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केजरीवाल आम आदमी पार्टी का निर्भीक नायक


अरविंद केजरीवाल और उनके कुछ साथियों ने ‘‘आम आदमी पार्टी’’ की स्थापना के अगले दिन 27 नवंबर को दिल्ली से सटे गाजियाबाद में कौशांबी के छोटे से दफ्तर में इस नई पार्टी की योजनाओं पर विचार करने के लिए बैठक की. एक सहयोगी के हाथ में हिंदी के एक अखबार की कतरन थी, जिसमें 44 वर्षीय केजरीवाल और उनकी पार्टी की घोर आलोचना की गई थी. वहां उपस्थित ज्यादातर सहयोगियों ने इस लेख को यह कहकर खारिज कर दिया कि यह लेख उस पत्रकार का है, जो हमेशा से केजरीवाल और उनके आंदोलन की आलोचना करता रहा है. केजरीवाल ने उस लेख को ध्यान से पढ़ा.

लेख पढऩे के बाद उन्होंने साथियों की ओर देखा और बोले, ‘‘लेकिन इसमें जो कुछ उन्होंने लिखा है, वह सही है. यह सही है कि हम ऐसे मंच पर बैठे थे, जिसे बाड़ लगाकर जनता से अलग कर दिया गया था. जनता वहां पार्टी की स्थापना के लिए आई थी. यह भी सही है कि वहां सुरक्षा का इंतजाम था और हम लोग वहां मौजूद जनता से बातचीत किए बिना ही जल्दी से निकल गए थे.’’ केजरीवाल सचमुच इस बात से चिंतित थे. अपनी स्थापना के दिन से ही उनकी पार्टी दूसरी पार्टियों की तरह बन गई थी. दूसरे सभी नेताओं की तरह उन्होंने आम आदमी से खुद को दूर कर लिया था.

ताकतवर से लोहा लेने का भय
इतिहास के एक अनोखे मोड़ पर एक अनोखे आंदोलन के बिखर जाने का भय ही वह चीज है, जो निर्भीक केजरीवाल को डराती है. एक ही महीने के अंदर रॉबर्ट वाड्रा से लेकर नितिन गडकरी और मुकेश अंबानी तक से टक्कर लेने वाले केजरीवाल का कहना है, ‘‘मैं किसी से नहीं डरता. लेकिन डरता हूं कि कहीं अपने ही आंदोलन में कोई गलती न कर दूं.’’ वे हर काम योजना के अनुसार करना चाहते हैं.

आम आदमी से नेता बने केजरीवाल कौशांबी में अपने दफ्तर से कुछ ही कदम की दूरी पर स्थित अपने घर पर इंडिया टुडे से बातचीत करने के लिए राजी हो गए. यह अजीब बात है कि सरकार के खिलाफ झंडा बुलंद करने वाले केजरीवाल अपनी पत्नी सुनीता को मिले सरकारी मकान में रहते हैं, जो भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारियों के लिए बनाए गए हैं.


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