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दिल्ली गैंगरेप : नाबालिग ने दो बार किया था 'दामिनी' का बलात्‍कार, मां ने कहा- उस हैवान को हर हाल में मिले मौत


नई दिल्‍ली : दिल्‍ली गैंग रेप की पीडि़ता दामिनी (पढें- प्रत्‍यक्षदर्शी की आंखों देखी) की मां चाहती हैं कि उनकी बेटी के साथ सबसे अधिक हैवानियत करने वाले नाबालिग आरोपी को किसी भी हाल में मौत की ही सजा मिलनी चाहिए।

पीडि़ता की मां ने कहा कि दरिंदों में जिसे नाबालिग कहा जा रहा है उसी ने सबसे ज्यादा बर्बरता दिखाई थी। उसे तो हर हाल में मौत मिलनी चाहिए। नाबालिग ने दो बार दुष्कर्म किया था। उसके शरीर को नुकसान पहुंचाया था। 

16 दिसंबर की रात चलती बस में हुए गैंगरेप मामले में आरोपी नाबालिग का केस जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में ही चलेगा। यह फैसला बोर्ड ने गुरुवार को सुनाया। बोर्ड ने कहा कि नाबालिग की सुनवाई बाकी पांच आरोपियों के साथ फास्ट ट्रैक कोर्ट में नहीं होगी। गीतांजलि गोयल की अध्यक्षता वाले इस बोर्ड ने सुब्रह्मण्यम स्वामी की अर्जी रद्द कर दी। 

जहां पांच को मौत की सजा या उम्रकैद हो सकती है, वहीं नाबालिग आरोपी को महज 3 वर्ष की ही सजा होने की संभावना है। नाबालिग ने ही युवती को सबसे ज्यादा यातना दी थी। युवती ने मां को बताया था


जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी दिल्ली गैंगरेप के मामले में नाबालिग आरोपी पर भी बाकी आरोपियों की तरह ही मुकदमा चलाए जाने की मांग कर रहे हैं। स्वामी की याचिका को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) ने गुरुवार को खारिज कर दिया जिसके बाद स्वामी ने हाईकोर्ट में अपील करने का फैसला किया। 
संयुक्त राष्ट्र की 'कन्वेंशन ऑफ द राइट्स ऑफ द चाइल्ड' के तहत अधिकतम 18 वर्ष तक की उम्र के व्यक्ति को बच्चा माना गया है। हालांकि 'बच्चा' माने जाने की न्यूनतम आयु को निर्धारित नहीं किया गया है। इस कन्वेंशन के तहत किसी भी बच्चे के अधिकारों की रक्षा करना राज्य का दायित्व है। संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों में से तीन देशों ने इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं जिसमें अमेरिका बड़ा देश है। 

जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्‍यम स्वामी ने ट्विटर पर नाबालिग आरोपी को मुसलमान बताकर कांग्रेस से जोड़ रहे हैं जबकि संयुक्त राष्ट्र में पारित कन्वेंशन जिसका भारत भी एक सदस्य स्पष्ट कहती है कि यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह किसी भी बच्चे के साथ उसके रंग, जाति, धर्म या जन्म के स्थान के आधार पर कोई भी भेद न होने दे। यही नहीं पारित कन्वेंशन यह भी कहती है कि राज्य प्रत्येक बच्चे के जीने के अधिकार को सुनिश्चित करे। इस आधार पर नाबालिग आरोपी को मौत की सजा किसी भी परिस्थिति में नहीं दी जा सकती।

कन्वेंशन ऑफ द राइट्स ऑफ द चाइल्ड के आर्टिकल 8 के तहत किसी भी बच्चे के पास अपनी पहचान छुपाने का अधिकार है। राज्य की जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे की किसी भी गैरकानूनी तरीके से किसी बच्चे की पहचान सार्वजनिक न हो।

दिल्ली गैंगरेप का नाबालिग आरोपी लंबे वक्त से अपने परिवार से दूर था और विषण परिस्थितियों में अपना जीवन गुजार रहा था। यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह प्रत्येक बच्चे को अपनी सोच, समझ और बौद्धिक क्षमता विकसित करने और बेहतर जीवन पाने का माहौल सुनिश्चित कराए। एक नाबालिग का इतने जघन्य अपराध में शामिल होना भी एक राष्ट्र के रूप में भारत की नाकामी ही दर्शाता है। 

राइट्स ऑफ द चाइल्ड कन्वेंशन के आर्टिकल 37 के मुताबिक किसी भी अपराध के लिए किसी भी बच्चे के फांसी या उम्रकैद की सजा नहीं दी जा सकती। यदि सजा देना जरूरी है तो कम से कम सजा दी जाए।

भारत के महिला एवं बाल कल्याण विभाग ने संयुक्त राष्ट्र की राइट्स ऑफ द चाइल्ड कन्वेंशन को स्वीकार किया है और इसे लागू करने के लिए कदम भी उठाए हैं। भारत में अलग-अलग कानूनों के तहत किसी को बच्चा मानने की न्यूनत आयु तय की गई है। सेक्सुअल कन्सेंट के लिए लड़कों की कोई न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं की गई है जबकि लड़कियों के लिए कम से कम 16 वर्ष की आयु तय की गई है। यही नहीं 18 वर्ष से अधिक उम्र का व्यक्ति ही भारतीय सैन्य बलों के अभियानों में शामिल हो सकता है। जबकि 16 वर्ष की उम्र तक के व्यक्ति खुद को सैन्य सेवाओं के लिए उपलब्ध करवा सकते हैं। 

चाइल्ड लेबर एक्ट के तहत कम से कम बच्चों के लिए 14 वर्ष की न्यूनतम आयु तय की गई है। 14 साल से कम उम्र के प्रत्येक नागरिक को बच्चा माना जाता है। 

भारतीय दंड संहिता की धारा 83 के तहत स्पष्ट किया गया है कि 7 वर्ष तक की उम्र का बच्चा अपराध नहीं कर सकता जबकि 12 वर्ष से कम उम्र का बच्चा यदि कोई अपराध करता है तो उसे सजा नहीं दी जा सकती। द जुवेनाइल जस्टिस एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन एक्ट 2000 के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के नागरिक को 'बच्चा' माना गया है और यह निर्धारित किया गया है कि अपराधों में लिप्त नाबालिगों के मामलों की सुनवाई जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड करे। 

दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता अशोक अग्रवाल के मुताबिक भारत सरकार ने चाइल्ड राइट्स के मामले में संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन पर दस्तखत कर रखे है। हमारे संविधान के आर्टिकल 51 के मुताबिक सरकार किसी अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन का उल्लंघन नहीं कर सकती। दिल्ली गैंगरेप के नाबालिग आरोपी को सख्त सजा देने के लिए मौजूदा कानून में संशोधन जरूरी है, लेकिन यह इतना आसान नहीं है क्योंकि भारत ने इंटरनेशल समझौते पर दस्तखत किए हुए हैं। 
 
एडवोकेट अशोक अग्रवाल कहते हैं, 'या तो यह माना जाए कि वह आरोपी बच्चा है ही नहीं, यदि यह बच्चा है तो फिर उसे हमें बच्चे की तरह ही ट्रीट करना चाहिए। हमें रिफोर्मेटिव एटीट्य़ूड अपनाना चाहिए ताकि उस बच्चे को सुधरने का एक मौका मिल सके। यदि कोई बच्चा अपराध करता है तो उसमें बच्चे की नहीं राष्ट्र की गलती है। नाबालिग के लिए सख्त सजा की मांग करना जायज नहीं है। हमें बच्चे को सुधारने पर जोर देना चाहिए।' 
 
जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका के विषय में एडवोकेट अशोक अग्रवाल कहते हैं कि याचिका दायर करने से भारत की जो हार्ड रियलटी है वह बदल नही सकती। स्वामी की याचिका राजनीति से प्रेरित है, वह सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए इस मुद्दे को उछाल रहे हैं। स्वामी यह भी बताए कि क्या कभी उन्होंने बच्चों की शिक्षा या अन्य अधिकारों को लेकर कभी कोई याचिका दायर की है? 
 
यह सच है कि दिल्ली गैंगरेप ने हमारी संवेदनाओं को झकझोरा है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम भावनाओं में बहकर कानून को बदल दें। मैं कानून को न बदलने की वकालत नहीं कर रहा हूं बल्कि मेरा जोर इस बात पर है कि सिर्फ एक मामले को अपवाद नहीं माना जाना चाहिए। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब किसी नाबालिग ने अपराध किया हो। यदि कानून बदलना ही है तो फिर विशेषज्ञ इस पर चिंतन कर सकते हैं। 
 
राइट्स ऑफ द चाइल्ड कन्वेंशन पर अमेरिका ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इस विषय में एडवोकेट अशोक अग्रवाल कहते हैं कि अमेरिका की परिस्थितियां अलग हैं, वहां के कुछ राज्य कम उम्र के बच्चों को भी अपराधी की श्रैणी में रखते हैं। हालांकि राज्यों ने यह फैसला भी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विशेषज्ञों की राय पर ही लिया है।

दिल्ली गैंगरेप के नाबालिग आरोपी को सख्त सजा दिए जाने की मांग के विषय में बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े एडवोकेट भुवन रिभू कहते है कि उसने जो किया है उसे डिफेंड नहीं किया जा सकता न ही जायज ठहराया जा सकता है। लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि जिस दिन यह अपराध हुआ उससे थोड़े दिन पहले तक यह बच्चा स्वयं एक विक्टिम था। वह चाइल्ड ट्रेफिकिंग का शिकार हुआ है। उसे बाल मजदूरी करनी पड़ी, अभी हम यह नही जानते हैं कि वह और किस तरह के हालातों में रहा। हमारी सबसे पहली जरूरत अपने ऑब्जरवेशन होम सिस्टम को बदलने की है। हमें तीन बातों पर चिंतन करना होगा। पहला- हम सामाजिक तौर पर किस तरह से उस बच्चे को सुरक्षा देने में फेल हुए हैं। दूसरा-क्या मौजूदा सजा उसे सुधरने का अवसर दे पायगी? और तीसरे क्या 18 वर्ष से कम उम्र के नागरिकों को बच्चा मानने की व्यवस्था सही है?
 
राइट्स ऑफ द चाइल्ड अंतरराष्ट्रीय कन्वेंश के बारे में एडवोकेट भुवन रिभू कहते हैं कि अमेरिका इकलौता बड़ा देश है जिसने इस कन्वेंशन पर साइन नहीं किए हैं। भारत से अमेरिकी का क्रिमनल जस्टिस सिस्टम की तुलना नहीं की जा सकती। अमेरिका में ऐसा शायद ही कोई मामला आता हो जहां ट्रेफिकिंग के शिकार बच्चे का सात साल तक शोषण किया गया हो। 
 
गौर करने वाली बात यह है कि हमारा जस्टिस सिस्टम इस आरोपी के गुनाहगारों को सजा नहीं दे पा रहा है। स्वयं हाईकोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया है कि यह बच्चा इतने लंबे वक्त तक उत्पीड़न का शिकार कैसे होता रहा। हाई कोर्ट ने इस मामले में ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर और सचिव लेबर को तलब करके फटकार लगाई है जो हमारी व्यवस्था की पोल खोलता है। 

बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक कैलाश सत्यार्थ नाबालिग मानने की उम्र बदलने के पक्ष में नहीं है। वह कहते हैं, 'हम जूवेनाइल की उम्र को बदलने के पक्ष मे नहीं है। हमार मानना नहीं है कि एक घटना के आधार पर कानून में बदलाव नही हो सकता है। यह सच है कि लोगों गुस्सा है, आक्रोश है। यदि भावनाओं में बहकर कानून बदला गया तो भविष्य में इसका खामियाजा लाखों अन्य बच्चों को उठाना पड़ सकता है। 
 
कड़वा सच यह है कि अपराधों में पकड़े गए ज्यादातर आरोपी बच्चे खुद ही विक्टिम होते हैं। हमारे पूरे सामाजिक सिस्टम की नाकामी के कारण ऐसा होता है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में बच्चों को केयर और प्रोटेक्शन की गारंटी दी गई है, लेकिन सरकार यह प्रोटेकश्न देने में बुरी तरह नाकाम हुई है। यदि इन बच्चों को सही तरीके से सुधारा जाता तो शायाद हालात ऐसे नहीं होते। 
 
शिक्षा के अधिकार का कानून एवं बच्चों के सामाजिक उत्थान के लिए बनाए गए अन्य कानून पूरी तरह नाकाम हुए हैं। 14 से 18 की उम्र के बीच के नाबालिगों का इस्तेमाल संगठित अपराधों में हो रहा है। नशीली दवाइयों की तस्करी का धंधे, भीख मंगवाने का धंधे एवं वेश्यावृत्ति के धंधे में बच्चों को धकेला जा रहा है। इस केस में भी इस लड़के का इस्तेमाल पीड़ितों को बुलाने के लिया गया। 
 
अगर यह लड़का 18 साल से कम उम्र का है तो फिर हमें इस बात का जबाव तलाशना होगा कि हमारी सामाजिक एजेंसिया, समाज कल्याण एजेंसिया क्या कर रही हैं। एक बच्चा जिसे परिवार की सुरक्षा में होना चाहिए था वह अपराध में कैसे संलिप्त पाया गया। 
 
जस्टिस वर्मा की रिपोर्ट ने मिसिंग चिल्ड्रन का मामला भी गंभीरता से उठाया है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर घंटे में सात बच्चे गायब होते हैं। यह दर्शाता है कि हमारा पूरा समाज और सरकार बच्चों को बचाने में असफल है। ऐसे में नाबालिग आरोपी पर सवाल उठाने से पहले हमें अपनी सामाजिक और सरकारी एजेंसियों का एक बार फिर से मूल्यांकन करना होगा।
दिल्ली में सामूहिक दुष्कर्म की पीडि़त पैरामेडिकल छात्रा का गुरुवार को आखिरी सेमेस्टर की परीक्षा का परिणाम आया। उसने 73 फीसदी अंक हासिल किए हैं। वह फीजियोथैरेपी की छात्रा थी। 
 
देहरादून स्थित सांई इंस्टीट्यूट के प्रमुख हरीश अरोड़ा ने भावुक होकर कहा कि वह प्रतिभावान छात्रा थी। हर विषय में उसने बहुत अच्छे अंक हासिल किए हैं। उसे अन्य साथियों से भी ज्यादा अंक मिले हैं। 
 
जब उसके साथियों ने उसके प्राप्तांक देखे तो सभी भावुक हो गए। हमारे संस्थान ने पीडि़त के परिजन को सारी फीस लौटा दी है। इसी संस्थान के छात्र, शिक्षक और कर्मचारियों ने उसे न्याय दिलाने के लिए धरने दिए। विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली में पुलिस की लाठी भी खाई। 

भारत ने गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र महिला एजेंसी को बताया कि दिल्ली में सामूहिक दुष्कर्म पीडि़त लड़की को जल्द न्याय मिलेगा। इस मामले के आरोपियों को जल्द से जल्द सजा दिलाकर सरकार एक कड़ा संदेश देगी। संयुक्त राष्ट्र के महिला कार्यकारी बोर्ड के आह्वान के बाद भारत के स्थायी प्रतिनिधि हरदीप पुरी का यह बयान आया। बोर्ड ने नियमित सत्र से पहले दुनियाभर की सरकारों से अपील की थी कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को खत्म किया जाए। 

मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने गुरुवार को पहले घोषित अनुग्रह राशि से संबंधित 15 लाख रुपए का चेक गैंगरेप पीडि़ता के पिता को मुख्यमंत्री आवास पर सौंपा। उन्होंने भरोसा दिलाया कि १६ दिसंबर को दुर्भाग्यवश घटना के शिकार हुए परिवार की इस त्रासदी के शोक से उबरने में सरकार हरसंभव मदद करेगी। परिवार को फ्लैट उपलब्ध कराने और पीडि़ता के दोनों भाइयों को उच्च शिक्षा व रोजगार उपलब्ध कराने में भी सरकार हरसंभव मदद करेंगी। इस मौके पर पीडि़ता के पिता ने अपने आवास के समीप महावीर एनक्लेव के रिहायशी इलाके में शराब का ठेका बंद कराने के लिए मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया।



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