
उन्होंने कहा कि रविंदर बलवानी को वे 2001 से जानते हैं। दिल्ली में जब सूचना के अधिकार की मांग करने वाले गिनती के लोग थे, तब से बलवानी कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे थे। आरटीआइ के बदले उन्हें जो धमकियां मिल रही थीं, पुलिस ने उन्हें गंभीरता से लिया होता तो शायद यह दिन नहीं देखना पड़ता। दिल्ली ट्रांसको लिमिटेड में मैनेजर के तौर पर काम करने वाले रविंदर बलवानी वसंतकुंज के सी-9 में पत्नी अंजना, बेटा वरुण बलवानी, बेटी सोनिया बलवानी के साथ रहते थे। पत्नी अंजना की मानें तो रविंदर बलवानी दूसरों के लिए हमेशा समर्पित रहते थे।
गत 23 अप्रैल की शाम रविंदर बलवानी अपने घर से चंद कदम पर जख्मी मिले थे। बाद में उनकी मौत हो गई थी। उनके पुत्र वरुण बलवानी का कहना है कि उन्होंने अपने पिता की मौत के मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग के लिए इस आंदोलन को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया है। परिजनों का आरोप है कि सोची-समझी साजिश के तहत बलवानी की हत्या की गई है। उनकी मौत के बाद से आरटीआइ से संबंधित दस्तावेज समेत कई महत्वपूर्ण कागजात भी गायब हैं। वे इस मामले में दिल्ली पुलिस आयुक्त से भी न्याय की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन मामले से संबंधित जांच अधिकारी ने उन्हें सहयोग नहीं दिया। यहां तक पोस्टमार्टम की रिपोर्ट भी नहीं बताई।