anna hazare says |
देश गंभीर संक्रमण काल से गुजर रहा है। कभी सोने की चिड़िया कहने वाला भारत आज हिमालय जैसे कर्ज के नीचे दब गया है। इस स्थिति की जिम्मेदारी उठाने के लिए कोई पक्ष पार्टी तैयार नहीं है। कई पक्ष कह रहे हैं कि इस स्थिति के लिए सत्ताधारी पक्ष जिम्मेदार है। सत्ताधारी कह रहे हैं विपक्ष जिम्मेदार है। लेकिन इन सब को यह पता नहीं है कि मैं और मेरी पार्टी जब दूसरे पक्ष की तरफ एक उंगली उठाकर वह जिम्मेदार है यह कहते हैं तब तीन उंगलियां मुझे पूछ रही हैं कि अगर वह दोषी है तो तुम क्या हो?
आज देश की जो हालत बनी है उसके लिए संसद में बैठे हुए ज्यादातर पक्ष और पार्टियां जिम्मेदार हैं। इन बातों को वो भूल गए हैं, यूं कहना गलत नहीं होगा ऐसा लगता है। सत्ताधारी जब कमजोर होता है तब विपक्ष की जिम्मेदारी बड़ी होती है। आज सत्ताधारी भी कमजोर हुआ है और विपक्ष भी। आज भ्रष्टाचार इस देश की महत्वपूर्ण समस्या बन गई है। देश के सामान्य लोगों को जीवन जीना मुश्किल हो गया है। भ्रष्टाचार के कारण महंगाई बढ़ती जा रही है। विकास कार्य पर खर्च होने वाले एक रूपये में से 10 पैसा भी विकास कार्य पर नहीं लग रहा है। सरकारी तिजोरी में जमा होने वाले पैसे में से 70 % से 75 % पैसा व्यवस्थापन, गाड़ी, बंगला, एयर कंडीशनिंग, तनखा, और कई सुख-सुविधाओं पर खर्च हो रहा है। बचे 25% पैसों में से 15 % का भ्रष्टाचार हो रहा है। सिर्फ 10% में देश का कैसा विकास होगा। ये तो सत्ताधारियों को भी पता है और विपक्ष को भी पता है। ऐसी स्थिति में देश के उज्जवल भविष्य के लिए देश में बढ़ते हुए भ्रष्टाचार को रोकना यही एक मात्र पर्याय (विकल्प) है। लेकिन सत्ताधारी हो अथवा विरोधी हों भ्रष्टाचार रोकने के मुद्दे पर गंभीर नहीं हैं।
जन लोकपाल बनने से देश का 60% से 65 % भ्रष्टाचार रुक सकता है। यह इन सबको पता है। लेकिन संसद में जन लोकपाल कानून नहीं बनाना है इस मुद्दे पर संसद में अधिकांश सांसदों का मानो एकमत हो गया था। साथ ही साथ अपनी तनखा बढ़ाना और कई अन्य सुविधाएँ बढाने के लिए अधिकांश सांसदों का एकमत हो गया था। जन लोकपाल के लिए आन्दोलन करने वाले लोगों को संसद में बैठे हुए कई सांसद कहते थे कि चुनाव लड़ कर संसद में आओ और कानून बनाओ। कानून संसद में बनते हैं, सड़क पर नहीं बनते। और आज कोयला घोटाला, एफ डी आई के प्रश्न पर अब कई पक्ष और पार्टी - सबको यह पता चला कि दिल्ली की संसद से जन संसद बड़ी है। इसलिए अब ये लोग संसद से निकल कर जन संसद के सामने आ कर कह रहे हैं कि हम दोषी नहीं, सामने वाले दोषी हैं। संसद से उतर कर रस्ते पर आ कर संघर्ष करना है। इससे इनका असली मुखड़ा दिखाई देता है।
संविधान के मुताबिक सामाजिक और आर्थिक विषमता का फासला कम करना होगा। संसद में बैठे हुए सांसदों की यह जिम्मेदारी होती है। लेकिन अपनी इस जिम्मेदारी को बहुत से सांसद भूल गए हैं। इस कारण देश और देश की जनता की यह हालत बन गई है। विषमता बढ़ती ही जा रही है। अगर देश में जन लोकपाल, राईट टू रिकाल, दफ्तर दिरंगाई जैसे कानून बनाते तो भ्रष्टाचार को किसी हद तक रोकने का काम होता। विकास कार्य को गति मिलती और देश की अर्थनीति बदलने का काम होता। एफ डी आई से सही मायने में अर्थनीति नहीं बदलेगी। जब तक भ्रष्टाचार को रोकने के सख्त कानून नहीं बनते तब तक देश की अर्थनीति नहीं बदलेगी। साथ ही साथ महात्मा गांधीजी का कहा भी याद करना होगा कि देश की अर्थनीति बदलना है तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था बदलनी होगी।
एफ डी आई आ गया तो देश की अर्थनीति बदलेगी ऐसे सत्ताधारी और कई पक्ष कह रहे हैं। विरोधी कह रहे हैं कि देश के लिए खतरा है। सभी 2014 का चुनाव को सामने रख कर एक दूसरों के मत काटने की कोशिश कर रहे हैं। मेरे जैसे पक्ष और पार्टी से बाहर रहने वाले लोगों को लगता है कि एफ डी आई के बहाने विदेश से आने वाला पैसा हमारे ही देश का (काला) पैसा नहीं होगा ऐसे कैसे कह सकते हैं। हमारे देश का पैसा घूम फिर कर रूप बदल कर हमारे ही देश में फिर से आता होगा ऐसे अगर जनता में संदेह हो तो क्या गलत है?
ऐसे लगता है कि कोई पक्ष और पार्टी जो सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता इसी संकुचित विचार से एक दूसरों पर आरोप प्रत्यारोप कर रहे हैं। जिन के सामने देश और देश की जनता का उज्जवल भविष्य नहीं है ऐसे लोग इस देश को नहीं संवार सकते हैं। कई प्रादेशिक पक्ष हैं उनके सिर्फ 8 से ले कर 20-25 सांसद संसद में हैं। सरकार पर दबाव निर्माण कर के पैकेज की मांग कर रहे हैं। ऐसे लोग समाज और देश को कैसे सुधार सकते हैं। कई पक्ष और पार्टियों ने संघटित हो कर एक कानून बनवाया है कि पार्टी को जो डोनेशन मिलाता है उस में से 20 हजार रुपये तक के डोनेशन का हिसाब जनता को देना जरूरी नहीं, सिर्फ उसके उपर का ही हिसाब देना है। आज कई उद्योगपति करोडों रुपयों का डोनेशन पक्ष और पार्टी को देते हैं। ऐसे डोनेशन देनेवालों के नाम भी समाज के सामने आये हैं। ऐसे करोडों रुपयों के डोनेशन के कई पक्ष और पार्टियां 20 हजार रुपयों के टुकडे कर के बोगस नाम से जमा कराते हैं और काला धन सफ़ेद करने की यही से कई पक्ष और पार्टी की शुरुआत होती है। काला पैसा इस रास्ते से सफ़ेद करते हैं। राजनीति में कई लोगों का भ्रष्टाचार यहीं से शुरू होता है। ऐसे लोग देश का भ्रष्टाचार कैसे मिटा सकते हैं।
अगर पक्ष और पार्टियां ईमानदार हैं तो एक रूपये से ले कर जो भी डोनेशन मिलता है उनका हिसाब जनता को देने में क्या गलत है? क्यों नहीं ऐसा कानून बनता? हम अपनी संस्था का पूरा हिसाब नेट पर रखते हैं। संस्था का जमा और खर्च का हिसाब चेक या ड्राफ्ट से ही होता है। पक्ष और पार्टियों में पारदर्शिता ना रखने का कारण क्या है?
सभी पक्ष और पार्टियां यह मानती हैं कि युवाशक्ति एक राष्ट्रशक्ति है। बहुत से उम्मीदवार चुनाव प्रचार में ऐसे युवकों को शराब पिला पिला कर शराब पीने की आदत डालते हैं। क्या देश के लिए यह खतरा नहीं है? युवाशक्ति इस देश का आधार है, लेकिन उन्हीं को व्यसनाधीन बनाना कहाँ तक ठीक है?
इन सब बातों को देखते हुए ऐसे लगता है कि अब देश को राजनीति से उज्वल भविष्य नहीं दिखाई दे रहा है। अब देश जाग गया है। जन लोकपाल के लिए देश की जनता ने रास्ते पर उतर कर आज तक करोडों लोगों ने आन्दोलन किया। अब देशवासियों को, युवकों को आन्दोलन की दिशा बदलनी होगी। भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए आज तक सरकार के विरोध में आन्दोलन चला था, अब सरकार के विरोध में आन्दोलन ना चलाते हुए संसद में जो सांसद बैठे हैं उनको बदलने का जनआन्दोलन चलाना होगा। जिन लोगों ने जन लोकपाल को विरोध किया था ऐसे लोगों को 2014 के चुनाव में अपना मत नहीं देना है। जनता उनको अपना मत नहीं दे इसलिए जनता को जगाना है। जनता ने ही अपना उम्मीदवार चुनना है। उनकी जानकारी आन्दोलन को देनी है फिर आन्दोलन की तरफ से उनकी जांच होगी, उनका चारित्र्य, सेवाभाव, राष्ट्रप्रेम इन सब बातों को देख कर चयन होगा। ऐसे उम्मीदवारों को ही मतदान करना है। अगर चुन कर आने के बाद जनता का विश्वास खो दिया तो उनको जनता कैसे रिकाल कर सकत़ी है, इसका निर्णय संविधान, कानून सब देख कर लिया जायेगा। मैं ना चुनाव लडूंगा, ना पक्ष या पार्टी निकालूँगा, लेकिन जनता को विकल्प देने का प्रयास करूँगा।
देश के हर राज्य से हर दिन जो मेरे पास रालेगनसिद्धि में बड़े पैमाने पर जनता आ रही है, कह रही है कि देश वासियों को विकल्प दो, उस पर से मुझे विश्वास होने लगा है कि आजादी के 65 साल के बाद अब परिवर्तन का समय आ चुका है। जरूरत है तो सिर्फ लोकशिक्षा और लोकजागृति की। उसके लिए आन्दोलन में जुड़ कर गाँव गाँव में जा कर युवकों ने जनता को जगाना है।
हमें कई सांसद कह रहे थे कि चुनाव लड़ कर संसद में आओ अब उनका सपना भी तो जनता ने पूरा करना है। देश के चारित्र्यशील उम्मीदवारों को जनता ने संसद में भेजना है और दिखाना है कि जन लोकपाल, राईट टू रिजेक्ट, जनता की सनद, ग्रामसभा जैसे कानून कैसे बनाते हैं और भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण कैसे हो सकता है।
( कि. बा. तथा अन्ना हजारे )
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भ्रष्टाचार विरोधी जन आन्दोलन,
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