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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

अन्ना बनाम रामदेव: शुरू से अब तक


लोकपाल और काले धन के मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले समाज सेवी अन्ना हजारे और योग गुरु बाबा रामदेव में अपने अभियान की सफलता को लेकर शुरू से ही होड़ मची हुई है। टीम अन्ना का मकसद सशक्‍त लोकपाल बिल पारित करवाना और बाबा रामदेव विदेशों में जमा काले धन की स्वदेश वापसी कराकर जनता का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते हैं।


अन्ना ने टीम में दरार को खारिज किया
जनता से खासा समर्थन हासिल करने वाले समाजसेवी अन्ना हजारे और बाबा रामदेव केंद्र सरकार के खिलाफ चलाए जा रहे अपने अभियान की सफलता के लिए खुले मंच पर एक-दूसरे का साथ देने का वादा करते हैं। लेकिन टीम अन्ना में बाबा रामदेव के साथ मंच साझा करने को लेकर दरार साफ नजर आती हैं। टीम अन्ना ने बाबा रामदेव के साथ चलने का खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया। हालांकि टीम अन्ना में दरार की अटकलों को अन्ना हजारे ने खारिज कर दिया।


मेरे पास खुद आई थी टीम अन्ना
अब बाबा रामदेव ने टीम अन्ना के साथ गठजोड़ पर चुप्पी तोड़ दी हैं। बाबा ने कहा कि टीम अन्ना खुद मेरे पास गठजोड़ के लिए आई थी। बाबा रामदेव ने एक निजी समाचार चैनल से खास बातचीत में कहा कि टीम अन्ना मेरे पास गठजोड़ के लिए हरिद्वार आई थी। मैं उनके पास नहीं गया। रामदेव ने कहा कि देश के करोडों लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखकर हमने यह फैसला किया था। अब सवाल यह उठता है कि क्या अन्ना हजारे और बाबा रामदेव एकसाथ आगे चल पाएंगे?


अन्ना और बाबा के नेटवर्क व अनुयायी
इस मामले में बाबा रामदेव अन्ना से कई कदम आगे हैं। बाबा रामदेव के पास अन्ना हजारे की तुलना में बेहतर जनाधार, संगठन शक्ति, साधन और बाहरी समर्थन हासिल है। अन्ना को जनता सिर्फ एक जनसेवक या एनजीओ कार्यकर्त्ता के रूप में जानती थी, जबकि बाबा आस्था चैनल पर योग करते करते इंटरनेशनल योग गुरू बन गए।


वहीं अन्ना के पीछे सिविल सोसायटी का आधुनिक पढ़ा-लिखा वर्ग और बुद्धिजीवियों का गुट है। उन लोगों के सभी काम व्हाइट मनी से होते हैं। यही चीज वो व्यवस्था में चाहता है। दूसरी तरफ बाबा को फॉलो करने वाला वर्ग ये तो जानता है कि बाबा भ्रष्टाचार से लड़ रहे हैं लेकिन किस तरह के भ्रष्टाचार से, वो नहीं जानता। उसे नहीं पता, काला धन कहां से आया और कहां गया। शायद यही कारण है कि रामलीला मैदान मे जमा लाखों लोगों में काला धन मामले में रामदेव का समर्थन करने वाले कम थे और उनके योग अनुयायी ज्यादा।


सबसे खास बात अन्ना ने अनशन के लिए किसी को नहीं बुलाया, आम जनता खुद ब खुद उनके समर्थन में आई जबकि बाबा रामदेव ने रामलीला मैदान में आंदोलन के लिए देश भर मे जनसंपर्क किया फिर भी वहां केवल उनके अनुयायी आए, आम जनता नहीं।


अन्ना और बाबा के उद्देश्य
अन्ना का उद्देश्य स्पष्ट है। उनकी शैली सादगीपूर्ण है और रवैया स्पष्ट। उनका उद्देश्य फिलहाल लोकपाल बिल में जरूरी सुधार लाना है, न कि देश की व्यवस्था को बदलना। अन्ना लोकपाल बिल में क्या चाहते थे, वो स्पष्ट कर चुके हैं। शायद यही कारण है कि सरकार के पास उनकी बात काटने के लिए कोई तलवार नहीं होती। अन्ना काफी समय से राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर काम करते आ रहे हैं। लेकिन वे चुनाव लड़कर संसद में आना चाहते हैं, उनकी बॉडी लेंग्वेज से ऐसा नहीं लगता।


दूसरी तरफ बाबा की शैली योग से आरंभ होकर आक्रामक सेना के सरदार सरीखी हो गई है जो किसी भी हालत में सरकार को अपने कदमों में गिराना चाहता है। बाबा चाहते थे कि काला धन वापस लाया जाए लेकिन कैसे, इसकी कोई योजना उनके पास नहीं थी। बाबा पांच सौ के नोटों का चलन बंद कराना चाहते हैं। उनका 11 सौ करोड़ रुपए का साम्राज्य केवल सफेद पैसे से खड़ा है, इसका कोई जवाब बाबा के पास नहीं है। बाबा के पास मुद्दे तो बहुत हैं लेकिन योजना नहीं है।


किसकी क्या हैं खासियतें
अन्ना की खासियत उनका सादापन और उम्र है अपना परिवार न होने के कारण उन्हें संपत्ति से कोई मोह नहीं। इससे पहले भी अन्ना समाज के लिए कई काम करते आए हैं। लोग उनके मुरीद हैं। उनकी सलाहकार समिति में भी जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं। सहयोगियों पर लगे आरोपों के बावजूद काजल की कोठरी में अन्ना अभी भी पाक-साफ हैं।


बाबा रामदेव गजब के योग गुरु हैं। उनकी दवाओं के मुरीद देश और विदेश में हैं। उन्हें अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। योग गुरु के लाखों करोड़ों अनुयायी हैं। उनकी दवाएं कई लोगों पर असरकारी साबित हुई हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि देश के हर कोने में और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बाबा के अनुयायी हैं। कई विदेशियों ने अपनी संपत्ति तक बाबा के नाम कर दी है।


क्या हैं कमजोरियां
अन्ना की अपनी कोई खास कमजोरी तो नहीं लेकिन वो अपनी टीम की गुटबाजी से कमजोर पड़ रहे हैं। अन्ना की टीम के लगभग हर सदस्य पर कोई न कोई आरोप लग चुका है। टीम में फूट पड़ चुकी है और टीम हर मौके पर अन्ना पर हावी होना चाहती है। लोकपाल विधेयक के गठन से पहले ही ‌अन्ना की टीम सरकार के निशाने पर आ गई थी। शांति भूषण के सीडी प्रकरण को खूब उछाला गया। आरोप लगते हैं कि अन्ना की कोई अपनी सोच नहीं है, जो सोच है वो उ‍नके गुट की है। इस गुट में शांति भूषण, अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी जैसे लोग हैं। काजमी बाबा को लेकर अन्ना टीम से अलग हो चुके हैं। किरण और केजरीवाल भी अपनी छव‌ि को सुधार पाने में नाकामयाब रहे हैं।


दूसरी ओर अदूरदर्शिता और उतावलापन ही बाबा रामदेव की सबसे बड़ी कमजोरी है। बाबा अपने अनुयायियो को ही आम जनता और वोटर समझने की भूल कर बैठे थे। वो समझने लगे कि बड़े से बड़ा नेता उनसे योग सीखता है और वो नेताओं के नेता हैं। बाबा को लगा कि राजनीति योग जितनी ही आसान है। बाबा योगी से समाज सेवक और अन्त में राजनेता बनते-बनते कहीं के भी नहीं रहे। बाबा के हाहिने हाथ कहे जाने वाले बालकृष्ण पर अंधविश्वास भी बाबा की कमजोरी कही जा सकती है।
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