सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें भ्रष्टाचार के मामले में जयललिता के खिलाफ दायर प्राथिमिकियों और आरोपपत्रों को मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा रद्द किए जाने को चुनौती दी गई है। न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर और न्यायमूर्ति एस.एस. निज्जर की खण्डपीठ ने यह नोटिस तब जारी किया, जब सीबीआई ने कहा कि मामले में प्राथिमिकी और आरोपपत्र दायर करने में कोई विलम्ब नहीं हुआ था। यह मामला जयललिता को वर्ष 1992 में उनके जन्मदिन पर दिए गए दो करोड़ रुपये से अधिक की राशि वाले 89 डिमांड ड्राफ्ट से सम्बंधित है। नोटिस का जवाब चार सप्ताहों में देने को कहा गया है।
ये ड्राफ्ट जयललिता के पक्ष में तमिलनाडु के विभिन्न बैंकों में 57 लोगों के नाम से भुनाए गए। इसके अलावा केनरा बैंक की मुलापोर शाखा में मौजूद ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) नेता के बचत खाते में अन्य 15 लाख रुपये जमा किए गए। इस रकम को जयललिता के आयकर रिटर्न में उपहार के तौर पर दिखाया गया था।
सीबीआई की ओर से पेश हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता हरिन रावल ने न्यायालय से कहा कि विलम्ब के आधार पर प्राथिमिकी और आरोपपत्र को खारिज कर उच्च न्यायालय ने गलती की है।
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सीबीआई की ओर से पेश हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता हरिन रावल ने न्यायालय से कहा कि विलम्ब के आधार पर प्राथिमिकी और आरोपपत्र को खारिज कर उच्च न्यायालय ने गलती की है।