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anna hazare, arvind kejriwal |
समाजसेवी अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के अलग होने से उनके समर्थकों में बेचैनी है। खासकर वह तबका निराश है जो चाहता था कि अन्ना राजनीतिक पार्टी बनाए जाने का समर्थन करें। शुरू में लगा कि अन्ना मान जाएंगे पर उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि वे राजनीति में उतरने के खिलाफ हैं। फिलहाल उनके समर्थक सोशल वेबसाइट्स पर अपनी-अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं और अपनी भड़ास निकाल रहे हैं।
एक वर्ग अचानक अन्ना के खिलाफ काफी मुखर दिख रहा है। वह उन्हें कठघरे में खड़ा कर रहा है। एक राय यह है कि अन्ना चुनाव में हार के डर से पार्टी बनाने के खिलाफ हो गए। ऐसा सोचने वाले का मानना है कि अन्ना को लग रहा था कि कभी न कभी उन्हें चुनाव मैदान में उतरना ही पड़ेगा। अगर सभी पार्टियों ने मिलकर उन्हें हरा दिया तो उनकी रही-सही इज्जत भी चली जाएगी। अभी कम से कम थोड़ी धाक तो बनी हुई है। राजनीति से बाहर रहकर राजनीति को गाली देना आसान है।
एक राय यह है कि अन्ना और अरविंद केजरीवाल में अनशन को लेकर मतभेद हो गया था। अन्ना को अनशन किए काफी दिन हो गए हैं इसलिए वे अनशन करने के लिए उतावले हो रहे हैं। लेकिन अरविंद केजरीवाल का कहना था कि अब जब पार्टी बना ही रहे हैं तो अनशन करने का मतलब क्या है? इससे अन्ना नाराज हो गए और उन्होंने राजनीति में उतरने का अजेंडा ही त्याग दिया। लेकिन एक राय यह है कि अन्ना को रामदेव ने बहका दिया है। अन्ना तो पार्टी बनाने के लिए तैयार हो गए थे। पर बाबा ने अंतिम समय में उनकी मति फेर दी।
कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि बाबा ने अन्ना से कोई ऐसा आसन करवा दिया जिसका उनके दिमाग पर असर पड़ा है और वे अपने स्टैंड से पलट गए हैं। ऐसा मानने वाले बाबा को कोस रहे हैं। वे तो यह भी कह रहे हैं कि कहीं अन्ना को अलग करके बाबा अपनी पार्टी न बना लें। इसमें बाबा का खेल है। उन्होंने टीम अन्ना को कमजोर करके अपने लिए आधार तैयार किया है। अन्ना से कुछ ज्यादा ही नाराज लोगों ने यहां तक कहा है कि शायद बीजेपी ने अन्ना को समझा दिया है कि अगली बार सत्ता में एनडीए ही आएगा और वह लोकपाल बिल पारित करके रहेगा। उसने जरूर अन्ना से यह आश्वासन लिया होगा कि लोकपाल पारित होते ही वह तीर्थयात्रा पर निकल जाएंगे।