सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना हजारे और योग गुरु और आयुर्वैदिक उत्पादों के प्रसिद्ध व्यवसायी रामदेव की टीमें संयुक्त रूप से सरकारी टीम से आज मुकाबला कर रही हैं. आज के इस एकदिवसीय मैच में सरकारी टीम का नैतिक बल पहले से ही गिरा होने के कारण उसके पिच उखाड़ने की सम्भावना काफी कम है लेकिन प्रतिद्वंद्वी टीमें अबकी बार मिलकर खेल रही हैं इसलिए इस एकता का लाभ मिलने की सम्भावना है.
समस्या यह है कि जब तक सरकारी टीम हरकत में आएगी तब तक गैरसरकारी टीम खेल कर मैदान से निकल चुकी होगी. कहना न होगा कि सरकारी टीम इस एक दिवसीय मैच को गंभीरता से नहीं ले रही है. उसकी तरफ से दिग्विजय सिंह, कपिल सिब्बल और मनीष तिवारी के खेलने की सम्भावना है. इधर दो कप्तानों - रामदेव और अन्ना - की सधी जुगलबंदी से उसके समर्थकों में भरी उत्साह है. याद दिलाना जरुरी है कि दोनों टीमों के बीच पहले भी कई बार मैच हो चुके हैं और गैर-सरकारी टीम जीत के निकट पहुंचती रही है. लेकिन सरकारी टीम के जिद्दी तेवर की वजह से उसने कभी यह स्वीकार ही नहीं किया कि वह हार गयी है. उसने खेल के नियमों का हर बार उल्लंघन किया. लेकिन फिर भी गैरसरकारी टीम उससे लगातार निर्णायक मैच खेलने के लिए अभिशप्त है.
हमेशा की तरह गाँधी जी और जनता उनके साथ दिखाई दे रही है तो रामदेव के प्रयासों से सुभाष चन्द्र बोस भी पाले में आ गए हैं. आज रविवार है और मध्यवर्ग के अन्ना और रामदेव भक्त छुट्टी के दिन को काम करते हुए बिताएंगे और देश की सेवा करेंगे. सब काला धन मांग रहे हैं और भ्रष्टाचार से मुक्ति भी चाहते हैं. जो गन्दा काला कलूटा धन चला गया उसे फिर लाने की क्या जरूरत है? रही भ्रष्टाचार को ख़त्म करने की बात तो सरकार अपने व्यवहार से दिखा दिया है कि यह काम वह नहीं कर पायेगी. उसे भ्रष्टचार की लत लग गयी है. और नशे की लत को छुड़ाना कितना मुश्किल होता है. ऐसे में नशेड़ी टीम का क्या होगा? सम्भावना जताई जा रही है कि वह चाहे जीते या हरे लेकिन हार नहीं मानेगी.
भले ही हर बार की तरह इस बार भी मैच हार जीत के किसी नतीजे पर न पहुंचे लेकिन शुरूआती ओवरों में ही टीम अन्ना और रामदेव के विरोधाभाषी विचार सामने आ गये. रामदेव ने बोलते हुए प्रधानमंत्री का बचाव किया और कहा कि पीएम ईमानदार हैं लेकिन चमचों से परेशान हैं. कुछ दिन पहले ही टीम अन्ना ने पीएम का मुंह कोयले से काला किया था. अब अगर रामदेव प्रधानमंत्री को बेदाग बताकर उनके चमचों को काला कलूटा बता रहे हैं तो मुश्किल यह है कि चोरों का सरदार आखिरकार ईमानदार कैसे हो सकता है? दिनभर देखिए होता है क्या?
समस्या यह है कि जब तक सरकारी टीम हरकत में आएगी तब तक गैरसरकारी टीम खेल कर मैदान से निकल चुकी होगी. कहना न होगा कि सरकारी टीम इस एक दिवसीय मैच को गंभीरता से नहीं ले रही है. उसकी तरफ से दिग्विजय सिंह, कपिल सिब्बल और मनीष तिवारी के खेलने की सम्भावना है. इधर दो कप्तानों - रामदेव और अन्ना - की सधी जुगलबंदी से उसके समर्थकों में भरी उत्साह है. याद दिलाना जरुरी है कि दोनों टीमों के बीच पहले भी कई बार मैच हो चुके हैं और गैर-सरकारी टीम जीत के निकट पहुंचती रही है. लेकिन सरकारी टीम के जिद्दी तेवर की वजह से उसने कभी यह स्वीकार ही नहीं किया कि वह हार गयी है. उसने खेल के नियमों का हर बार उल्लंघन किया. लेकिन फिर भी गैरसरकारी टीम उससे लगातार निर्णायक मैच खेलने के लिए अभिशप्त है.
हमेशा की तरह गाँधी जी और जनता उनके साथ दिखाई दे रही है तो रामदेव के प्रयासों से सुभाष चन्द्र बोस भी पाले में आ गए हैं. आज रविवार है और मध्यवर्ग के अन्ना और रामदेव भक्त छुट्टी के दिन को काम करते हुए बिताएंगे और देश की सेवा करेंगे. सब काला धन मांग रहे हैं और भ्रष्टाचार से मुक्ति भी चाहते हैं. जो गन्दा काला कलूटा धन चला गया उसे फिर लाने की क्या जरूरत है? रही भ्रष्टाचार को ख़त्म करने की बात तो सरकार अपने व्यवहार से दिखा दिया है कि यह काम वह नहीं कर पायेगी. उसे भ्रष्टचार की लत लग गयी है. और नशे की लत को छुड़ाना कितना मुश्किल होता है. ऐसे में नशेड़ी टीम का क्या होगा? सम्भावना जताई जा रही है कि वह चाहे जीते या हरे लेकिन हार नहीं मानेगी.
भले ही हर बार की तरह इस बार भी मैच हार जीत के किसी नतीजे पर न पहुंचे लेकिन शुरूआती ओवरों में ही टीम अन्ना और रामदेव के विरोधाभाषी विचार सामने आ गये. रामदेव ने बोलते हुए प्रधानमंत्री का बचाव किया और कहा कि पीएम ईमानदार हैं लेकिन चमचों से परेशान हैं. कुछ दिन पहले ही टीम अन्ना ने पीएम का मुंह कोयले से काला किया था. अब अगर रामदेव प्रधानमंत्री को बेदाग बताकर उनके चमचों को काला कलूटा बता रहे हैं तो मुश्किल यह है कि चोरों का सरदार आखिरकार ईमानदार कैसे हो सकता है? दिनभर देखिए होता है क्या?
