निर्दोष होने पर जब्त संपत्ति 5 फीसदी ब्याज के साथ वापस
बदलाव :- भ्रष्टाचार पर अंकुश के अलावा अर्जित संपत्ति को जब्त करने की दिशा में यह बिल एक मजबूत कदम है। इसका संबंध काले धन से कमाई पर रोक लगाने से है। भ्रष्टाचार पर लगाम के लिए राज्य में मौजूदा प्रावधान सशक्त नहीं था।
राजस्थान विधानसभा ने गुरुवार को राजस्थान विशेष न्यायालय विधेयक-2012 को ध्वनिमत से पारित कर दिया। इससे प्रदेश में आय से अधिक संपत्ति के मामलों का निपटारा तय समय में होने के साथ भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने विधेयक को पेश करते हुए इसके कारण और उद्देश्यों के तहत यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यह विधेयक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और ज्ञात स्रोतों के अलावा अर्जित संपत्ति को जब्त करने की दिशा में एक मजबूत कदम है।
इस विधेयक का सीधा संबंध आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने पर रोक लगाने से है। भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए मौजूदा प्रावधान सशक्त नहीं होने के कारण ही यह विधेयक लाया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस विधेयक में सारे प्रावधान समयबद्घ है। विधेयक के अनुसार न्यायालय का फैसला छह महीने में अनिवार्य रूप से आ जाएगा। इस विधेयक में असाधारण परिस्थितियों में ही स्थगन का प्रावधान है, लेकिन यह स्थगन भी तीन महीने तक ही प्रभावी रहेगा।
विधेयक के तहत प्राधिकृत अधिकारी या तो न्यायिक सेवा का सदस्य या उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना अनिवार्य होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो भी सरकार से वेतन लेता है, चाहे वह मुख्यमंत्री ही क्यों न हो, वह सब इस विधेयक के दायरे में आएंगे। न्यायालय के फैसले में अगर लोकसेवक निर्दोष साबित होता है, तो उसकी जब्त संपत्ति 5 फीसदी ब्याज के साथ लौटाई जाएगी।
उन्होंने बताया कि इस विधेयक के तहत प्राधिकृत अधिकारी के नोटिस देने के बाद संबंधित लोक सेवक सम्पत्ति को हस्तांतरित नहीं कर सकेगा। यदि वह हस्तांतरित कर देता है तो उसे शून्य समझा जाएगा। संपत्ति का आकलन प्रचलित बाजार दर के अनुसार किया जाएगा। प्राधिकृत अधिकारी उच्च न्यायालय से नियंत्रित होगा। इसलिए इसमें बदनीयती की गुंजाइश नहीं होगी।
न्यायिक अधिकारियों पर भी यह विधेयक लागू होगा। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का पुनर्गठन करने के लिए जितना बजट इस वर्ष दिया है, उतना पहले कभी नहीं दिया। ब्यूरो में अधिकारियों की नियुक्ति के लिए पहली बार वर्ष 2011 में नियम बनाए गए और चयन समिति गठित की गई।
बदलाव :- भ्रष्टाचार पर अंकुश के अलावा अर्जित संपत्ति को जब्त करने की दिशा में यह बिल एक मजबूत कदम है। इसका संबंध काले धन से कमाई पर रोक लगाने से है। भ्रष्टाचार पर लगाम के लिए राज्य में मौजूदा प्रावधान सशक्त नहीं था।
राजस्थान विधानसभा ने गुरुवार को राजस्थान विशेष न्यायालय विधेयक-2012 को ध्वनिमत से पारित कर दिया। इससे प्रदेश में आय से अधिक संपत्ति के मामलों का निपटारा तय समय में होने के साथ भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने विधेयक को पेश करते हुए इसके कारण और उद्देश्यों के तहत यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यह विधेयक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और ज्ञात स्रोतों के अलावा अर्जित संपत्ति को जब्त करने की दिशा में एक मजबूत कदम है।
इस विधेयक का सीधा संबंध आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने पर रोक लगाने से है। भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए मौजूदा प्रावधान सशक्त नहीं होने के कारण ही यह विधेयक लाया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस विधेयक में सारे प्रावधान समयबद्घ है। विधेयक के अनुसार न्यायालय का फैसला छह महीने में अनिवार्य रूप से आ जाएगा। इस विधेयक में असाधारण परिस्थितियों में ही स्थगन का प्रावधान है, लेकिन यह स्थगन भी तीन महीने तक ही प्रभावी रहेगा।
विधेयक के तहत प्राधिकृत अधिकारी या तो न्यायिक सेवा का सदस्य या उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना अनिवार्य होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो भी सरकार से वेतन लेता है, चाहे वह मुख्यमंत्री ही क्यों न हो, वह सब इस विधेयक के दायरे में आएंगे। न्यायालय के फैसले में अगर लोकसेवक निर्दोष साबित होता है, तो उसकी जब्त संपत्ति 5 फीसदी ब्याज के साथ लौटाई जाएगी।
उन्होंने बताया कि इस विधेयक के तहत प्राधिकृत अधिकारी के नोटिस देने के बाद संबंधित लोक सेवक सम्पत्ति को हस्तांतरित नहीं कर सकेगा। यदि वह हस्तांतरित कर देता है तो उसे शून्य समझा जाएगा। संपत्ति का आकलन प्रचलित बाजार दर के अनुसार किया जाएगा। प्राधिकृत अधिकारी उच्च न्यायालय से नियंत्रित होगा। इसलिए इसमें बदनीयती की गुंजाइश नहीं होगी।
न्यायिक अधिकारियों पर भी यह विधेयक लागू होगा। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का पुनर्गठन करने के लिए जितना बजट इस वर्ष दिया है, उतना पहले कभी नहीं दिया। ब्यूरो में अधिकारियों की नियुक्ति के लिए पहली बार वर्ष 2011 में नियम बनाए गए और चयन समिति गठित की गई।