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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

भारत में विदेशी कंपनियों की जरूरत नहीं: अन्ना


भुवनेश्वर। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने शुक्रवार को कहा कि देश में विदेशी कंपनियों की कोई जरूरत नहीं है। भारत खुद ही अपने लोगों के लिए पर्याप्त रोजगार के अवसर पैदा कर सकता है।

ओडिशा में स्टील प्लांट लगा रही दक्षिण कोरियाई कंपनी पॉस्को का हवाला देते हुए हजारे ने कहा कि इस तरह की अन्य विदेशी कंपनियों पर रोक लगानी चाहिए। हजारे ने कहा, 'वे (विदेशी कंपनियां) हमारी जमीन, जल लेकर हमारे वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। वे हमारा धन लूटकर ले जा रहे हैं।' 

अन्ना हजारे शुक्रवार को ओडिशा के तटवर्ती शहर जगतसिंहपुर में किसानों की एक रैली को संबोधित कर रहे थे। यहीं पर पॉस्को प्रोजेक्ट प्रस्तावित है। इसके साथ ही हजारे ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस कथन की आलोचना कि जिसमें उन्होंने कहा था कि विदेशी कंपनियों के भारत आने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। हजारे ने अपने गांव में रोजगार के अवसर पैदा करने का उदाहरण देते हुए कहा कि वह किसानों के लिए एक बड़ा आंदोलन करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार किसानों के उत्पादन का उचित मूल्य उन्हें नहंीं दे रही है। किसानों को अपने उत्पादन का मूल्य खुद तय करना चाहिए।

चुनाव आयोग पहुंचा कैश सब्सिडी मामला


भारतीय जनता पार्टी ने शुक्रवार को चुनाव आयोग से शिकायत की कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभाओं के चुनावों के दौरान सरकारी योजनाओं के लाभ और सब्सिडी का नकद भुगतान सीधे लाभार्थियों तक पहुंचाने की योजना की घोषणा करके कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने आदर्श चुनाव संहिता का उल्लंघन किया है।

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, श्रीमती सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और मुख्तार अब्बास नकवी की अगुआई में एक प्रतिनिधिमंडल मुख्य चुनाव आयुक्त बीएस संपत से यहां मिला और उनसे आदर्श चुनाव संहिता के उल्लंघन की शिकायत की।

इस मुलाकात के बाद आडवाणी ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल ने मुख्य चुनाव आयुक्त को ज्ञापन दिया। उन्होंने कहा कि यह योजना पूरे देश के लिए है और इनमें गुजरात के चार जिलों के नाम भी शामिल हैं, जहां चुनाव होने हैं। इस घोषणा से केंद्र में सत्तारुढ़ कांग्रेस को फायदा मिल सकता है।

उन्होंने कहा कि चुनाव संहिता के अनुसार चुनाव के दौरान ऐसी घोषणाएं प्रतिबंधित होती हैं, जिनसे मतदाता को प्रभावित किया जाए। उन्होंने बताया कि संपत ने भाजपा के ज्ञापन पर गौर करने का आश्वासन दिया। यह राज्य सरकारों के अधिकारों का अतिक्रमण है और इसका सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

भाजपा के महासचिव एवं मुख्य प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने गुरुवार को आरोप लगाया था कि जिस तरह इस सरकारी योजना की घोषणा कांग्रेस के मुख्यालय में की गई, उससे संदेह पैदा होता है। इसके साथ यह राज्य सरकारों के अधिकारों का अतिक्रमण है और इसका सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। 

हमारा सपना - राजनीतिक क्रांति : AAP

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केजरीवाल गरीब छात्रों का कोटा घटाने के खिलाफ


गाजियाबाद !   अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (एएपी) ने दिल्ली सरकार के रियायती दर पर दी गई भूमि पर बने निजी स्कूलों में गरीब वर्ग के छात्रों के लिए कोटा 20 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी करने के फैसले का विरोध किया है। पार्टी की कार्यकारी समिति के सदस्य गोपाल राय ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली में सरकारी भूमि पर बने निजी स्कूल सीट आवंटन की नीतियों का उल्लंघन करके अंधाधुंध पैसा कमा रहे हैं।

दिल्ली सरकार ने 2007 में अपने आदेश में सरकारी भूमि पर निर्मित 395 स्कूलों में गरीब वर्ग के छात्रों के लिए 20 फीसदी सीट आरक्षित करने का प्रावधान किया था। यद्यपि जब 2011 में अधिसूचना जारी की गई तो कोटे को 20 से घटाकर 15 फीसदी कर दिया गया था।

केजरीवाल के सही प्रत्याशी का करेंगे चुनाव प्रचार:अन्ना


समाजसेवी अन्ना हजारे ने कहा कि अगर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी चुनाव में सही उम्मीदवार उतारे तो चुनाव प्रचार कर सकते हैं.

अन्ना ने केजरीवाल के साथ टेलीफोन वार्ता का जिक्र करते हुए कहा, ‘मैंने उनसे अच्छे लोगों को उम्मीदवार बनाने को कहा.’

अन्ना ने भुवनेश्वर में गुरुवार को जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा, ‘मैं उम्मीदवार की जांच पड़ताल करुंगा. यदि वे ठीक पाए गए, यदि उचित उम्मीदवार रहे तो मैं उनके लिए प्रचार करुंगा.’ 

अन्ना ने कहा कि केजरीवाल एवं उनकी राहें भले ही अलग हो गई हों लेकिन उद्देश्य एक हैं. भ्रष्टाचार के विरुद्ध शुरू किए गए आंदोलन को दूसरा स्वतंत्रता संग्राम बताते हुए अन्ना ने युवाओं से बलिदान का आग्रह किया.

उन्होंने कहा, ‘आगे की राह आसान नहीं है. आप को अगले 15-20 सालों के लिए कमर कस लेनी चाहिए.’ 

अन्ना तीन दिवसीय ओडिशा यात्रा पर गुरुवार को बीजू पटनायक हवाई अड्डे पर पहुंचे जहां इंडिया अंगेस्ट करप्शन (आईएसी) के कार्यकर्ताओं ने उनका शानदार स्वागत किया.

गिरफ्तार विधायक सुरेश जैन को मिल रहा वीआईपी ट्रीटमेंट: अन्ना


anna hazare, suresh jain
अहमदाबाद। समाजसेवी अन्ना हजारे का आरोप है कि हाउसिंग घोटाले में गिरफ्तार विधायक सुरेश जैन को अस्पताल में वीआईपी ट्रीटमेंट मिल रहा है। अन्ना ने इस संबंध में पुलिस आयुक्त मीरा बोरवनकर को पत्र लिखकर कार्रवाई किए जाने की मांग की है।

महाराष्ट्र के जलगाव से शिवसेना विधायक सुरेश जैन को 29 करोड़ रुपये के हाउसिंग घोटाले के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। बाद में उन्हें बीमारी के चलते सेंट जॉर्ज अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

अन्ना का आरोप है कि अधिकारियों की मिली भगत के चलते सुरेश जैन को वीआईपी ट्रीटमेंट मिल रहा है। इस मामले की जांच करवाई जाए।

दरअसल, गरीबों के लिए बनाए जाने वाले 123 करोड़ के घरकुल हाउसिंग सोसाइटी में 29 करोड़ रुपये का घपला हुआ था।

इस मामले में भ्रष्टाचार को लेकर आवाज अन्ना हजारे ने उठाई थी, लेकिन मामले में पहली एफआईआर 2006 में दर्ज हुई। केस दर्ज होने के पांच साल तक जाच नहीं हो पाई, लेकिन पिछले महीने इस केस से जुडे़ दो अहम आरोपी और खानदेश बिलडर्स के डायरेक्टर्स मेजर नाना वाणी और राजा मयूर को गिरफ्तार किया गया।

इसके बाद इन दोनों के बयान के आधार पर जलगाव महापालिका के उस वक्त के उच्चाधिकार समिती के अध्यक्ष रहे प्रदीप रायसेनी और तत्कालीन मुख्याधिकारी रहे पीडी काले को गिरफ्तार किया गया और उनके बयानों के आधार पर शिवसेना विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री सुरेश दादा जैन की गिरफ्तारी की गई थी।

अन्ना - केजरीवाल राहें दो पर मंजिल एक : अन्ना


अन्ना हजारे ने आम आदमी पार्टी के लिए समर्थन की घोषणा करते हुए कहा कि उनका और केजरीवाल की मंजिल एक है लेकिन यह साफ किया कि ‘आप’ के उम्मीदवारों की बारीकी से जांच करने के बाद ही वह उनका चुनाव प्रचार करेंगे.
हजारे ने कहा कि रास्ते दो हैं लेकिन मंजिल एक. अरविंद और मैंने अलग-अलग रास्ते अपनाए हैं लेकिन हमारी मंजिल एक है. सामाजिक कार्यकर्ता ने हालांकि यह साफ किया कि वह आम आदमी पार्टी के चयनित उम्मीदवारों के लिए प्रचार अभियान करेंगे.

हजारे ने जोर देकर कहा कि मैं उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार से पहले उनकी बारीकी से जांच करूंगा. मैंने अरविंद को अपनी पार्टी के लिए अच्छे लोगों का चयन करने को कहा है. उन्होंने कहा कि भारत ने भले आजादी पा ली है लेकिन असली आजादी पाने के लिए एक अन्य संघर्ष की जरूरत है.

हजारे ने कहा कि गोरे ब्रिटिश ने भारत को छोड़ दिया लेकिन भूरे भारतीयों का एक वर्ग आम आदमी का शोषण जारी रखे हुए है.

कथनी को करनी में कैसे बदलेंगे केजरीवाल


सामाजिक आंदोलन के गर्भ से राजनेता के रूप में पैदा हुए अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को बने जुम्मा जुम्मा आठ दिन भी नहीं हुए हैं कि उसकी सफलता पर आशंकाओं के बादल मंडराने लगे हैं। यूं तो जब वे टीम अन्ना से अलग हट कर राजनीति में आने की घोषणा कर रहे थे, तब भी अनेक समझदार लोगों ने यही कहा था कि राजनीतिक पार्टियों व नेताओं को गालियां देना आसान काम है, मगर खुद अपनी राजनीतिक पार्टी चलना बेहद मुश्किल। अब जब कि पार्टी बना ही ली है तो सबसे पहले टीम अन्ना के सदस्य कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने ही प्रतिक्रिया दी है कि उसकी सफलता संदिग्ध है।

कश्मीर से कन्याकुमारी तक 546 सदस्यों को चुनने के लिए एक बड़ी रकम की जरूरत पड़ती है। यह कार्य इतना आसान नहीं है। आज के समय में किसी भी राजनीतिक पार्टी को चलाने के लिए काफी चीजों की जरूरत पड़ रही है। हेगड़े की इस बात में दम है कि आम आदमी पार्टी के विचार तो बड़े ही खूबसूरत हैं, मगर सवाल ये है कि क्या वे सफल हो पाएंगे? यह ठीक वैसे ही है, जैसे एक फिल्मी गाने में कहा गया है किताबों में छपते हैं चाहत के किस्से, हकीकत की दुनिया में चाहत नहीं है। केजरीवाल की बातें बेशक लुभावनी और रुचिकर हैं, मगर देश के ताजा हालात में उन्हें अमल में लाना नितांत असंभव है। यानि कि केजरवाल की हालत ऐसी होगी कि चले तो बहुत, मगर पहुंचे कहीं नहीं। उनकी सफलता का दरवाजा वहीं से शुरू होगा, जहां से व्यावहारिक राजनीति के फंडे अमल में लाना शुरू करेंगे।

अव्वल तो केजरीवाल उसी सिस्टम में दाखिल हो गए हैं, जिसमें नेताओं पर जरा भी यकीन नहीं रहा है। ऐसे में अगर वे सोचते हैं कि भाजपा की तरह वे भी पार्टी विथ द डिफ्रेंस का तमगा हासिल कर लेंगे तो ये उनकी कल्पना मात्र ही रहने वाली है। यह एक कड़वा सच है कि जब तक भाजपा विपक्ष में रही, सत्ता को गालियां देती रही, तब तक ही उसका पार्टी विथ द डिफ्रेंस का दावा कायम रहा, जैसे ही उसने सत्ता का स्वाद चखा, उसमें वे भी वे अपरिहार्य बुराइयां आ गईं, जो कांग्रेस में थीं। आज हालत ये है कि हिंदूवाद को छोड़ कर हर मामले में भाजपा को कांग्रेस जैसा ही मानते हैं। किसी पार्टी की इससे ज्यादा दुर्गति क्या होगी कि जिसे बड़ी शान से अनुशासित पार्टी माना जाता था, उसी में सबसे ज्यादा अनुशासनहीनता आ गई है। आपको ख्याल होगा कि भाजपा सदैव कांग्रेस के परिवारवाद का विरोध करते हुए अपने यहां आतंरिक लोकतंत्र की दुहाई देती रहती थी, मगर उसी की वजह से आज उसकी क्या हालत है। कुछ राज्यों में तो क्षेत्रीय क्षत्रप तक उभर आए हैं, जो कि आए दिन पार्टी हाईकमान को मुंह चिढ़ाते रहते हैं। राम जेठमलानी जैसे तो यह चैलेंज तब दे देते हैं उन्हें पार्टी से निकालने का किसी में दम नहीं। इस सिलसिले में एक लेखक की वह उक्ति याद आती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि दुनिया में लोकतंत्र की चाहे जितनी महिमा हो, मगर परिवार तो मुखियाओं से ही चलते हैं। पार्टियां भी एक किस्म के परिवार हैं। जैसे कि कांग्रेस। उसमें भी लाख उठापटक होती है, मगर सोनिया जैसा कोई एक तो है, जो कि अल्टीमेट है। कांग्रेस ही क्यों, एकजुटता के मामले में व्यक्तिवादी पार्टियां यथा राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, अन्नाद्रमुक, द्रमुक, शिवसेना आदि आदि भाजपा से कहीं बेहतर है। ऐसे में केजरीवाल का वह आम आदमी वाला कोरा आंतरिक लोकतंत्र कितना सफल होगा, समझा जा सकता है।

विपक्ष में खड़ी भाजपा में तो फिर भी राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी मौजूद हैं, पार्टी कहीं न कहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे सशक्त संगठन की डोर से बंधा है, मगर केजरीवाल और उनके साथियों को एक सूत्र में बांधने वाला न तो कोई तंत्र है और न ही उनमें राजनीति का जरा भी शऊर है। उनकी अधिकांश बातें हवाई हैं, जो कि धरातल पर आ कर फुस्स हो जाने वाली हैं।

वे लाख दोहराएं कि उनकी पार्टी आम आदमी की है, नेताओं की नहीं, मगर सच ये है कि संगठन और वह भी राजनीति का होने के बाद वह सब कुछ होने वाला है, जो कि राजनीति में होता है। नेतागिरी में आगे बढऩे की खातिर वैसी ही प्रतिस्पद्र्धा होने वाली है, जैसी कि और पार्टियों में होती है।  राजनीति की बात छोडिय़े, सामाजिक और यहां तक कि धार्मिक संगठनों तक में पावर गेम होता है। दरअसल मनुष्य, या यो कहें कि जीव मात्र में ज्यादा से ज्यादा शक्ति अर्जित करने का स्वभाव इनबिल्ट है। क्या इसका संकेत उसी दिन नहीं मिल गया था, जब पार्टी की घोषणा होते ही कुछ लोगों ने इस कारण विरोध दर्ज करवाया था कि वे शुरू से आंदोलन के साथ जुड़े रहे, मगर अब चुनिंदा लोगों को ही पार्टी में शामिल किया जा रहा है। इसका सीधा सा अर्थ है कि जो भी पार्टी में ज्यादा भागीदारी निभाएगा, वही अधिक अधिकार जमाना चाहेगा। इस सिलसिले में भाजपा की हालत पर नजर डाली जा सकती है। वहां यह संघर्ष अमतौर पर रहता है कि संघ पृष्ठभूमि वाला नेता अपने आपको देशी घी और बिना नेकर पहने नेता डालडा घी माना जाता है। ऐसे में क्या यह बात आसानी से हलक में उतर सकती है कि जो प्रशांत भूषण पार्टी को एक करोड़ रुपए का चंदा देंगे, वे पार्टी का डोमिनेट नहीं करेंगे?

सवाल इतने ही नहीं हैं, और भी हैं। वर्तमान भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था से तंग जनता जिस जोश के साथ अन्ना आंदोलन से जुड़ी थी, क्या उसी उत्साह के साथ आम आदमी पार्टी से जुड़ेगी? और वह भी तब जब कि वे अन्ना को पिता तुल्य बताते हुए भी अपना अलग चूल्हा जला चुके हैं? शंका ये है कि जो अपने पिता का सगा नहीं हुआ, वह अपने साथियों व आम आदमी का क्या होगा? राजनीति को पानी पी-पी कर गालियां देने वाले केजरीवाल क्या राजनीति की काली कोठरी के काजल से खुद को बचा पाएंगे? क्या वे उसी किस्म के सारे हथकंडे नहीं अपनाएंगे, जो कि राजनीतिक पार्टियां अपनाती रही हैं? क्या उनके पास जमीन तक राजनीति की बारीकियां समझने वाले लोगों की फौज है? क्या उन्हें इस बात का भान नहीं है कि लोकतंत्र में सफल होने के लिए भीड़ से ज्यादा जरूरत वोट की होती है? ये वोट उस देश की जनता से लेना है, जो कि धर्म, भाषा, जातिवाद और क्षेत्रवाद में उलझा हुआ है। क्या केजरीवाल को जरा भी पता है कि आज जो तबका देश की खातिर बहस को उतारु है और कथित रूप से बुद्धिजीवी कहलाता है, उससे कहीं अधिक अनपढ़ लोगों का मतदान प्रतिशत रहता है? ऐसे ही अनेकानेक सवाल हैं, जो ये शंका उत्पन्न करते हैं आम आदमी पार्टी का भविष्य अंधकारमय प्रतीत होता है। हां, अगर केजरीवाल सोचते हैं वे चले हैं एक राह पर, सफलता मिले मिले, चाहे जब मिले, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता तो ठीक है, चलते रहें।

सीधे नकदी हस्तांतरण योजना मतदाताओं को रिश्वत : केजरीवाल



अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) भूमि अधिग्रहण और भ्रष्टाचार समेत अन्य मुद्दों पर जोर देगी. उसने लाभार्थियों के खाते में सीधे पैसे का हस्तांतरण करने के संप्रग सरकार के फैसले को ‘मतदाताओं को रिश्वत’ देना करार दिया.

आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिन की बैठक के बाद भविष्य की योजनाओं के बारे में कई फैसले किए गए. केजरीवाल ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार का खुलासा जारी रहेगा. साथ ही वह राष्ट्रीय राजधानी में महंगाई और बिजली के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करेगी.

नकदी हस्तांतरण योजना पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि यह योजना कुछ लीकेज को रोक सकती है लेकिन कमोबेश यह वांछित है.

केजरीवाल ने कहा, ‘इसके समय को लेकर सवाल उठता है. यह मतदाताओं को रिश्वत देने का तरीका है.’ केजरीवाल ने ये बातें अगले साल जनवरी से लाभार्थियों के खाते में सीधे नकदी हस्तांतरण करने के सरकार के फैसले के बारे पूछे जाने पर कही. यद्यपि यह लीकेज को रोकेगा लेकिन उन्होंने कहा कि फैसला कई सवाल खड़े करता है.

केजरीवाल ने कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली को खत्म करने और लोगों को नकदी देने का तर्क गलत है. उन्होंने कहा, ‘आप राशन को खत्म कर रहे हैं और उन्हें नकदी दे रहे हैं. इसमें महंगाई को ध्यान में नहीं रखा जाएगा.’ उनकी पार्टी द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दों पर केजरीवाल ने कहा कि भूमि अधिग्रहण, भ्रष्टाचार, किसानों के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करना, ठेका मजदूरी समेत श्रम मुद्दे प्राथमिकता में होंगे.

उन्होंने कहा, ‘दिल्ली में हम महंगाई और बिजली से जुड़े मुद्दे उठाएंगे.’ केजरीवाल ने कहा कि पार्टी 15 राज्यों के 337 जिलों में 26 जनवरी तक जिला समितियां बनाएगी और राज्य स्तरीय समितियां मध्य फरवरी तक बनाएगी.

राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य गोपाल राय ने कहा कि 10 दिसंबर से पार्टी राजधानी के हर घर में पहुंचेगी और विभिन्न मुद्दों पर उनकी प्रतिक्रिया मांगेंगे.

उन्होंने कहा, ‘हम अपना जन संपर्क कार्यक्रम 10 दिसंबर से शुरू करेंगे.’ राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने राजनैतिक मामलों की समिति का भी गठन किया जिसमें केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, योगेंद्र यादव, इलियास आजमी, गोपाल राय और प्रशांत भूषण सदस्य हैं.

इसमें यह भी फैसला किया गया कि सिसोदिया और आनंद कुमार पार्टी के मुख्य प्रवक्ता होंगे जबकि यादव और कुमार 25 उप समितियों के साथ भी समन्वय करेंगे जो विभिन्न विषयों पर गौर करेगी.

अन्नाजी हमारे गुरु हैं : केजरीवाल


वाड्रा को पीएमओ से क्लीन चिट, कहा सभी आरोप गलत


नई दिल्ली। रॉबर्ट वाड्रा के मामले में आज इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में सुनवाई होनी है। इससे पहले वाड्रा और डीएलएफ के बीच लेनदेन की जांच की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर याचिका पर प्रधानमंत्री दफ्तर ने अपनी सफाई दी है। वाड्रा का पक्ष लेते पीएमओ ने कहा है कि उन पर लगाए गए सारे आरोप बेबुनियाद और गलत हैं, लिहाजा इनकी जांच की जरूरत नहीं है।

सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय बचाव की मुद्रा में आ गया है। पीएमओ ने बाकायदा इलाहाबाद हाईकोर्ट को अपने जवाब में वाड्रा को क्लीन चिट दी है और उन पर लगाए गए सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया है।

मालूम हो कि अरविंद केजरीवाल के आरोपों के बाद सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर कर वाड्रा के खिलाफ जांच की मांग की थी। इस पर लखनऊ बेंच ने प्रधानमंत्री कार्यालय को नोटिस भेजकर जवाब मांगा था। पीएमओ ने कहा है कि नूतन ठाकुर के सभी आरोप मीडिया में आई खबरों के आधार पर लगाए गए हैं और इनमें कोई सच्चाई नहीं है। इसलिए जांच की जरूरत भी नहीं है।

पीएमओ के संयुक्त सचिव धीरज गुप्ता की तरफ से दायर एफिडेविट में कहा गया है कि डीएलएफ और रॉबर्ट वाड्रा के बीच हुआ लेनदेन दरअसल व्यावसायिक कारणों से दो व्यक्तियों के बीच हुआ व्यक्तिगत लेनदेन है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। याचिकाकर्ता नूतन ठाकुर ने अखबारों और चैनलों की खबरों के आधार पर महज लोकप्रियता पाने के लिए वाड्रा के खिलाफ जांच की मांग की है। इस मामले में संबंधित पक्षों के बयान लिए गए हैं।

मगर नूतन ठाकुर के मुताबिक सरकार आरोपों के बिना वाड्रा को क्लीन चिट देना चाहती है और उसकी मंशा इस मामले को दबाने की है। पीएमओ ने जवाब दिया है कि ये दो लोगों के बीच निजी ट्रांजेक्शन का केस है। ये कैसे हो सकता है कि बिना जांच के ये कह दिया जाए और क्लीन चिट दे दी जाए।

प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाया जाए: हेगड़े

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने कहा है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने में कुछ भी गलत नहीं है, क्योंकि वह भी अन्य लोक सेवकों की तरह हैं.

प्रधानमंत्री को लेकर महान बात क्या?
न्यायमूर्ति हेगड़े ने कहा, ‘लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री के होने में गलत क्या है? क्या प्रधानमंत्री लोक सेवक नहीं हैं? क्या अन्य देशों में प्रधानमंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले नहीं होते? जापान में हर दूसरे साल एक प्रधानमंत्री पर मुकदमा चलता है. (पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति) निक्सन पर मुकदमा चला. प्रधानमंत्री को लेकर इतनी महान बात क्या है?’ हेगड़े ने कहा कि पूर्व में भी भारतीय प्रधानमंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं और केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को अभियोजन से छूट प्राप्त है, प्रधानमंत्री को नहीं.

2 पूर्व पीएम का उदाहरण दिया
उन्होंने कहा, ‘हमने बोफोर्स और जेएमएम रिश्वतखोरी मामले में दो पूर्व प्रधानमंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप देखे थे. लोकतंत्र में किसी व्यक्ति को महज इसलिए अभियोजन से छूट कैसे दी जा सकती है, क्योंकि वह किसी पद पर हैं? संविधान कुछ मामलों में राष्ट्रपति और राज्यपालों को अभियोजन से छूट देता है. किसी ऐसे व्यक्ति पर यह सिद्धांत लागू नहीं हो सकता जो नियमित आधार पर कार्यकारी आदेश जारी करते हों.’

राजनीति के लिए बड़ी धनराशि जरूरी
अरविंद केजरीवाल की नवगठित ‘आम आदमी पार्टी’ के बारे में यह पूछे जाने कि उससे क्या उम्मीदें हैं, हेगड़े ने इसकी सफलता पर संदेह जताते हुए कहा कि यह आसान काम नहीं है. उन्होंने कहा, ‘मेरी आशंका सिर्फ यह है कि आजकल के माहौल में राजनीतिक व्यवस्था की इतनी मांगों के कारण कोई राजनीतिक दल कैसे खुद को बरकरार रख पाएगा. कश्मीर से कन्याकुमारी तक से संसद के करीब 546 सदस्यों के निर्वाचन के लिए बड़ी धनराशि चाहिए होती है. यह कोई आसान काम नहीं है.’

न्‍यायपालिकाओं में भी अनियमितताएं
हेगड़े ने कहा, ‘सैद्धांतिक तौर पर यह अच्छी चीज है लेकिन क्या हकीकत में यह सफल हो सकती है.’ न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को लेकर केजरीवाल के संभावित खुलासों के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘क्या हमने न्यायपालिका में अनियमितताओं के बारे में नहीं सुना? उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश थे जिनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई थी लेकिन यह पूरी नहीं हुई. एक मुख्य न्यायाधीश जिनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू हुई थी. न्यायमूर्ति दिनाकरण, जिन्होंने इस्तीफा दे दिया इसलिए कार्यवाही समाप्त हो गयी.’

हेगड़े ने कहा, ‘कलकत्ता उच्च न्यायालय के सौमित्र सेन थे. उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई और बंद हो गयी, आगे कहीं नहीं पहुंची. पंजाब उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया गया. इलाहाबार उच्च न्यायालय के 34 न्यायाधीशों के खिलाफ सीबीआई जांच कर रही है.’ उन्होंने कहा, ‘इसलिए वहां भी भ्रष्टाचार है और उनके पास कुछ न्यायाधीशों के खिलाफ कुछ सामग्री जरूर होगी.’

मजबूत लोकपाल की जरूरत
क्या न्यायपालिका के भीतर भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए आत्म-नियमन एक तरीका है, इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘हमने इसका प्रयास किया और इसमें सफलता नहीं मिली. हमने इतने सालों तक इसका प्रयास किया. न्यायपालिका के बारे में सभी ने कहा कि हम आत्म-नियमन करेंगे, हम नियंत्रण करेंगे, उच्च अदालतें निचली अदालतों पर नजर रखेंगी. कुछ भी नहीं हुआ.’ हेगड़े से जब पूछा गया कि क्या वह ऐसा लोकपाल चाहते हैं जिसे न्यायाधीशों के खिलाफ जांच करने और उन पर मुकदमा चलाने का अधिकार हो तो उन्होंने सहमति जताई.

उन्होंने कहा, ‘न्यायाधीशों की जांच कौन करेगा? कोई तो होना चाहिए. आप सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की एक अलग जांच सतर्कता इकाई चाहते हैं तो इसे बनाएं, यह ठीक है लेकिन यह भी जांच के दायरे से बाहर नहीं होनी चाहिए.’ हेगड़े ने कहा, ‘जिस न्यायाधीश की जांच हो रही है वह उसी संस्था, अदालत में जा सकते हैं जिसमें वह एक न्यायाधीश हैं और फिर वह जांच पर सवाल उठा सकते हैं.’

केजरीवाल की पार्टी की सफलता पर हेगड़े को संदेह


आम आदमी पार्टी को बने अभी कुल जमा एक हफ्ता भी नहीं हुआ है और उसकी सफलता और असफतला को लेकर कयास लगने शुरू हो गए हैं। कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त और टीम अन्ना के सदस्य संतोष हेगड़े ने अरविंद की पार्टी की सफलता पर आशंका जताई है। उन्होंने कहा कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक 546 सदस्यों को चुनने के लिए एक बड़ी रकम की जरूरत पड़ती है। यह कार्य इतना आसान नहीं है।

उन्होंने कहा कि आज के समय में किसी भी राजनीतिक पार्टी को चलाने के लिए काफी चीजों की जरूरत पड़ रही है। संतोष ने कहा कि पार्टी के विचार में कई अच्छी बाते हैं पर सवाल यह है कि क्या वह सफल हो पाएंगे? उन्होंने यह सारी बाते उस सवाल के जवाब में कही जिसमें उनसे पूछा गया था कि अरविंद की पार्टी आगे कैसा प्रदर्शन करेगी। संतोष हेगड़े से पहले इसी तरह का सवाल अरविंद की पार्टी को मिले चंदे को लेकर उठा था। पार्टी की शुरुआत के दिन कुल एक करोड़ दो लाख 34 हजार रुपए चंदे के रूप में मिले थे। इसमें एक करोड़ अकेले शांति भूषण ने दान किए थे। 

हेगड़े ने आम आदमी पार्टी के साथ वर्तमाम लोकपाल के मसौदे पर कहा कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखने में कोई बुराई नहीं है आखिर वह भी एक लोक सेवक हैं। क्या दूसरे देशों में प्रधानमंत्री पर मुकदमा नहीं चलाया जाता? आप जापान में देखे की हर दूसरे साल एक प्रधानमंत्री पर मुकदमा चलाया जाता है। पूर्व अमेरिका राष्ट्रपति निक्सन पर मुकदमा चला है। प्रधानमंत्री के विषय में आखिर क्या महान बात है? 

जहां एक ओर आम आदमी पार्टी की सफलता के विषय में संदेह व्यक्त किया जा रहा है। वहीं पार्टी अगले साल होनेवाले मध्यप्रदेश चुनाव में हाथ आजमाने की तैयारी कर रही है। आम आदमी पार्टी के राज्य समिति सदस्य शरद सिंह कुंभरे ने आज बताया कि पार्टी मध्यप्रदेश में राज्य समिति और 45 जिला स्तर की समिति पहले ही बना चुकी है। आनेवाले दिनों में ब्लाक स्तर की समितियां भी बनाई जाएंगी। हमरा प्रयास है कि हर गांव में 8-9 सदस्य हो। चुनाव में हमारा मुख्य मुद्दा भ्रष्टाचार, विकास, महिलाओं के खिलाफ अपराध के साथ ही कानून व्यवस्था को लेकर होगा। 

किसी के बाप की जायदाद नहीं है आम आदमी


अरविंद केजरीवाल अब सिर्फ भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता नहीं रहे हैं। वह लगातार राजनीतिक पार्टियों के लिए एजेंडा सेट कर रहे हैं। देश की दो सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस अब तक भारतीय वोटरों पर अपना एकाधिकार समझती रही हैं। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने इन दोनों पार्टियों को ठीक-ठाक परेशान कर रखा है। जब अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी पर सवाल उठाए तो कांग्रेस को बड़ी राहत मिली। लेकिन उस राहत को सत्ताधारी पार्टी सलीके से एंजॉय भी नहीं कर पाई थी कि अरविंद ने उसके लिए नई परेशानी तैयार कर दी। उनकी राजनीतिक पार्टी का नाम। अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी का नाम रखा है आम आदमी पार्टी। लेकिन इससे कांग्रेस क्यों परेशान है? क्योंकि कांग्रेस को लगता है कि 'आम आदमी' उसका है। आजादी के वक्त से ही वह 'कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ' जैसे नारों से देश के आम आदमियों को हांकती आई है।

अरविंद केजरीवाल के इस कदम से केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी और पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह कुछ ज्यादा ही परेशान हैं। दिग्विजय तो इतने चिढ़े हुए हैं कि उन्होंने पार्टी का नाम 'आम आदमी पार्टी' रखने को अरविंद केजरीवाल का बौद्धिक दीवालियापन करार दे दिया क्योंकि आम आदमी उनकी पार्टी के वजूद का आधार रहा है। इसलिए इन दो महानुभावों को लगता है कि नारों में आम आदमी का इस्तेमाल करने से यह उनका हो गया है। कितने समझदार हैं ये लोग! इनके तर्क पर जरा विचार कीजिए। इस हिसाब से तो हाथ भी पार्टी की ही संपत्ति हो गया है। सबका हाथ। मेरा और आपका भी। क्योंकि हाथ तो उनका चुनाव निशान है।

बीजेपी अलग परेशान है। हमारे देश की मुख्य विपक्षी पार्टी को लगता है कि देश के हर आदमी को परेशान और प्रभावित करने वाला मुद्दा यानी भ्रष्टाचार उसने थाली में सजा कर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को दे दिया। इस तरह बीजेपी के पास इस मुद्दे पर नेतृत्व करने के बजाय अपना-सा मुंह लेकर इस आंदोलन के पीछे चलने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया है।

कहीं न कहीं इन दलों के लिए अफसोस भी होता है। इनके पास एक इतिहास है। ऐतिहासिक नेतृत्व है। लेकिन ये सब एक खोल में जी रहे हैं। जिस तरह से ये बदलावों को नजरअंदाज कर रहे हैं, वह अविश्वसनीय है। आजादी के बाद से ही आम आदमी राजनीतिक पार्टियों के लिए 'पवित्र गाय' रहा है। उसे हर पार्टी ने बेशर्मी से दुहा है। उसका फायदा उठाया है। एक बार एक पूर्व कैबिनेट सचिव ने मुझे बताया था कि अगर आप किसी योजना को कैबिनेट मीटिंग में बिना किसी विरोध के पास करना चाहते हैं तो बस किसी तरह ऐसा दिखाइये कि यह योजना आम आदमी के लिए है। और उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर आप योजना को रोकना चाहते हैं तो इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ दीजिए। कोई आप पर सवाल नहीं उठाएगा।

लेकिन अब यह तरीका ज्यादा काम नहीं करता। क्योंकि सच यह है कि अब आम आदमी गधा नहीं रहा है, जैसा कि इन पार्टियों को लगता है। वह अब इस खेल को समझने लगा है। ये पार्टियां आम आदमी को कितना गलत समझती हैं, इसका अंदाजा भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को शहरी इलाकों के बाहर मिलने वाले समर्थन से ही लगाया जा सकता है।

वे सब लोग, जो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को महज फेसबुक और ट्विटर का शिगूफा कहकर खारिज कर रहे थे, फर्रुखाबाद की रैली में जुटी भीड़ देखकर उनकी आंखें फटी की फटी रह गई थीं। मेरी एक ‘राष्ट्रीय’ दल के नेता से बात हुई। उन्होंने गुपचुप माना कि वे अगर आने-जाने का प्रबंध करें और बाकी खर्च उठाएं, तब भी उन्हें इतनी भीड़ जुटाने में मुश्किल हो जाएगी। न चाहते हुए ही सही, ये हुजूर कम से कम मान तो रहे थे कि आम आदमी भ्रष्टाचार विरोधी ब्रिगेड की इस बात से प्रभावित हो रहा है कि अब उसे बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता।

जहां तक इस आरोप की बात है कि अरविंद केजरीवाल ने 'आम आदमी' नाम रखकर ठीक नहीं किया क्योंकि वह किसी और का है, तो राजनीति और निशानों के मामले में इसकी सबसे बेशर्म मिसाल तो कांग्रेस का झंडा है। यह हमारे राष्ट्रीय झंडे की नकल है। बस अशोक चक्र की जगह हाथ लगा दिया है। किसी को सही अधिकारियों से यह पूछना चाहिए कि इसे बदला क्यों नहीं जाना चाहिए। इससे तो 'भोलेभाले' आम आदमी को यह संदेश जाता है कि कांग्रेस और देश दोनों लगभग एक ही चीज हैं। ऐसा है क्या?
(राजेश कालरा)

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छात्र युवा सम्मेलन में अन्ना भी शामिल होंगे


जागरण संवाददाता, वाराणसी : काशी विद्यापीठ में शिक्षा के बाजारीकरण व बेरोजगारी के खिलाफ 12 दिसंबर को मध्याहृन 12 बजे छात्र युवा सम्मेलन बुलाया गया हैं। इसमें समाजसेवी अन्ना हजारे, पूर्व जनरल वीके सिंह व वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारती भी शामिल हो रहे हैं। 

यह जानकारी सोमवार को मैदागिन स्थित पराड़कर स्मृति भवन में आयोजित पत्रकारवार्ता में छात्र युवा संघर्ष मोर्चा के संयोजक डॉ. उमेश सिंह व काशी विद्यापीठ के छात्रसंघ महामंत्री दिलीप कुमार ने संयुक्त रूप से दी। उन्होंने बताया कि इस सम्मेलन में पूर्वाचल के कई विश्वविद्यालयों व कॉलेजों के छात्र शामिल होंगे। सम्मेलन की सफलता के लिए 27 दिसंबर से विश्वविद्यालयों, कॉलेजों के आलावा अन्य संगठनों से जनसंपर्क अभियान शुरू किया जाएगा। पत्रकार वार्ता के दौरान विद्यापीठ छात्रसंघ के पूर्व महामंत्री नीरज सिंह, हरिश्चंद्र के शैलेंद्र सिंह, बलदेव पीजी कॉलेज, राममनोहर लोहिया पीजी कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष प्रभुनारायण पटेल, उपाध्यक्ष कन्हैया लाल पटेल सहित अन्य कॉलेजों के अन्य छात्र भी उपस्थित थे।

सत्ता में 'एएपी' तो भ्रष्ट मंत्रियों को छह माह में जेल : केजरीवाल


नई दिल्ली . अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को आम आदमी पार्टी (एएपी यानी आप) की औपचारिक शुरुआत की। उन्होंने कहा कि पार्टी सत्ता में आई तो छह महीने में भ्रष्ट मंत्रियों को जेल भेज दिया जाएगा। महल 15 दिन में जन लोकपाल कानून संसद में पारित होगा। 

नई पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल ने संसद मार्ग पर बड़ी तादाद में एकत्रित भीड़ को संबोधित किया। उन्होंने कहा, 'देश में भ्रष्ट मंत्रियों की लिस्ट खत्म नहीं होने वाली। शेष पेजत्न४ 



इन सभी लोगों पर मुकदमा चलना चाहिए। इन्हें आरोप साबित होने पर जेल भेजा जाना चाहिए।' उनके साथ पार्टी का संविधान लिखने वाले शांति भूषण और पूर्व नेवी चीफ एडमिरल रामदास भी थे। केजरीवाल ने कहा, 'नई पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम का नतीजा है। अब क्रांति की शुरुआत हो चुकी है। अब आम आदमी संसद में जाएगा और नेता बाहर आएंगे। अब नेताओं और उस आम आदमी के बीच सीधी लड़ाई होगी। आम नागरिक 65 साल पहले मिली आजादी के बाद से अपने हक के लिए लड़ रहा है।' 

महात्मा गांधी और आंबेडकर की समाधि पर श्रद्धांजलि: 

पार्टी की औपचारिक शुरुआत से पहले केजरीवाल और उनके कुछ समर्थक पहले महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर गए। फिर बीआर आंबेडकर मेमोरियल गए। 'आम आदमी पार्टी' की शुरुआत के लिए 26 नवंबर की तारीख चुनी गई। क्योंकि 1949 में इसी दिन देश का संविधान स्वीकार किया गया था। एनएसजी के सभी कमांडो को भी श्रद्धांजलि दी गई। जिन्होंने चार साल पहले 26 नवंबर के ही दिन मुंबई पर हुए हमले में आतंकियों का डटकर मुकाबला किया था। 


यह है राष्ट्रीय कार्यकारिणी: 

अरविंद केजरीवाल (राष्ट्रीय संयोजक), पंकज गुप्ता (राष्ट्रीय सचिव), कृष्णकांत सेवदा (कोषाध्यक्ष), मनीष सिसौदिया, गोपाल राय, प्रशांत भूषण, संजय सिंह, डॉ. कुमार विश्वास, नवीन जयहिंद, दिनेश वाघेला, योगेंद्र यादव, प्रोफेसर अजीत झा, क्रिस्टीना, प्रोफेसर आनंद कुमार, शाजिया इल्मी, हेबंग प्यांग, योगेश दहिया, अशोक अग्रवाल, इलियास आजमी, सुभाष वारे, मयंक गांधी, राकेश सिन्हा और प्रेमसिंह पहाड़ी। पार्टी के इंटरनल लोकपाल में झारखंड हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस भगवती प्रसाद शर्मा और एडमिरल रामदास होंगे। 



दो घंटे में बने 15 हजार सदस्य: 

आम आदमी पार्टी की सदस्यता के लिए भारी भीड़ उमड़ी। सुबह 11 बजे तक सदस्यता फार्म खत्म हो गए थे। दो घंटे में 15 हजार फार्म भरे गए। पहले दिन पार्टी का सदस्य बनने वाले संस्थापक का दर्जा पाएंगे। सभी के नाम पार्टी की वेबसाइट पर डाले जाएंगे। 

दूसरों की आलोचना से पहले खुद को साबित करें केजरीवाल : अनुपम खेर


एशिया के पांचवें और भारत के इकलौते सर्वश्रेष्ठ अभिनेता अनुपम खेर ने आई.ए.सी के सदस्य अरविनंद केजरीवाल को कहा अब सब छोड़े काम पर ध्यान दें।

मध्य प्रदेश सरकार के कालिदास सम्मान से विभूषित खेर ने रविवार को कहा कि केजरीवाल ने उनसे कोई सुझाव तो नहीं मांगा है, मगर उनका सुझाव है कि अब वह काम करें। खेर ने कहा कि केजरीवाल को दूसरे की त्रुटियां गिनाकर अपने आपको अच्छा बताने की कोशिशें बंद कर देना चाहिए, ऐसा करने का वक्त गुजर चुका है। मतलब, कह रहे हैं आज के हिसाब से चलो।

अनुपम खेर ने आगे कहा कि केजरीवाल अपने को दूसरों से अच्छा व अलग बताते रहे हैं लिहाजा उन्हें अब अपने काम के जरिए दूसरों से अलग बताना होगा। इतना ही नहीं उन्होंने अब तक जो वादे किए हैं, उन्हें पूरा करने के प्रयास करना चाहिए।

रंगकर्मी एवं अभिनेता अनुपम खेर मध्य प्रदेश एक कार्यक्रम मे शरीक हुए थे, जहां उन्हें संस्कृति विभाग से स्थापित 'कालिदास सम्मान' से सम्मानित किया गया है। खेर को यह सम्मान शनिवार को संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने अखिल भारतीय कालिदास समारोह में प्रदान किया।

समारोह में खेर ने कहा कि यह उनके 28 साल के करियर का सबसे बड़ा सम्मान है, जिसे पाकर वे बेहद खुश हैं। उन्होंने कहा कि सपने देखना गलत नहीं, सपने देखना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि सपने देखेंगे तभी उन्हें साकार करने का प्रयास करेंगे। उन्होंने जो सपने देखे थे, उन्हें अपनी जिंदगी में पूरा भी किया। खेर ने सम्मान में मिली दो लाख की राशि उज्जैन के स्थानीय कलाकारों को भेंट कर दी।

ये बात तो सही कही। केजरीवाल को नही भूलना चाहिए कि आज जिस तरह आप लोगों पर उंगलियां उठा रहें हैं। एक ऐसै समय भी आ सकता जब कोई आपकी पोल खोले। इसलिए आपने जो बातें आम जनता से कही है। उसे पूरा करने का प्रयास करें। और अब आपकी पार्टी बन ही चुकी है तो अब काम पे लग जाओ।

मानसिक रूप से दिवालिया हो चुके हैं केजरीवाल : दिगि्वजय

नई दिल्ली। काग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने अरविंद केजरीवाल का मजाक उड़ाते हुए आरोप लगाया है कि उन्होंने अपनी पार्टी का नाम रखने के लिए उनकी पार्टी की थीम आम आदमी को ही अपनाया है। उन्होंने कहा कि इससे केजरीवाल के बौद्धिक दिवालियापन का पता चलता है। अखिल भारतीय क्षत्रिय संघ [एआइकेएफ] के कार्यक्रम में उन्होंने केजरीवाल की आलोचना करते हुए कहा कि अब पहले उन्हें सासद, विधायक या पार्षद बन जाने दीजिए। उसके चुनाव लड़ें। दिग्गी ने केजरीवाल पर वार करते हुए उन्हें चैलेंज किया है कि पार्टी बनाना, चुनाव लड़ने से नहीं होता है चुनाव में जीतकर दिखाए तो जाने।

गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी [आप] की घोषणा के ठीक एक दिन बाद रविवार को अरविंद केजरीवाल ने बताया कि वह अगले एक वर्ष में पूरे देश का दौरा करेंगे। इस दौरान वह काग्रेस और भाजपा की सच्चाई लोगों के सामने लाने के साथ ही अपनी पार्टी के लिए समर्थन भी जुटाएंगे।

अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों और 2014 के आम चुनावों के मद्देनजर केजरीवाल ने देश की राजनीति में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए युवाओं से साथ आने का आह्वान किया है। राजघाट पर अपने समर्थकों के बीच उन्होंने कहा कि काग्रेस और भाजपा ने लोगों का सिर्फ इस्तेमाल किया है। दोनों ही दलों ने आम आदमी की कभी परवाह नहीं की।

केजरीवाल ने कहा कि वहा देश को लूटने वाले लोग बैठे हैं। अब युवाओं ने सामने आकर उन्हें संसद से बाहर करने का फैसला कर लिया है। सोमवार को जंतर-मंतर पहुंचने वाले युवाओं को पार्टी का संस्थापक सदस्य बनाया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि आप मौजूदा राजनीतिक दलों से अलग है। पार्टी सोमवार को ही लाच होने वाली अपनी वेबसाइट पर चंदे और खर्च का ब्योरा जारी करती रहेगी। पार्टी सदस्यों के लिए दिशा-निर्देशों की श्रृंखला तय की गई है। केजरीवाल अगले एक वर्ष के भीतर देश के हर गाव और कस्बे का दौरा कर काग्रेस व भाजपा की वोट बैंक की नीति के खिलाफ लोगों को जागरूक करने की कोशिश करेंगे।

केजरीवाल के निशाने पर जम्मू-कश्मीर के मंत्री


श्रीनगर। केंद्र में सत्ताधारी संप्रग और फिर भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले 'आम आदमी पार्टी' के अरविंद केजरीवाल का अगला निशाना जम्मू-कश्मीर के मंत्री, राजनीतिज्ञ और नौकरशाह होंगे। वह अगले माह कश्मीर आकर भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे।

केजरीवाल के नजदीकी सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार के लिए बीते दो सालों से सिरदर्द बने केजरीवाल ने जम्मू-कश्मीर में सक्रिय अपने सहयोगियों के आग्रह पर ही यहां आने का फैसला किया है। केजरीवाल ने भी माना है कि राज्य में भ्रष्टाचार सीमाएं लांघ रहा है। उन्होंने दावा किया है कि वह राज्य के विभिन्न मजहबी संगठनों, पत्रकारों और समाजसेवी संगठनों के साथ लगातार संपर्क में हैं। इन लोगों ने उन्हें जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चे पर हर प्रकार का सहयोग देने का यकीन दिलाया है।

जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत अभियान समय की जरूरत है। केजरीवाल के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के नौजवान उनका इस अभियान में पूरा साथ देंगे। उनके समर्थकों ने जम्मू कश्मीर में भ्रष्ट मंत्रियों और नौकरशाहों के खिलाफ सभी आवश्यक दस्तावेज भी जुटाना शुरू कर दिए हैं।

अब क्रांति की शुरुआत हो चुकी है : अरविंद केजरीवाल

नई दिल्‍ली : जंतर-मंतर पर सोमवार को अपनी पार्टी `आम आदमी पार्टी` की शुरुआत करने जा रहे अरविंद केजरीवाल ने आज लोगों से अपील की है कि भारत के बेहतर भविष्‍य के लिए वे प्रार्थना करें। 

ट्वीटर पर अपने एक संदेश में केजरीवाल ने लिखा, ` मैं देश के सभी निवासियों से भारत के लिए प्रार्थना करने का आग्रह करता हूं। क्रांति की शुरुआत हो चुकी है। बेहतर भविष्‍य के लिए प्रार्थना करें`। 

केजरीवाल ने अपने संदेश में कहा कि आज बहुत बडा दिन है। इतिहास रचा जाएगा। भ्रष्‍ट राजनीतिक व्‍यवस्‍था को उखाड़ फेंकने के लिए आज आदमी एकजुट होकर सीधे राजनीति में आएं। सामाजिक कार्यकात से राजनेता बने केजरीवाल ने कहा कि मैं बाबा साहेब अंबेडकर मेमोरियल पर श्रद्धांजलि देने के लिए जा रहा हूं ताकि उस दिशा में काम करूं जिसकी परिकल्‍पना उन्‍होंने देश के लिए की थी। 

केजरीवाल ने अपने संदेश में यह भी कहा कि आम आदमी अब चुनाव लड़ेगा, आम आदमी वोट डालेगा, आम आदमी अभियान चलाएगा, आम आदमी योगदान एवं दान देगा, आम आदमी चुनाव में खड़ा होगा। 

गौर हो कि अरविंद केजरीवाल को नवगठित दल ‘आम आदमी पार्टी’ का राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया है। उन्होंने कहा कि वह देश भर में घूम कर भाजपा और कांग्रेस का पर्दाफाश करेंगे। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की पहली बैठक में पंकज गुप्ता को राष्ट्रीय सचिव चुना गया जबकि कृष्णकांत कोषाध्यक्ष बनाए गए। राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 23 सदस्यों ने इन तीनों को आम सहमति से चुना। 

प्रशांत भूषण ने कहा कि कार्यकारी समिति द्वारा इन लोगों को चुनाव आयोग में पंजीकरण कराने के लिये अधिकृत किया गया है। हमने चंदा लेने के लिये और बैंक अकांउट खोलने के लिए कदम भी उठाए हैं। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मंगलवार और बुधवार को बैठक होनी है जबकि पार्टी का स्थापना समारोह कल आयोजित होगा। आज समारोह से पहले केजरीवाल और उनके समर्थक राजघाट और भीमराव अंबेडकर के प्रति सम्मान जाहिर करने अंबेडकर भवन जाएंगे। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों और 2014 के लोकसभा चुनावों पर नजर लगाये केजरीवाल ने युवाओं से अनुरोध किया है कि देश की राजनीतिक व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव के लिए पूरी तरह उनके साथ जुड़ें।

राजघाट के समीप समर्थकों को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने कांग्रेस और भाजपा को आड़े हाथों लेते हुये कहा कि दोनों दल लोगों को वोटों के लिये इस्तेमाल करते हैं और बाद में उनकी सुध नहीं लेते। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने भारत को खूब लूटा है। अब लोगों ने आगे आने का और उन्हें संसद से बाहर करने का फैसला किया है। इसलिए मैं सभी युवाओं से कल जंतर मंतर आने का आह्वान करता हूं और उन्हें पार्टी के संस्थापक सदस्य का दर्जा दिया जाएगा। आम आदमी पार्टी के अन्य संगठनों से अलग होने का दावा करते हुए केजरीवाल ने कहा कि कल जारी हो रही संगठन की वेबसाइट पर सभी चंदों और खर्च का ब्योरा डाला जाएगा। उन्होंने कहा कि हमने पार्टी सदस्यों के लिए दिशा निर्देश तय किये हैं। मैं केवल उन लोगों को जोड़ना चाहता हूं जो पूर्णकालिक काम कर सकें और कोई भी चुनावों के दौरान वोटों के लिहाज से धन लेने की गतिविधि में शामिल नहीं हो। केजरीवाल ने यह भी कहा कि वह कांग्रेस और भाजपा की वोट बैंक की राजनीति के खिलाफ लोगों को जागरूक करने की कोशिश में अगले एक साल तक देश के तकरीबन हर गांव और शहर में जाएंगे। 


आम आदमी पार्टी के लॉन्च का सीधा प्रसारण लाइव


केजरीवाल पर वृत्तचित्र, जरूर देखें और शेयर करें

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अलग रास्ते से होगा जनता का नुकसान


जनांदोलनों के लिहाज से साल 2011 पूरी दुनिया के लिए खास था। उसी समय भारत में भी अन्ना हजारे ने जनलोकपाल कानून की मांग पर जबर्दस्त आंदोलन छेड़ा। लेकिन समय के साथ टीम अन्ना में मतभेद पैदा हो गए और इस साल 10 सितम्बर को टीम अन्ना का विभाजन हो गया। अन्ना ने 28 सितम्बर को अपने ब्लॉग में केजरीवाल पर आरोप लगाते हुए लिखा कि ' दुर्भाग्य से आंदोलन विधेयक आने के पहले ही बंट गया। कुछ लोग राजनीतिक रास्ता अपनाना चाहते हैं , तो कुछ आंदोलन को जिंदा रखना चाहते हैं ' । 9 अक्टूबर को अन्ना हजारे ने 15 सदस्यीय समन्वय समिति की घोषणा की , जिसमें आठ पुराने और सात नए सदस्य शामिल किए गए। अन्ना की यह नई टीम गैर राजनैतिक तरीके से भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को और आगे बढ़ाएगी। बड़ा सवाल यह है कि जन लोकपाल आंदोलन का क्या होगा ? अन्ना का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन कहां तक पहुंच पाएगा ? क्या केजरीवाल राजनीति के रास्ते राजनीति का सुधार और शुद्धिकरण कर पाएंगे ? 

कौन-कौन हैं टीम अन्ना और टीम केजरीवाल में जानें... 

अन्ना हजारे विगत पिछले कई साल से सामाजिक आंदोलनों , अहिंसा , सत्याग्रह आदि के द्वारा मजबूत लोकपाल , सत्ता के विकेन्द्रीकरण , चुनाव सुधार , राइट टु रिजेक्ट , सिटिजन चार्टर और व्यवस्था परिवर्तन की मांग को पुरजोर तरीके से उठाते रहे हैं। केजरीवाल के अन्ना से अलग होने से जनलोकपाल आंदोलन की गति मंद जरूर हुई है , लेकिन अन्ना के नए तेवर और टीम से नई ऊर्जा का प्रवाह भी हुआ है। आंदोलन प्रभावित हुआ है , लेकिन खत्म नहीं। 

अरविंद केजरीवाल ने अपने राजनीतिक दल की घोषणा कर दी है। अन्ना की टीम से अलग होने के बाद केजरीवाल ने धमाकेदार राजनीतिक पारी की शुरुआत मीडिया के ब्रेकिंग न्यूज और बड़े-बड़े खुलासों के जरिए की है। जहां पिछले कुछ दिनों से इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में बहस का केंद्र बने हुए हैं , वहीं वे किसी एक मुद्दे को उठाकर उसे नतीजे तक ले जाने में असमर्थ रहे हैं। कई मुद्दे एक साथ उठाने और उन्हें बीच में ही छोड़ते जाने का एक बुरा नतीजा यह हो सकता है कि केजरीवाल मुद्दों में ही खो जाएं और भ्रष्टाचार के गंभीर एवं संगीन मुद्दे जनता को मजाक लगने लगें। फेसबुक , ट्विटर , सोशल मीडिया और एनजीओ के जरिए महानगर केंद्रित आंदोलन चलाने और जनता के बीच राजनीतिक स्वीकृति स्थापित करने में गुणात्मक अंतर है। शहरी आंदोलन को गांव में ले जाना न सिर्फ चुनौतीपूर्ण है , बल्कि समाज से ईमानदार एवं साफ-सुथरी छवि के लोगों का चयन और भी कठिन है। 

ऐसा न हो कि केजरीवाल और उनकी टीम राजनीति के दलदल में फंसकर लक्ष्य को ही भूल जाएं और प्रबंधन के महत्वपूर्ण सिद्धांत ' लक्ष्य स्थानांतरण ' के आधार पर व्यवस्था-परिवर्तन से कोसों दूर चले जाएं। अन्ना और केजरीवाल के सामाजिक आंदोलन और राजनीतिक मार्ग कितने कामयाब होते हैं , ये तो समय ही बताएगा। लेकिन इसमें कोई दो मत नहीं है कि इन दोनों के अलगाव से भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन प्रभावित हुआ है और अंतत: नुकसान आम जनता का ही हुआ है। 

केजरीवाल पहले पार्षद या विधायक तो बनें : दिग्विजय


भुवनेश्वर : अरविंद केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’ पर चुटकी लेते हुए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने रविवार को कहा कि केजरीवाल ने अपने राजनीतिक दल का नाम रखने में कांग्रेस पार्टी की सोच को अपनाया है।

दिग्विजय ने शब्द ‘आम आदमी’ के इस्तेमाल के संबंध में संवाददाताओं से कहा,‘यह केजरीवाल के बौद्धिक दिवालिएपन को झलकाता है।’

अखिल भारतीय क्षत्रिय संघ के एक समारोह में शामिल होने भुवनेश्वर आए कांग्रेस नेता ने केजरीवाल के राजनीतिक दल की आलोचना करते हुए कहा, ‘पहले केजरीवाल सांसद या विधायक बनें या पाषर्द ही बनकर दिखाएं।’

ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजद और ओडिशा जन मोर्चा द्वारा एक दूसरे पर कांग्रेस की ‘बी’ टीम होने के आरोपों के सबंध में पूछे गए सवाल पर सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और प्यारीमोहन मोहपात्र को फैसला करना चाहिए कि वे क्या हैं।

सरकार मजबूत नहीं मजबूर लोकपाल बना रही है: बाबा रामदेव

इंदौर: योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा है कि केंद्र सरकार मजबूत नहीं बल्कि मजबूर लोकपाल बना रही है। बाबा रामदेव ने कल उज्जैन से लौटते हुये यहां पत्रकारों से संक्षिप्त बातचीत में यह विचार व्यक्त किया। उन्होने कहा कि संभावना है कि लोकपाल विधेयक संसद में पारित हो जाये लेकिन सरकार मजबूर लोकपाल बनाएगी, यह बात पक्की है।

उन्होने कहा कि लोकपाल के साथ महत्वपूर्ण बात यह है कि अन्य चार संस्थाए केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सी बी आई) केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) और चुनाव आयोग इन चारो संस्थाओ के प्रमुखों की नियुक्ति भी निष्पक्ष होनी चाहिए तथा सी बी आई को स्वायत्त होना चाहिए क्योकि अकेले लोकपाल से भ्रष्टाचार नहीं मिट सकता है। उन्होंने कहा कि चुनाव में  भ्रष्टाचार का नियंत्रण चुनाव आयोग ही करेगा तथा भ्रष्टाचार के खात्मे के लिये फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाने पडेंगें।

उन्होंने हाल ही में सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति को लेकर कहा कि सी वी आई प्रमुख की नियुक्ति के लिए एक व्यक्ति एक सत्ता पक्ष का, एक विपक्ष का और एक उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायधीश होना चाहिये। उन्होने कहा कि सीबीआई, सीवीसी कैग और चुनाव आयोग पांचो संस्थाओ के प्रमुख भी नियुक्ति के लिए एक ही प्रकिया अपनायी जानी चाहिए।

कोई मुकाबला नहीं अन्ना हजारे के करिश्मे का


वैसे तो अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे के रास्ते अलग-अलग हैं , लेकिन उन दोनों में कौन लंबी रेस का घोड़ा होगा , इस बात पर सबकी नजर है। जानकारों की राय में केजरीवाल भले ही भीड़ जुटा लें , लेकिन अन्ना के करिश्मे का मुकाबला नहीं कर सकते। इस बात की भी संभावना है कि कुछ साल बाद केजरीवाल फिर वापस अन्ना की राह पकड़ लें। लेकिन टीम अन्ना की कॉर्डिनेशन कमिटी के लोगों के बीच जिस तरह मनभेद दिख रहा है , उससे टीम को एकजुट करना अन्ना के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। 

पॉलिटिकल एक्सपर्ट एस. पी. सिंह कहते हैं कि अन्ना की ताकत नैतिक है। जो साख अन्ना की है , वह केजरीवाल की नहीं है। पब्लिक में अन्ना का असर केजरीवाल से ज्यादा है। इसे भीड़ से नहीं आंकना चाहिए। केजरीवाल के पास इवेंट मैनेज करने और मीडिया मैनेजमेंट का तजुर्बा है , इसलिए वह शहरी इलाकों में नजर आते हैं। आम जनता आदर्श के साथ रही है , इसलिए अन्ना के साथ ज्यादा है। केजरीवाल के साथ पॉजिटिव यह है कि वह युवा हैं। अन्ना की टीम पूरी तरह उन पर निर्भर करती है और उनकी उम्र उनके साथ नहीं है। दोनों टीमों के मिलने की संभावना कम है। राजनीतिक तौर पर केजरीवाल ज्यादा मजबूत और नैतिक तौर पर अन्ना मजबूत हैं। असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के फाउंडर मेंबर जगदीप छोकर कहते हैं कि ऐसे वक्त में पॉलिटिकल पार्टी बनाना , जो दूसरी पार्टियों से अलग हो , और इसमें कामयाब होना 1-2 साल का खेल नहीं है , बल्कि इसमें 15-20 सालों का वक्त लग सकता है। तब तक पार्टी क्या रूप लेगी , यह देखनी वाली बात होगी। यह साहसपूर्ण काम है लेकिन यह लंबी रेस है। अन्ना का आंदोलन नैतिक ज्यादा है और केजरीवाल का एक्शन ओरिएंटेड। इसलिए दोनों की तुलना नहीं कर सकते। दोनों के साथ आने की संभावना अगर होगी भी तो लोकसभा चुनाव के बाद होगी। 


जेएनयू में पॉलिटिकल साइंस के प्रफेसर अश्विनी महापात्र कहते हैं कि सिविल सोसायटी मूवमेंट के नजरिए से देखें तो टीम अन्ना का लंबा असर होगा। केजरीवाल अभी खुलासे कर रहे हैं तो उनका आकर्षण है। लेकिन यह लंबे वक्त तक नहीं चलेगा। पॉलिटिकल पार्टी बनने से भी वह ज्यादा निशाने पर रहेंगे। वह जब दूसरी पार्टियों की बुराई निकाल रहे हैं तो दूसरी पार्टियां उन्हें भी टारगेट करेंगी। कुछ भी गलती करेंगे तो फिर किसी भी दूसरी पार्टी की तरह पब्लिक उन्हें भी उसी नजर से देखेगी। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि सिर्फ लोगों को इकट्ठा करके सत्ता में नहीं आ सकते। सरकार बनाना और उसे चलना बड़ा चैलेंज है। अन्ना का सोसायटी में अपना स्पेस है। अन्ना का मूममेंट सोसायटी के लिए अच्छा है। जब केजरीवाल का राजनीतिक मकसद पूरा नहीं हो पाएगा तो वह भी अन्ना के रास्ते पर ही लौट सकते हैं। लेकिन यह लोकसभा चुनाव के बाद ही हो सकता है। केजरीवाल की अपील शहरी इलाकों में ज्यादा है लेकिन अन्ना का जो करिश्मा है वह केजरीवाल के पास नहीं है। केजरीवाल भले ही भीड़ ज्यादा जुटा सकते हैं पर भारत भर में अन्ना की ही अपील है। 

अन्ना व केजरीवाल का कोई वजूद नहीं : स्वरूपानंद


जमशेदपुर : ज्योतिष पीठाधीश्वर व द्वारका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल का कोई वजूद नहीं है। ये दोनों कहीं भी कुछ भी बोल सकते हैं। इसलिए उन्हें गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। बाबा रामदेव का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि धर्म गुरू को राजनीति नहीं करना चाहिए। किसी राजनीतिक दल पार्टी के पक्ष या विपक्ष में बोलना या उसका प्रचार करना धर्म गुरू का काम नहीं है। धर्म गुरू का काम धर्म की सेवा और रक्षा करना है। उन्होंने कहा कि जिस तरह सरकार ने अजमल कसाब को उसके किए की सजा दी उसी तरह अब अफजल गुरू को जल्द से जल्द फांसी दे।

शंकराचार्य शनिवार को गुरु कृपा धाम सोनारी में पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नक्सलवाद की समस्या हथियारों से समाप्त नहीं होगी। यह समस्या अच्छे विचारों से समाप्त होगी और अच्छे विचार शिक्षा से आएंगे। इसलिए सरकार को नक्सल प्रभावित इलाकों में बेहतर शिक्षा के इंतजाम प्राथमिकता के आधार पर करने चाहिए। उन्होंने कहा कि घोर नक्सल प्रभावित पश्चिमी सिंहभूम जिले के मनोहरपुर में स्कूल खोलने के लिए मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा से बात हुई है और उनसे जमीन मांगी गई है।

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता राम जेठमलानी द्वारा श्रीराम को पति धर्म का पालन न करने वाला बताए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि राम जेठमलानी ने न तो भगवान श्रीराम को अच्छी तरह से समझा है और न रामायण ही अच्छी तरह से पढ़ा है। इसीलिए वे इस तरह का बयान दे रहे हैं। पहले वे श्रीराम को जानें, उसके बाद बयानबाजी करें। भ्रष्टाचार के सवाल पर उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार देश की सबसे बड़ी समस्या है। इसको जड़ से समाप्त करने के लिए हर स्तर से प्रयास होना चाहिए। हर व्यक्ति आज से ही ईमानदार प्रयास करना शुरू कर दे तो यह समस्या समाप्त होगी। उन्होंने कहा कि गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकार कड़े कानून बनाए। सरकार द्वारा किए गए अब तक के प्रयास नाकाफी हैं। इसलिए इलाहाबाद में लगने वाले कुंभ में साधु संतों की एक बैठक आयोजित की जाएगी, इसमें सभी वर्गो के लोगों को आमंत्रित किया जाएगा और सबकी राय से गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए रणनीति बनाई जाएगी।

यूपीए सरकार का 48 लाख करोड़ का महाघोटाला



जबसे यूपीए सरकार बनी है, तबसे देश में घोटालों का तांता लग गया है. देश के लोग यह मानने लग गए हैं कि मनमोहन सिंह सरकार घोटालों की सरकार है. एक के बाद एक और एक से बड़ा एक घोटाला हो रहा है.  आज हम कोयला घोटाले से भी बड़े घोटाले का पर्दाफाश कर रहे हैं. यह घोटाला कोयला घोटाले से भी खतरनाक है, क्योंकि इसमें न स़िर्फ देश के बहुमूल्य खनिज की बंदरबांट हुई, बल्कि इस घोटाले का असर हिंदुस्तान के भविष्य पर भी होगा. मनमोहन सिंह सरकार के दौरान घोटाले का एक नया चेहरा सामने आया है. पहले जब घोटाला हुआ करता था तो उसमें पैसों की हेराफेरी होती थी. किसी बेईमान मंत्री या अधिकारी की करतूत की वजह से सरकारी डील में दलाली के पैसों की हेराफेरी होती थी. ज़्यादा पैसे देकर खराब माल लेकर घोटाला किया जाता था, लेकिन यूपीए सरकार के दौरान सीधे देश के बहुमूल्य खनिजों और खदानों को ही लूटकर घोटाले को अंजाम दिया जा रहा है. सरकारी नीतियों को बदल कर निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाना सरकार की नीति बन गई है. जो घोटाला आज हम आपके सामने रख रहे हैं, वह एक ऐसा घोटाला है, जिसके पैमाने और प्रभाव को जानकर आपके होश उड़ जाएंगे. यह घोटाला कम से कम 48 लाख करोड़ रुपये का है. यह थोरियम घोटाला है.

यूपीए सरकार की भी दास्तां अजीब है. सुप्रीम कोर्ट कहता है कि दाल में कुछ काला है तो सरकार कहती है कि यही सरकार की नीति है. सीएजी जब कहती है कि घोटाला हुआ है तो सरकार के मंत्री कहते हैं कि सब कुछ नियमों के मुताबिक हुआ और यह जीरो लॉस है. देश के संसाधन लुट जाते हैं. निजी कंपनियां पैसे कमा लेती हैं. मीडिया छाती पीटता रह जाता है और सरकार के मंत्री टीवी पर मुस्कुराते हुए कहते हैं कि प्रधानमंत्री शक के दायरे से बाहर हैं. एक नया घोटाला सामने आया है, लेकिन उम्मीद यही है कि सरकार इसे झुठला देगी या फिर जीरो लॉस थ्योरी जैसा कोई और तर्क सामने रखा जाएगा. लेकिन जब घोटाला 48 लाख करोड़ रुपये का हो तो उसे झुठलाने में कम से कम थोड़ी-बहुत हिचकिचाहट या शर्म तो ज़रूर आएगी.

सबसे पहले समझते हैं कि यह थोरियम क्या है. थोरियम एक रेडियोएक्टिव पदार्थ है, जिसका इस्तेमाल न्यूक्लियर रिएक्टर में ईंधन की तरह होता है. न्यूक्लियर साइंटिस्टों के मुताबिक, थोरियम के जरिए भारत में ऊर्जा की ज़रूरतें पूरी हो सकती हैं. भारत में थोरियम का सबसे बड़ा भंडार है. दक्षिण भारत के समुद्री किनारों पर थोरियम फैला हुआ है, जिसे हम कई सौ सालों तक इस्तेमाल कर सकेंगे. दुनिया के दूसरे देशों में थोरियम पत्थरों में पाया जाता है, स़िर्फ हमारे देश में यह साधारण बालू में मिलता है. इसे खनन करना एवं जमा करना आसान है और यह सस्ता है. विश्वविख्यात न्यूक्लियर साइंटिस्ट होमी जहांगीर भाभा ने सबसे पहले थोरियम के महत्व को समझा था. उन्होंने 1960 के दौरान थोरियम के इस्तेमाल की योजना बनाई थी. उन्होंने तीन चरणों वाला न्यूक्लियर कार्यक्रम तैयार किया था. उनका मानना था कि चूंकि देश और दुनिया में ज़्यादा मात्रा में यूरेनियम उपलब्ध नहीं है, इसलिए भविष्य के रिएक्टर थोरियम आधारित होने चाहिए. हिंदुस्तान में थोरियम की कमी नहीं है, इसलिए भविष्य में ऊर्जा की ज़रूरतें आराम से पूरी हो जाएंगी. न्यूक्लियर रिएक्टर अगर थोरियम आधारित है तो उसके कई ़फायदे होते हैं. पहला, यह यूरेनियम से बेहतर ईंधन है. 

यह यूरेनियम से बेहतर ऊर्जा उत्सर्जन करता है. यह यूरेनियम आधारित रिएक्टर से ज़्यादा सुरक्षित भी है. यही वजह है कि जापान सहित कई देश अपने-अपने यूरेनियम आधारित रिएक्टर को छोड़कर थोरियम आधारित रिएक्टर लगा रहे हैं, लेकिन भारत से यह थोरियम गायब हो रहा है. मुनाफा कमाने के लिए इसे मिट्टी की तरह निर्यात किया जा रहा है, दूसरे देशों को इसकी आपूर्ति की जा रही है. यह न स़िर्फ गैरक़ानूनी है, बल्कि देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी है. समझने वाली बात यह है कि आज़ादी के बाद जब भारत सरकार ने डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी का गठन किया, तब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सबसे पहले थोरियम के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन नेहरू जी के नाम पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी ने ही आज थोरियम लूटने की खुली छूट दे रखी है.

30 नवंबर, 2011 को कोडीकुनेल सुरेश ने लोकसभा में प्रधानमंत्री से सवाल पूछा. सवाल यह था कि देश से जो  मोनाजाइट निर्यात किया जा रहा है, क्या उसमें किसी क़ानून का कोई उल्लंघन हुआ है या नहीं? इस पर पीएमओ के मिनिस्टर ऑफ स्टेट वी नारायणसामी ने जवाब दिया कि मोनाजाइट को छोड़कर समुद्र तट की बालू, जिसमें कुछ खनिज हैं, का निर्यात किया जा रहा है, क्योंकि मोनाजाइट और थोरियम के निर्यात के लिए लाइसेंस दिया जाता है और अब तक किसी कंपनी को इसे निर्यात करने के लिए लाइसेंस नहीं दिया गया है. डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी ने 6 जनवरी, 2006 को कई दूसरे खनिजों को अपनी लिस्ट (एसओ-61-ई) से हटा दिया और निजी कंपनियों को उन्हें निर्यात करने की छूट दे दी.

समुद्र तटों से निजी कंपनियों द्वारा थोरियम की लूट हो रही है और सरकार इस बात से अनजान है. पहले यह समझते हैं कि कैसे देश को 48 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ और कैसे देश के  बहुमूल्य खनिजों को गैरक़ानूनी तरीके से विदेश भेजा गया. 30 नवंबर, 2011 को कोडीकुनेल सुरेश ने लोकसभा में प्रधानमंत्री से सवाल पूछा. सवाल यह था कि देश से जो मोनाजाइट निर्यात किया जा रहा है, क्या उसमें किसी क़ानून का कोई उल्लंघन हुआ है या नहीं? इस पर पीएमओ के मिनिस्टर ऑफ स्टेट वी नारायणसामी ने जवाब दिया कि मोनाजाइट को छोड़कर समुद्र तट की बालू, जिसमें कुछ खनिज हैं, का निर्यात किया जा रहा है, क्योंकि मोनाजाइट और थोरियम के निर्यात के लिए लाइसेंस दिया जाता है और अब तक किसी कंपनी को इसे निर्यात करने के लिए लाइसेंस नहीं दिया गया है. डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी ने 6 जनवरी, 2006 को कई दूसरे खनिजों को अपनी लिस्ट (एसओ-61-ई) से हटा दिया और निजी कंपनियों को उन्हें निर्यात करने की छूट दे दी. 

लेकिन क्या सरकार को यह पता है कि देश से मोनाजाइट का निर्यात हो रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार बनी, तबसे अब तक 2.1 मिलियन टन मोनाजाइट भारत से गायब कर दिया गया है. मोनाजाइट उड़ीसा, तमिलनाडु और केरल के समुद्र तटों पर मौजूद बालू में पाया जाता है. मोनाजाइट में करीब दस फीसदी थोरियम होता है. इसका मतलब यह कि करीब 1,95,000 टन थोरियम गायब कर दिया गया. माइंस एंड मिनरल एक्ट 1957 के तहत उड़ीसा सैंड कॉम्प्लेक्स, तमिलनाडु में कन्याकुमारी के पास मानवालाकुरिची और केरल में अलूवा-चावरा बेल्ट को मोनाजाइट के लिए चिन्हित किया गया था. मोनाजाइट से थोरियम निकालने का अधिकार स़िर्फ इंडिया रेयर अर्थ लिमिटेड को है. यह एक पब्लिक सेक्टर कंपनी है. 

माना यह जाता है कि अगर सीएजी यानी कॉम्पट्रोलर एंड आडिटर जनरल इंडिया रेयर अर्थ लिमिटेड और डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी के एकाउंट की जांच करे तो कोयला घोटाला काफी छोटा पड़ जाएगा. देश से जो थोरियम गायब है, अगर उसकी कीमत सौ डालर प्रति टन भी लगाई जाए तो यह 48 लाख करोड़ रुपये का घोटाला होगा. अब सवाल है कि क्या प्रधानमंत्री कार्यालय को यह पता नहीं है कि देश के थोरियम के साथ क्या हो रहा है. अब जब मामला सामने आया है तो यह सवाल विपक्षी दलों  से भी पूछना चाहिए कि उन्होंने इस मामले पर आवाज़ क्यों नहीं उठाई, हंगामा क्यों नहीं किया. या फिर यह मान लिया जाए कि राजनीतिक दलों ने निजी कंपनियों को लूटने की आज़ादी दे दी है. वैसे मोनाजाइट और थोरियम के निर्यात का लाइसेंस देने का अधिकार नागपुर में चीफ कंट्रोलर ऑफ माइंस के पास है, जो सीधे केंद्रीय खान मंत्रालय के तहत आता है. 

पिछले चार सालों से इस चीफ कंट्रोलर की सीट खाली है. वरिष्ठ पत्रकार सैम राजप्पा के मुताबिक, सी पी एम्ब्रोस के 2008 में रिटायर होने के बाद सरकार ने जानबूझ कर किसी रंजन सहाय को काम करने दिया, क्योंकि उनके रिश्ते निजी कंपनियों और उद्योगपतियों के साथ हैं. वैसे भी इतने महत्वपूर्ण पद को चार सालों तक खाली रखना कई सवाल खड़ा करता है. यही नहीं, रंजन सहाय के खिला़फ केंद्रीय सतर्कता आयोग में कई शिकायतें दर्ज हैं. सवाल यह है कि रंजन सहाय को मदद करने वाले कौन लोग हैं? सरकार ने चीफ कंट्रोलर ऑफ माइंस के पद पर किसी को नियुक्त क्यों नहीं किया? अगर किसी को नियुक्त किया गया तो वह अपनी सेवाएं क्यों नहीं दे सका? यह सवाल इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि देश को 48 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो गया और किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी.

यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले कुछ सालों में मनमोहन सिंह ने भारत की ऊर्जा ज़रूरतों के बारे में देश-विदेश में सवाल उठाए हैं. न्यूक्लियर एनर्जी के लिए तो उन्होंने अपनी सरकार को ही दांव पर लगा दिया. कोयला घोटाला सामने आने से पहले तक मनमोहन सिंह लगातार यही कह रहे थे कि देश में कोयले की कमी है.

समुद्र के किनारे पाई जाने वाली बालू के निर्यात में 2005 के बाद से लगातार वृद्धि हुई. हैरानी इस बात की है कि इस बालू के साथ-साथ रेडियोएक्टिव पदार्थों का भी निर्यात धड़ल्ले से चल रहा है. जिन पदार्थों को देश के न्यूक्लियर रिएक्टर के लिए बचाना था, उन्हें निजी कंपनियों के हवाले कर दिया गया. मजेदार बात तो यह है कि जो लोग देश की संपदा को लूट रहे हैं, उन्हें सरकार अवार्ड भी दे रही है. यह थोरियम घोटाला भारत के वर्तमान के लिए तो खतरनाक है ही, साथ-साथ यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी चिंताजनक है. सरकार को चाहिए कि वह कम से कम अब तो थोरियम के निर्यात पर रोक लगाए. सरकार को माइंस एक्ट में बदलाव लाना चाहिए और जितने भी महत्वपूर्ण खनिज हैं, जिन्हें भविष्य के लिए बचाकर रखना ज़रूरी है, उनके खनन और निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाए. मनमोहन सिंह सरकार की नव उदारवादी नीतियों से देश को बहुत नुकसान हो चुका है. अभी भी संभलने का वक्त बाकी है. संविधान के मुताबिक, देश के खनिज पर देश की जनता का अधिकार है और सरकार को चाहिए कि वह इन पदार्थों के इस्तेमाल की निगरानी करे. थोरियम एक न्यूक्लियर ईंधन है, इसलिए उसके प्रति और भी सतर्क रहने की ज़रूरत है. सरकार को उन इलाकों को फिर से चिन्हित करना चाहिए, जहां मोनाजाइट और थोरियम है. उन इलाकों में किसी भी तरह के खनन पर पाबंदी लगाकर आर्मी, एयरफोर्स या नेवी द्वारा उनकी रक्षा की जानी चाहिए. अब तक जितना थोरियम का नुकसान हुआ, उसका पता लगाने के लिए इस मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए.

यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले कुछ सालों में मनमोहन सिंह ने भारत की ऊर्जा ज़रूरतों के बारे में देश-विदेश में सवाल उठाए हैं. न्यूक्लियर एनर्जी के लिए तो उन्होंने अपनी सरकार को ही दांव पर लगा दिया. कोयला घोटाला सामने आने से पहले तक मनमोहन सिंह लगातार यही कह रहे थे कि देश में कोयले की कमी है. बिजली बनाने वाली कंपनियों को कोयला नहीं मिल रहा है. जब कोयला घोटाला सामने आया तो देश को असलियत का पता चला. जब सरकार कोयला खदानों को निजी कंपनियों को मुफ्त में दे देगी तो कोयला कहां से आएगा? अब तक उन कोयला कंपनियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिन्होंने कोयला खदानें तो ले लीं, लेकिन कोयला निकालने का काम शुरू नहीं किया. देश में अगर स़िर्फ क़ानून का राज होता तो कई साल पहले ही इन कोयला खदानों को सरकार वापस जब्त कर सकती थी. अब मामला थोरियम का सामने आया है. थोरियम के सही उपयोग से देश की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा किया जा सकता है. 

लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार ने जानबूझ कर होमी जहांगीर भाभा की योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल दिया, क्या सरकार ने थोरियम का गैरक़ानूनी निर्यात करके दूसरे देशों की ऊर्जा पूर्ति करने का मन बना लिया है? अगर देश में थोरियम का भंडार यूं ही पड़ा है और जिसके लिए 1960 से ही योजना चल रही है, तो उसे छोड़कर सरकार अमेरिका और दूसरे देशों के रिएक्टर क्यों भारत में लगाना चाहती है? क्या सरकार पर अमेरिका का दबाव है, क्या ऊर्जा पूर्ति के नाम पर सरकार अमेरिकी कंपनियों को फायदा पहुंचाना चाहती है? इन सवालों के जवाब सरकार को देने होंगे और साथ ही यह भी बताना होगा कि पिछले कुछ सालों में 48 लाख करोड़ रुपये का थोरियम कहां गायब हो गया और सरकारी तंत्र क्यों सोता रहा? यह मामला सीधे प्रधानमंत्री के अधिकार क्षेत्र में आता है, ऐसे में यह मामला वैसे भी गंभीर हो जाता है. उम्मीद यही की जानी चाहिए कि मनमोहन सिंह कम से कम अब अपना मौनव्रत तोड़ेंगे और थोरियम घोटाले पर सरकार की सफाई पेश करेंगे.

जब हम पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री के रूप में मूल्यांकन करते हैं या इतिहास की किताबों में पढ़ते हैं तो उनके बारे में जानकर अच्छा लगता है. आज भी जब हम नदियों पर डैम या स्टील कंपनियों और दूसरे कल-कारखानों को देखते हैं तो गर्व से कहते हैं कि यह सब नेहरू जी की वजह से संभव हो पाया.

जब हम पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री के रूप में मूल्यांकन करते हैं या इतिहास की किताबों में पढ़ते हैं तो उनके बारे में जानकर अच्छा लगता है. आज भी जब हम नदियों पर डैम या स्टील कंपनियों और दूसरे कल-कारखानों को देखते हैं तो गर्व से कहते हैं कि यह सब नेहरू जी की वजह से संभव हो पाया. क्या कांग्रेस पार्टी या यूपीए के किसी मंत्री को यह ख्याल आता है कि क़रीब बीस साल बाद जब लोग याद करेंगे तो मनमोहन सरकार को किस तरह याद करेंगे, इतिहासकार किस तरह से यूपीए सरकार का आकलन करेंगे? आने वाली पीढ़ी को जब पता चलेगा कि मनमोहन सिंह के शासन के दौरान देश की कोयला खदानें मुफ्त में बांट दी गई थीं, तो वह क्या सोचेगी? जब उसे पता चलेगा कि हमारे पास कभी खनिजों के दुनिया के सबसे बड़े भंडार थे, जिन्हें हमारी सरकार ने निजी कंपनियों को लूटने और विदेश भेजने दिया तो सच मानिए, वर्तमान यूपीए सरकार पर आने वाली पीढ़ियां हंसेंगी.
BY : chowthi duniya

केजरीवाल का करंट : शेयर करना न भूलें


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अन्ना की नई टीम की आज रालेगण में बैठक


रालेगण सिद्धि (महाराष्ट्र): वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे शनिवार को यहां अपनी नई टीम के सदस्यों के साथ बैठक करेंगे। 

अन्ना की करीबी सहयोगी किरन बेदी और पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह टीम के अन्य सदस्यों के साथ सामाजिक कार्यकर्ता से मुलाकात करेंगे। 

ज्ञात हो कि अन्ना ने इसके पहले कहा था कि वीके सिंह उनकी टीम के सदस्य नहीं हैं लेकिन वे दोनों सम्पर्क में हैं।

इस महीने की शुरुआत में अन्ना ने अपनी 15 सदस्यीय टीम की घोषणा की थी और कहा था कि वह अगले साल 30 जनवरी से भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे।

अन्ना की इस नई टीम में पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक शशिकांत, पूर्व आईएएस अविनाश धर्माधिकारी, लेफ्टिनेंट कर्नल बृजेंद्र खोखर, रण सिंह आर्य, सामाजिक कार्यकर्ता अक्षय कुमार और कृषि विशेषज्ञ विशम्भर चौधरी व अन्य शामिल हैं। 

अन्ना ने भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के संकल्प के साथ दक्षिणी दिल्ली के सर्वोदय इंक्लेव में अपने नए कार्यालय का उद्घाटन किया है। अन्ना ने गत 19 सितंबर को टीम अन्ना को भंग करने की घोषणा की थी। 

अरविंद केजरीवाल ने रंजीत सिन्हा के चयन पर उठाए सवाल


नई दिल्ली : सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने सरकार द्वारा गुपचुप तरीके से रंजीत सिन्हा को नया सीबीआई निदेशक चुनने पर शुक्रवार को सवाल खड़ा किया और दावा किया कि वह दागी व्यक्ति हैं।

उन्होंने कहा कि सिन्हा का चयन केवल यह दर्शाता है कि ‘आज भी सरकार सभी परिस्थितियों में सीबीआई का अपने राजनीतिक लाभों के लिए इस्तेमाल करना चाहती है।’ 

केजरीवाल और भूषण ने आरोप लगाया गया है कि सिन्हा की ईमानदारी पर सवाल उठ चुका है और उन्हें पटना उच्च न्यायालय ने तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की पक्षधरता करने को लेकर फटकार लगाई थी।

केजरीवाल ने आरोप लगाया,‘सरकार एक दागी व्यक्ति को नियुक्त करना चाहती है जिसकी वह अपने लाभों के लिए बाहें मरोड़ सकती है।’ भूषण ने दावा किया कि सरकार ने गुपचुप तरीके से और अपनी इच्छा के अनुसार नए सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति की जिनकी ईमानदारी पर पहले सवाल उठ चुका है।

सिन्हा की नियुक्ति पर विवाद खड़ा हो चुका है क्योंकि भाजपा ने कहा है कि इसे फिलहाल रोका जाए। भाजपा ने लोकपाल पर राज्यसभा के पैनल की इस सिफारिश का हवाला दिया है कि सीबीआई प्रमुख का चयन एक कॉलेजियम करे।

हालांकि सरकार ने कहा है कि 1974 बैच के आईपीएस अधिकारी का चयन उचित प्रक्रिया के बाद निष्पक्ष तरीके से किया गया है और प्रधानमंत्री को एक नाम तय करने का अधिकार है। 

केजरीवाल की पार्टी का नाम 'आम आदमी पार्टी'

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Kejriwal Aam Aadm Party 


नई दिल्ली: राजनीति के दंगल में उतर चुके अरविंद केजरीवाल की राजनैतिक पार्टी का नाम 'आम आदमी पार्टी' होगा। हालांकि पार्टी को औपचारिक तौर पर 26 नवंबर सोमवार को जंतर-मंतर से ही लॉन्च किया जाएगा। इस दौरान संगठन के संविधान को भी मंजूरी दी गई।

सूत्रों ने कहा कि करीब 300 संस्थापक सदस्यों की बैठक कंस्टीट्यूशन क्लब में हुई। इस दौरान केजरीवाल ने पार्टी के नाम का प्रस्ताव दिया, जिसे अन्य सदस्यों ने स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा कि बैठक में पार्टी के संविधान को भी स्वीकार किया गया। मयंक गांधी ने इसका प्रस्ताव दिया, जिसका चंद्रमोहन ने समर्थन किया। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के केजरीवाल की इच्छा के मुताबिक राजनीतिक रूप लेने के सवाल पर अन्ना हजारे के साथ मतभेद के बाद पार्टी का गठन हुआ है।

अगस्त में अनशन के दौरान हजारे और केजरीवाल ने यह कहते हुए आंदोलन समाप्त कर दिया कि देश को कांग्रेस और बीजेपी का राजनीतिक विकल्प मुहैया कराने के लिए वे काम करेंगे। बहरहाल हजारे और केजरीवाल ने पार्टी बनाने को लेकर हुए मतभेद के बाद 19 सितम्बर को अपने रास्ते अलग कर लिए। हजारे अपने रुख पर कायम रहे कि आंदोलन को गैर-राजनीतिक रहना चाहिए।

केजरीवाल ने 2 अक्टूबर को पार्टी के गठन की घोषणा की थी और कहा था कि आधिकारिक रूप से इसे 26 नवम्बर को शुरू किया जाएगा। इसी दिन 1949 को संविधान को अंगीकार किया गया था। बैठक से पहले केजरीवाल ने कहा कि आम आदमी, महिलाएं, बच्चे उनकी पार्टी का गठन कर रहे हैं।

केजरीवाल ने कहा, वे नेता नहीं हैं। वे नेताओं से उब चुके हैं। ये वे लोग हैं, जो भ्रष्टाचार और महंगाई से उब चुके हैं। इसलिए आम आदमी ने उन्हें चुनौती देने का फैसला किया है। अब आम आदमी संसद में बैठेगा। उन्होंने कहा, पार्टी की दृष्टि स्वराज है। लोगों को 'राज' मिलना चाहिए। उस दृष्टि को अंतिम रूप दिया जाएगा। 25-30 मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। उन सभी मुद्दों को पार्टी द्वारा पहले उठाए जाने की आवश्यकता है। समितियां गठित की जाएंगी। वे चार से पांच महीने में मसौदा तैयार करेंगी। देशभर में चर्चा की जाएगी। सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने कहा कि पार्टी में एक परिवार के वर्चस्व के खिलाफ प्रावधान होंगे।

बैठक से पहले केजरीवाल ने ट्विटर पर लिखा कि वह आम आदमी के लिए पूर्ण आजादी व ऊंची मुद्रास्फीति से राहत लेकर आएंगे। उन्होंने एक ट्वीट में कहा, मैं हूं आम आदमी। मैं लूंगा पूर्ण आजादी। और एक अन्य ट्वीट में कहा, मैं हूं आम औरत, मैं दूर करूंगी महंगाई। केजरीवाल ने एक और ट्वीट में लिखा, मैं हूं आम आदमी। मैं लूंगा स्वराज।

मैं हूं आम आदमी, मैं लाऊंगा स्वराज : केजरीवाल


नई दिल्ली। 'मैं बनाऊंगा जनलोकपाल', 'मैं खत्म करुंगा महंगाई'। यह कहना है अरविंद केजरीवाल का। अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को पार्टी की बैठक के दौरान अपनी पार्टी का नाम तय कर इसका ऐलान कर यह नारे दिए। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम आम आदमी पार्टी रखा है। इस बैठक के दौरान उन्होंने कहा कि वह देश में पूर्ण स्वराज की स्थापना करेंगे। उन्होंने कहा कि मैं हूं आम आदमी और मैं लाऊंगा पूर्ण आजादी। फिलहाल बैठक अभी जारी है।

शनिवार को दिल्ली के कंस्टिट्यूशन क्लब में केजरीवाल की पार्टी के करीब तीन सौ से ज्यादा सदस्य जुटे हैं। इस दौरान पार्टी की एग्जिक्यूटिव कमेटी का चयन किया जाएगा। यही कमेटी तय करेगी कि पार्टी कैसे चलेगी। इसमें 40 के करीब सदस्य हो सकते हैं। उनकी इस पार्टी में न तो कोई अध्यक्ष होगा, न ही कोई महासचिव होगा। पार्टी से जुड़े फैसले एक राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में लिए जाएंगे, जिसका नेतृत्व राष्ट्रीय संयोजक करेगा। अरविंद केजरीवाल ने बताया कि इस बैठक में राष्ट्रीय परिषद का गठन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी में महिलाओं और स्टूडें्टस को तरजीह दी गई है।

सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में सदस्यों द्वारा उठाए गए कुछ मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। यदि इन मुद्दों पर सहमति बन गई तो मुमकिन है कि आज कुछ और चीजों का भी ऐलान कर दिया जाए। केजरीवाल के पार्टी सदस्यों का नाम तय करने से पूर्व ही टीम अन्ना की सदस्य किरण बेदी ने उनकी पार्टी को समर्थन देने की घोषणा कर दी है। उन्होंने कहा है कि आगामी लोक सभा चुनाव के दौरान टीम अन्ना, अरविंद केजरीवाल की पार्टी का समर्थन करेगी। बेदी ने यह बात हैदराबाद में एक कार्यक्रम के दौरान कही। उन्होंने कहा कि क्योंकि केजरीवाल एकता और अखंडता के पक्ष में खड़े हैं, इसलिए हम उनका समर्थन करेंगे।

उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि टीम अन्ना और केजरीवाल में सिर्फ इतना ही फर्क है कि उन्होंने भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव में खड़ा होने का रास्ता अपनाया है, और हमने आंदोलन करने का रास्ता चुना है। उन्होंने प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने के बारे में उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर अभी और बात किए जाने की जरूरत है।

केजरीवाल की पार्टी को मिलेगा टीम अन्ना का समर्थन : किरण बेदी


टीम अन्ना चुनावों के दौरान अरविंद केजरीवाल की पार्टी का समर्थन कर सकती है। नई टीम अन्ना की मेंबर किरण बेदी ने शुक्रवार को इस बात की जानकारी दी। हालांकि, केजरीवाल ने अभी तक अपनी पार्टी लॉन्च नहीं की है।

यहां एक कार्यक्रम के दौरान बेदी ने कहा, 'हम ईमानदारी का समर्थन करेंगे। चूंकि केजरीवालएकता और अखंडता के पक्ष में खडे़ हैं इसलिए वह हमारे समर्थन के योग्य हैं।'

बेदी ने कहा कि टीम अन्ना और केजरीवाल में फर्क नहीं है। फर्क सिर्फ इस बात का है कि सामाजिक कार्यकर्ता से नेता बने केजरीवाल ने करप्शन से लड़ने के लिए चुनावी सिस्टम का रास्ता अपनाया है।


उन्होंने कहा, 'केजरीवाल और हमारे बीच बस यही अंतर है कि उन्होंने चुनावी सिस्टम का रास्ता चुना है और हमने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है।' प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने की बात पर किरण बेदी ने कहा कि इस मुद्दे पर और बात किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, 'हम सिलेक्ट कमिटी के सुझावों का इंतजार कर रहे हैं।'

नई टीम अन्ना में अभी से दरार के संकेत


अन्ना हजारे समर्थक स्वयंसेवकों में आज मतभेद उभर कर सामने आ गया जब एक वर्ग ने उत्तर प्रदेश के गाजियाबद में कार्यालय खोला जबकि गांधीवादी कार्यकर्ता ने हाल ही में राजधानी में अपना कार्यालय खोला था । 

दस स्वयंसेवकों वाले इस समूह में कोई भी वरिष्ठ सदस्य नहीं है । 

टीम अन्ना प्रवक्ता ने कहा कि कुछ स्वयंसेवकों ने कौशांबी में अपना कार्यालय खोला है ओर वे पहले से इस बैनर के तहत आरटीआई पर काम कर रहे हैं । 

चुनावों में केजरीवाल-अन्ना टीम साथ-साथ


आगामी लोकसभा चुनावों में टीम अन्ना से अलग हुए अरविन्द केजरीवाल की प्रस्तावित राजनीतिक पार्टी को अन्ना हजारे का पूरा समर्थन मिलेगा.

किरन बेदी ने शुक्रवार को ‘इंडियन स्कूल आफ बिजनेस लीडरशिप समिट 2013’ के इतर संवाददाताओं से हैदराबाद में कहा कि हम किसी भी ईमानदार उम्मीदवार का समर्थन करेंगे. 

चूंकि वह (केजरीवाल) ईमानदारी को बढावा दे रहे हैं, जाहिर तौर पर वह हमारे समर्थन के योग्य हैं.
      
किरन ने कहा कि टीम अन्ना के केजरीवाल के साथ कोई मतभेद नहीं हैं. उन्होंने कहा कि सामाजिक कार्यकर्ता से नेता बने केजरीवाल ने भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए चुनावी रास्ता अपनाया है.
      
उन्होंने कहा कि केजरीवाल के साथ कोई मतभेद नहीं हैं. वह चुनावी रास्ता अपनाना चाहते थे और हम गैर चुनावी रास्ता अपनाना चाहते थे. यह उनकी भावना है कि यह चुनावी मार्ग अपनाने का समय है.
      
रक्षा, विदेश मामलों और कानून जैसे मुद्दों पर प्रधानमंत्री को जनलोकपाल विधेयक के दायरे से बाहर रखने के बारे में उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर आगे भी बहस होनी है.
      
उन्होंने कहा कि हम प्रवर समिति की सिफारिशों का इंतजार कर रहे हैं. मुझे लगता है कि सिफारिशों का सबसे महत्वपूर्ण भाग यह होगा कि सीबीआई निष्पक्ष कैसे होगी, निदेशक का चयन कैसे निष्पक्ष होगा और उनकी फिर से नियुक्ति हो सकती है या नहीं और इसके अलावा वह लोकपाल के अधीन होगा या नहीं.

बुलडोजरों के सामने लेट कर भी बचाएंगे झुग्गियां: केजरीवाल


इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आईएसी) के वरिष्ठ कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, गोपाल राय, कुमार विश्वास और संजय सिंह के नेतृत्व में आईएसी के कार्यकर्ता आज शालीमार बाग के हैदरपुर गांव में झुग्गी बस्तियों को सरकार द्वारा जबरन खाली कराने की कोशिशों का विरोध करने पहुंचे। सरकार ने हैदरपुर की 138 झुग्गियों को नवंबर महीने तक हटा देने का आदेश दिया था। इनमें से सिर्फ सात परिवारों को सरकार ने बवाना में बसाने की मंजूरी दी है।

हैदरपुर झुग्गी के निवासियों ने मदद के लिए आईएसी से अनुरोध किया था। हैदरपुर की झुग्गियों में रहने वाले लोगों को अरविंद केजरीवाल ने अपना पूरा समर्थन देते हुए ऐलान किया कि जरूरत पड़ने पर वह इन झुग्गियों को गिराने के लिए आगे बढ़ रहे बुलडोजरों के सामने खड़े हो जाएंगे।

मंच से अपने संबोधन में अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'हैदरपुर की इन झुग्गियों में तीसरी पीढ़ी बड़ी हो रही है और अचानक सरकार ने इनके सर की छत गिराने का फैसला कर लिया। अगर हैदरपुर के पीड़ित परिवार सरकार की इस मनमानी के खिलाफ संघर्ष को पूरी तरह से तैयार हों तो इनके घरों को गिराने वाले बुलडोजरों के सामने सबसे आगे मैं खड़ा मिलूंगा।'

हैदरपुर की झुग्गियों में रहने वाले बिहार, यूपी, प. बंगाल और देश के दूसरे राज्यों से आए लोग हैं जो छोटी-मोटी नौकरियां या मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालते हैं। अरविंद केजरीवाल ने इन मेहनतकश परिवारों की अहमियत गिनाते हुए सरकार से इनकी झुग्गियों को गिराने का फैसला तत्काल वापस लेने की अपील की।

अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'इन झुग्गियों में वे लोग रहते हैं जो अपनी मेहनत से दिल्ली के आलीशान मकानों में रहने वालों लोगों की जिंदगी आसान करते हैं। अगर ऐसे करीब 40 फीसदी आबादी को दिल्ली से बाहर कर दिया जाएगा तो दिल्ली ठप हो जाएगी। सरकार मेहनतकशों का सम्मान करना सीखे। ऐसे कानून बनें कि जिसकी झुग्गी जहां है उसे वहीं पर मकान बनाकर दिया जाए।'

मंच पर आकर हैदरपुर के स्थानीय लोगों ने अपनी आपबीती सुनाई। एक व्यक्ति ने बताया कि वे स्थानीय विधायक बंसल के पास मदद के लिए गए थे। बंसल ने दिल्ली आश्रय बोर्ड को एक चिठ्ठी लिखी, पर उसमें यह नहीं कहा कि ये झुग्गियां न गिराई जाएं। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि 'परिवारों की झुग्गियां सर्दियों की बजाय गर्मियों में खाली कराई जाएं।' केजरीवाल ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जब वोट बिकने लगेंगे तो जनप्रतिनिधि इसी तरह अपनी जवाबदेही से कन्नी काटना शुरू कर देंगे।

हैदरपुर की झुग्गियों में रहने वाले परिवारों के सरकार ने बिजली पानी के कनेक्शन और मतदाता पहचान पत्र भी बनाए हैं। इन लोगों को 16 नवंबर 2012 तक झुग्गियां खाली कर देने का नोटिस दिया गया था, लेकिन दीवाली की वजह से दिल्ली आश्रय बोर्ड ने झुग्गियां खाली करने की डेडलाइन बढ़ाकर 23 नवंबर कर दी है।

लोगों को संबोधित करते हुए मनीष सिसोदिया ने कहा, 'सरकार झुग्गियां बसाती है, फिर उजाड़ती है। सरकार यह क्यों नहीं सोचती कि ये झुग्गियां बनती ही क्यों हैं? कोई भी व्यक्ति खुशी से अपनी मिट्टी से अलग नहीं होना चाहता। परिवार पालने की मजबूरी उसे अपने गांव-घर से हजारों किलोमीटर दूर महानगरों में ले आती है। सरकार को अपनी नाकामियों पर लज्जित होना चाहिए कि वह लोगों को उनके घरों के समीप रोजगार नहीं दे रही। नाकाम सरकार को गरीबों के घर गिराने का नैतिक हक नहीं बनता।'

मनीष सिसोदिया की बात का समर्थन करते हुए कुमार विश्वास ने कहा, 'सरकार यह इल्जाम लगा सकती है कि हम गैर-कानूनी चीजों का समर्थन करने चले आए, क्योंकि हमें राजनीति करनी है। सरकार अगर अमीरों और गरीबों के बीच की खाई बढ़ाती चली गई तो देश के सारे कानून, गैर-कानूनी हो जाएंगे। गरीबों का दर्द सरकारों को समझना होगा।'

हैदरपुर के 139 घर कुल चार एकड़ की जमीन पर बने हैं। इस फैसले पर सरकार को खरी खोटी सुनाते हुए संजय सिंह ने कहा, "सरकार गरीबों को धमकाकर भगा रही है लेकिन अंबानी परिवार को उतनी जमीनें एक झटके में दे देती है जितनी अंबानी परिवार मांग करता है. संसद पर संवेदनहीन लोगों ने कब्जा कर रखा है और जनता उन्हें जल्द ही वहां से भगाकर दम लेगी."

गोपाल राय ने स्थीनाय लोगों को संगठित होकर अपना विरोध जारी रखने का अनुरोध करते हुए कहा, 'आज कुछ लोगों से घर खाली कराया जा रहा है, कल कुछ और लोगों को नोटिस आएगी। इस तरह एक-एक करके शहर के सारे गरीबों के घर गिराकर उन्हें बिल्डरों को दे दिया जाएगा जिसपर वे मॉल बना सकें।'

आईएसी ने पीड़ित परिवारों को भरोसा दिलाया है कि वह उनके संघर्ष में हर तरह से उनका साथ देगा।

टीम अरविंद और टीम अन्ना के बाद अब टीम वॉलंटियर


नई दिल्ली : टीम अन्ना के नए ऑफिस की घोषणा के समय विवाद हुआ था और बाद में यह तय हुआ कि साउथ दिल्ली में ही ऑफिस बनाया जाए। नई टीम अन्ना के कुछ लोगों ने दबी जुबान से इसका विरोध भी किया था और इसे किरण बेदी का मनमाना रवैया बताया। उनका कहना था कि लोगों को यहां आने में काफी समस्या आएगी और पैसे भी ज्यादा खर्च होंगे। उस समय तो इस पर ज्यादा कुछ नहीं बोला गया और वॉलंटियरों ने मन मार कर इस निर्णय को मान लिया। अब वॉलंटियरों ने अपना खुद का ऑफिस खोलने का फैसला किया है।

लोग इसे एक और बिखराव की तरह से देख रहे हैं। यह ऑफिस गाजियाबाद के कौशांबी में खुल रहा है। इसे औपचारिक तरीके से खोला जा रहा है और इसका उद्घाटन 24 तारीख को किया जाएगा। इस मौके पर वॉलंटियरों ने टीम अन्ना और अरविंद दोनों को ही आमंत्रित किया है। फिलहाल इसे वॉलंटियरों की सुविधा को ध्यान में रख कर खोलने की बात ही कही जा रही है। वैसे कुछ लोग इसे वॉलंटियरों की नाराजगी भी मान रहे हैं।

वॉलंटियरों की बात रखते हुए अतुल बल ने कहा कि आंदोलन के दो भागों में बंट जान के बाद काफी कंफ्यूजन की स्थिति बन गई है जिसका निवारण बहुत जरूरी है। इस स्थिति से निपटने के लिए ही वॉलंटियर्स के लिए यह जगह तय की गई है और हमारा किसी से कोई मनमुटाव नहीं है। जिन मुद्दों के साथ यह आंदोलन शुरू हुआ था उसे लेकर कोई भी कार्यक्रम होने पर कार्यकर्ता हमेशा ही जाने को तैयार होंगे। चाहें वह अरविंद का कार्यक्रम हो या अन्ना का।

अतुल का यह भी कहना है कि यह ऑफिस बस अड्डे और मेट्रो स्टेशन के एकदम करीब है जिससे आम कार्यकर्ता और मीडिया भी जल्द यहां पहुंच सकती है। साउथ दिल्ली के ऑफिस के बारे में उन्होंने कहा कि अगर बुलाया जाता है तो हम जरूर जाएंगे। अतुल ने यह भी कहा कि हर वॉलंटियर ने अपना योगदान इस आंदोलन को दिया है और आगे भी देना चाहते हैं, लेकिन अनदेखी से कई लोग आहत हैं।

भारत सरकार क़ी आतंकवादियों के लिए पेंशन योजना



सेना का दावा कमांडो सुरेंद्र सिंह को दी जा चुकी हैं सभी सुविधाएं, सुरेंद्र सिंह ने इसे बताया सफेद झूठ 

26/11 ऑपरेशन में दुश्मनों का बहादुरी से सामना करने वाले कमांडो नायक सुरेंद्र सिंह के अपने हक की मांग के लिए मीडिया में जाने के बाद सेना और सरकार की ओर से एक के बाद एक नए दावे किए जा रहे हैं. हर दावे में यह जिक्र है कि कमांडो सुरेंद्र सिंह जो कुछ भी मांग कर रहे हैं वह नाजायज है. उन्हें उनका हक दिया जा रहा है.

सेना ने एक नोट जारी करके अपना पक्ष रखा है और कमांडो सुरेंद्र सिंह के सभी आरोपों को खारिज कर दिया है. लेकिन सेना के दावे उसकी अपनी ही बातों का खंडन करते हैं. सुरेंद्र सिंह ने बिंदुवार सेना के एक-एक दावे पर अपना पक्ष रखा है.

1.      पीआईबी के रक्षा विंग की ओर से जारी नोट में कहा गया है कि नायक सुरेंद्र सिंह की पेंशन और रिटायरमेंट के बाद दी जाने वाली ग्रेच्युटी मंजूर कर ली गई है. इस नोट की भाषा पर गौर करें. सेना कह रही है कि उसने सुरेंद्र सिंह की पेंशन और रिटायरमेंट ग्रेच्युटी की बात मंजूर कर ली है. यानी सेना सिर्फ मंजूरी की बात कह रही है, वह यह नहीं कह रही कि सुरेंद्र को पैसे दिए गए हैं.

सुरेंद्र सिंह ने आज प्रेस से बातचीत में भी यही कहा कि उन्हें अभी तक कोई पैसा नहीं मिला. उन्हें सेना से अलग हए 13 महीने गुजर चुके हैं और वह अपने पैसे के लिए लगातार चक्कर काट रहे हैं. यानी सुरेंद्र सिंह ने जो बात कही उसे सेना झुठला नहीं रही बस शब्दों में हेर-फेर करके सुरेंद्र को गलत साबित करने की कोशिश की जा रही है. अगर सेना के दावे को एक पल के लिए मान भी लिया जाए तो क्या देश के सैनिकों को अपने हक की मांग के लिए प्रेस में जाना होगा. जब तक वे प्रेस में नहीं जाएंगे उनकी बात सुनी नहीं जाएगी. एक सवाल यह भी उठता है कि सेना ने अगर सचमुच ऐसा कोई निर्णय किया था तो इसकी सूचना सुरेंद्र सिंह को पत्र लिखकर क्यों नहीं दी गई?सारे सरकारी निर्णयों के लिए पत्राचार जरूरी होता है. लेकिन इस मामले में कोई पत्राचार नहीं होना इस बात का इशारा करता है कि ये फैसले पहले हुए ही नहीं हैं. अगर कोई बात प्रक्रिया शुरू हुई भी होगी तो वह आज के प्रेस कांफ्रेस के बाद हुई होगी.  

2.      सेना का दावा है कि सुरेंद्र सिंह को हर महीने 25,254 रुपए की पेंशन मंजूर की गई है. सेना सिर्फ मंजूरी की बात कह रही है. वह यह दावा नहीं कर रही कि उन्हें पैसे दिए जा रहे हैं. सुरेंद्र भी तो यही बात कह रहे हैं कि उन्हें सेना से मुक्त हुए 13 महीने हो गए और कोई पेंशन नहीं मिल रही. ईलाज के लिए उन्हें काफी खर्च करना पड़ रहा है और उसके कारण वह आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं.

सुरेंद्र सिंह को पेंशन की मंजूरी के सेना के दावे में एक विरोधाभास है. सेना का    दावा है कि सुरेंद्र सिंह को 25,254 रुपए प्रतिमाह की पेंशन दी जानी मंजूर हुई है जिसमें सेवा पेंशन और युद्ध विकलांगता पेंशन दोनों सम्मिलित हैं. सेना के ग्रेनेडियर्स रिकॉर्ड्स ने 6 जून 2012 में पत्र संख्या 2691391L/ Claim/D-Pen  में सुरेंद्र सिंह को लिखकर साफ-साफ बता दिया था कि उन्होंने 15 साल की सेवा पूरी नहीं की है इसलिए वह पेंशन के हकदार ही नहीं है. तो सेना ने अचानक कैसे सेवा पेंशन और युद्ध विकलांगता पेंशन की बात शुरू कर दी है. क्या वह उनको रिटायरमेंट के बाद दिया जाने वाला पेंशन देने को तैयार है या फिर यह युद्ध में घायल सिपाही को दिए जाने वाले पेंशन की बात कर रहे हैं. यह तो सुरेंद्र सिंह का अधिकार है. अगर सेना के मन में अपने बहादुर सिपाही के प्रति सच में कोई सदभावना है तो उन्हें रिटायरमेंट के बाद दिए जाने वाला पेंशन क्यों नहीं दिया जा रहा. सेना के प्रावधानों के तहत ऐसा आसानी से किया जा सकता है.

3.      सेना का एक और दावा यह है कि उन्हें जिला सैनिक बोर्ड झज्जर द्वारा 05-10-2012 को भूतपूर्व सैनिक स्वास्थय कार्ड(ECHS CARD) को सुरेंद्र सिंह को हाथ में सुपुर्द किया गया. सेना का यह दावा गलत है. सुरेंद्र सिंह ने 08-10-2011 को Regional Director ECHS Delhi Cantt के नाम एक डिमांड ड्राफ्ट (संख्या 819161, एसबीआई, बोहर शाखा, हरियाणा) तैयार कराया और नियमानुसार Regional Director ECHS Delhi Cantt को भेजा. ग्रेनेडियर्स रिकॉर्ड्स ने सुरेंद्र सिंह का ड्राफ्ट यह कहते हुए 02-05-2012 को लौटा दिया कि यह ड्राफ्ट ECHS Delhi Cantt के नाम नहीं बल्कि ECHS  जबलपुर के नाम बनना चाहिए था.  इस बात की सूचना पत्र संख्या 0954/SR/Y/ECHS के माध्यम से दी गई. इसके बाद ग्रेनेडियर्स रिकॉर्ड्स ने 03-09-2012 को एक अस्थाई ईसीएचएस कार्ड भेजा. इसकी सूचना पत्र संख्या 26913911/SR/ECHS के द्वारा सुरेंद्र सिंह को दी गई. ध्यान देने योग्य बात है कि अगर सुरेंद्र सिंह के डीडी में कोई तकनीकी त्रुटि रह गई थी तो उसकी सूचना देने में नौ महीने का वक्त क्यों लगा. इस बीच ईलाज का खर्च जुटाने में सुरेंद्र सिंह को तमाम कठिनाई झेलनी पड़ी.

4. रक्षा विंग की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि कमांडो सुरेंद्र सिंह ऑपरेशन ब्लैक टॉर्नेडो में घायल हुए और मेडिकल जांच के बाद इस निर्णय पर पहुंचा गया कि कमांडो सुरेंद्र सिंह बायें कान से बहरे हो चुके हैं. यह दावे दो बड़े सवाल खड़े करता है. पहला, कमांडो सुरेंद्र सिंह को सेवा से अलग करने के पीछे सेना ने जो कारण लिखित रूप में बताया था उसमें कहा गया है कि सुरेंद्र दोनों कानों से शत प्रतिशत बहरे हो चुके हैं इसलिए उन्हें सेवा में बनाए नहीं रखा जा सकता. तो सेना का कौन सा दावा सही है? सुरेंद्र को सेवा मुक्ति के दौरान किया गया दावा या आज की प्रेस कांफ्रेंस के बाद किया गया सेना का दावा?  

5.      सेना ने अपने नोट में दावा किया है कि गैर-सरकारी संस्थानों से भी आर्थिक सहायता आती है वह एनएसजी कल्याण कोष में जमा होती है. सेना का यह दावा कई शंकाओं को जन्म देता है. सुरेंद्र सिंह ने मुख्य सूचना आयुक्त के आदेश के बाद 06-11-2012 को जब एनएसजी मुख्यालय की फाइलों का मुआयना किया तो पाया कि उनके नाम पर रोहन मोटर्स की ओर से दो लाख रुपए की एक रकम स्वीकार की गई है. रोहन मोटर्स ने सुरेंद्र सिंह के नाम से जो चेक लिखा था वह कॉरपोरेशन बैंक का था और उसका चेक नंबर 409796 है जो 09-01-2009 को जारी किया गया था. ऐसे ही आठ और चेक अलग-अलग गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा जारी किए गए जिसकी फोटोकॉपी फाइल में लगी थी औऱ भुगतान दिखाया गया था. इसके अलावा हरेक शहीद के नाम से 10 लाख रुपए की रकम भी स्वीकार की गई है जिसकी फोटोकॉपियां फाइलों में दर्ज हैं.

एक सैनिक जो करगिल की लड़ाई लड़ चुका है, जिसने मुंबई के आतंकी हमले में अपनी जान की बाजी लगा दी. जो ग्रेनेड से घायल होने के बावजूद लड़ता रहा और दो आतंकियों को ढेर किया, उसके साथ सेना आमने-सामने खड़ी नजर आने लगी है. सेना का तो फर्ज बनता था कि वह अपने बहादुर जवान को जो दुश्मनों से लड़ता हुआ विकलांग हो गया था उसकी सेवाएं तत्काल खत्म करने की बजाय मानवीय आधार पर उसे आठ महीने के लिए दूसरे ऑफिस जॉब में लगा सकती थी ताकि वह 15 साल की सेवा अवधि पूरी करके सेवा पेंशन के हकदार बन सकें. लेकिन दुख की बात है कि सेना ने अपने जवान के साथ हमदर्दी नहीं दिखाई.

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