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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

“अगला हफ्ता देश के नाम”


आज बात जंतर-मंतर पर उमड़े जनसैलाब की नहीं करुंगा. दिल्ली पुलिस के आंकड़े के मुताबिक दोपहर के करीब दो बजे तक जंतर-मंतर पर फुटफॉल एक लाख का था यानी दोपहर के दो बजे तक करीब एक लाख लोग जंतर-मंतर आ चुके थे. रात के नौ बजे तक जंतर-मंतर पर फुटफॉल का पुलिस का आंकड़ा डेढ़ लाख तक पहुंच गया. पुलिस के इस आंकड़े को कुछ चैनलों ने खबरों में एकाध-बार चला भी दिया लेकिन सरकारी डंडे के डर से उन्होंने इसे जल्द ही हटा लिया. अब जंतर-मंतर के जनसैलाब के बारे में कहने को क्या बच जाता है?
बात अन्ना के अनशन शुरू करने की भी नहीं करुंगा. अन्ना ने पांच दिन पहले ही ऐलान कर दिया था कि अगर चार दिनों में सरकार ने एसआईटी नहीं बनाई तो वह अनशन पर बैठ जाएंगे. अन्ना के अनशन पर बैठने की वजह से सरकार में पैदा हुई बौखलाहट की खबरें सारी मीडिया चला रही है. अन्ना के अनशन का असर पहले भी दुनिया देख चुकी है. इसलिए इस अनशन के बारे में कहने को क्या बच जाता है?
बात देशभर में अनशनकारियों पर हो रहे प्रशासनिक अत्याचारों की भी नहीं करुंगा. कोलकाता में अनशनकारियों को जेल में डाल दिया गया. वे जेल से छूटकर जंतर-मंतर तक आए थे और अपनी आपबीती मंच से सुनाई थी. उज्जैन में अनशनकारियों को कुछ अज्ञात लोगों ने पीट-पीटकर लहूलुहान कर दिया, पुणे में पुलिस ने जबरदस्ती अनशन तुड़वाया, रायबरेली में महिला अनशनकारियों के सर फोड़ दिए गए, मंच तोड़ दिया गया, अजमेर में अनशनकारियों को पुलिस रोज़ धमका रही है, चेन्नई में चिदंबरम के घर के सामने शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने अनशनकारियों पर पुलिस ने इस क्रूरता से लाठियां भांजी जैसे अनशनकारी नहीं अपराधी हों.
400 जिलों में लोग अनशन कर रहे हैं. क्या पूर्वी भारत, क्या पश्चिम क्या उत्तर, क्या दक्षिण, अन्ना के आह्वान पर अनशन पर बैठे अनशनकारी किसी भी प्रांत की सरकारों को फूटे आंख नहीं भा रहे. देश के इसलिए अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, गोपाल राय और उनके साथ जंतर-मंतर पर बैठे करीब 400 अनशनकारियों के बारे में बताने की क्या जरूरत रह जाती है?
बात आंदोलन को देश-दुनिया में मिल रहे समर्थन की भी नहीं करुंगा. मुंबई में अनुपम खेर और रणवीर शौरी के नेतृत्व में निकली 32 किलोमीटर लंबी रैली की भी नहीं करुंगा. मीडिया सेलेब्रिटी के बारे में जरूर बता देती है. बात इंडिया गेट पर अनशन के समर्थन में तिरंगे और मोमबत्तियां लिए सड़क पर उतरे 50 हजार से अधिक लोगों की बात भी नहीं करुंगा क्योंकि पहली बार मीडिया ने इसका लाइव कवरेज किया और माना कि आंदोलन को जनता का समर्थन कायम है.
बात आंदोलन को समर्थन देने को अरुणाचल प्रदेश से जंतर-मंतर तक चलकर आए करीब 300 बौद्ध भिक्षुओं की भी नहीं करुंगा क्योंकि लोकतंत्र में संख्या बल मायने रखता है, भाव नहीं. इसलिए हजारों किलोमीटर का सफर कर आए 300 बौद्ध भिक्षुओं का लोकतंत्र में कोई अस्तित्व ही नहीं है.
बात अमेरिका के न्यू जर्सी, फ्लोरिडा, डलास, ब्रिटेन, सिंगापुर, जापान, रूस और ऑस्ट्रेलिया में भारतवंशियों द्वारा शुरू किए गए आंदोलन की भी नहीं करुंगा क्योंकि सरकारों की खालें इतनी मोटी गई हैं कि वह जनसैलाब को ऐसी चींटिया बता देती हैं जिसे गांधी परिवार के लोग कभी भी मसल सकते हैं.
बात जंतर-मंतर पर देशभर से आए लोगों की भी नहीं करुंगा जो भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं. कुछ खुशनसीब थे जिन्हें अपनी बातें व्यक्त करने के लिए मंच से मौका मिला, कुछ ने बैनरों, पोस्टरों और प्लेकॉर्डों के जरिए अपनी व्यथा व्यक्त की. बात उन भ्रष्ट मंत्रियों की भी नहीं करुंगा जिनके भ्रष्टाचार की पोल मंच से खोली गई. उन पर लगे आरोप अब जगजाहिर हैं.
बात उन दानदाताओं की भी नहीं करुंगा जिन्होंने अपने सामर्थ्य के मुताबिक दान करके आंदोलन के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया क्योंकि दान की महत्ता उसके बखान से कम हो जाती है. और अगर हम मंत्रियों के भ्रष्टाचार की रकम को समंदर मान लें तो तो इस दानराशि की औकात वे उस समंदर में चुल्लु भर पानी से भी कम आंकेंगे.
मैं बात करुंगा मंच के सामने से गुजरे आज एक लाख से अधिक लोगों की जिन्होंने अन्ना को प्रणाम किया. अनशनकारियों को अपना समर्थन दिया. देश के लिए उनके द्वारा किए जा रहे त्याग को नमन किया.
मैं बात करुंगा उन लाखों लोगों की जिसके कंठ से दिनभर एक हफ्ता देश के नामअगला हफ्ता देश के नाममेरा हफ्ता देश के नामगूंजा. जिसने उन शक्तियों को मुंह चिढ़ाने की ठानी है जो कहते हैं कि आंदोलन को अब लोगों का समर्थन खत्म हो चुका है.
लेकिन मैं उनकी बात भी क्यों करूं. वे तो देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझ कर आ रहे हैं. इन्हें लाया नहीं गया, स्वतः आए हैं. आंदोलन में उनको अपनी और अपने देश के सुनहरे भविष्य की आशा दिखती है. ये भ्रष्टाचार के खिलाफ अंतिम लड़ाई को कमर कस रहे हैं.
फिर मैं क्या बात करूं ? मैं आजादी की इस दूसरी लड़ाई में अपना योगदान दे रहे भारतवंशियों को नमन करने से ज्यादा क्या कह सकता हूं. शायद इससे ज्यादा कुछ कहने की जरूरत भी नहीं. मैं भी उनकी तरह आंदोलन का एक सिपाही हूं. इस नाते आंदोलन में मेरा साथ देने आए समस्त जन को साधुवाद कहता हूं.       

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