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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

लोकपाल ‘ब्लैकमेलर’ बनकर रह जाएगा: काट्जू



लखनऊ। जनलोकपाल विधेयक की मांग तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे टीम की देशव्यापी मुहिम के बीच भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काट्जू ने कहा है कि लोकपाल कानून बन जाने पर सारी व्यवस्था चरमरा जायेगी और लोकपाल ब्लैकमेलर बनकर रह जायेगा।


काट्जू ने आज यहां पत्रकारों से कहा कि लोकपाल हो या जनलोकपाल कानून, इससे व्यवस्था चरमरा जायेगी। सरकार चल नहीं पायेगी। देश में 55-60 लाख कर्मचारी हैं। पंद्रह बीस लाख तो रेलवे कर्मचारी हैं। लाखों में शिकायतें आयेंगी। इनकी जांच के लिए हजारों लोकपाल बनाने पड़ेंगे, क्योंकि दिल्ली में बैठकर चेन्नई की जांच नहीं हो सकती। जिला स्तर पर लोकपाल बनाने पड़ेंगे।


उन्होंने कहा कि लोकपाल का वेतन होगा कर्मचारी होंगे, दफ्तर देना पड़ेगा। बावजूद इसके क्या गारंटी है कि लोकपाल भ्रष्ट नहीं होगा।


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उनका तो मानना है कि लोकपाल ब्लैकमेलर होकर रह जायेगा, क्योंकि लोगों के नैतिक स्तर में गिरावट आई है।
काट्जू ने कहा कि लोकपाल की वजह से नौकरशाही सरकार के समानान्तर काम करने लगेगी। उनका कहना था कि वे अभी तक वे चुप थे, क्योंकि आमतौर पर मीडिया उनसे नाराज रहता है और लोकपाल का विरोध करने वाले को भ्रष्टाचार का समर्थक मान लिया जाता है।


उन्होंने कहा कि उनका स्पष्ट मत है कि लोकपाल की कोई आवश्यकता नहीं है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था पर्याप्त है। इसे सख्ती से लागू करने की जरूरत है।


इलेक्ट्रानिक मीडिया पर खासतौर से नाराज काट्जू ने कहा कि यह गैरजिम्मेदार हो गई है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार बनते ही गुंडाराज की वापसी के समाचार दिखाये जाने लगे हैं। नई सरकार को साल दो साल का समय दिया जाना चाहिए।


उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव में अपार संभावनाएं हैं। वे युवा हैं और ऑस्ट्रेलिया से एमटेक हैं। उन्हें काम करने का मौका दिया जाना चाहिए, उसके बाद उनकी तारीफ या आलोचना की जानी चाहिए। अभी से यह कहना कि गुंडाराज आ गया है यह तरीका गलत है। किसी को हतोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए।


काट्जू ने कहा कि अन्ना हजारे ईमानदार हैं, लेकिन उनमें वैज्ञानिक सोच नहीं है। देश की समस्याओं को दूर करने के लिए वैज्ञानिक सोच जरूरी है। शोर-शराबे से समस्याओं का हल नहीं होता।


इलेक्ट्रानिक मीडिया को भारतीय प्रेस परिषद के अधिकार क्षेत्र में लाये जाने की जबरदस्त वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि इस ताकतवर संचार माध्यम को बुनियादी समस्याओं को उठाने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।


उन्होंने कहा कि उन्हें दुख होता है जब इलेक्ट्रानिक मीडिया रियल्टी शो, फिल्मी सितारों के स्वयंवर, बिग बॉस जैसे मुद्दाविहीन कार्यक्रमों को प्रमुखता से दिखाता है। इससे आम लोगों की बुनियादी समस्याएं गौण हो जाती हैं। बुनियादी समस्याओं से लोगों का ध्यान हट जाता है।


उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति के रूप में मायावती सरकार के कार्यकाल में स्मारकों और पार्कों के संबंध में दिये अपने आदेश को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा कि सुनवाई के दौरान उन्होंने विपक्षी वकील से पूछा था कि क्या इसमें कानून का उल्लंघन हो रहा है। विपक्षी वकील ने भी कानून का उल्लंघन नहीं होने की बात स्वीकारी थी। ऐसे में वे सरकार के खिलाफ कैसे आदेश दे सकते थे।


उन्होंने कहा कि वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में किसी संस्था को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है। जनता द्वारा चुनी सरकार थी और कानून का उल्लंघन नहीं हो रहा था तो वह सरकार के खिलाफ आदेश क्यों और कैसे देते।


उन्होंने कहा कि वे मीडिया क्षेत्र में कालेधन के कथित प्रयोग पर परिषद गंभीर है। परिषद की कोशिश है कि मीडिया स्वतंत्र और निष्पक्ष बनी रहे। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार को छह महीने के अन्दर पत्रकार मान्यता समिति और विज्ञापन समिति के गठन का निर्देश दिया गया है। सरकार से यह भी कहा गया है कि मान्यता समिति का अध्यक्ष पत्रकार हो और सचिव अधिकारी। इसके ज्यादातर सदस्य पत्रकार ही होने चाहिए।


परिषद की सचिव विभा भार्गव ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार को पत्रकारों की समस्याओं को जल्द से जल्द दूर करने का आग्रह किया गया है, जबकि परिषद के सदस्य राजीव रंजन नाग ने बताया कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से पत्रकारों की चिकित्सा, बीमा और पेंशन जैसी सुविधाओं पर विस्तार से चर्चा की गयी।


नाग ने बताया कि जिला स्तर पर पत्रकारों पर हुए हमले के बारे में भी मुख्यमंत्री से बात हुई है। मुख्यमंत्री ने इन समस्याओं को गौर से सुनने के बाद इनके निदान का आश्वासन दिया है। सुश्री विभा भार्गव के अनुसार परिषद के दो दिनों तक चली बैठक में कई शिकायतों का निस्तारण किया गया।


उन्होंने बताया कि परिषद दक्षिण एशियाई देशों (दक्षेस) के पत्रकारों की समन्वय समिति बना रहा है जो पत्रकारों की दिक्कतों को देखेगा। उनका कहना था कि अदालतों की खबरों के बारे में वह अभी कुछ नहीं कह सकतीं, क्योंकि मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है। परिषद का मत है कि लिखने की स्वतंत्रता हो लेकिन संतुलन के साथ। यह न हो कि किसी मामले का मीडिया ट्रायल शुरू हो जाय।


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