नई दिल्ली । देश भर में दुष्कर्म की बढ़ती वारदातों के खिलाफ रोक लगाने के मकसद से रेप के खिलाफ कड़े कानून बनाए जाने की मांग ने देश भर में जोर पकड़ ली है। रेप के खिलाफ सख्त कानून बनाने को लेकर जस्टिस वर्मा कमेटी बुधवार को अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप सकती है।
दिसंबर माह में दिल्ली गैंगरेप व हत्या कांड के बाद देश भर में लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया था। इस जघन्य घटना के बाद उठे बवाल के बाद कानून को सख्त बनाने की मांग ने खासा जोर पकड़ ली। इसी के मद्देनजर केंद्र सरकार ने दुष्कर्म और यौन शोषण से जुड़े कानून को कड़ा व बेहतर बनाने का सुझाव देने के लिए जस्टिस वर्मा कमेटी का गठन किया था।
गौर हो कि राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर की रात एक चलती बस में गैंगरेप की वारदात के बाद लोगों का हूजूम सड़कों पर उतर गया। कई सप्ताह तक इस घटना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी रहा। देश के कोने-कोने से बलात्कारियों को सजा-ए-मौत देने की मांग उठने लगी। हालांकि बीच, पार्टी के स्तर पर बलात्कारियों का रासायनिक बंध्याकरण का मसौदा सामने आया, लेकिन बाद में इस पर अमल नहीं हो पाया। लोगों के आक्रोश को शांत करने के लिए सरकार ने समुचित कदम उठाए जाने का भरोसा दिया, पर अभी तक इस दिशा में कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है।
आईपीसी के तहत अभी बलात्कार की सजा सात साल से लेकर उम्र कैद तक का प्रावधान है। लोगों में इस बात का गुस्सा भी है कि दुष्कर्म जैसे मामले में न्याय पाने के लिए लंबा वक्त लगता है। ऐसे मामलों त्वरित फैसला होना चाहिए। जन विरोध को देखकर सरकार ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया।
इस कमेटी में हाईकोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस लीला सेठ और वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम शामिल हैं। कमेटी ने समाज के हर स्तर से इस बारे में सुझाव मांगे थे। इस
कमेटी को तमाम राजनीतिक दलों, महिला संगठनों और आम लोगों की ओर से करीब 70 हजार सुझाव मिले हैं। वहीं, कांग्रेस ने बलात्कार की सज़ा बढ़ा कर 30 साल करने की बात कही है। उसने फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर तीन महीने में मामला निपटाने का सुझाव दिया है।
जस्टिस वर्मा कमेटी ने सभी सुझावों को देखते हुए सिफारिशें तैयार कर ली हैं। कमेटी के रिपोर्ट सौंपने के बाद सरकार भी रायशुमारी करेगी।
दिसंबर माह में दिल्ली गैंगरेप व हत्या कांड के बाद देश भर में लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया था। इस जघन्य घटना के बाद उठे बवाल के बाद कानून को सख्त बनाने की मांग ने खासा जोर पकड़ ली। इसी के मद्देनजर केंद्र सरकार ने दुष्कर्म और यौन शोषण से जुड़े कानून को कड़ा व बेहतर बनाने का सुझाव देने के लिए जस्टिस वर्मा कमेटी का गठन किया था।
गौर हो कि राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर की रात एक चलती बस में गैंगरेप की वारदात के बाद लोगों का हूजूम सड़कों पर उतर गया। कई सप्ताह तक इस घटना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी रहा। देश के कोने-कोने से बलात्कारियों को सजा-ए-मौत देने की मांग उठने लगी। हालांकि बीच, पार्टी के स्तर पर बलात्कारियों का रासायनिक बंध्याकरण का मसौदा सामने आया, लेकिन बाद में इस पर अमल नहीं हो पाया। लोगों के आक्रोश को शांत करने के लिए सरकार ने समुचित कदम उठाए जाने का भरोसा दिया, पर अभी तक इस दिशा में कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है।
आईपीसी के तहत अभी बलात्कार की सजा सात साल से लेकर उम्र कैद तक का प्रावधान है। लोगों में इस बात का गुस्सा भी है कि दुष्कर्म जैसे मामले में न्याय पाने के लिए लंबा वक्त लगता है। ऐसे मामलों त्वरित फैसला होना चाहिए। जन विरोध को देखकर सरकार ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया।
इस कमेटी में हाईकोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस लीला सेठ और वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम शामिल हैं। कमेटी ने समाज के हर स्तर से इस बारे में सुझाव मांगे थे। इस
कमेटी को तमाम राजनीतिक दलों, महिला संगठनों और आम लोगों की ओर से करीब 70 हजार सुझाव मिले हैं। वहीं, कांग्रेस ने बलात्कार की सज़ा बढ़ा कर 30 साल करने की बात कही है। उसने फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर तीन महीने में मामला निपटाने का सुझाव दिया है।
जस्टिस वर्मा कमेटी ने सभी सुझावों को देखते हुए सिफारिशें तैयार कर ली हैं। कमेटी के रिपोर्ट सौंपने के बाद सरकार भी रायशुमारी करेगी।