नितिन गडकरी जी ने सिंचाई घोटाले को ये कह कर मना कर दिया कि उनके शरद पवार जी के साथ अच्छे बिजनेस सम्बन्ध हैं और वो एक दूसरे के लिए काम करते रहते हैं. ये देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है. क्योंकि आज विपक्ष में कोई भी नहीं है. देश के सबसे बढ़े विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष अगर सत्ता पक्ष लोगों से मिलकर बिज़नेस करेंगे तो फिर पक्ष और विपक्ष में कोई अंतर नहीं रह जाता. और इस देश के लोग किसके पास जाएँ तो हम नितिन गडकरी जी से सीधे सीधे चार सवाल पूछना चाहते हैं."

अरविंद के चार सवाल: 

1. क्या आपने (नितिन गडकरी) सिंचाई घोटाले के मामले में आज तक एनसीपी, शरद पवार, अजित पवार की भूमिका को लेकर कभी भी प्रश्न उठाये? क्या आपने सिंचाई घोटाले का विरोध किया? अगर नहीं तो क्यों?

2. शरद पवार या उनसे सम्बंधित कंपनियों के साथ आपके क्या-क्या बिज़नस इंट्रस्ट है? ये बताया जाए, ये देश जानना चाहता है?

3. नितिन गडकरी जी ने कहा है कि चार काम शरद पवार जी उनके लिए करते हैं और चार काम वो शरद पवार जी के लिए करते हैं. देश ये जानना चाहता है कि वो कौन कौन से काम हैं जो शरद पवार जी ने नितिन गडकरी के लिए किए और नितिन गडकरी ने शरद पवार जी के लिए किए?

4. नितिन गडकरी जी के बिज़नस को लेकर समय समय पर सवाल उठते रहे हैं. तो नितिन गडकरी अपने सारे डारेक्ट और इनडारेक्ट बिज़नेस इन्ट्रस्ट का खुलासा देश के सामने करें.

मनमोहन की एक थाली की कीमत 7721 रुपए ???


नई दिल्ली। एक तरफ तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह देश की खस्ता आर्थिक हालत का ढोल पीट कर कहते हैं कि पैसे पेड़ पर नहीं लगते तो दूसरी तरफ उन्हीं की अध्यक्षता वाला भारत का योजना आयोग कहता है कि पेट भरने के लिए शहर के गरीबों के लिए 32 रूपए और ग्रामीण गरीबों के लिए 26 रूपए पर्याप्त हैं।

लेकिन ग़ौर करने वाली बात ये है कि खुद सरकार फिजूलखर्ची की सारी हदें पार कर रही है। हालही में यूपीए सरकार के तीन साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने आवास पर डिनर दिया था। 22 मई को दिए डिनर में एक थाली की कीमत 7,721 रूपए थी। जहां देश के नागरिकों को भर पेट भोजन की कमीं है वहीं हमारे राजनेता महंगी थालियों से अपनी पेट पूजा करते देखे जा सकते हैं।
                      
आपको बता दें कि आरटीआई कार्यकर्ता रमेश वर्मा ने प्रधानमंत्री के डिनर पर खर्च हुए पैसे की जानकारी मांगी थी। सरकार ने बताया कि डिनर पर कुल 11 लाख 34 हजार 296 रूपए खर्च हुए। सरकार ने टैंट की व्यवस्था पर 14 लाख 42 हजार 678 रूपए खर्च किए। प्लोर डेकोरेशन पर कुल 26 हजार 444 रूपए खर्च किए। इस तरह डिनर पार्टी पर कुल खर्च हुए 28 लाख 95 हजार 503 रूपए। डिनर पार्टी में कुल 603 लोगों को आमंत्रित किया गया था। हालांकि डिनर पार्टी में 307 लोग ही शामिल हो पाए। डिनर पार्टी की व्यवस्था का चार्ज प्रधानमंत्री ने दिया जबकि डिनर के पैसे सीपीडब्ल्यूडी और विदेश मंत्रालय ने दिए।

सरकार के द्वारा फिजूलखर्ची के उदाहरण...

1.हालही में देश के विकास की योजनाएं बनाने वाले योजना आयोग ने नई दिल्‍ली स्थित अपने मुख्‍यालय योजना भवन में इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट तर्ज पर टॉयलेट बनाने के लिए इनकी मरम्मत पर 35 लाख रुपये खर्च कर दिए। इन टॉयलेट का इस्तेमाल करने के लिए 60 अफसरों को स्मार्ट कार्ड जारी किए गए हैं। जनता के पैसे को पानी की तरह बहाए जाने से जुड़े इस खुलासे पर काफी बवाल मचा। लेकिन इसके बावजूद आयोग के उपाध्‍यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने इस खर्च को 'जायज' बताते हुए इसे मीडिया का दुष्‍प्रचार करार दिया।

2. बाढ़ की मार झेल रहे असम के कई जिलों में बाढ़ से लोगों का बुरा-हाल है लेकिन सूबे के सीएम तरुण गोगोई जापान की यात्रा पर चले गए हैं। गोगोई टोक्‍यो में गुड्स एंड सर्विस टैक्‍स से जुड़े मसलों पर स्‍टडी के लिए राज्‍यों के वित्‍त मंत्रियों की एम्‍पॉवर्ड कमेटी के सदस्‍य के तौर पर विदेश गए हैं। जबकि असम के 27 में से 15 जिले बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हैं। अब तक कम से कम 18 लोगों की मौत हो गई है जबकि 17 लाख लोग प्रभावित हैं।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के 105वे जन्मदिवस पर देशवासियों को बधई




देश पर अपनी जान न्यौछावर कर देने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अपनी मां की ममता से ज्यादा तवज्जो भारत मां के प्रति अपने प्रेम को दी थी। 

कहा जाता है कि भगत सिंह को फांसी की सजा की आशंका के चलते उनकी मां विद्यावती ने उनके जीवन की रक्षा के लिए एक गुरुद्वारे में अखंड पाठ कराया था। इस पर पाठ करने वाले ग्रंथी ने प्रार्थना करते हुए कहा, ‘गुरु साहब... मां चाहती है कि उसके बेटे की जिन्दगी बच जाए, लेकिन बेटा देश के लिए कुर्बान हो जाना चाहता है। मैंने दोनों पक्ष आपके सामने रख दिए हैं जो ठीक लगे, मान लेना।’ 

शहीद-ए-आजम के पौत्र (भतीजे बाबर सिंह संधु के पुत्र) यादविंदर सिंह ने परिवार के बड़े सदस्यों के संस्मरणों के आधार पर बताया कि विद्यावती जब भगत सिंह के जीवन की रक्षा के लिए अरदास करने गुरुद्वारे गईं तो भगत सिंह ने उनसे कहा था कि वह देश पर बलिदान हो जाने की अपने बेटे की ख्वाहिश का सम्मान करें।

उन्होंने कहा कि जब विद्यावती भगत सिंह से मिलने जेल पहुंचीं, तो शहीद-ए-आजम ने उनसे पूछा कि ग्रंथी ने क्या कहा? इस पर मां ने सारी बात बताई और भगत सिंह ने इसके जवाब में कहा, ‘मां आपके गुरु साहिबान भी यही चाहते हैं कि मैं देश पर कुर्बान हो जाऊं क्योंकि इससे बड़ा कोई और पुण्य नहीं है। देश के लिए मर जाना आपकी ममता से कहीं बड़ा है।


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यादविंदर ने बताया कि भगत सिंह चाहते थे कि जब उन्हें फांसी हो तो उनकी पार्थिव देह उनका छोटा भाई कुलबीर घर ले जाए और उनकी मां उस समय जेल में हरगिज नहीं आएं। हालांकि, भगत सिंह की यह चाहत पूरी नहीं हो सकी, क्योंकि अंग्रेजों ने उन्हें तय वक्त से एक दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया और टुकड़े-टुकड़े कर उनके शव को सतलुज नदी के किनारे जला दिया। 

उनके अनुसार भगत सिंह ने अपनी मां से कहा था, ‘मां मेरा शव लेने आप नहीं आना और कुलबीर को भेज देना, क्योंकि यदि आप आएंगी तो आप रो पड़ेंगी और मैं नहीं चाहता कि लोग यह कहें कि भगत सिंह की मां रो रही है।’

पंजाब के लायलपुर जिले (वर्तमान में पाकिस्तान का फैसलाबाद) के बांगा गांव में 27 सितंबर 1907 को जन्मे शहीद-ए-आजम भगत सिंह जेल में मिलने के लिए आने वाली अपनी मां से अक्सर कहा करते थे कि वह रोएं नहीं, क्योंकि इससे देश के लिए उनके बेटे द्वारा किए जा रहे बलिदान का महत्व कम होगा।

परिवार के अनुसार, शहीद ए आजम का नाम ‘भागां वाला’ (किस्मत वाला) होने के कारण भगत सिंह पड़ा। उन्हें यह नाम उनकी दादी जयकौर ने दिया था, क्योंकि जिस दिन उनका जन्म हुआ उसी दिन उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह जेल से छूट कर आए थे।

करतार सिंह सराबा को अपना आदर्श मानने वाले भगत सिंह की जिन्दगी में 13 और 23 तारीख का बहुत बड़ा महत्व रहा। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार ने उन्हें क्रांतिकारी बनाने का काम किया।

उनके परिवार के सदस्यों के मुताबिक भगत सिंह द्वारा लिखे गए ज्यादातर पत्रों पर 13 या 23 तारीख अंकित है। 23 मार्च 1931 को 23 साल की उम्र में वह देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए।

Arvind Kejriwal on Anajali Damani's exposure of Maharashtra Irrigation Scam


Arvind Kejriwal on Anajali Damani's exposure of Maharashtra Irrigation Scam and BJP President Nitin Gadkari's admission of close ties with Pawar and NCP.

भारत की टॉप चंदा वसूलन पार्टियां ...



भारत में करोड़ों लोग अभी भी 20 रुपये से कम में प्रतिदिन गुजारा करते है, लाखों लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल पाता, लेकिन देश की राजनीतिक पार्टियां चंदे के रूप में हजारों करोड़ रुपये कमा रही हैं.
ये खुलासा राजनीतिक दलों की आयकर रिपोर्ट और उनके द्वारा चुनाव आयोग में चंदा देने वालों के बारे में दी गई जानकारी के अध्ययन के बाद हुआ है. भारत की राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर 2004 के बाद से 4662 करोड़ रुपये चंदा वसूला है. ये रकम 2011-12 के केन्द्रीय बजट में माघ्यमिक शिक्षा के लिए आवंटित 3124 करोड़ रुपये से कहीं ज्यादा है.

चंदा वसूलने की दौड़ में सत्ताधारी कांग्रेस सबसे आगे है. भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कांग्रेस ने साल 2004 के बाद से अब तक 2008 करोड़ रुपये चंदा वसूला है. संसद में विपक्ष की भूमिका निभा रही बीजेपी दूसरे नंबर है. बीजेपी ने इस दौरान 994 करोड़ रुपये चंदे के रूप में इकट्ठा किया है.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और इलेक्शन वॉच नाम के दो गैर सरकारी संगठनों ने एक साझा प्रेस कांफ्रेस कर इस बारे में जानकारी दी है. इन संगठनों ने देश की 23 राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे के बारे में जानकारी इकट्ठा की और फिर उस पर रिपोर्ट तैयार की. इस रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस की ज्यादातर आमदनी कूपन बेचने से हुई है. खासतौर से जबसे कांग्रेस सत्ता में आई है तब से तो कूपन पर मिलने वाला चंदा और बढ़ गया है. इस दौरान उसे दान के रूप में महज 14.42 प्रतिशत ही मिले हैं. कांग्रेस को दान देने वालों में टाटा और जिंदल से लेकर एअरटेल का भारती ट्रस्ट और अदानी ग्रुप शामिल हैं.

हालांकि बीजेपी की कहानी इसके उलट है. बीजेपी ने ज्यादातर चंदा कॉर्पोरेट घरों से वसूला है. इसकी कमाई का 81.47 फीसदी हिस्सा चंदे से आया है. बीजेपी को चंदा देने वालों में विवादित कंपनी वेदांता भी शामिल है.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक सदस्य प्रो. जगदी छोकर कहते हैं, "ये राजनीतिक दलों का ब्लैक बॉक्स है. इस देश में भ्रष्टाचार का मुख्य स्रोत राजनीतिक दान है. राजनीतिक दलों को मिलने वाले पैसों को नियंत्रित करके भ्रष्टाचार को समाप्त तो नहीं किया जा सकता लेकिन उसे काफी हद तक कम किया जा सकता है."

एनजीओ की रिपोर्ट में सबसे दिलचस्प बात ये उभर कर सामने आई है कि कुछ संगठन ऐसे हैं जिन्होंने कांग्रेस और बीजेपी दोनों को चंदा दिया है. आदित्य बिड़ला ग्रुप से जुड़े हुए जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट ने कांग्रेस को 36.4 करोड़ का चंदा दिया तो बीजेपी को इसी ट्रस्ट ने 26 करोड़ का चंदा दिया.

चंदे की दौड़ में राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियां सबसे आगे हैं तो क्षेत्रीय पार्टियां भी पीछे नहीं. 2004 से 2011 के बीच में दलितों की बहुजन समाज पार्टी ने 484 करोड़ का चंदा इकट्ठा किया. इसके ठीक बाद नंबर आता है गरीबों और मजदूरों की राजनीति करने वाली सीपीएम का. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 2004 से 2011 के बीच 417 करोड़ रुपये बतौर चंदा इकट्ठा किया. इस पायदान पर समाजवादी पार्टी 278 करोड़ के साथ सीपीएम से पीछे है. चंदा इकट्ठा करने के मामले में सबसे कमजोर सीपीआई है. सीपीआई इन सालों में 6.7 करोड़ रुपये का ही चंदा इकट्ठा कर सकी.

दूसरी राजनीतिक पार्टियों जैसे तृणमूल ने इस दौरान 9 करोड़, शिवसेना ने 32 करोड़, रामविलास पासवान की लोक जन शक्ति पार्टी ने 4 करोड़, लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद ने 10 करोड़ और फॉरवर्ड ब्लॉक ने 98 लाख रुपये का चंदा हासिल किया है. गैर सरकारी संगठनों की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि कुछ ऐसे क्षेत्रीय दल भी हैं जिन्होने कभी चुनाव आयोग को अपनी आय के स्रोतों के बारे में जानकारी ही नहीं दी है.

सिंचाई घोटाले पर बीजेपी से टकराई टीम अन्ना

महाराष्ट्र के सिंचाई घोटाले से एनसीपी और कांग्रेस के रिश्ते दांव पर लगे हैं लेकिन इस घोटाले के छींटों से बीजेपी का दामन भी अछूता नहीं रहा। जब सूरजकुंड में पार्टी यूपीए सरकार पर हमले के मंसूबे बांध रही है। उसी वक्त आरटीआईआई एक्टिविस्ट अंजली दमानिया ने ये खुलासा कर चौंका दिया कि सिंचाई घोटाले का सच सामने आने के बाद वो बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से भी मिली थीं।

अंजली दमानिया का दावा है कि सिंचाई घोटाले का खुलासा उनकी जद्दोजहद का नतीजा है और उनका कहना है कि अजित पवार का नाम सामने आने के बाद उन्होंने गडकरी से मदद मांगी। उन्होंने इस मामले को जनहित में आगे बढ़ाने की अपील की लेकिन गडकरी ने न सिर्फ इनकार कर दिया बल्कि अपनी पार्टी के नेता किरीट सोमैया को भी रोक दिया।

अंजली के मुताबिक गडकरी ने कहा कि मेरे पवार परिवार के साथ करीबी संबध हैं। किरीट सनकी है वो नहीं जानता कि वो क्या कर रहा है। उन्होंने सोमैया को पीआईएल दाखिल करने से ये कह कर रोक दिया कि यह एक्टिविस्ट का काम है। बतौर पार्टी मेंबर हमें ये मामला सदन में या फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस में उठाना चाहिए। गडकरी ने ये भी संकेत दिया कि राजनीति में एनसीपी के साथ गठबंधन की भी नौबत आ सकती है। गडकरी के जवाब से मैं इतनी निराश हुई कि मैनें उन्हें एक लंबा टेक्स्ट मैसेज भी उनके व्यक्तिगत नंबर पर भेजा।


अजंली ने ये भी खुलासा किया इस घोटाले को दबाने के लिए गडकरी पर भय्यू जी महाराज ने भी दबाव बनाया था। ये वही भय्यू जी महाराज हैं जो अन्ना के आंदोलन के दौरान चर्चा में आए थे। अगस्त 2011 में जब अन्ना रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे थे तो भय्यू जी महाराज को बाकायदा महाराष्ट्र से दिल्ली लाया गया था। चर्चा थी कि सरकार अनशन खत्म कराने में बाकायदा उनकी मदद ले रही है।

अंजली का आरोप है कि उनकी मुलाकात से ठीक एक दिन पहले भय्यू जी महाराज ने गडकरी से मुलाकात की। भय्यू जी ने कहा कि इस मामले को बतौर विपक्ष बीजेपी तूल न दे। हालांकि चौंकाने वाली बात ये है कि अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अंजली सीधे सीधे गडकरी का नाम लेने से बचती रहीं।

लेकिन अंजली के इस इकरार भरे इनकार ने संदेह बढ़ा दिया। उधर, जब पत्रकारों ने सूरजकुंड में गडकरी से ये सवाल पूछा तो वो इस बात से ही इनकार कर गए कि कभी अंजली से उनकी कोई मुलाकात हुई है। गडकरी के इस इनकार के बाद अंजली खुल कर सामने आ गईं।

अंजली के मुताबिक गडकरी से उनकी मुलाकात 14 अगस्त को दस बजे वर्ली स्थित गडकरी के घर पर हुई। इस सिलसिले में अब तक उनकी तीन मुलाकातें हुईं जिनमें दिल्ली में हुई एक मुलाकात भी शामिल है लेकिन अंजली के इस दावे का बीजेपी के प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने खंडन किया है।

जाहिर है अंजली दमानिया का ये खुलासा बीजेपी के गुब्बारे की हवा निकालने वाला है। एक तरफ पार्टी टेलीकॉम घोटाले से लेकर कोयला आवंटन तक पर हंगामा खड़ा किए हुए है। सूरजकुंड की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में यूपीए सरकार को हिलाने के मंसूबे बांधे जा रहे हैं। ठीक उसी वक्त पार्टी अध्यक्ष को लेकर ये खुलासा बीजेपी की मुश्किल बढ़ाने वाला है।

राजनीति का हिस्सा नहीं बनूंगा, आंदोलन आगे बढ़ाने पर है जोर : अन्ना


Anna likened party politics to mudslinging and questioned how those who wished to form a party would guarantee a clean set of candidates. "Even the JP movement did not foresee that its benefactors would include Lalu Prasad," he added.


अरविंद केजरीवाल का छात्रों-युवाओं से आह्वान, राजनीतिक आंदोलन में दें सक्रिय योगदान


इंडिया अगेंस्ट करप्शन के वरिष्ठ सदस्यों अरविंद केजरीवाल और गोपाल राय के साथ दिल्ली के युवाओं व छात्रों की एक मीटिंग मंगलवार को आयोजित की गई. दरियागंज में हुई इस मीटिंग में दिल्ली के अलग-अलग कॉलेजों के 200 से अधिक छात्रों व युवाओं ने आंदोलन और राजनीतिक विकल्प से जुड़े बहुत से पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की.

आंदोलन और राजनीतिक विकल्प के बीच आपसी समन्वय के प्रश्न पर अरविंद केजरीवाल ने कहा, “ हर आंदोलन के सबसे बड़े स्रोत युवा होते हैं. हम देश में एक राजनीतिक आंदोलन छेड़ने की दिशा में बढ़ रहे हैं. पहले हम भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सिर्फ सड़क पर लड़ रहे थे अब हम उनसे सड़क पर भी लड़ेंगे और संसद में भी चुनौती देंगे.”        
  
मीटिंग में आए युवा जानना यह चाहते थे कि पार्टी के पदाधिकारियों औऱ प्रत्याशियों के अच्छे आचरण व ईमानदारी को कैसे सुनिश्चित किया जाएगा? इसके जवाब में अरविंद केजरीवाल ने बताया, “पार्टी में पारदर्शिता के लिए एक आंतरिक लोकपाल बनाया जाएगा जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश करेंगे. पार्टी के किसी पदाधिकारी या चुनाव प्रत्याशी के खिलाफ लोकपाल के पास शिकायत का प्रावधान होगा. अगर किसी कार्यकर्ता या पदाधिकारी के खिलाफ कोई शिकायत आती है और वह प्रथम दृष्टया दोषी पाया जाता है तो उसे पार्टी से तत्काल निलंबित कर दिया जाएगा.” 

पार्टी के राष्ट्रीय स्तर पर स्वरूप, 2013 के दिल्ली विधानसभा के चुनाव की रणनीति और पार्टी चलाने के लिए जरूरी फंड पर भी चर्चा हुई. इनके उत्तर में अरविंद केजरीवाल ने कहा, “ पार्टी राष्ट्रीय होगी और 2014 में पूरे देश में लोकसभा का चुनाव लड़ा जाएगा. लेकिन उससे पहले हम 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. पार्टी के फंड का मूल स्त्रोत लोगों द्वारा दिए गए छोटे-छोटे चंदे होंगे. हम पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसा के सिद्धांतों में यकीन नहीं रखते इसलिए जनता अपने बीच से प्रत्य़ाशी चुनेगी और उसे चुनाव जीतने में तन-मन-धन से मदद करेगी. ”

पार्टी में छात्रों और युवाओं के प्रतिनिधित्व पर भी चर्चा हुई. मंगलवार की बैठक में यह निर्णय हुआ कि दिल्ली के सभी कॉलेजों में जल्द ही छात्रों के समूहों का गठन किया जाएगा. यह समूह युवाओं के बीच राजनीतिक क्रांति के विषय पर चर्चा के कार्यक्रम आयोजित करेगा. 
आईएसी के शीर्ष नेतृत्व ने छात्रों को बताया कि पार्टी में अलग से कोई छात्र संगठन नहीं बनाया जाएगा. प्रस्तावित पार्टी में शीर्ष नेतृत्व स्तर पर 30 से 40 फीसदी युवा होंगे. यहां पार्टी हाईकमान जैसी कोई बात नहीं होगी. शीर्ष नेतृत्व ने यह भी साफ कर दिया कि पार्टी अगर सत्ता में आती है तो उसका पहला निर्णय जन-लोकपाल बिल पास करना होगा. 

छात्रों और युवाओं को नेतृत्व के लिए खुद को विशेष रूप से तैयार करने का आह्वान करते हुए गोपाल राय ने कहा, “राजनीतिक क्रांति के लिए जेपी ने जो आंदोलन छेड़ा था उसे छात्रों ने शुरू किया औऱ उन्होंने ही उसे अंजाम तक पहुंचाया. भगत सिंह युवाओं के प्रेरणास्रोत रहे हैं और खुद भगत सिंह ने कहा था कि छात्रों में नेतृत्व क्षमता का विकास होना चाहिए.”  

आंदोलन-राजनीति से नहीं हारेगा भ्रष्टाचार : अन्ना-केजरीवाल


नई दिल्ली। अन्ना से अलग होने के बाद पहली बार अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया है कि वो अपनी राजनीतिक पार्टी बना रहे हैं। अब पार्टी का नाम क्या होगा और उसकी रूप- रेखा क्या होगी इन सारी बातों का ऐलान वो 2 अक्टूबर यानी गांधी जी के जन्मदिन पर कर सकते हैं। केजरीवाल ने साफ किया कि वो खुशी से राजनीति में नहीं उतर रहे हैं। वक्त और हालात की मजबूरी ने उन्हें यह फैसला लेने पर मजबूर किया है।

केजरीवाल के इस बयान पर चौतरफा प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गयी हैं। किसी की नजर में केजरीवाल का फैसला सही है तो किसी की नजर में अन्ना का निर्णय। फेसबुक, टि्वटर, टीवी चैनल और अखबार, हर जगह बस लोगों की प्रतिक्रियाओं से भरी पड़ी हैं। किसी को अहिंसावादी अन्ना सही लगते हैं तो किसी को केजरीवाल का आक्रामक रवैया भा रहा है।

इन्ही सब के बीच में राष्ट्रीय कवि और व्यंग्यकार अशोक चक्रधर ने अपनी कविता में लिखा है कि ना तो आंदोलन से और ना ही राजनीति से देश का भ्रष्टाचार मिटने वाला है। इसके लिए आत्मन्ना की जरूरत है। अगर जब तक आत्मा अनशन नहीं करेगी तब तक देश से भ्रष्टाचार लुप्त नहीं होगा।
अशोक चक्रधर ने अपनी कविताकोश में कुछ इस तरह से अपनी बात कही है। 
प्रश्न 1. अनाड़ी जी, अन्ना ने भ्रष्टाचार की समाप्ति का बिगुल बजाया है। क्या आपको लगता है कि ऐसे आंदोलनों से भ्रष्टाचार समाप्त हो सकेगा?

भ्रष्टाचार इस व्यवस्था में
रूप बदल-बदल कर
और अधिक व्याप्त होगा,
वह अन्ना से नहीं
आत्मन्ना से समाप्त होगा।
तब, जब आत्मा अनशन नहीं करेगी
अन्न खाएगी,
स्वयं को स्वस्थ बनाएगी,
मीडिया के आगे
स्वांग नहीं रचाएगी।
ये सब तमाशा है
पर मुझे अपने युवाओं से आशा है।
ये अनाड़ी उन्हीं की ओर तकता है,
युवा क्या नहीं कर सकता है!

कहते हैं जहां ना पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि..अशोक चक्रधर ने भी अपनी लेखनी से लोगों को कुछ समझाने की कोशिश की है देखते हैं चक्रधर जी की इस बात का भावार्थ कितने लोगों को समझ में आता है और कितने लोगों के लिए यह बस एक कविता ही बन कर रह जाती है।

भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपने को मत मरने दो : अन्ना


सपने मरते नहीं। सपने मरा नहीं करते। उम्मीदों की सांस पर सवार सपने अपने लिये जीवन तलाश लेते हैं। पिछले दिनों उम्मीदों ने अन्ना की आँखो में सपने खोज लिये थे। लोगों ने उनमें सपने देखना शुरू कर दिया था। सपना भ्रष्टाचार से छुटकारा पाने का। सपना नये भारत का। पर अब लगता है कि उम्मीदों ने दम तोड़ना शुरू कर दिया है। सपने मुरझाने लगे हैं। सपनों को नींद आने लगी है। अन्ना ने अपने शिष्य अरविंद केजरीवाल से पूरी तरह से किनारा करने का फैसला कर लिया है। अरविंद को अपना नाम औऱ चेहरे के इस्तेमाल की भी इजाजत नहीं देंगे। न ही वो अरविंद को अपने मंच पर आने देंगे। अरविंद का अपराध इतना है कि उसने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने का तरीका बदल दिया है। अब आंदोलन की जगह राजनीतिक दल बनाएंगे। चुनाव में शिरकत करेंगे। अन्ना को ये बात पसंद नहीं आई।

अन्ना ये कहते कि वो चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे, वो राजनीतिक दल नहीं बनायेंगे, वो राजनीतिक दल के लिये प्रचार नहीं करेंगे तो बात समझ में आती लेकिन वो गुस्से में ये कह गये कि उनके और अरविंद के रास्ते अलग हो गये हैं। बात यहां पर भी रुक सकती थी। लेकिन कांस्टीट्यूशन क्लब जहां राजनीतिक दल बनाने पर आखिरी फैसला होना था, वो वहां से निकले और सीधे मिलने गये बाबा रामदेव से। आरएसएस के निहायत करीबी व्यापारी ने ये मुलाकात करायी। अंधेरे में ये मुलाकात हुई। खबर ये भी है कि जब से अरविंद और उनकी टीम ने राजनीतिक दल बनाने की मंशा जाहिर की है तब से संघ परिवार में खलबली मची हुयी है। बीजेपी परेशान है। उसे लगता है कि भ्रष्टाचार विरोधी जो माहौल बना है उसका फायदा उसे होगा लेकिन अगर अन्ना और उनकी टीम चुनाव में उतरी तो शहरी इलाकों में वो बीजेपी का वोट काटेगी और नुकसान बीजेपी को होगा।

बाबा रामदेव भी राजनीतिक दल बनाने का बहाना ढूंढ रहे थे। इसलिये अरविंद ने जब 26 जुलाई को अनशन का ऐलान किया तो बाबा किसी भी हालत में इसे टालने पर तुल गये। उन्होंने गुपचुप तरीके से अन्ना से मुलाकात कर उन्हें समझाने की कोशिश की वो इस अनशन को या तो टाल दें या फिर वो खुद अनशन पर न बैठें। और बाद में 9 अगस्त को रामलीला मैदान में उनके साथ अन्ना भी अनशन करें। किरण बेदी ने इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। किरण की शह पर अन्ना और बाबा के बीच एक समझ बनी। किरण अरविंद की राय से सहमत नहीं थीं कि कांग्रेस समेत बीजेपी का भी विरोध किया जाये। वो कांग्रेस विरोध कर बीजेपी की मदद करना चाहती हैं। अरविंद इस बात के लिये तैयार नहीं थे। अन्ना और अरविंद के बीच 'दूरी' और अन्ना और बाबा रामदेव के बीच 'पुल' का काम किरण ने किया। और आखिर में अन्ना ने उस अरविंद का साथ छोड़ दिया जिसे कभी वो भारत का आदर्श युवा कहा करते थे और उन रामदेव से रात के अंधेरे में मिलने लगे जिन्हें उन्होंने नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद त्याग दिया था। और रात के अंधेरे में जब वो गोल्फ लिंक मे पकड़े गये तो उनका चेहरा फक था जैसे चोरी पकड़ी गयी और अगले दिन वो उस मीडिया पर चीख पड़े जिसका वो अबतक गुणगान करते आये थे।

सवाल इस बात का नहीं है कि अन्ना ने ऐसा क्यों किया? सवाल इस बात का है कि उन सपनों का क्या होगा जो लोगों ने अन्ना की ऑखों में देखा था? क्या ये सपने रामदेव के साथ पूरे होंगे? क्या इन सपनों को वो आरएसएस की मदद से पूरा करेंगे? किसी भी आंदोलन की कामयाबी उसकी 'नैसर्गिकता' पर निर्भर करती है। लोगों के 'यकीन' पर निर्भर करती है। देश में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन इसलिए परवान चढ़ा कि लोगों को अन्ना और उनकी टीम पर यकीन था। ये यकीन था कि अन्ना और उनकी टीम राजनीतिक दलों और नेताओं की तरह उनके यकीन का सौदा नहीं करेगी। ये ईमानदार लोग हैं, सौदेबाज नहीं। ये देश 'भक्तिवादी' देश है। लोग आंख बंदकर यकीन करते हैं। लेकिन ये यकीन हर आदमी पर नहीं होता है। वो ईश्वर को मानता है और उसके सामने अपने को पूरी तरह से समर्पित कर देता है। धर्म से बाहर जब वो निकलता है तो जिस भी शख्स में उसे ईश्वर के दर्शन होते हैं या जो ईश्वर जैसा लगता है उस पर भी वो आंख बंद कर यकीन कर लेता है और अपना सबकुछ उसको समर्पित कर देता है। आजादी के पहले उसने गांधी जी पर यकीन किया। आजादी के बाद काफी हद तक पंडित नेहरू और जय प्रकाश नारायण यानी जेपी में भी उसे वही ईश्वर दिखाई दिये। गांधी जी के नेतृत्व में उसने अंग्रेजों को उखाड़ फेंका। जेपी जैसे बुजुर्ग में इंदिरा गांधी जैसी ताकतवर नेता को हराने की शक्ति उसी यकीन की देन थी। यहां तक कि बाद में वी पी सिंह में भी लोगों ने महात्मा देख लिया था।

4 अप्रैल 2011 के पहले अन्ना को महाराष्ट्र के बाहर लोग जानते नहीं थे। लेकिन एक बुजुर्ग ने जब सरकार को ललकारा और उस बुजुर्ग में लोगों को निस्वार्थ प्रेम दिखा तो अचानक न जाने कहां से लोग उसके प्रेम में उमड़े चले आये। देश का विमर्श बदल गया। बिना एक भी पत्थर चले आंदोलन खड़ा हो गया। अन्ना रातोंरात राष्ट्र नायक बन गये। 'अन्ना' एक नाम नहीं, एक 'यकीन' बन गया। लोगों को लगा कि 'बदलाव' आ सकता है। अफसोस अन्ना ने उस यकीन को तोड़ दिया। जो अन्ना सरकारों से पारदर्शिता की दुहाई देते थे वो रात के अंधेरे में बचते फिरे, बाबा रामदेव में भविष्य तलाशे और आरएसएस जिसका सहारा बने नायक कैसे हो सकता है? लोग तो पूछेंगे कि ये वो अन्ना तो नहीं जिसे लोगों ने 4 अप्रैल को जंतर मंतर पर या फिर 16 अगस्त को तिहाड़ जेल में देखा था? अन्ना ने अरविंद का साथ क्यों छो़ड़ा ये मुद्दा है ही नहीं। असल मुद्दा ये है कि रामदेव के प्यारे कैसे हो गये? क्या दिल्ली आते ही अन्ना को भी राजनीति ने अपना शिकार बना लिया? या फिर अन्ना भी एक आम इंसान निकले? भारत एक 'भावनावादी' समाज है। ये जल्दी किसी को दिल देता नहीं है और अगर देता है तो 'अधूरेपन' से नहीं देता, अपने 'पूरेपन' से देता है। वो सवाल नहीं करता लेकिन जब सवाल करता है तो चिंदियां उड़ा देता है। अन्ना मेरी इतनी ही गुजारिश है कि बड़ी मुश्किल से उम्मीदे पलती है, बड़ी मुश्किल से सपने जवान होते हैं इन उम्मीदों को मत मरने दो?

अन्‍ना हजारे आज भी मेरे गुरु: केजरीवाल


अन्‍ना ने केजरीवाल से अलग होने की बात जब से कही है उसके बाद से अबतक केजरीवाल ने कई बयान दिये हैं. केजरीवाल कभी कहते हैं कि उन्‍हें अन्‍ना के फैसले से दुख पहुंचा है, कभी वो कहते हैं कि अन्‍ना कुछ महीनों में वापस आ जाएंगे. इन सब के बाद केजरीवाल ने आजतक से खास मुलाकात में कहा कि अन्‍ना आज भी उनके गुरु हैं.

धरती-आकाश के बाद समुद्र में भी घोटाला

नई दिल्ली - कोल ब्लॉक आवंटन के बाद अब केंद्र सरकार ऑफसोर माइनिंग यानी समुद्र में खनिज निकालने के लिए आवंटित किए गए ब्लॉक में फंसती नजर आ रही है। सीबीआई ने इस मामले में सोमवार का प्राथमिक रिपोर्ट यानी पीई दर्ज कर ली है। आरोप है कि पिछले साल समुद्र के लिए ब्लॉक आवंटन में गड़बड़ी हुई है। कुल 62 समुद्री ब्लॉक के आवंटन में से करीब आधे यानी 28 ब्लॉक चार कंपनियों को ही दे दिए गए। ये चारों कंपनियां इंडियन रेवेन्यू सर्विसेज के उस पूर्व अधिकारी के बेटे और भाई की हैं जो खुद खनन मंत्रालय में ऊंचे पद पर रह चुका है।

सीबीआई ने जांच में पाया कि ये चार कंपनियां आवंटन की शर्तें पूरी नहीं करती थीं बावजूद इसके इन्हें ब्लॉक दे दिए गए। दिल्ली की इन कंपनियों में से दो कंपनियों के नाम आरवीजी मैटल्स एंड अलॉय प्राइवेट लिमिटेड और आरवीजी मिनिरल प्राइवेट लिमिटेड हैं। सीबीआई को जांच में ये भी पता चला है कि इन चारों कंपनियों के मालिकों से हथियारों के दलाल अभिषेक वर्मा से नजदीकी संबंध हैं। सीबीआई ने अभिषेक वर्मा को इस मामले में सरकारी गवाह बना लिया है। सूत्रों के मुताबिक अभिषेक वर्मा ने सीबीआई के ऑफसोर ब्लॉक के आवंटन में कई अहम जानकारियां भी दी हैं। सूत्रों के मुताबिक खनन मंत्रालय के अधीन आने वाले इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस यानी आईबीएम ने ये सारे आवंटन किए। अब तक की जांच में ये बातें सामने आई हैं कि आईबीएम के अधिकारियों ने इन कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए सारा खेल किया।

दरअसल बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के तल में छुपे खनिज और कच्चे तेल को तलाशने के लिए मंत्रालय ने टेंडर आमंत्रित किए थे। पिछले साल शुरू हुई इस प्रक्रिया में कुल 377 अर्जियां आई थीं। उन अर्जियों पर बाकायदा स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग भी हुई और 62 ऑफसोर ब्लॉक आवंटित कर दिए गए।

सूत्रों के मुताबिक अब तक की जांच में ये बात सामने आई है कि ये सारी गड़बड़ी स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग में ही हुई है। कमेटी ने जिन चार कंपनियों को 28 ऑफसोर ब्लॉक आवंटित किए उसने स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग में ही सारी कंपनियों को पीछे छोड़ दिया। सीबीआई अब इस बात की जांच कर रही है कि आखिर इन चारों कंपनियों ने ये ब्लॉक हासिल कैसे किए जबकि ब्लॉक के लिए अर्जी करने वाली कई बड़ी कंपनियां भी मैदान में थीं। सीबीआई अब जल्द ही इस मामले में इन चारों कंपनियों और खनन मंत्रालय के अधीन आने वाले इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सकती है।

इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन के सेक्रेटरेट पीसीआरएफ की बैलेंस शीट


नेताओं पर करोड़ों बकाया है और जनता को कनेक्शन कट की धमकी दे रही है कांग्रेस सरकार !



देश की राजधानी में दिल्ली में रह रहे सांसद और पूर्व सांसदों ने बिजली और पानी तो इस्तेमाल किया है लेकिन बिल का भुगतान नहीं किया। इनके पास बकाया करीब 5 करोड़ रुपए हैं। बकायेदारों की सूची में 28 मौजूदा सांसद जबकि 700 से ज्यादा पूर्व सांसद हैं। इस सूची में गृहमंत्री सुशील कुमार शिन्दे, स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज सिंह चौहान, असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई, कांग्रेस प्रवक्ता रेणुका चौधरी सहित कई पार्टियों के बड़े नेता हैं एनडीएमसी ने बकाएदारों की सूची दिल्ली हाईकोर्ट में सौंपी है। ये हाल तब का है जब ऐसी ही एक सूची एमटीएनएल ने अदालत को सौंपी है। जिसमें माननीयों का बकाया 7 करोड़ से भी ज्यादा है।

अगर आम आदमी का एक रुपया भी बकाया हो तो कुर्की तक हो जाती है। लेकिन माननीय सांसदों पर बकाए पैसे का हिसाब लेने वाला कोई नहीं है। उल्टे मंत्री ऐसी नसीहत दे रहे हैं। एनडीएमसी ने भी इन माननीयों से अपना बकाया वसूलने की कोई कोशिश नहीं की। रकम भले ही छोटी या बड़ी हो। लेकिन सवाल नियमों का है। जो नियम आम जनता के लिए है भला वो नियम इन माननीयों के लिए क्यों नहीं है? 

अरविंद केजरीवाल के दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से पांच सवालः


अरविंद केजरीवाल के दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से पांच सवालः

1. क्या यह सच है कि 2 साल पहले दिल्ली में बिजली के दाम 23 फीसदी कम करने का कोई आदेश तैयार किया गया था?

2. क्या यह सच है कि दिल्ली सरकार ने उस आदेश को पारित होने से रोका?

3. क्या यह सच है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने आपकी सरकार को इस बात के लिए लताडा था कि आपने उस आदेश को पारित होने से क्यों रुकवाया?

4. क्या यह सच है कि आपने 2000 करोड़ की सरकारी संपत्ति रिलायंस और टाटा जैसी, कंपनियों को मात्र एक रुपए प्रतिमाह के किराए पर दे दी है?

5. आपका इन बिजली कंपनियों के साथ क्य़ा रिश्ता है. आपकी सरकार जनता के साथ है या बिजली कंपनियों के साथ?

केजरीवाल का देशवासियों के नाम पत्र


दिल्ली में बिजली सप्लाई में भ्रष्टाचार पर केजरीवाल का हल्ला बोल


 बिजली की बढ़ी कीमतों को लेकर दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार और अरविंद केजरीवाल आमने सामने आ गए हैं. केजरीवाल ने लोगों से बिल ना भरने को कहा है तो दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने बिल ना भरने का खामियाजा भुगतने की चेतावनी दे दी है. 

दिल्ली में बिजली की बढी कीमतों को लेकर राजनीति गरमा गई है, अरविंद केजरीवाल और इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ताओं ने बिजली की बढ़ी कीमतों के खिलाफ रविवार को दिल्ली में जबर्दस्त प्रदर्शन किया. 

इस मौके पर कीमत बढ़ाए जाने के विरोध में बिजली बिल को जलाया गया. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के लोगों से कहा कि जब तक सरकार बढी हुई कीमतें वापस ना ले वो अपना बिजली का बिल ना भऱें. 

केजरीवाल की इस धमकी के बाद दिल्ली सरकार ने भी चेतावनी दे दी है कि जो बिजली बिल नहीं भरेगा उसे भुगतना पड़ेगा. अब देखना होगा कि जनता सरकार की सुनती है या केजरीवाल की. 

बिजली बिल के मुद्दे पर केजरीवाल और दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार आमने सामने हैं. केजरीवाल ने सरकार को 15 दिन का  वक्त दिया है और अगर 15 दिन में कीमतें वापस नहीं हुईं तो वो इस आंदोलन को तेज करने की धमकी दे रहे हैं. 

केजरीवाल ने पैसे पेड़ पर ना लगने वाले बयान को लेकर प्रधानमंत्री पर भी हमला बोला. यानी आने वाले दिनों में केजरीवाल का आंदोलन दिल्ली और केंद्र की सरकार दोनों का सिरदर्द बन सकता है.

पैसा पेड़ों पर नहीं उगता है: मनमोहन सिंह



  • विपक्ष के बहकावे में न आयें देशवासी : मनमोहन 
  • आर्थिक सुधार न करते तो डूब जाती अर्थव्यवस्था
  • विश्वव्यापी मंदी के असर से देश को बचाना जरूरी

नई दिल्ली : आर्थिक सुधारों पर मचे घमासान और तृणमूल सांसदों द्वारा आज दिये गये इस्तीफों को स्वीकार करने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि देशवासियों को आर्थिक सुधार के मुद्दे पर सच्चाई जानने का हक है। मनमोहन सिंह ने देशवासियों से विपक्ष के बहकावे ने आने की अपील करते हुए कहा कि विपक्ष के नेता देश की सही स्थिति को नहीं बता रहे हैं। आज की कठिन आर्थिक स्थिति में वे स्वार्थ की राजनीति कर रहे हैं।

देशवासियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पीएम होने के नाते यह जरूरी है कि मैं कड़े कदम उठाऊं। यूरोपीय देशों में तमाम संकट मुंह बाएं खड़े हैं। अपना खर्च उठाने में सक्षम नहीं है। वेतन देने के लिए कर्ज मांग रहे हैं। मेरा वादा है कि भारत में ऐसा नहीं होने दूंगा। डीजल पर होने वाले घाटे को कम करने के लिए १७ रुपये मूल्य बढ़ाने की जरूरत है लेकिन हमने सिर्पâ पांच रुपये बढ़ाए। पेट्रोल के दाम न बढ़ने देने के लिए हमने पेट्रोल पर टैक्स पांच रुपये तक कम किया है। एलपीजी सिलेण्डर की संख्या घटाए जाने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि देश की आधी आबादी महज ६ सिलेण्डर ही इस्तेमाल करती है। उन्होंने कहा कि आज देश में आमदनी के मुकाबले खर्चे ज्यादा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीबों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने घासलेट की कीमतों को नहीं बढ़ाया। मनमोहन िंसह ने कहा, पिछले साल तेल पर साqब्सडी एक लाख चालीस हजार करोड़ रुपये थी। इस साल दो लाख करोड़ हो जाती। जो देश के आर्थिक विकास के लिए नुकसानदायक बन जाती।

प्रधानमंत्री ने कहा सरकार आम आदमी पर बोझ नहीं डालना चाहती, लेकिन आज देश में ८० फीसदी कच्चा तेल विदेश से आता है । इसे खरीदने के लिए पैसे कहां से आयेंगे, वित्तीय घाटा बढ़ जाएगा। इसलिए मजबूरी है कि तेल की कीमतें बढ़ाई जाएं। निवेशकों का विश्वास भारत में कम हो जाता। देश में पैसा नहीं आता। बेरोजगारी बढ़ जाती। देश को बाहर से कर्ज नहीं मिलता। ब्याज बढ़ जाता है। उन्होंने विपक्षी नेताओं पर चुटकी लेते हुए कहा इन सबके लिए पैसों की जरूरत है और पैसे पेड़ों पर नहीं लगते। इसलिए अब उठाए गए कदमों के अच्छे नतीजे आएंगे।

प्रधानमंत्री ने एफडीआई के मुद्दे पर विपक्षी राजनीतिक दलों की आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि एफडीआई से लोगों को रोजगार मिलेगा, किसानों को उसकी फसल के अच्छे दाम मिलेंगे। उन्होंने विपक्ष को स्वच्छ राजनीति करने की सलाह देते हुए कहा कि कांग्रेस ने हमेशा जनहित में काम किया है। इसीलिए हमें जनता ने दूसरी बार भी चुना है। इसलिए हमारा फर्ज बनता है कि हम जनता के हित में काम करें। आज देश की आर्थिक स्थिति को देखते हुए आर्थिक सुधारों को और कड़ा करना होगा। यही देश की और जनता की मांग है। मुझे विश्वास है कि देशवासी पिछली बार की तरह ही इस बार भी हमारा साथ देंगे।

अन्ना ने ठुकराया केजरीवाल के दो करोड़


नई दिल्ली - इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल के 2 करोड़ रुपए का ऑफर ठुकर दिया. कुछ महीने पहले अरविंद केजरीवाल आंदोलन के बचे हुए पैसों का चेक लेकर अन्ना को देने गए थे लेकिन अन्ना ने चेक लेने से इनकार कर दिया.

क्या अरविंद केजरीवाल से अलग होने के बाद अब अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के नाम पर जमा हुआ पैसा भी इस्तेमाल नहीं करेंगे.

ये सवाल इसलिए क्योंकि आंदोलन के नाम पर जो चंदा जमा किया गया उसमें से बचे हुए पैसों को भी लेने से अन्ना हजारे ने मना कर दिया.

इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी खबर के मुताबिक अरविंद केजरीवाल के एनजीओ पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन ने इंडिया अगेंस्ट करप्शन  आंदोलन के बचे हुए पैसे अन्ना को देना चाहा लेकिन अन्ना ने इसे लेने से मना कर दिया.

अखबार के मुताबिक कुछ महीने पहले केजरीवाल ने रालेगण सिद्धी पहुंचकर चंदे की बची हुई रकम के तौर पर अन्ना को तकरीबन 2 करोड़ का चेक देना चाहा लेकिन अन्ना ने इस चेक को लेने से इनकार कर दिया.

अरविंद ये पैसे इसलिए अन्ना को देने गए थे क्योंकि ये पैसे राजनीतिक पार्टी के लिए नहीं बल्कि आंदोलन के लिए मिले थे. और चूंकि अब अन्ना ही आंदोलन को आगे बढाएंगे इसलिए ये पैसा वो अन्ना को देने गए थे.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक टीम अन्ना के कोर ग्रुप में शामिल रहे पूर्व सदस्य दिनेश वाघेला ने भी केजरीवाल के इस ऑफर की पुष्टी की है. इस बारे में अब तक अरविंद केजरीवाल का पक्ष सामने नहीं आया है.

अखबार के मुताबिक 20 सितंबर को अन्ना जब दिल्ली में थे उस दौरान महाराष्ट्र सदन में अन्ना के सहयोगियों की बैठक में भी ये मामला गरमाया था लेकिन अन्ना ने अपने समर्थकों को निर्देश दिया कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन से आंदोलन का डाटा बेस को लेने की कोशिश की जाए लेकिन चंदे में से बचे पैसे को वापस नहीं लिया जाएं. अखबार के मुताबिक बैठक में अन्ना ने कबूल किया कि अरविंद चेक वापस कर रहे थे लेकिन उन्होंने इसे लेने से इनकार कर दिया.

फिलहाल इंडिया अगेंस्ट करप्शन के पास कुल कितना पैसा है ये तो नहीं पता है लेकिन हम आपको बता दें कि कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक साल 2011 में 1 अप्रैल और सितंबर 30 यानि 6 महीने के दौरान आईएसी को आंदोलन के नाम पर कुल 2.94 करोड़ रुपये का चंदा मिला जिसमें से 1 करोड़ 14 लाख रुपये अकेले रामलीला मैदान आंदोलन के दौरान चंदे में मिले.

रिपोर्ट के मुताबिक आईएसी ने इस दौरान कुल 1 करोड़ 57 लाख रुपये खर्च भी दिखाया था. नवंबर 2011 में आई इस ऑडिट रिपोर्ट के बाद आईएसी ने अब तक दूसरी रिपोर्ट जनता के सामने पेश नहीं किया है. हालांकि जुलाई महीने के जंतर-मंतर आंदोलन के दौरान चंदे के तौर पर साढ़े 39 लाख लाख रुपये जमा होने की बात कही गई थी. चंदे के नाम पर जमा हुए पैसों में से खर्च होने के बाद जो पैसे शेष हैं फिलहाल वो पीसीआरएफ के खाते में जमा है.

ऐसे में अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि अन्ना हजारे ने केजरीवाल और इंडिया अगेंस्ट करप्शन से तो अपना नाता तोड़ लिया है  लेकिन आंदोलन के नाम पर जमा चंदे की राशि का क्या होगा?

घोटालों से निपटने की अद्भुत कला


पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव अद्भुत विरासत छोड़ गए हैं। भले ही लोग भारत में आर्थिक सुधार का श्रेय वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देते हैं, लेकिन इसके असली शिल्पकार नरसिम्हा राव थे। इकनॉमिक टाइम्स के टी. के. अरुण ने एक बार कहा था , ‘डॉ मनमोहन सिंह को सुधार का श्रेय देना वैसे ही है, जैसे आप बुकर सम्मान के लिए अरुंधती रॉय के वर्ड प्रोसेसर को क्रेडिट दें।‘ राव इससे भी प्रभावकारी एक और विरासत छोड़ गए। संकट से निपटने की उनकी कला पर वर्तमान नेता फल-फूल रहे हैं लेकिन कभी भी इसका श्रेय उन्हें नहीं दिया।

हमारे समय के लोग जानते हैं कि राव इस खेल में कितने निपुण थे। आम धारणा थी कि अगर कोई बड़ा विवाद हो और सरकार उसमें घिर गई हो, तो तय था कि एक दूसरा बड़ा मुद्दा पहले मुद्दे से लोगों का ध्यान हटा देता था। अगर ऐसा नहीं होता, तो उसे इतनी खूबसूरती से दूसरा मोड़ दे दिया जाता ताकि सबका ध्यान बंट जाता। बहुत सारे लोगों को याद होगा कि वह हर्षद मेहता विवाद में अटैची में एक करोड़ रुपये लेने के आरोपी थे। बहस का मुद्दा यह होना चाहिए था कि उन्हें पैसे मिले या नहीं, अगले दिन ज्यादातर चर्चाएं इस बात पर केंद्रित थीं कि अटैची कितनी बड़ी थी? क्या एक आदमी इसे खींच सकता था? और कितने के नोट थे? भ्रष्टाचार का असल मुद्दा और क्या हर्षद मेहता राव से मिले थे, इन पर शायद ही चर्चाएं हो पाईं।

चारों ओर से घिरी वर्तमान यूपीए सरकार तृणमूल कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से प्रकट रूप से संकट में फंसी दिख रही है। लगता है कि यह सरकार अच्छी तरह से राव के नक्शेकदम पर चल रही है। आप इस सरकार के घोटालों की लिस्ट देखिए और आपको समझ में आ जाएगा कि इस सरकार ने राव से किसी मोर्चे पर तो बेहतर किया है। एक घोटाले के बाद दूसरा घोटाला हो जाता है और लोगों का ध्यान पहले घोटाले पर से हट जाता है। हाइपर-ऐक्टिव मीडिया भी आगे बढ़ जाता है, क्योंकि पहले वाला ‘विशाल घोटाला’ ठंडे बस्ते में चला जाता है।

यह व्यवस्था घोटाले के सूत्रधारों के लिए अच्छी तरह से काम करती है। नित नए घोटाले सामने आने से उन्हें सुस्ताने का वक्त मिल जाता है। घोटाले में फंसा व्यक्ति जानता है कि कोई नया घोटाला आते ही सबका ध्यान कुछ समय के लिए दूसरों पर चला जाता है और वह इस तरह सीना चौड़ा करके घूमता है जैसे कुछ हुआ ही न हो।

इसे समझने के लिए यहां कुछ घोटालों का जिक्र कर रहा हूं। कैश फॉर वोट और हसन अली हवाला घोटाला 2008 में, मधु कोड़ा माइनिंग घोटाला और सुकना जमीन घोटाला 2009 में, कॉमनवेल्थ गेम्स और आदर्श हाउसिंग घोटाला 2010 में। इसरो-देवास डील, टाट्रा ट्रक घोटाला, कुख्यात 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला, दिल्ली एयरपोर्ट जमीन घोटाला, सुनियोजित तरीके से एयर इंडिया/ इंडियन एयरलाइंस की ‘हत्या’ और पूर्व आर्मी चीफ वीके सिंह के उम्र को लेकर विवाद और सीवीसी की नियुक्ति में गड़बड़ी को लेकर विवाद। यह लिस्ट बढ़ती ही जाएगी।

जो मैं कह रहा हूं, वह एक सरसरी निगाह डालने पर भी समझा जा सकता है। अलग-अलग घोटाले अलग-अलग समय पर हुए और अलग-अलग लोग इनमें ऐसे जुड़े पाए गए जैसे किसी नाटक के पात्र हों। काफी हद तक यही लगता है कि पिछले घोटाले से ध्यान हटाने, पीछा छुड़ाने के लिए अ��ला घोटाला सामने आया। हो सकता है कि मैं ओवर-रिऐक्ट कर रहा होऊं या फिर निराशावादी हो रहा होऊं, लेकिन यह सब इतना अफसोसजनक है कि हाल ही में तृणमूल कांग्रेस का सरकार से हाथ खींच लेने की धमकी देना भी कुछ फर्क पैदा करता नहीं दिखता। 

ये नेता लोगों को काफी ज्यादा बेवकूफ बनाते रहे हैं। जैसा कि मैं अक्सर कहता रहा हूं, ऐसा लगता है कि हमारे नेता पुरातन काल में रह रहे हैं। वे यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि दुनिया काफी आगे बढ़ चुकी है और भोले-भाले भारतीयों को बेवकूफ बनाने की जो चालें सालोंसाल से चलते आ रहे हैं, वे अब पूरी तरह से नाकामयाब हैं। हां, यह हो सकता है कि मीडिया पुराने मामले को छोड़कर नए मामले को टीआरपी के चक्कर में भुनाने लगता हो, लेकिन विशालकाय सोशल मीडिया, जिसका आधार दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है और जो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बना बना रहा है, का असर कोई आई-गई बात नहीं है। इस सोशल मीडिया को इग्नोर नहीं किया जा सकता।

लगभग हरेक घोटाला डॉक्युमेंटेड है और जो कोई भी इसे पढ़ना/देखना चाहे, यह सभी के लिए उपलब्ध है। बस इतना ही नहीं, जैसे ही यह लगता है कि कोई घोटाला अपनी मौत मर रहा है, अचानक कोई न कोई उसके बारे में कुछ न कुछ जरूर छेड़ देता है और वह फिर से चर्चा के दायरे में आ जाता है। शुक्र है। और सिर्फ इसीलिए मीडिया की नजरों में आने से बच गए इनमें से कई घोटाले जागरूक सिटिजन जर्नलिस्ट्स की नजरों से नहीं बच पाते। वे सभी अपराधियों को याद दिलाते रहते हैं कि लोग अब पहले से कहीं ज्यादा जागरूक हैं, और न सिर्फ यह कि वे उनकी करनियां भूलेंगे नहीं,  बल्कि वे उनके कुकर्मों को उनके पास मौजूद प्लैटफॉर्म पर खूब दिखाएंगे-बताएंगे भी।

तो, जो लोग यह सोचते हैं कि वे मेरे देश को और निचोड़ते रहेंगे और बड़े आराम से निकल लेंगे, दोबारा सोचें!!

मनमोहन के कार्यक्रम में कमीज उतार कर किया विरोध


पीएम मनमोहन सिंह शनिवार को राष्ट्रीय राजधानी में विज्ञान भवन में आयोजित एक सम्मेलन के दौरान उस समय दंग रह गए, जब एक व्यक्ति मेज पर खड़ा होकर हाल में हुई डीजल मूल्य वृद्धि का विरोध करने लगा.

प्रधानमंत्री एशिया में आर्थिक विकास और औद्योगिक वातावरण में बदलाव पर अंतर्राष्ट्रीय अकादमिक सम्मेलन को सम्बोधित करने वाले थे.

प्रधानमंत्री, विज्ञान भवन के मुख्य सभाकक्ष में अपना उद्घाटन भाषण देने के लिए जैसे ही उठे, एक प्रदर्शनकारी ने उनके खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. यह प्रदर्शनकारी डीजल मूल्य वृद्धि वापस लेने की मांग कर रहा था.

प्रदर्शनकारी अपनी कमीज उतार रखी थी. सुरक्षाकर्मी बाद में उसे सभाकक्ष से बाहर ले गए. खबर के मुताबिक इस शख्स का नाम संतोष कुमार सुमन है.

इस व्यवधान के बावजूद प्रधानमंत्री ने अपना सम्बोधन जारी रखा. उन्होंने समावेशी, तीव्र और स्थिर विकास की वकालत की और निजी क्षेत्र के विकास के लिए मौजूदा औद्योगिक व्यावसायिक कानूनों के परीक्षण का वादा किया.

प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार संसद में जल्द ही एक नया कम्पनी विधेयक लाएगी, जिससे औद्योगिक जगत की मौजूदा जरूरतों से निपटा जा सकेगा.

कौन है संतोष कुमार सुमन

विज्ञान भवन में पीएम मनमोहन सिंह के खिलाफ शर्ट उतारकर नारेबाजी करने वाला शख्स संतोष कुमार सुमन पेश से वकील है. इसके साथ ही वो लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल से भी जुड़ा है. 

प्रधानमंत्री के खिलाफ नारेबाजी करने वाला संतोष कुमार सुमन मूल रूप से बिहार के बेगूसराय का रहने वाला है, लेकिन फिलहाल वो दिल्ली के शकरपुर में रहता है. बत्तीस साल का संतोष कुमार सुप्रीम कोर्ट में वकील के तौर पर रजिस्टर्ड है. 

उसके पिता का नाम जेएन महतो बताया जा रहा है. संतोष कुमार सुमन ने साल 2002 में बिहार के भागलपुर से वकालत की पढ़ाई पूरी की थी. संतोष लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी की दिल्ली यूनिट से जुड़ा था. 

संतोष ने इससे पहले 2008 में कैश फॉर वोट के सिलसिले में दिल्ली हाईकोर्ट में एक पीआईएल दायर की थी. लेकिन हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया था.  

कांग्रेस की प्रतिक्रिया

कांग्रेस के तमाम नेताओं ने इस घटना की निंदा की और कहा कि इस मामले की पूरी जांच होनी चाहिए. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी ने कहा कि इस प्रकरण की जांच होनी चाहिए. 

इसके साथ ही संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ल ने अपील की है कि ऐसे विरोध को ज्यादा तूल नहीं दिया जाए.

लालू ने की कार्रवाई

पीएम के कार्यक्रम के दौरान शर्ट खोलकर नारेबाजी करने वाला संतोष कुमार सुमन राष्ट्रीय जनता दल की दिल्ली इकाई का पदाधिकारी है. ये जानकारी मिलने पर आरजेडी राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने अपनी पार्टी की दिल्ली इकाई को ही भंग कर दिया.

लालू ने अपने इस फैसले का एलान पटना में पत्रकारों के सामने किया.

बीजेपी की प्रतिक्रिया

दिल्ली में प्रधानमंत्री के भाषण से पहले शर्ट खोलकर नारेबाजी किए जाने की घटना को बीजेपी ने आम लोगों के गुस्से का नतीजा करार दिया है. बीजेपी का कहना है कि मनमोहन सरकार से आम लोगों की नाराज़गी हर रोज बढ़ रही है

भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना अपनी मशाल जलाए रखें : राम जेठमलानी

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चेन्नई: बीजेपी के नेता और राज्यसभा सदस्य राम जेठमलानी ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे को पत्र लिखकर कहा है कि देश उनसे उम्मीद लगाए बैठा है और उन्हें भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए अपनी कोशिश जारी रखनी चाहिए.

जेठमलानी ने कहा कि अन्ना ने अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक पार्टी के गठन का समर्थन नहीं करके अच्छा किया है और उन्हें एक ही मुद्दे पर लड़ना चाहिए.

जानेमाने वकील के मुताबिक देश संकट के दौर से गुजर रहा है और अन्ना को इस स्थिति से लड़ने के लिए सभी तरह के भेदभावों से ऊपर उठने की जरूरत है.

उन्होंने ने अपने पत्र में कहा कि आजादी के 65 साल बाद भी खुशियां मनाने के लिए कुछ नहीं है और यह सब भ्रष्टाचार के कारण हो रहा है.

बकौल जेठमलानी अल्पसंख्यकों की तरक्की होनी चाहिए और अन्ना को उनकी मांगों का भी ध्यान रखना चाहिए.
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