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व़ीरभद्र सिंह पर आरोप तय होने में 23 वर्ष लग गए। अगर जनलोकपाल होता तो यही भ्रष्टाचार का मामला ज्यदा से ज्यादा एक वर्ष में निपट जाता। केंद्रीय मंत्री वीरभद्र सिंह ने हिमाचल प्रदेश की अदालत द्वारा उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप तय किए जाने के बाद मंगलवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यूपीए-2 सरकार में भ्रष्टाचार के आरोप में इस्तीफा देने वाले वह तीसरे मंत्री हैं। उनसे पहले ए. राजा और दयानिधि मारन करप्शन के आरोपों के चलते इस्तीफा दे चुके हैं। वीरभद्र लघु, सूक्ष्म एवं मझोले उद्योग मामलों के केंद्रीय मंत्री थे। विलासराव देशमुख अब यह मंत्रालय देखेंगे।
पांच बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे 78 वर्षीय सिंह ने अपने इस्तीफे की घोषणा करने से पहले रेसकोर्स जाकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आवास पर मुलाकात की। वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मिले। उन्होंने कहा कि मैंने अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री को सौंप दिया है। प्रधानमंत्री ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर इसे राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के पास भेज दिया है। राष्ट्रपति भवन के प्रवक्ता ने कहा, राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री की सलाह पर इस्तीफा मंजूर कर लिया।
कांग्रेस के अनुभवी नेता वीरभद्र सिंह ने कहा कि मैंने नैतिक आधार पर इस्तीफा दिया है। किसी ने भी मुझे पद छोड़ने को नहीं कहा। यह मेरी नैतिक जिम्मेदारी है क्योंकि मैं अपनी पार्टी, प्रधानमंत्री और सरकार को परेशानी में नहीं डालना चाहता। प्रेम कुमार धूमल हिमाचल के सबसे भ्रष्ट और सबसे झूठे नेता हैं। पिछले 50 बरसों में मैंने टूरिज्म और स्टील जैसे मंत्रालय संभाले पर किसी ने मेरे या मेरे परिवार की ईमानदारी पर सवाल नहीं किया। वीरभद्र के मुताबिक, धूमल सरकार हिमाचल को पंजाब और तमिलनाडु जैसा प्रदेश बनाना चाहती है जहां सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकार को निशाना बनाती है।
गौरतलब है कि सिंह का फैसला हिमाचल प्रदेश की एक अदालत द्वारा उनके और उनकी पत्नी के खिलाफ 23 साल पुराने मामले में भ्रष्टाचार और आपराधिक कदाचार का आरोप तय किए जाने के एक दिन बाद आया है। अदालत ने कहा था कि उनके खिलाफ मामले में आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त सबूत हैं।