पिछले दिनों मीडिया में यह खबर आई कि सरकार ने यह निश्चिय किया है कि जो सरकारी अफसर रिटायर हो जाएंगे या स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ले लेंगे उन पर भी भ्रष्टाचार की जांच हो सकती है और मुकदमा चलाया जा सकता है। इसके पहले होता ऐसा था कि जिस सरकारी अफसर ने भ्रष्ट तरीके से अकूत संपत्ति जमा कर ली थी और जिसे इस बात का डर होने लगा था कि उस पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है और भ्रष्ट तरीके से कमाई हुई संपत्ति सरकार जब्त भी कर सकती है तो वह धीरे से स्वास्थ्य का बहाना बनाकर या और कोई बहाना बनाकर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लेता था। यही नहीं, जिस भ्रष्ट अफसर को पकड़े जाने का डर होता था वह अपने सेवाकाल में अकू त संपत्ति अपने रिश्तेदारों और मित्रों के नाम से जाम कर लेता था और रिटायरमेंट के बाद जब उसे विश्वास हो जाता था कि अब सरकार या कोई जांच एजेंसी उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती है, तब वह अपनी काली कमाई प्रकाश में लाता था और ऐश करता था। वर्षों से यही सिलसिला आ रहा था कि रिटायर होने के बाद किसी सरकारी अफसर पर कोई कार्रवाई नहीं होती थी। लोग यह देखकर हैरान होते थे कि जो व्यक्ति अपने सेवाकाल में दीनहीन और अत्यंत ही साधारण तरीके से जीवन बीताता था, वह कैसे रिटायरमेंट के बाद करोड़पति और अरबपति बन गया।
इस सिलसिले में सरकार का यह निर्णय स्वागत योग्य है कि रिटायरमेंट के बाद भी सरकारी अफसरों पर भ्रष्टाचार की जांच हो सकती है और उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है तथा उन्हें सजा दी जा सकती है। आए दिन टेलीविजन के विभिन्न चैनलों पर यह दिखाया जाता है कि एक मामूली सरकारी चपरासी और क्लर्क ने किस प्रकार करोड़ों रुपये की अवैध संपत्ति जमा कर ली और आयकर विभाग की किसी छापेमारी में उसके पास से अकूत धन निकला। यह देखकर लोग भौचक्के रह जाते हैं। कई राज्यों में तो सीनियर अफसरों के पास अरबों की संपत्ति मिली है, और उसका पूरा विवरण टीवी पर दिखाया गया है। यह देखकर आम जनता सिहर जाती है कि अपने देश में रक्षक ही भक्षक बन गये हैं। सबसे बड़ी बात है कि इन सीनियर सरकारी अफसरों को नाममात्र की सजा मिलती है। उन्हें संस्पेंड कर दिया जाता है जिसमें उन्हें अपने वेतन का तीन-चौथाई भाग मिलता रहता है बंगला, गाड़ी आदि सभी सुविधाएं पहले जैसी मिलती रहती हैं। मुकदमा सालों साल चलता रहता है। अवैध तरीके से जमा की हुई संपत्ति जब्त नहीं होती है। जनता यह देखकर हैरान हो जाती है कि उसके खून पसीने की कमाई को इन अफसरों ने किस तरह गटक लिया।
इसमें कोई संदेह नहीं, कि अधिकतर आईएएस और आईपीएस अफसर जब छोटे-छोटे शहरों में डीएम और एसपी होकर जाते हैं, तब वे राजा महाराजा की तरह रहते हैं और आम जनता को कीड़े-मकोड़े से अधिक कुछ नहीं समझते हैं। अधिकतर अफसर अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से मिलकर विकास का पैसा दोनों हाथों से लूटते हैं। कुछ लोग ईमानदार भी होते हैं। परंतु उनकी संख्या नगण्य होती है। जो लोग ईमानदार होते हैं उन्हें उनके परिवार के लोग, रिश्तेदार और मित्र ताने देते हैं कि जब उनके साथी करोड़ों कमा रहे हैं, तब वे बेवकूफ की तरह ईमानदार बने हुए हैं। वे लाख ईमानदार हों, कोई उनकी ईमानदारी पर विश्वास नहीं करेगा। इसलिए उचित है कि बहती गंगा में वे भी हाथ धो लें और लाचार होकर इन ईमानदार अफसरों को अपने परिवार, रिश्तेदारों और मित्रों के दबाव में बेईमान होना ही पडता है। और एक बार जब कोई अफसर बेईमानी की राह पकड़ लेता है तो फिर उसका कोई अंत नहीं होता है।
इस सिलसिले में एक सत्य जो कि आम जनता को पता नहीं हैं, वह यह है कि ये बेईमान अफसर ही राजनेताओं को बेईमानी का गुर सिखाते हैं। वे ही अपने मंत्रियों को यह बताते हैं कि किस प्रकार और कहां चोरी की जा सकती है। वे उन्हें आश्वस्त करते हैं कि इस तरह से भ्रष्ट तरीके से कमाए हुए धन का पता कोई अभी भी किसी कुर्सी पर हमेशा के लिए नहीं रहता है। इसलिए समय रहते हुए ऐसा प्रबंध कर लिया जाए जिससे उनके सात पुश्त ऐशोआराम की जिंदगी बिता सकें। ये अफसर अपने मंत्रियों को यह भी बताते हैं कि कल को आपकी कुर्सी चली जा सकती है या आपका विभाग बदला जा सकता है। फिर तो यदि इस मंत्रालय में कोई काम कराना हो तो उन्हें इन अफसरों के पास ही आना होगा। ये अफसर अपने मंत्रियों को यह भी बताते हैं कि जिस प्रकार चुनाव का खर्च दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है उसमें यदि ये भरपूर आमदनी का उपाय नहीं करेंगे तो दुबारा से चुनाव जीतकर नहीं आ सकते। केवल ईमानदारी के नाम पर कोई किसी को वोट नहीं देते हैं। मंत्रीजी अपने अफसरों की बात से सहमत हो जाते हैं और दोनों की मिलीभगत से सरकारी खजाना लुटता रहता है।
इस बात को तो मानना ही होगा कि मीडिया ने इस देश में जनता को पूरी तरह से जागृत कर दिया है। इसमें इलेक्ट्रोनिक मीडिया का पूरा योगदान रहा है। अभी उत्तरप्रदेश के चुनाव में मीडिया ने यह रहस्योद्धाटन किया कि विभिन्न एसेम्बली के चुनाव में जिन उम्मीदवारों ने 2012 के चुनाव में अपनी संपत्ति पांच करोड़ रुपए घोषित की है। प्रश्न उठता है कि पांच वर्ष के अंदर आखिर इन राजनेताओं के पास कौन सी जादू की छड़ी आ गई जिससे उनकी संपत्ति इतनी अधिक बढ़ गई। यह तो वह संपत्ति है जिसका उन्होंने संभवत: वैध तरीके से कमाई हुई संपत्ति दिखाने का प्रयास किया होगा। अवैध या गलत तरीके से कमाई हुई संपत्ति तो इससे कई गुना अधिक होगी। यदि अवैध संपत्ति को छोड़ भी दें तो क्या इस देश में ऐसा कानून नहीं है जो इन राजनेताओं से पूछे कि आपने पांच वर्ष में इतनी संपत्ति भला कैसे जमा कर ली? अब तो चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार हर उम्मीदवार को अपनी संपत्ति घोषित करनी होती है। इस देश में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया का कर्तव्य है कि वे इन राजनेताओं के असली चेहरे को उजागर करें और आम जनता को यह बतावें कि इन्होंने जो काली कमाई की है वह आम जनता के खून पसीने की कमाई है। अफसर तो रिटायर कर जाते हैं। इस कारण उन की अवैध संपत्ति की आज तक जांच नहीं होती थी। परंतु राजनेता कभी रिटायर नहीं होते हैं। अनुभव से यह देखा गया है कि जब किसी बड़े घोटाले की जांच होती है जिसमें राजनेता और अफसर दोनों की मिलीभगत होती है तो राजनेता तो छूट जाता है, परंतु अफसरों को जेल हो जाती है।
समय आ गया है कि जब मीडिया इस देश में एक प्रबल जनमत बनाये और सरकार को बाध्य करें कि इन राजनेताओं की काली कमाई की भी जांच होनी चाहिए। अब तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सरकार यह नियम बनाने जा रही है कि किसी भी राजनेता और किसी भी बड़े अफसर की काली कमाई की जांच के लिए कोई ऊपर से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है देश में एक प्रबल जनमत बनाने की और यह काम प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ही कर सकता है।
इस सिलसिले में सरकार का यह निर्णय स्वागत योग्य है कि रिटायरमेंट के बाद भी सरकारी अफसरों पर भ्रष्टाचार की जांच हो सकती है और उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है तथा उन्हें सजा दी जा सकती है। आए दिन टेलीविजन के विभिन्न चैनलों पर यह दिखाया जाता है कि एक मामूली सरकारी चपरासी और क्लर्क ने किस प्रकार करोड़ों रुपये की अवैध संपत्ति जमा कर ली और आयकर विभाग की किसी छापेमारी में उसके पास से अकूत धन निकला। यह देखकर लोग भौचक्के रह जाते हैं। कई राज्यों में तो सीनियर अफसरों के पास अरबों की संपत्ति मिली है, और उसका पूरा विवरण टीवी पर दिखाया गया है। यह देखकर आम जनता सिहर जाती है कि अपने देश में रक्षक ही भक्षक बन गये हैं। सबसे बड़ी बात है कि इन सीनियर सरकारी अफसरों को नाममात्र की सजा मिलती है। उन्हें संस्पेंड कर दिया जाता है जिसमें उन्हें अपने वेतन का तीन-चौथाई भाग मिलता रहता है बंगला, गाड़ी आदि सभी सुविधाएं पहले जैसी मिलती रहती हैं। मुकदमा सालों साल चलता रहता है। अवैध तरीके से जमा की हुई संपत्ति जब्त नहीं होती है। जनता यह देखकर हैरान हो जाती है कि उसके खून पसीने की कमाई को इन अफसरों ने किस तरह गटक लिया।
इसमें कोई संदेह नहीं, कि अधिकतर आईएएस और आईपीएस अफसर जब छोटे-छोटे शहरों में डीएम और एसपी होकर जाते हैं, तब वे राजा महाराजा की तरह रहते हैं और आम जनता को कीड़े-मकोड़े से अधिक कुछ नहीं समझते हैं। अधिकतर अफसर अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से मिलकर विकास का पैसा दोनों हाथों से लूटते हैं। कुछ लोग ईमानदार भी होते हैं। परंतु उनकी संख्या नगण्य होती है। जो लोग ईमानदार होते हैं उन्हें उनके परिवार के लोग, रिश्तेदार और मित्र ताने देते हैं कि जब उनके साथी करोड़ों कमा रहे हैं, तब वे बेवकूफ की तरह ईमानदार बने हुए हैं। वे लाख ईमानदार हों, कोई उनकी ईमानदारी पर विश्वास नहीं करेगा। इसलिए उचित है कि बहती गंगा में वे भी हाथ धो लें और लाचार होकर इन ईमानदार अफसरों को अपने परिवार, रिश्तेदारों और मित्रों के दबाव में बेईमान होना ही पडता है। और एक बार जब कोई अफसर बेईमानी की राह पकड़ लेता है तो फिर उसका कोई अंत नहीं होता है।
इस सिलसिले में एक सत्य जो कि आम जनता को पता नहीं हैं, वह यह है कि ये बेईमान अफसर ही राजनेताओं को बेईमानी का गुर सिखाते हैं। वे ही अपने मंत्रियों को यह बताते हैं कि किस प्रकार और कहां चोरी की जा सकती है। वे उन्हें आश्वस्त करते हैं कि इस तरह से भ्रष्ट तरीके से कमाए हुए धन का पता कोई अभी भी किसी कुर्सी पर हमेशा के लिए नहीं रहता है। इसलिए समय रहते हुए ऐसा प्रबंध कर लिया जाए जिससे उनके सात पुश्त ऐशोआराम की जिंदगी बिता सकें। ये अफसर अपने मंत्रियों को यह भी बताते हैं कि कल को आपकी कुर्सी चली जा सकती है या आपका विभाग बदला जा सकता है। फिर तो यदि इस मंत्रालय में कोई काम कराना हो तो उन्हें इन अफसरों के पास ही आना होगा। ये अफसर अपने मंत्रियों को यह भी बताते हैं कि जिस प्रकार चुनाव का खर्च दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है उसमें यदि ये भरपूर आमदनी का उपाय नहीं करेंगे तो दुबारा से चुनाव जीतकर नहीं आ सकते। केवल ईमानदारी के नाम पर कोई किसी को वोट नहीं देते हैं। मंत्रीजी अपने अफसरों की बात से सहमत हो जाते हैं और दोनों की मिलीभगत से सरकारी खजाना लुटता रहता है।
इस बात को तो मानना ही होगा कि मीडिया ने इस देश में जनता को पूरी तरह से जागृत कर दिया है। इसमें इलेक्ट्रोनिक मीडिया का पूरा योगदान रहा है। अभी उत्तरप्रदेश के चुनाव में मीडिया ने यह रहस्योद्धाटन किया कि विभिन्न एसेम्बली के चुनाव में जिन उम्मीदवारों ने 2012 के चुनाव में अपनी संपत्ति पांच करोड़ रुपए घोषित की है। प्रश्न उठता है कि पांच वर्ष के अंदर आखिर इन राजनेताओं के पास कौन सी जादू की छड़ी आ गई जिससे उनकी संपत्ति इतनी अधिक बढ़ गई। यह तो वह संपत्ति है जिसका उन्होंने संभवत: वैध तरीके से कमाई हुई संपत्ति दिखाने का प्रयास किया होगा। अवैध या गलत तरीके से कमाई हुई संपत्ति तो इससे कई गुना अधिक होगी। यदि अवैध संपत्ति को छोड़ भी दें तो क्या इस देश में ऐसा कानून नहीं है जो इन राजनेताओं से पूछे कि आपने पांच वर्ष में इतनी संपत्ति भला कैसे जमा कर ली? अब तो चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार हर उम्मीदवार को अपनी संपत्ति घोषित करनी होती है। इस देश में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया का कर्तव्य है कि वे इन राजनेताओं के असली चेहरे को उजागर करें और आम जनता को यह बतावें कि इन्होंने जो काली कमाई की है वह आम जनता के खून पसीने की कमाई है। अफसर तो रिटायर कर जाते हैं। इस कारण उन की अवैध संपत्ति की आज तक जांच नहीं होती थी। परंतु राजनेता कभी रिटायर नहीं होते हैं। अनुभव से यह देखा गया है कि जब किसी बड़े घोटाले की जांच होती है जिसमें राजनेता और अफसर दोनों की मिलीभगत होती है तो राजनेता तो छूट जाता है, परंतु अफसरों को जेल हो जाती है।
समय आ गया है कि जब मीडिया इस देश में एक प्रबल जनमत बनाये और सरकार को बाध्य करें कि इन राजनेताओं की काली कमाई की भी जांच होनी चाहिए। अब तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सरकार यह नियम बनाने जा रही है कि किसी भी राजनेता और किसी भी बड़े अफसर की काली कमाई की जांच के लिए कोई ऊपर से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है देश में एक प्रबल जनमत बनाने की और यह काम प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ही कर सकता है।