" "

भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

दिल्ली गैंगरेप : सबसे बड़े दरिंदे को सबसे कम सजा !!!


नई दिल्ली : दिल्ली गैंगरेप के सबसे बड़े गुनाहगार को सबसे कम सजा होने के आसार काफी हैं। इस मामले के सबसे बड़े गुनाहगार पर फिलहाल जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड सुनवाई कर रहा है। गुरुवार को जनता पार्टी अध्यक्ष सुब्रहमण्यम स्वामी की याचिका को खारिज करने के बाद अब इस बात के आसार बढ़ गए हैं कि अपने को नाबालिग बताने वाला यह गुनाहगार महज तीन वर्ष की कैद काट कर खुली हवा में सांस लेने लगेगा।

दरअसल हमारे देश के कानून के मुताबिक 18 वर्ष से कम आयु के आरोपी का मामला जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के तहत सुना जाता है। लेकिन यहां पर बड़े से बड़े अपराध के लिए अधिकतम तीन वर्ष की सजा का ही प्रावधान है। यहां से सजा होने के बाद दोषी को बाल सुधार गृह में भेज दिया जाता है, जहां पर वह अपनी सजा पूरा करता है।

लेकिन यहां पर एक बड़ा सवाल यह है कि दिल्ली गैंगरेप मामले में, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था उसमें सबसे बड़े आरोपी को सिर्फ यह कहकर तो नहीं बख्शा जा सकता है कि वह नाबालिग है। जबकि पूरा देश उसके घिनौने काम को अच्छी तरह जानता है। दरअसल यही वह इकलौता शख्श था जिसने इस पूरी कहानी को अंजाम देने की तैयारी की थी।

अपने को नाबालिग बताकर कड़ी सजा या फिर फांसी की सजा से बचाने वाले इसी शख्स ने मुनिरका स्टेंड पर अपने पुरुष मित्र के साथ खड़ी हुई 23 वर्षीय मेडिकल स्टूडेंट को अपनी बस में सवार होने का न्यौता दिया था। इतना ही नहीं उसने उसको बहन कहकर पुकारा था और कहा था कि वह द्वारका की ही तरफ जा रहे हैं तो वह उन्हें वहां छोड़ देंगे।

लेकिन उन दोनों के बस में दाखिल होने के बाद जो कुछ उसने और उसके साथियों ने उस युवती के साथ किया उससे सभी की रूह कांप उठी। बस में सवार सभी छह लोगों ने जिसमें यह नाबालिग भी शामिल था, ने उसके साथ बारी-बारी से दुष्कर्म किया बौर बड़ी ही बेरहमी से उसके साथ मार-पीट भी की। इतना ही नहीं दुष्कर्म करने के बाद इस नाबालिग ने ही इसके शरीर में जंग लगी लोहे की रॉड तक डाल दी जिससे उसके संवेदनशील अंग बर्बाद हो गए। यह दरिंदे यहां पर भी नहीं रुके और उसके शरीर के अंगों को न सिर्फ नोच डाला बल्कि उसके शरीर से आंतें तक खींच डाली थीं।

इस नाबालिग ने ही उसके शरीर में रॉड यह कहकर डाली थी कि मर जा। बाद में इसी नाबालिग ने इसको मरा समझकर नग्न हालत में चलती बस से बाहर फेंक देने की नसीहत अपने दूसरे साथियों को दी थी। यह आरोपी कहने के लिए भले ही नाबालिग रहा है लेकिन उसका किया अपराध कहीं से भी कम नहीं है, बल्कि इस मामले में सबसे बड़ा अपराधी यही नाबालिग है। अपने गुनाह को छिपाने के लिए अब इस मामले के सभी आरोपी कानून का सहारा ले रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि यदि इस तरह के दुर्दात अपराधी महज तीन वर्ष की सजा काटकर जेल से बाहर आ जाते हैं तो क्या इस मामले में सही मायने में इंसाफ हो पाएगा।

हालांकि निचली अदालत ने स्वामी की याचिका को तो खारिज कर दिया, लेकिन उनके पास हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का विकल्प अभी बाकी है। ऐसे में अभी कुछ उम्मीद बची है कि शायद इस नाबालिग का भी मुकदमा अन्य आरोपियों के साथ चलाया जा सके और इसको भी फांसी की सजा मिल सके। स्वामी ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि इस अपराध में शामिल यह नाबालिग किसी मुख्य आरोपी से कम नहीं है। उन्होंने कोर्ट के समक्ष इस मामले के छठे आरोपी को नाबालिग न मानते हुए इसका मामला भी अन्य आरोपियों के साथ चलाए जाने की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया।

" "