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यह सभी जानते हैं कि देश में नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार ने गहरी जड़े जमा ली हैं। कोई भी विभाग इससे अछूता नहीं रह गया है। आजादी मिलने से आज तक भ्रष्टाचार लगातार बढ़ता जा रहा है। जो बीमारी हमने 65 वर्षों में पाल पोस कर बहुत गंभीर बना दी है भला उसे एक दम कैसे खत्म किया जा सकता है?
ऐसा नहीं कि हमारे यहां भ्रष्टाचार से लड़ने को कानूनों की कमी है। लोकतंत्र में जो सबसे बेहतर व्यवस्था हो सकती है वह हमारे पास है और हमें उसी के आधार पर चलना चाहिए। लेकिन जहां जिसकी चलती है वह उतना ही असंगत काम करता है। बड़े लोग बड़े घोटाले करते आ रहे हैं और छोटे लोग छोटे घोटाले करते आ रहे हैं। कहने को कानून सबके लिए समान है लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं। कानून छोटे-बड़े और अमीर तथा गरीब के लिए अलग-अलग काम करता है।
रघुराज प्रताप सिंह जैसे लोगों को कई गंभीर मामलों के आरोपी होने के बावजूद मंत्री बना दिया जाता है। बहुत से भले लोगों को चुनाव में जनता वोट ही नहीं देती और वे चुनाव हार जाते हैं। कई अपराधी जेल में बंद रहते हुए चुनाव जीत जाते हैं।
अन्ना जी को पता होना चाहिए कि लोकपाल भ्रष्टाचार को खत्म नहीं कर पायेगा बल्कि उससे भ्रष्टाचार और भी बढ़ सकता है। भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए देश में जन जागरण की आवश्यकता है। उसके लिए बहुत परिश्रम और साहस की जरुरत है। जंतर-मंतर पर एक दिन का उपवास रखने या वंदेमातरम गाने से कुछ नहीं होने वाला। ठोस और रचनात्मक पहल इसके लिए जरुरी है। धैर्य और समर्पण की भी यहां जरुरत है। चुटकी बजा देने से यह काम नहीं होने वाला।
रही बात चुनाव की। अन्ना जी कह रहे हैं कि 2014 में वे मौजूदा सरकार के खिलाफ अभियान छेड़ेंगे। ठीक है मान लें कि यदि यूपीए गठबंधन पराजित हो गया तो इसकी क्या गारंटी है कि नयी सरकार मौजूदा सरकार से बेहतर सिद्ध होगी।
1977 में कांग्रेस को पराजित कर जो जनता पार्टी की सरकार केन्द्र में बनी उसने देश की सारी व्यवस्था को ही चौपट करके रख दिया था।
क्या अन्ना या रामदेव के पास कोई ऐसा यंत्र है जिससे वे देशभक्त और ईमानदार उम्मीदवारों का चयन कर सकते हैं। यदि ऐसा है तो अन्ना जी इतने साल से आप कहां थे? अब भी आप यदि देश का भला करना चाहते हैं तो लोगों में भ्रष्टाचार के खिलाफ जाग्रति लाने का प्रयास करें। उसके लिए गांव-गांव और घर-घर जाना होगा। कभी अनशन और कभी मौन के बजाय कुछ ठोस करके दिखायें।