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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

राजनीतिक पार्टी को लेकर अन्ना-अरविंद में मतभेद गहराया

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नई दिल्ली। राजनीतिक पार्टी बनाने के सवाल पर टीम अन्ना में गहरे मतभेद हैं। यहां तक कि अन्ना भी इसके लिए खुद को दिल से तैयार नहीं कर पाए हैं। जंतर-मंतर के मंच से राजनीति विकल्प की बात कहने वाले अन्ना अब पार्टी बनाने के खिलाफ बयान दे रहे हैं। यही नहीं, उनका साफ कहना है कि टीम अरविंद अगर चुनाव लड़ती है तो वो उसके लिए प्रचार भी नहीं करेंगे। अन्ना आंदोलन के जरिए सिर्फ जनता को जगाने के पक्ष में हैं। जिससे जनता योग्य उम्मीदवारों को चुनकर संसद और विधानसभाओं में भेज सके।

वहीं अन्ना के सहयोगी संजय सिंह ने कहा कि अन्ना के ताजा बयान से भ्रम की स्थिति पैदा होती है। जबकि मयंक गांधी का कहना है कि खुद अन्ना ने महीने भर पहले पार्टी बनाने की बात पर सहमति दी थी, अब ऐसा क्या हो गया कि वे अपने फैसले को बदल रहे हैं। इसके अलावा कुमार विश्वास का कहना है कि अन्ना अपने बयान से भ्रम की स्तिथि पैदा कर रहे हैं। टीम अन्ना एक है। यह सवाल हमें भी अन्ना जी से समझना है। अन्ना की सोच हम सबसे आगे है। हम सब उनके पास जाएंगे और उनसे बात करेंगे।

दरअसल अन्ना जंतर-मंतर का आंदोलन खत्म होने के बाद से ही विरोधाभासी बयान देते रहे हैं। लेकिन गुरुवार को जारी अपने बयान में अन्ना ने साफ तौर पर पार्टी बनाने और चुनाव लड़ने का विरोध किया। यही नहीं आईबीएन7 के साथ खास बातचीत में तो अन्ना ने ये भी साफ कर दिया कि अरविंद एंड कंपनी अगर चुनाव लड़ती है तो वो उनका प्रचार नहीं करेंगे।

इतना ही नहीं अन्ना की बात से ये भी साफ हो गया कि राजनीतिक पार्टी के मसले पर अब भी उनकी टोली में मंथन जारी है। कोयला आवंटन पर अरविंद के घेराव आंदोलन पर किरण और अरविंद के बीच मतभेद उभर कर सामने भी आ गए। अन्ना ने भी माना कि दोनों में इस बात पर मतभेद है, हालांकि उन्हें उम्मीद है कि इस मतभेद को मिल बैठ कर सुलझा लिया जाएगा।

अरविंद केजरीवाल के फैसले से सहमत नहीं किरण बेदी
अन्ना पहले भी राजनीतिक पार्टी बनाने के विरोधी रहे हैं। लेकिन जुलाई में जंतर-मंतर के आंदोलन के बाद उन्होंने राजनीतिक विकल्प देने की बात कही थी। लेकिन एक बार फिर वो जन-जागरण की अपनी पुरानी बात पर ही लौट आए दिखते हैं। इसके पक्ष में वो अपनी और अरविंद केजरीवाल की जंतर मंतर हुई बात का हवाला देते हैं।
अन्ना हजारे ने लगाई अपने समर्थकों को डांट

टीम अन्ना दिल्ली का विधानसभा चुनाव लड़ने के संकेत दे रही है। लेकिन लगता है अन्ना इससे भी वाकिफ हैं। हमसे हुई बातचीत में उन्होने इस तरह कि किसी जानकारी से ही इनकार कर दिया। जाहिर है लोकपाल की लड़ाई जहां से शुरू हुई थी वहां से काफी दूर चली आई है। ऐसे में अगर हाल के आंदोलन के दौरान मैं अन्ना हूं कि टोपी, मैं अरविंद हूं कि टोपी में बदलने लगी है तो कोई आश्चर्य नहीं। देखना है कि 2014 तक ये आंदोलन और कौन सी शक्ल अख्तियार करता है।
अब से तकरीबन एक महीने पहले अन्ना हजारे ने ऐलान किया था कि वो जनता को राजनीतिक विकल्प देंगे। तब इस मुद्दे पर लंबी बहस भी छिड़ी थी कि अब तक गैर-राजनीतिक रहा अन्ना का आंदोलन राजनीतिक कैसे हो गया। ऐसे में अन्ना का ये ताजा स्टैंड चौंकाने वाला है।

गौरतलब है कि जंतर मंतर के आखिरी अनशन से पहले अन्ना लगतार राजनीति में उतरने से इनकार करते रहे हैं। लेकिन जब अरविंद-मनीष और गोपाल राय के अनशन पर सरकार ने कान नहीं दिया तो अन्ना के रुख में बदलाव साफ दिया। आईबीएन नेटवर्क के एडिटर इन चीफ राजदीप सरदेसाई से बात करते हुए अन्ना ने कहा कि अगर भ्रष्टाचार की सुरसा के वध के लिए सियासी पहल की जरूरत हुई और जनता ने आदेश दिया तो वो इनकार नहीं कर सकेंगे।

भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत से ही सत्ता पक्ष से अन्ना हजारे को इस बात की चुनौती दी जाती रही कि चुनाव मैदान में मुकाबला करके दिखाएं। लेकिन अन्ना कभी इसके हक में नहीं रहे। अन्ना का मानना था कि राजनीतिक दल बनाते ही आंदोलन की धार कमजोर पड़ जाएगी। पिछले साल हरियाणा के हिसार में कांग्रेस के उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव प्रचार करने के बाद उनकी टीम को जबरदस्त आलोचना भी झेलनी पड़ी थी। लेकिन तमाम मश्क्कत के बाद भी जब सरकार टस से मस होती नजर नहीं आई तो अन्ना के नजरिए में बदलाव आया। उन्होंने साफ कर दिया कि भले वो खुद राजनीति में सीधे न उतरें मगर चुनाव से उन्हें परहेज नहीं है। अन्ना ने तब कहा था कि जो भी आगे बढ़ेगा, वो उसका साथ देंगे।
जाहिर है अन्ना का ताजा रुख उनके पहले के रुख से अलग दिख रहा है। जो अन्ना समर्थकों और सहयोगियों के पीछे खड़े रहने की बात कर रहे थे वो अब साफ कह रहे हैं कि पार्टी बनाने और चुनाव लड़ने की कोई जरूरत नहीं है। वो राजनीतिक विकल्प की बात तो अब भी कर रहे हैं लेकिन ये विकल्प जन जागरण का है खुद सियासत में उतरने का नहीं। अन्ना ने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का दायरा बढ़ाने की बात करते हुए यहां तक कह डाला कि अगर आंदोलन का स्वरुप व्यापक नहीं हुआ तो ये शिकायत निवारण केंद्र बन कर रह जाएगा।

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