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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

मीडिया और प्रधानमंत्री द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब

सवाल 1:जिन प्रधानमंत्री की छवि पूरे विश्व में इतनी साफ है, उन पर अन्ना जी के साथी कैसे उंगली उठा सकते हैं?

जवाब : हमने एक बार नहीं कई बार कहा है कि हम नहीं मानते कि प्रधानमंत्री ने या उनके परिवार ने कोयला खदानों का आबंटन करने में किसी भी तरह का निजी फायदा उठाया है। लेकिन इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि देश की कोयला खदानों को कौड़ियों के भाव देकर देश को लाखों-करोड़ों रुपये का नुकसान पहुंचाया गया। यह नुकसान मुख्यत: 2006 से 2009 के बीच में पहुंचाया गया, जबकि प्रधानमंत्री खुद कोयला मंत्री थे। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान इतना बड़ा नुकसान कैसे होने दिया? देश को जो नुकसान हुआ, उससे किसी को तो फायदा पहुंचा है? इसके लाभार्थी कौन थे? इसकी जांच होनी चाहिए।
अगर हम CAG के आंकलन द्वारा किए गए नुकसान (10.67 लाख करोड़ रुपये) के हिसाब से जाएं तो इस एक घोटाले को रोक लेने से हम वित्तीय घाटे को ख़त्म करने में सक्षम हो पाते। देश की महंगाई बजट घाटे से सीधे-सीधे जुड़ी होती है। अगर बजट घाटे को खत्म किया गया होता तो महंगाई पर अपने आप लगाम लग जाती।
हम प्रधानमंत्री जी को इस देश को हुए नुकसान और देशवासियों को उस नुकसान के फलस्वरूप मिली कमरतोड़ महंगाई के लिए राजनैतिक रूप से जिम्मेदार ठहराते हैं। इसलिए हमारी मांग है कि प्रधानमंत्री जी की भी स्पेशल जांच दल के द्वारा जांच होनी चाहिए।

सवाल 2: सरकार का कहना है कि अगर कोयले खदानों की नीलामी की जाती तो बिजली कंपनियों को कोयला महंगा मिलता। फलस्वरूप आम आदमी को बिजली महंगी मिलती। ऐसा न हो इसके लिए सरकार ने कोयला खदानों को आंबटन करते वक्त, उनसे होने वाली कमाई के बारे में नहीं सोचा।

जवाब : यह बात बिल्कुल सटीक होती अगर कोयला खदानों को सीधे बिजली बनाने वाली कंपनियों को दिया जाता। किंतु ऐसा नहीं हुआ था। कोयला खदानें बिचौलिया कंपनियों को दी गईं, जिन्होंने भारी मुनाफा कमा कर अत्यंत महंगे दामों पर कोयला बिजली कंपनियों को बेचा। इससे बिजली लगातार महंगी होती रही और बिजली बनाने वाली सरकारी कंपनियां घाटे में जाती रहीं।
2G घोटाले में भी सरकार ने अपने पक्ष में यही बात कही थी कि उन्होंने स्पेक्ट्रम इसलिए सस्ते में बेचा ताकि आम आदमी को मोबाइल सुविधा सस्ते में मिल सके। सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज किया था, क्योंकि उनका भी यही मानना था कि अगर बिचौलिया कंपनियों को कोई चीज सस्ते में बेची जाए तो जरूरी नहीं है कि वे आगे भी उसे सस्ते में बेचे।


सवाल 3: प्रधानमंत्री जी का कहना है कि कोयला ब्लॉक की नीलामी के लिए कानून में संशोधन करना जरूरी था और इसमें 2004 से 2010 के बीच छ: साल का समय बीत गया। इसलिए सरकार कोयला खदानों की नीलामी नहीं करवा पाई।

जवाब : सच्चाई यह है कि एक बार नहीं बल्कि दो बार (पहली बार 2004 में और दूसरी बार 2006 में) कानून मंत्रालय ने प्रधानमंत्री जी को लिखित रूप में यह स्पष्ट तरीके से बताया था कि कोयला खदानों की नीलामी करने के लिए किसी कानून में संशोधन करने की कोई जरूरत नहीं। इसके बावजूद कोयला मंत्रालय ने बिना नीलामी किए 145 कोयला खदानें तीन सालों के अंदर आबंटित कर दी। 2010 में जब सरकार ने कोयला खदानों की नीलामी के लिए कानून बना लिया, उसके बाद सिर्फ एक कोयला खदान आबंटित की गई। इसलिए कानून न बन पाने के कारण नीलामी नहीं कराई गई ऐसा कहना गलत है।
इसका प्रमाण हाल ही में, उस समय के कोयला सचिव श्री पी.सी. पारिख ने टी.वी. इंटरव्यू पर दिया है। उन्होंने बताया कि उन्होंने बगैर नीलामी के कोयला खदानें आबंटित किए जाने का विरोध किया था। लेकिन प्रधानमंत्री जी ने उनके इस विरोध को ठुकराते हुए उन्हें बगैर नीलामी के ही खदानें बेचने को कहा।


सवाल 4:यह CAG की रिपोर्ट जिसके आधार पर हमने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाए हैं वह अंतिम रिपोर्ट नहीं है। ड्राफ्ट रिपोर्ट के आधार पर कोई कैसे आरोप लगा सकता है?

जवाब : CAG द्वारा बनाई गई ड्राफ्ट रिपोर्ट और अंतिम रिपोर्ट में अंतर होगा यह हम भी मानते हैं, लेकिन यह अंतर किस तरीके का हो सकता है, इसको समझना जरूरी है। हो सकता है कि दोनों रिपोर्टों में देश को हुए नुकसान की गणना भिन्न हो जैसे की ड्राफ्ट रिपोर्ट में यह आंकड़ा 10 लाख 67 हजार करोड़ रुपये है और अंतिम रिपोर्ट में ये 1 लाख 80 हजार करोड़ रुपये है। लेकिन कौन से तथ्य हैं जो ड्राफ्ट रिपोर्ट और अंतिम रिपोर्ट में नहीं बदले होंगे? इनको भी देख लेते हैं। कानून मंत्रालय ने प्रधानमंत्री जी को 2004 और 2006 में जो चिट्ठी लिखी, उसका वर्णन ड्राफ्ट रिपोर्ट में है। क्या अंतिम रिपोर्ट में यह सच्चाई बदल गई होगी? ड्राफ्ट रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे प्रधानमंत्री जी के कार्यकाल से पहले चंद कोयला ब्लॉक आबंटित किये गये थे, प्रधानमंत्री जी के कार्यकाल के बाद एक कोयला खदान आबंटित की गई और उनके कार्यकाल के दौरान यह संख्या कई गुना बढ़ गई। ये सारे कोल ब्लॉक कौड़ियों के भाव दिये गये। क्या CAG की अंतिम रिपोर्ट में यह सच्चाई भी बदल दी गई होगी?


सवाल 5: सरकार का कहना है कि कोयला खदाने निजी कंपनियों को इसलिए दी गई थीं ताकि देश में पर्याप्त बिजली उत्पादन हो सके और 2012 तक सभी को बिजली मिल सके। अगर ऐसा न किया जाता तो कोयले की आपूर्ति करने के लिए कोयला आयात करना पड़ता। यह अत्यंत महंगा विकल्प होता।

जवाब : यह एक बहाना है। सरकार ने कोयला खदानों को आनन-फानन में कौड़ियों के भाव बेच डाला और अब इस बहाने का इस्तेमाल कर रही है। सच्चाई यह है कि :-
• ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के तहत सरकार को हर किसी को बिजली देने के लिए 2012 तक 1 लाख मेगावाट बिजली का उत्पादन करना था। आज स्थिति यह है कि 2012 भी आ गया और सरकार अपने लक्ष्य का आधा भी उत्पादन नहीं कर पाई। फलस्वरूप आज शहरों में कई घंटों और गांवों में लगातार कई दिनों तक बिजली गुल रहती है।
• निजी कंपनियों को कोयला खदान देकर भी कोयले की पूर्ति नहीं हो पाई। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के तहत जिन 64 कोयला ब्लॉकों को कोयला खनन की इजाजत दी गई थी, उनमें से मात्र 28 कोयला ब्लॉकों ने मार्च 2011 तक काम शुरू किया। ये 28 कोयला ब्लॉक भी अपनी क्षमता से आधे पर ही काम कर रहे थे। फलस्वरूप देश में लगातार कोयला आयात किया गया। 2007 से तुलना करें तो 2010 में कोयला आयात में 40 फीसदी की वृद्धि हुई। यह साफ है कि न तो आम आदमी को बिजली मिली, न ही कोयले का पर्याप्त उत्पादन हुआ और न ही कोयले के आयात पर रोक लगी। इसलिए यह मात्र एक बहाना है।
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सवाल 6: सबूतों के अभाव में स्पेशल जांच दल का गठन करने का सवाल ही नहीं होता। ऐसा सरकार का कहना है।

जवाब : प्रधानमंत्री जी को और श्रीमती सोनिया गाँधी जी को हमने हर मंत्री की एक फाइल दी है, उन फाइलों को खोलें तो उनमें हर मंत्री के खिलाफ पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। ऐसा कहना कि हमने सबूत नहीं दिए, यह गलत है।


सवाल 7: अगर आपके पास सबूत हैं तो आप कोर्ट का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाते? ऐसा हमसे सरकार पूछ रही है।

जवाब : कोर्ट का काम है न्याय करना। कोर्ट जांच नहीं करता। हमारी मांग निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच की है। एक निष्पक्ष जांच के अभाव में कोर्ट भी कई मामलों में उचित न्याय करने में असमर्थ होता है। यह बात कई जजों ने भी मानी है तो फिर हम कोर्ट के पास क्यों जाएं? इसलिए हमारी मांग स्पेशल जांच दल की है।


सवाल 8: हम को देश की मौजूदा आर्थिक मंदी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

जवाब : क्या भ्रष्टाचार करने से देश की उन्नति की रफ़्तार धीमी होती है या भ्रष्टाचार को रोकने से? अन्ना जी पिछले एक साल से ज्यादा समय से भ्रष्टाचार को रोकने में लगे हैं। पिछले कुछ वर्षों से भ्रष्टाचार के इतने मामले सामने आये हैं जिसकी कोई सीमा नहीं। अगर सिर्फ एक कोयला घोटाला नहीं हुआ होता तो पूरा वित्तीय घाटा मिटाया जा सकता था। फलस्वरूप यह महंगाई जो आज आसमान छू रही है, उस पर काबू किया जा सकता था। देश की आर्थिक उन्नति के लिए भ्रष्टाचार को रोकना अत्यंत जरूरी है। देश के बच्चे-बच्चे को पता है कि अन्ना जी इसी कोशिश में लगे हैं।


सवाल 9: हम पर इल्ज़ाम लगाया जा रहा है कि हम देश की राजनैतिक व्यवस्था को चरमराने की कोशिश कर रहे हैं।

जवाब : हम भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं इसलिए हम नेताओं द्वारा किये गये भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते हैं। इसको राजनीति के खिलाफ या देश की संसदीय प्रणाली के खिलाफ नहीं समझा जाना चाहिए। असलियत तो यह है कि ऐसा आरोप ज्यादातर उन भ्रष्ट नेताओं द्वारा ही लगाया जाता है, जिनके खिलाफ हम आवाज उठाते हैं।


सवाल 10: हमारी टीम में राष्ट्र-विरोधी लोग हैं, जिनके पीछे विदेशी ताकते काम कर रही हैं।

जवाब : हम जानना चाहते हैं कि आप किन सबूतों के आधार पर ये आरोप लगा रहा हैं? किन विदेशी ताकतों की बात की जा रही है? अगर आरोप में ज़रा-सी भी सच्चाई है तो हमें जेल में डाल दीजिए। हमारी मांग है कि एक निष्पक्ष और स्वतंत्र स्पेशल जांच दल से हमारी जांच कराइये ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। यह स्पेशल जांच दल प्रधानमंत्री जी और उनके 14 भ्रष्ट मंत्रियों की भी जांच करे ताकि देश को सच्चाई का पता चल सके।


सवाल 11: क्या आप और बाबा रामदेव एक ही लड़ाई लड़ रहे हैं?

जवाब : बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे दोनों का सपना है एक भ्रष्टाचार मुक्त भारत। रामदेव जी की लड़ाई काले धन को देश में लाने के लिए है और अन्ना जी की लड़ाई जनलोकपाल बिल को लाने के लिए है। इन दोनों लड़ाइयों को एक-दूसरे का समर्थन है।


सवाल 12: जनता अन्ना जी के विचारों से सहमत नहीं है और 25 जुलाई से शुरू हो रहे अनशन में सहभागी नहीं बनेगी।

जवाब : भ्रष्टाचार मुक्त भारत हर भारतीय का सपना है। अन्ना जी की लड़ाई में हर उस इंसान ने साथ दिया जो यह विश्वास रखता है कि अन्ना जी की लड़ाई ईमानदारी से लड़ी जा रही है। देश महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त है। समय आने पर सरकार को पता चल जाएगा कि आम आदमी की देश के प्रति और इस आंदोलन के प्रति क्या भावना है।


सवाल 13: 25 जुलाई को लेकर अन्ना जी क्या मांगें हैं? क्या जनलोकपाल की मांग अभी भी कायम है?

जवाब :यह आंदोलन जनलोकपाल कानून के लिए है। जनलोकपाल मिले बिना देश भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो सकता।
लेकिन जब तक मंत्रिमंडल में 15, लोकसभा में 162 और राज्यसभा में 39 सदस्य ऐसे हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप है तब तक जनलोकपाल कानून आना नामुमकिन है। पहले दागियों को सरकार और संसद से बाहर करना होगा उसके बाद ही एक सशक्त लोकपाल कानून बन सकता है।

इस संदर्भ में 25 जुलाई से शुरू हो रहे अनशन की जरूरत न पड़े इसके लिए अन्ना जी ने सरकार के सामने तीन मांगें रखी हैं।

मांग नं 1: प्रधानमंत्री और उनके 14 कैबिनेट मंत्री जिनके खिलाफ खुद प्रधानमंत्री और श्रीमती सोनिया गाँधी को सबूत सौंपे गए, की जांच स्पेशल जांच दल (SIT) से कराई जाए। इस जांच दल को निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से जांच करने का पूर्ण अधिकार हो।
मांग नं 2: जितने भी पार्टी प्रमुख जैसे कि श्री मुलायम सिंह यादव, श्री लालू प्रसाद यादव, सुश्री मायावती वगैरह-वगैरह जिनके खिलाफ सीबीआई में मामले दर्ज हैं, उनकी जांच भी सीबीआई से नहीं बल्कि स्पेशल जांच दल (SIT) से कराई जाए।
मांग नं 3: देशभर में पर्याप्त फास्ट-ट्रैक कोर्ट गठित किए जाएं जो उपर्युक्त मामलों की सुनवाई छ: महीने में पूरी करे।
यह एक लंबी लड़ाई है और इसको हमें कई चरणों में जीतना होगा। जनलोकपाल की लड़ाई में संसद और सरकार के शुद्धिकरण का चरण एक बहुत अहम चरण है।
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