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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

गाँधी जी के सपनों का भारत

ग्राम-स्‍वराज्य की मेरी कल्‍पना यह है कि वह एक ऐसा पूर्ण प्रजातंत्र होगा, जो अपनी अहम जरूरतों के लिए अपने पड़ोसी पर निर्भर नहीं करेगा; और फिर भी बहुतेरी दूसरी जरूरतों के लिए-जिनमें दूसरों का सहयोग अनिवार्य होगा-वह परस्‍पर सहयोग से काम लेगा। इस तरह हर एक गांव का पहला काम यह होगा की वह अपनी जरूरत का तमाम अनाज और कपड़े के लिए कपास खुद पैदा कर ले। उसके पास सुरक्षित जमीन होनी चाहिये, जिसमें ढोर चर सकें। और गांव के बड़ों व बच्‍चों के लिए मनबहलाय के साधन और खेल-खुद के मैदान वगैरा का बन्‍दोबस्‍त हो सके। इसके बाद भी जमीन बची तो उसमें वह ऐसी उपयोगी फसलें बोयेगा, जिन्‍हें बेचकर वह आर्थिक लाभ उठा सके; यों वह गांजा, तम्‍बाकू, अफीम वगैरा की खेती से बचेगा।


हर एक गांव में गांव की अपनी एक नाटकशाला, पाठशाला और सभा-भवन रहेगा। पानी के लिए उसका अपना इन्‍तजाम होगा-वाटर वर्क्‍स होंगे-जिससे गांव के सभी लोगों को शुद्ध पानी मिला करेगा। कुओं और तलाबों पर गांव का पूरा नियंत्रण रखकर यह काम किया जा सकता है। बुनियादी तालीम के आखिरी दरजे तक शिक्षा सब के लिए लाजिमी होगी। जहां तक हो सकेगा, गांव के सारे काम सहयोग के आधार पर किये जायेंगे। जात-पांत और क्रमागत अस्‍पृश्‍यता के जैसे भेद आज हमारे समाज में पाये जाते हैं, वैसे इस ग्राम-समाज में बिल्‍कुल नहीं रहेंगे।


सत्‍याग्रह और असहयोग के शस्‍त्र के साथ अहिंसा की सत्‍ता ही ग्रामीण समाज का शासन-बल होगी। गांव की रक्षा के लिए ग्राम-सैनिकों का एक ऐसा दल रहेगा, जिसे लाजिमी तौर पर बारी-बारी से गांव के चौकी-पहरे का काम करना होगा। इसके लिए गांव में ऐसे लोगों का रजिस्‍टर रखा जायेगा। गांव का शासन चलाने के लिए हर साल गांव के पांच आदमियों की एक पंचायत चुनी जायेगी। इसके लिए नियमानुसार एक खास निर्धारित योग्‍यता वाले गांव के बालिग स्‍त्री-पुरूषों को अधिकार होगा कि वे अपने पंच चुन लें। इन पंचायतो को सब प्रकार की आवश्‍यक सत्‍ता और अधिकार रहेंगे। चूंकि इस ग्राम-स्‍वराज्‍य में आज के प्रचलित अर्थों में सजा या दंड का कोई रिवाज नहीं रहेगा, इसलिय यह पंचायत अपने एक साल के कार्यकाल में स्‍वयं ही धारा सभा, न्‍याय सभा और कार्यकारिणी सभा का सारा काम संयुक्‍त रूप से करेगी।


आदर्श भारतीय ग्राम इस तरह बनाया जायेगा कि उसमें आसानी से स्‍वच्‍छता की पूरी-पूरी व्‍यवस्‍था रहे । उसकी झोंपडि़यों में पर्याप्‍त प्रकाश और हवा का प्रबंध होगा, और उनके निर्माण में जिस सामान का उपयोग होगा वह ऐसा होगा, जो गांव के आस-पास पांच मील की त्रिज्‍या के अन्‍दर आने वाले प्रदेश में मिल सके । इन झोपडि़यों में आंगन या खुली जगह होगी, जहां उस घर के लोग अपने उपयोग के लिए साग-भाजियां उगा सकें और अपने मवेशियों को रख सकें । गांव की गलियां और सड़के जिस धूल को हटाया जा सकता है उससे मुक्‍त होंगी । उस गांव में उसकी आवश्‍यकता के अनुसार कुएं होंगे और वे सबके लिए खुले होंगे । उसमें सब लोगों के लिए पूजा के स्‍‍थान होंगे, सबके लिए एक सभा-भवन होगा, मवेशियों के चरने के लिए गांव का चरागाह होगा, सहकारी डेरी होगी, प्राथमिक और माध्‍यमिक शालायें होंगी जिनमें मुख्‍यत: औद्योगिक शिक्षा दी जायेगी और झगड़ों के निपटारे के लिए ग्राम-पंचायत होगी । वह अपना अनाज, साग-भाजियां और फल तथा खादी खुद पैदा कर लेगा ।
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