मन बहुत खराब है ,उन सब सपनो कि किरचें आखोँ में चुभ रहीं हैं,जो इन दोनों ने देखें होंगे..उफ्फ..दुःख तब हुआ जब नेट-नियामक योद्धा इस शाहदत पर भी प्रश्न-चिह्न लगाते दिखे!कैसे लडें..?जब हमें, जिन के साथ और जिन के लिए लड़ना है वो ही मिलने पर औटोग्राफ-फोटोग्राफ ले कर पूछते हैं कि "आपका" आन्दोलन कैसा चल रहा है ?जैसे खुद इजरायल में रहतें हों!हज़ार साल कि गुलामी यूँ ही नहीं झेली हम ने ...?खैर सलाम इस जाबांज को और प्रणाम इस सिंदूर को!
"सच के लिए लड़ो मत साथी
भारी पड़ता है..................!
जीवन भर जो लड़ा अकेला,
बाहर-अन्दर का दुःख झेला,
पग-पग पर कर्त्तव्य-समर में,
जो प्राणों की बाज़ी खेला,
ऐसे सनकी कोतवाल को,चोर डपटता है.....!
सच के लिए लड़ो मत साथी,भारी पड़ता है...!
किरणों को दागी बतलाना,
या दर्पण से आँख चुराना,
कीचड में धंस कर औरों को,
गंगा जी की राह बताना,
इस सब से ही अन्धकार का,सूरज चढ़ता है...!
सच के लिए लड़ो मत साथी,भारी पड़ता है.....!"
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भारी पड़ता है..................!
जीवन भर जो लड़ा अकेला,
बाहर-अन्दर का दुःख झेला,
पग-पग पर कर्त्तव्य-समर में,
जो प्राणों की बाज़ी खेला,
ऐसे सनकी कोतवाल को,चोर डपटता है.....!
सच के लिए लड़ो मत साथी,भारी पड़ता है...!
किरणों को दागी बतलाना,
या दर्पण से आँख चुराना,
कीचड में धंस कर औरों को,
गंगा जी की राह बताना,
इस सब से ही अन्धकार का,सूरज चढ़ता है...!
सच के लिए लड़ो मत साथी,भारी पड़ता है.....!"