माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित हाइस्कूल और इंटर बोर्ड की परीक्षा के अतिसंवेदनशील होने के बावजूद उस पर कभी 'घोटाले' का दाग नहीं लगा, जबकि इसी परिषद द्वारा पहली बार कराई गई अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) का परिणाम तमाम संदेहों के घेरे में है.
आरोप है कि पैसे लेकर अयोग्य लोगों को पास किया गया. उत्तर प्रदेश में सामने आ रहे इस नए घोटाले में माध्यमिक शिक्षा परिषद के निदेशक संजय मोहन समेत 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इनके पास से 96.94 लाख रु. भी बरामद हुए हैं. संजय मोहन की गिरफ्तारी 7 फरवरी को उनके लखनऊ स्थित निवास से की गई है.
गिरफ्तार लोगों के बयान, बरामद दस्तावेजों और जांच में लगे पुलिस अधिकारियों की मानें तो यह परीक्षा घोटाला लगभग 200 करोड़ रु. का है. 12 करोड़ रु. का खुलासा हो चुका है.
इस घोटाले की जांच कर रहे रमाबाई नगर (कानपुर देहात) के पुलिस अधीक्षक सुभाष चंद्र दुबे कहते हैं, ''यह घोटाला सिर्फ 12 करोड़ रु. तक सीमित नहीं है और इसमें संजय मोहन समेत कई लोग शामिल हैं.'' निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम लागू होने के बाद बीएड डिग्री धारकों को शिक्षक बनाने का फैसला हुआ. फिर टीईटी का नियम बना दिया गया. अब इस परीक्षा को पास किए बगैर कोई शिक्षक नहीं बन सकता. यहीं से जोड़-जुगाड़ शुरू हुआ.
उत्तर प्रदेश शासन को लगभग 72,000 शिक्षकों की जरूरत है. इसके लिए 13 नवंबर, 2011 को टीईटी परीक्षा कराई गई. परीक्षा की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद को सौंपी गई. इसमें 11 लाख से ज्यादा बीएड डिग्रीधारक अभ्यर्थी शामिल हुए जिसमें सिर्फ 2,70,000 पास हुए.
परिणाम आते ही आरोपों से घिर गया. परीक्षा परिणाम के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही थी, लेकिन चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण बीच में ही रुक गई. चुनाव आयोग के आदेश पर काला धन बरामदगी के लिए रमाबाई नगर में 31 दिसंबर को पुलिस ने वाहनों की चेकिंग की थी, तभी एक टैक्सी में 46,73,000 रु. के साथ 5 लोग धरे गए. पकड़े गए लोगों ने ही शिक्षा विभाग के इस महाघोटाले का पर्दाफाश किया. इसके बाद से अब तक माध्यमिक शिक्षा परिषद के निदेशक संजय मोहन सहित 12 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं.
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने इस घोटाले को बहुत गंभीरता से लिया है और इसकी सीबीआइ जांच करवाने की मांग की है. रमाबाई नगर के एस.पी. सुभाष चंद्र दुबे के अनुसार, ''गिरोह चूंकि शिक्षा विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी संचालित कर रहा था, इसलिए यह काम पूरी तरह से फल-फूल रहा था. चुनाव के कारण भंडाफोड़ हो गया. अब कोई बचेगा नहीं.''
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गिरफ्तार लोगों के बयान, बरामद दस्तावेजों और जांच में लगे पुलिस अधिकारियों की मानें तो यह परीक्षा घोटाला लगभग 200 करोड़ रु. का है. 12 करोड़ रु. का खुलासा हो चुका है.
इस घोटाले की जांच कर रहे रमाबाई नगर (कानपुर देहात) के पुलिस अधीक्षक सुभाष चंद्र दुबे कहते हैं, ''यह घोटाला सिर्फ 12 करोड़ रु. तक सीमित नहीं है और इसमें संजय मोहन समेत कई लोग शामिल हैं.'' निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम लागू होने के बाद बीएड डिग्री धारकों को शिक्षक बनाने का फैसला हुआ. फिर टीईटी का नियम बना दिया गया. अब इस परीक्षा को पास किए बगैर कोई शिक्षक नहीं बन सकता. यहीं से जोड़-जुगाड़ शुरू हुआ.
उत्तर प्रदेश शासन को लगभग 72,000 शिक्षकों की जरूरत है. इसके लिए 13 नवंबर, 2011 को टीईटी परीक्षा कराई गई. परीक्षा की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद को सौंपी गई. इसमें 11 लाख से ज्यादा बीएड डिग्रीधारक अभ्यर्थी शामिल हुए जिसमें सिर्फ 2,70,000 पास हुए.
परिणाम आते ही आरोपों से घिर गया. परीक्षा परिणाम के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही थी, लेकिन चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण बीच में ही रुक गई. चुनाव आयोग के आदेश पर काला धन बरामदगी के लिए रमाबाई नगर में 31 दिसंबर को पुलिस ने वाहनों की चेकिंग की थी, तभी एक टैक्सी में 46,73,000 रु. के साथ 5 लोग धरे गए. पकड़े गए लोगों ने ही शिक्षा विभाग के इस महाघोटाले का पर्दाफाश किया. इसके बाद से अब तक माध्यमिक शिक्षा परिषद के निदेशक संजय मोहन सहित 12 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं.
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने इस घोटाले को बहुत गंभीरता से लिया है और इसकी सीबीआइ जांच करवाने की मांग की है. रमाबाई नगर के एस.पी. सुभाष चंद्र दुबे के अनुसार, ''गिरोह चूंकि शिक्षा विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी संचालित कर रहा था, इसलिए यह काम पूरी तरह से फल-फूल रहा था. चुनाव के कारण भंडाफोड़ हो गया. अब कोई बचेगा नहीं.''