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ईमानदारी का सर्टिफिकेट


इधर तो प्रधानमंत्री की ईमानदारी पर ही विवाद छिड़ गया था। अभी तक उनकी ईमानदारी विवाद से परे थी। सब पर विवाद था, उनकी सरकार के रिपोर्ट कार्ड पर, सरकार के कामकाज पर, सरकार के फैसलों पर, उसकी नीतियों पर, लेकिन उनकी ईमानदारी विवाद से परे थी। विपक्ष भी उन्हें अब तक का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री तो कहता था, पर उनकी ईमानदारी पर उंगली नहीं उठाता था। लेकिन जब टीम अन्ना ने बेईमान मंत्रियों की सूची सार्वजनिक की, तो उसमें उनका नाम भी शामिल कर लिया। 


अब सूची में नाम आना हमेशा ही तो कोई गर्व की बात होती नहीं है। वैसे भी यह कोई टाइम या फोर्ब्स की सूची तो है नहीं, और न ही बीपीएल की सूची है। सो विवाद हो गया। अपनी टीम द्वारा सूची सार्वजनिक किए जाने के बाद भी अन्ना कह रहे थे कि प्रधानमंत्री ईमानदार हैं। लेकिन फिर कहने लगे कि प्रधानमंत्री की ईमानदारी पर संदेह होने लगा है। अन्ना की तरह रामदेव भी कहते हैं कि प्रधानमंत्री ईमानदार हैं। इधर किसी को ईमानदार या बेईमान कहने से पहले यह ध्यान रखना पड़ता है कि अन्ना या रामदेव उसके बारे में क्या कहते हैं। प्रमाण के लिए यह जरूरी है। रामदेव हालांकि यह भी कहते रहे हैं कि जब उनके मंत्रिमंडल में दागी भरे पड़े हैं, तो उनके ईमानदार रहने का कोई मतलब नहीं है। भाजपा भी यही बात कहती थी।

खैर विवाद यह नहीं है, विवाद तो प्रधानमंत्री की ईमानदारी पर है। हालांकि विवाद इस पर भी है कि अन्ना और उनकी टीम एक है या नहीं। पर टीम अन्ना का कहना है कि हमने प्रधानमंत्री को बेईमान नहीं कहा है। 

उनका यह भी कहना है कि उन्होंने उन्हें शिखंडी भी नहीं कहा। पर जैसे यह कहा कि शिखंडी की तरह उन्हें इस्तेमाल किया जा रहा है, वैसे ही यह भी कहा कि तथ्य तो यही दिखाते हैं कि कोयला मंत्रालय जब उनके हाथ में था, तब घोटाला जरूर हुआ। संतों ने कहा भी है कि काजल की कोठरी में कितने भी सयाने जाए, काजल का दाग तो लगे ही लगे। पर प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि अगर आरोप सही साबित हुए, तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा। टीम अन्ना ने तो राष्ट्रपति बनने जा रहे प्रणब दा की ईमानदारी पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। ऐसे में संन्यास की घोषणा से क्या होगा? वैसे भी संन्यासियों की इस मुल्क में क्या कमी है। फिर वहां तो और भी बड़े घोटाले हैं। इसलिए ईमानदारी पर बात बढ़े, तो उसे संन्यास तक बिलकुल नहीं ले जाना चाहिए।
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