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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

शशि थरूर के समर्थन में किरण बेदी, पर होम मिनिस्ट्री सहमत नहीं

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नई दिल्ली। दिल्ली गैंगरेप पीड़िता के परिजनों ने बलात्कार विरोधी नए कानून का नाम अपनी बेटी के नाम पर रखने के सुझाव पर सहमति जताई है। परिवार के मुताबिक बेटी के नाम पर कानून बनना उनके लिए गर्व की बात होगी। इसके लिए उन्हें पहचान उजागर होने पर भी आपत्ति नहीं है। पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी भी पीड़िता का नाम उजागर करने के पक्ष में हैं। किरण के मुताबिक देश की बेटी के नाम कानून बन जाए तो उसकी बहादुरी अमर हो जाएगी। दूसरी तरफ गृह मंत्रालय के सूत्रों से मिल रही खबर के मुताबिक गृह मंत्रालय किसी व्यक्ति के नाम पर कानून बनाने के खिलाफ है।

किरण बेदी के मुताबिक विदेशों में ऐसा प्रावधान है। हिंदुस्तान में भी ऐसा किया जा सकता है। मैंने देश की बेटी के पिता से पूछा कि अगर आपकी बेटी के नाम पर कानून बन जाए तो उन्होंने कहा कि उनको इससे कोई आपत्ति नहीं है। ये एक अच्छा आइडिया है। मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है।

किरण ने कहा कि ये कानून लड़की को जिंदा रखेगा। ये एक प्रेरणा बनेगी। गौरतलब है कि मंगलवार को मानव संसाधन राज्य मंत्री शशि थरूर ने एक ट्वीट किया था। थरूर के मुताबिक दिल्ली गैंगरेप की पीड़िता को श्रद्धांजलि दी जाए। मुझे समझ नहीं आता कि पीड़िता को गुमनाम रख कर क्या मिलेगा? क्यों न उसे उसके नाम और असली पहचान के साथ सम्मान दिया जाए? अगर उसके माता-पिता को आपत्ति न हो तो उस लड़की को सम्मान देना चाहिए और रेप से जुड़ा जो नया कानून बनाया जा रहा है उसका नाम उस लड़की के नाम पर रखना चाहिए। थरूर ने कहा था कि वो लड़की भी एक इंसान थी, अपने नाम के साथ, वो सिर्फ एक प्रतीक नहीं थी।

थरूर के इस बयान पर बवाल मचा है। महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा ने कहा है कि मुझे नहीं लगता कि ऐसा करना चाहिए। बलात्कार की पीड़िता का नाम सामने आना चाहिए। वहीं बीजेपी भी इसे सही नहीं मानती है। बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन के मुताबिक बीजेपी इसका विरोध करेगी।

उधर, गृह मंत्रालय के सूत्रों से मिल रही खबर के मुताबिक गृह मंत्रालय किसी के नाम पर कानून बनाने के खिलाफ है। मंत्रालय के मुताबिक आईपीसी में किसी के नाम पर कानून बनाने का कोई प्रावधान नहीं है। मंत्रालय की ये भी दलील है कि अब तक किसी के नाम पर कानून नहीं बना है। आईपीसी में प्रावधान नहीं है कि कानून किसी व्यक्ति के नाम पर बने। पुरस्कार के लिए नाम का इस्तेमाल होता है। अब इस मामले में अगर जस्टिस वर्मा के सामने कुछ सुझाव आता है और वो इस पर विचार करें तो बात कुछ और होगी। फिलहाल कानून बनने के आसार नहीं दिख रहे हैं।

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