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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

कोयले से ध्यान बंटाने का उसका डीजल की कीमतों में मूल्य वृद्धि का दांव उल्टा पड़ रहा है


कोयले की आंच में झुलस रही मनमोहन सरकार की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं.  घटक दलों और सहयोगी दलों के तेवरों से सरकार और कांग्रेस सांसत में है. इतना ही नहीं पार्टी के अन्दर से भी रोल बैक का दवाब है.

पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की शुक्रवार को हुई बैठक में इस निर्णय पर विचार-विमर्श किया गया. पार्टी नेताओं को भी लग रहा है कि आने वाले दिनों में यह निर्णय भारी पड़ सकता है. बैठक में रोल बैक को लेकर भी चर्चा हुई. पार्टी के सूत्रों के अनुसार आने वाले दिनों में इस निर्णय से जनता को कुछ राहत दी जा सकती है. यह राहत दो रुपए तक हो सकती है. यह भी माना जा रहा है कि गैस सिलेंडरों की संख्या को छह से बढ़ाकर दस तक की  जा सकती है, क्योंकि सरकार के इस निर्णय की सीधी मार आम आदमी की रसोई पर पड़ी है.

घटक दलों और बाहर से समर्थन दे रहे दलों के तीखे तेवर से सरकार बैकफुट पर नजर आ रही है. घटक दलों और सहयोगी दलों की इस तरह की तीखी प्रतिक्रिया की शायद कांग्रेस और सरकार को उम्मीद नहीं रही होगी. देश के राजनीतिक इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब कांग्रेस को छोड़कर सारे राजनीतिक दल किसी एक मुद्दे पर एक साथ खड़े हुए हैं. विपक्ष को एक तरफ कर दें तो भी सरकार में शामिल घटक दल हों या फिर बाहर से सरकार की बैसाखी बने दल सभी डीजल में हुई मूल्य वृद्धि पर रोल बैक पर अड़े हुए हैं.

राजनीतिक स्तर पर विरोध के साथ ही सरकार और कांग्रेस नेतृत्व को इस बात की उम्मीद भी नहीं रही होगी कि डीजल के मुद्दे पर जनता में भी इस कदर आक्रोश फूट पड़ेगा. कांग्रेस के अंदर भी एक बड़ा वर्ग इस मूल्य वृद्धि से खुश नहीं है, लेकिन पार्टी अनुशासन के चलते वह चुप है. सहयोगी दलों और घटक दलों के इस मुद्दे पर आर-पार के मूड के चलते सरकार के लिए इस निर्णय को बनाए रख पाना आसान नहीं होगा.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सरकार में शामिल घटक दल तृणमूल कांग्रेस से तो ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद तो रही होगी, लेकिन द्रमुक और रांकांपा से यह उम्मीद नहीं होगी. सपा, बसपा, राजद और लोजपा के तेवरों ने उसकी परेशानी को और बढ़ा दिया है. पहले से ही मंहगाई से त्रस्त जनता पर यह मार भारी पड़ने वाली है. इससे विपक्ष को कांग्रेस और सरकार को घेरने का मौका मिल गया है. आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव में अब कांग्रेस के लिए यह नारा कि ‘कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ’ देना आसान नहीं होगा.

सूत्रों के अनुसार संसदीय समिति की सिफारिशों को आधार बनाने का उसका दांव भी उल्टा पड़ गया. समिति के ज्यादातर सदस्यों ने इस तरह की किसी भी सिफारिश को खारिज कर दिया है. तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी , द्रमुक प्रमुख करुणानिधि और सरकार को कई बार संकट से उबारने वाले सपा नेता मुलायम सिंह का यह ऐलान कि वह न केवल इस मुद्दे पर आर-पार की लड़ाई लड़ेंगे, बल्कि सड़कों पर भी उतरेगें से सरकार और कांग्रेस हलकान नजर आ रही है.

डीजल में मूल्य वृद्धि से अभी सरकार उबर भी नहीं पाई थी कि मल्टी ब्रांड रिटले में एफडीआई की अनुमति सरकार के गले की हड्डी बनती नजर आ रही है. सरकार भारी दवाब में है. एफडीआई के मुद्दे पर कई बार सरकार को कदम वापस खींचने पर मजबूर करने वाली तृणमूल कांग्रेस ने यदि कोई बड़ा फैसला ले लिया तो सरकार के लिए खतरे की घंटी बज सकती है.

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