" "

भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

अन्ना के राजनीतिक विकल्प के स्वरूप पर होगी रालेगांव में च


मीडिया में अन्ना हजारेजी का एक बयान दिखाया जा रहा है. उसमें अन्नाजी ने कहा है कि वह कोई पक्ष और पार्टी नहीं बनाएंगे. वह किसी पार्टी में शामिल नहीं होंगे. वह देश के सामने एक अच्छा राजनीतिक विकल्प पेश करेंगे. ये सारी बातें तो अन्नाजी हमेशा से कहते आ रहे हैं. बिलकुल यही बात उन्होंने जंतर-मंतर से 2 अगस्त 2012 और 3 अगस्त 2012 को भी कही थीं.

अन्नाजी राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल नहीं होंगे. खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे. यह बात भी नई नहीं हैं. मीडिया इसी बात को बार-बार उठा रहा है जिससे लोगों में थोड़ा भ्रम पैदा हुआ है. जिस इंटरव्यू को आधार बनाकर ऐसी खबर दिखाई जा रही है उसी इंटरव्यू में अन्नाजी ने देश के सामने एक राजनीतिक विकल्प प्रस्तुत करने की बात भी दोहराई भी. लेकिन अन्नाजी के उस बयान की चर्चा मीडिया नहीं कर रही. अन्नाजी के साक्षात्कार में ऐसी कोई बात नहीं जिसके आधार पर यह कहा जाए कि अन्नाजी की उनके साथियों के साथ से किसी बात पर असहमति है.

बहरहाल अब प्रश्न केवल यह है अन्नाजी जो राजनीतिक विकल्प देश के सामने रखने वाले हैं उसका स्वरूप क्या होगा. बिना कोई राजनीतिक दल बनाए क्या देश को कोई राजनीतिक विकल्प दिया जा सकता है? अगर हां, तो उसका स्वरूप क्या होगा?  यह विचारणीय प्रश्न है जिस पर अन्नाजी और उनके सहयोगियों के बीच विचार मंथन चल रहा है.   

अन्नाजी ने कहा है कि वह देशभर से अच्छे लोगों की पहचान करेंगे और उनका समर्थन करेंगे. 

वे अच्छे प्रत्याशी कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल या देश की किसी भी पार्टी के हो सकते हैं. अगर अन्ना के समर्थन से वे चुनाव जीत जाते हैं तो क्या वे अन्ना की बात मानेंगे? अगर उनकी पार्टियां घोटाले में शामिल होती हैं तो क्या वे अपने पार्टी लाइन के खिलाफ संसद में वोट करेंगे?  

मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में यह संभव नहीं है क्योंकि पार्टी के खिलाफ राय रखने वाले सदस्यों पर पार्टियां अनुशासनहीनता के आरोप में कार्रवाई करती हैं. पार्टी के व्हिप का विरोध करने पर सांसदों/विधायकों की सदस्यता खत्म हो सकती है. यानी अन्ना के समर्थन से जीते लोगों के पास पार्टी के हाईकमान के आदेश का पालन करने के सिवा कोई चारा नहीं होगा.

देश के सभी राजनीतिक दलों ने एकजुट होकर जिस तरह से जनलोकपाल बिल का विरोध किया उसको देखते हुए इसकी आशा नहीं है कि अन्नाजी के समर्थन से चुनकर आए लोग अन्नाजी के सपने को पूरा कर पाएंगे. अन्नाजी ने तो जनता के कल्याण के लिए जनलोकपाल कानून के बाद राइट टू रिकॉल, राइट टू रिजेक्ट और ग्राम स्वराज कानूनों का भी सपना देख रहा है. लेकिन जिस तरह से जनलोकपाल बिल लटकता जा रहा है उसको देखते हुए मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से सबका भरोसा उठ चुका है. अगर अन्नाजी के समर्थन से चुने गए लोग भी उसी भ्रष्ट व्यवस्था में शामिल हो गए तो अन्नाजी के संघर्ष को धक्का पहुंचेगा. जनता का आंदोलनों से भरोसा टूटेगा. 

दूसरा रास्ता है कि अन्ना किसी राजनीतिक दल से जुड़े प्रत्याशियों को समर्थन देने के बजाए, निर्दलीय प्रत्याशियों को अपना समर्थन दें. लेकिन आमतौर पर देखा गया है कि निर्दलीय लोग चुनाव जीतने के बाद किसी न किसी दल के साथ मिल जाते हैं. सरकार में साझीदार हो जाते हैं. यानी निर्दलीयों को समर्थन देकर जिताने में भी वही खतरा बरकरार है जो किसी राजनीतिक दल के प्रत्याशी को जिताने में होता है.

अन्ना हजारेजी से इन सभी विषयों पर विस्तृत चर्चा के लिए उनके कुछ सहयोगी रालेगण सिद्धी जाएंगे. वैकल्पिक 
राजनीति के सभी विकल्पों पर विस्तार से चर्चा होगी और इस बात की घोषणा की जाएगी कि अन्नाजी के राजनीतिक विकल्प का स्वरूप क्या होगा.

" "