" "

भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

6 दशक में 20.80 लाख करोड़ की लूट


कांग्रेस ने 6- 7 साल पहले एक सर्वे कराया कि पता करो कि देश में सही में ग़रीबो की संख्या कितनी हैं ? क्योंकि पहले कोई कहता था कि 25 करोड़ हैं, कोई कहता था कि 35 करोड़ हैं, कोई कहता था कि 37 करोड़ हैं, तो सर्वे कराया। सर्वे के लिये अर्जुन सेनगुप्ता को कहा गया, अर्जुन सेनगुप्ता भारत के बहुत बड़े अर्थशास्त्री हैं और इंदिरा गांधी के समय से भारत सरकार के आर्थिक सलाहकार रहे हैं, तो उन्होने 3-4 साल कि मेहनत के बाद संसद मे एक रिपोर्ट प्रस्तुत की।

रिपोर्ट कहती है देश कि कुल आबादी 115 करोड़ और 115 करोड़ मे से 84 करोड़ लोग ऐसे हैं जो एक दिन 20 रुपये भी खर्च नहीं कर पाते और 84 करोड़ में से 50 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो एक दिन में 10 रुपये भी खर्च नहीं कर पाते और 15 करोड़ ऐसे है 5 रुपये भी रोज के नहीं खर्च कर पाते और 5 करोड़ ऐसे है 50 पैसे भी रोज के नहीं खर्च कर पाते।

इसी रिपोर्ट में ये भी बताया गया की भारत में 25 करोड़ परिवार हैं। 11 करोड़ परिवारों (लगभग 50 करोड़ लोग) के लिए संडास की कोई व्यवस्था नहीं है। इन परिवारों की माताओं बहनों को खुले में शौंच के लिए जाना पड़ता है। इन्हीं 11 करोड़ परिवारों में हर एक व्यक्ति के पास पहनने के लिए 5-5 मी॰ कपड़ा भी नहीं है।

हमारे देश में 5.76 लाख गाँव हैं इनमें 2.75 लाख गाँव ऐसे हैं जहां पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं है। इन गाँव में हमारी माताओं बहनों को पीने का एक बाल्टी पानी लेने के लिए 5- 10 किमी॰ तक जाना पड़ता है।

ये हमारे देश भारत की नंगी वास्विकता..... जब वो रिपोर्ट आई तो सब के रंग उड़ गये । कि आखिर 64 मे हमने किया क्या ??........... इतनी ग़रीबी इतनी बदहाली !!

इस गरीबी का कारण लगभग सभी नेताओं ने बढ़ती हुई जनसंख्या को बताया, जबकि असलियत ये है की जनसंख्या से गरीबी का कोई संबंध नहीं है।

1947 में हमारी जनसंख्या 34 करोड़ थी और अब 115 करोड़ है। हमारी जनसंख्या लगभग 3.5 गुना बढ़ी तो गरीबी, बेरोजगारी भी इसी अनुपात में बढ़नी चाहिए थी। रिजर्व बैंक के आंकड़े कहते हैं की 1947 में गरीबों की संख्या 4 करोड़ थी अब आंकड़े बताते हैं की गरीबों की संख्या है 84 करोड़। मतलब जनसंख्या बढ़ी 3.5 गुना और गरीबी बढ़ी 21 गुना तो गरीबी और जनसंख्या का क्या संबंध ?
1947 में बेरोजगार 2 करोड़ थे लेकिन आज 20 करोड़ हैं मतलब जनसंख्या बढ़ी 3.5 गुना और बेरोजगारी बढ़ी 10 गुना तो बेरोजगारी और जनसंख्या का क्या
संबंध ?

सबसे अजीब बात है 1952 में नेहरु ने संसद मे कहा कि एक पंचवर्षीय योजना लागू हो गई तो सारी ग़रीबी मिट जायेगी तो 1952 में पहली पंचवर्षीय योजना बनाई गई.... लेकिन 5 साल बाद देखा गया कि ग़रीबी उलटा और बढ़ गई।
1957 मे फ़िर बोले एक और पंचवर्षीय योजना बन गई तो ग़रीबी खत्म।
1963 आ गया ग़रीबी नहीं मिटी। फ़िर पंचवर्षीय योजना बनाई फ़िर ग़रीबी नहीं मिटी।
फ़िर 1968 मे बनाई फ़िर 1972 में ऐसे करते करते आज 2012 तक कुल 11 पंचवर्षीय योजनायेँ बन चुकी हैं।

सरकार के अनुसार एक पंचवर्षीय योजना में लगभग 10 लाख करोड़ का खर्च आता है तो 11 पंचवर्षीय योजना का खर्च हुआ 110 लाख करोड़। अब आप एक मिनट के लिये आप मान लो कि ये खानदानी लूटेरे एक भी पंचवर्षीय योजना ना बनाते और 110 लाख करोड़ ग़रीबो को नकद ही बांट दिया होता तो एक एक व्यक्ति को 1.5 लाख रुपये और अगर औसतन 5 लोगों का परिवार माना जाए तो एक परिवार को (1.5*5) 7.5 लाख रुपई मिल जाते और सारी ग़रीबी खत्म हो जाती।

ये 110 लाख करोड़ आपके और हमारे टैक्स का पैसा था..... जो ग़रीबो पर तो लगा नहीं लेकिन 'सोनिया गांधी' विश्व की चौथी अमीर बन गयी।
" "