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हिन्दुस्तान एड घोटाला : बिहार के राजनैतिक दल सबक सिखाने की तैयारी में

मुंगेर। 200 करोड़ के दैनिक हिन्दुस्तान विज्ञापन घोटाला के उजागर होने के बाद बिहार के सभी राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं की अखबारी गुलामी की जंजीर अब टूटने के कगार पर पहुंच गई है। जनता दल (यू), राष्‍ट्रीय जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी, कांग्रेस, भाकपा, माकपा और क्षेत्रीय दलों के शीर्ष नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं की दैनिक अखबारों में दशकों से की जा रही उपेक्षा अब समाप्त होने की स्थिति में आ गई है। 

राजनीतिक पार्टियों के शीर्ष नेताओं और जिलों-जिलों के पार्टी कार्यकर्ताओं को इन्टरनेट के माध्यम से दैनिक अखबारों के आर्थिक अपराधों की जानकारी मिल गई हैं। सभी राजनीतिक दलों के नेता और कार्यकर्ता दैनिक अखबारों में पार्टी कार्यक्रमों के समाचार के प्रकाशन के अधिकार का अब भरपूर उपयोग भी कर रहे हैं। राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को अब दैनिक अखबारों के संपादकों और जिलों-जिलों के ब्यूरो प्रमुखों के समक्ष समाचार प्रकाशन के लिए गिड़गिड़ाने की अब जरूरत नहीं महसूस हो रही है।

पटना से मिली सूचना में बताया गया है कि पटना स्थित जनता दल (यू), राजद, लोजपा, भाकपा, माकपा और अन्य छोटे-बड़े राजनीतिक दलों के राज्य मुख्यालय स्थित कार्यालयों में इन दिनों दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, दैनिक प्रभात खबर के जिलों-जिलों से प्रकाशित होने वाले अवैध जिलावार संस्करणों और अखबारों के मालिकों और संपादकों के द्वारा किए जा रहे सरकारी विज्ञापन घोटाला पर गंभीर चर्चाएं चल रही हैं। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राजद प्रमुख लालू प्रसाद, लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान अपनी-अपनी पार्टी के वरिष्ठ सहयोगियों के साथ अखबारों के अवैध प्रकाशन और सरकारी विज्ञापन घोटाला पर गंभीरतापूर्वक विचार-विमर्श कर रहे हैं और आगे की रणनीति भी तैयार कर रहे हैं।

अवैध संस्करणों ने जदयू, राजद, लोजपा और कांग्रेस को बहुत नुकसान पहुंचाया है : वर्ष 2001 से दैनिक हिन्दुस्तान और बाद में दैनिक जागरण और दैनिक प्रभात खबर के बिहार के 35 जिलों में जिलावार अवैध संस्करणों के प्रकाशन शुरू होने के बाद सभी दलों के शीर्ष नेताओं के राजनीतिक कद को अखबार के मालिकों और संपादकों ने छोटा करने का दुस्साहस किया था। सभी राजनीतिक पार्टियों की स्थिति इतनी दयनीय बना दी गई थी कि पार्टी के वरीय नेताओं को पटना में अखबारों के माध्यम से यह भी पता नहीं चल पाता था कि उनकी पार्टी के जिलास्तरीय कार्यकर्ता पार्टी के कार्यक्रमों का संचालन ठीक ढंग से जिलों में कर भी रहे हैं या नहीं? बिहार सरकार के मंत्रियों की यह स्थिति बनी हुई है कि अगर कोई मंत्री महोदय सहरसा जिले में अपने विभाग से संबंधित राज्यव्यापी सरकार की नीति की घोषण करते हैं, तो सभी दैनिक अखबार के संपादक उनकी घोषणा को कुछ संस्करणों में छाप कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। पूरे बिहार में माननीय मंत्री की सरकारी घोषणा या नीति की खबर भी नहीं पहुंच पाती है।

राज्य मुख्यालय दैनिक घटनाओं से अंधकार में : जिलावार अवैध संस्करणों के प्रकाशन के कारण बिहार की राजधानी पटना में अवस्थित सभी सरकारी विभागों के प्रमुख दैनिक अखबार को पढ़कर भी अपने विभागों की गतिविधियों से पूरी तरह अंधकार में रह रहे हैं। जिलों-जिलों में विभाग से जुड़ी गतिविधियां पटना संस्करणों में प्रकाशित नहीं की जाती है। कुछ खास और सनसनीखेज जिलों की खबर ही दैनिक अखबारों के पटना संस्करणों में जगह बना पाती हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी परेशान : सूत्र बताते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अखबार मालिकों की इस जिलावार अवैध प्रकाशनों की व्यवस्था से नाखुश हैं। वे पटना में एक सार्वजनिक समारोह में इस संबंध में अपनी नाराजगी भी व्यक्त कर चुके हैं। राजद प्रमुख लालू प्रसाद और लोजपा प्रमुख राम विलास पासवान भी इस व्यवस्था से काफी मर्मांहत हैं। पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी में बताया गया है कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद और लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने भी दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण और दैनिक प्रभात खबर के जिलावार अवैध संस्करणों के प्रकाशन में छानबीन शुरू कर दी है। उन्होंने अपने सहयोगियों से इस संबंध में इस सप्ताह काफी गंभीरतापूर्वक विचार-विमर्श भी किया है।

मुंगेर के आरटीआई एक्टिविस्ट, अधिवक्ता और पत्रकार काशी प्रसाद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस अवैध संस्करणों के प्रकाशन पर सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाने और आर्थिक अपराध में लिप्त अखबार के मालिकों और संपादकों के विरूद्ध विधिसम्मत कार्रवाई की मांग की है।

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