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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

रिंकू सिंह राही, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ता हुआ एक शहीद

कहां से शुरु करूं... उस जिद्दीपन से जिसने बचपन से ही हक के लिए लड़ने का हौसला दिया या उस लगन से जिसने पीसीएस जैसी कठिन परीक्षा में सफलता दिलाई या उस ईमानदारी से जिसने करोड़ों की रिश्वत ठुकरा दी या फिर उस हिम्मत से जिसने सात गोलियां खाने के बाद भी खौफ महसूस नहीं होने दिया। या उन आंखों से जो हर वक्त एक बेहतर भारत का सपना देखती हैं या फिर उस आत्मा से जो डूबी है एक पारदर्शी व्यवस्था के निर्माण में। या फिर इन सब को छोड़कर उस बेबसी से जो खून के आंसू रो रही है इस खोखली व्यवस्था में...।


मैं रिंकू सिंह राही के बारे में लिखना चाह रहा हूं लेकिन असमंजस में हूं कि क्या-क्या बताऊं और कैसे बताऊं। खैर तो मैं शुरु करता हूं।


8 मार्च को नरेंद्र कुमार की हत्या के बाद एक रात अचानक एक बजे मुझे एक फोन आया। गंभीर आवाज में दूसरी ओर से बोल रहे व्यक्ति ने कहा मैं रिंकू राही बोल रहा हूं...नरेंद्र के विषय में बात करनी है। नरेंद्र का नाम लेते ही मैं गंभीर हो गया। रिंकू ने कहा नरेंद्र ईमानदारी के लिए मर मिटने वाला व्यक्ति था और वो मिट गया। ईमानदारों लोगों की हत्या से पूरा समाज घायल होता है। मैं चाहता हूं कि नरेंद्र की मौत का सच सामने आए। रिंकू ने यह भी बताया कि जब साल 2009 में उन पर हमला हुआ था तब नरेंद्र ने उनका बहुत सहयोग किया था। खैर रिंकू से मेरी यह पहली बातचीत थी।


मैंने इंटरनेट पर रिंकू के बारे में जानकारी इकट्ठा की। पता चला वो उत्तर प्रदेश में पीसीएस अधिकारी हैं जिन पर मुजफ्फरनगर में समाज कल्याण अधिकारी रहते हुए साल 2009 में जानलेवा हमला हुआ था। अब मैं रिंकू से मुलाकात करना चाहता था।


इसी दौरान 26 मार्च को रिंकू सिंह राही उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अपनी न्याय की मांग को लेकर धरने पर बैठे। बड़े ही अफसोसजनक घटनाक्रम में उन्हें धरनास्थल से जबरदस्ती उठाकर मेंटल हॉस्पिटल ले जाया गया और पागल घोषित करवाने की कोशिश प्रशासन ने की।


खैर डॉक्टरों का जमीर जिंदा था। उन्होंने प्रशासन के दवाब के बावजूद रिंकू सिंह राही को पागल घोषित करने से इंकार कर दिया। लखनऊ में प्रशासन के बेहद नकारात्मक रवैये और साथियों पर पुलिस के लाठीचार्ज के बाद रिंकू अपने गृह जिले अलीगढ़ आ गए और यहां के सरकारी अस्पताल में अपना अनशन जारी रखा।


मैं 8 अप्रैल को रिंकू से मिलने अलीगढ़ गया। मलखान सिंह अस्पताल के परिसर में एक दरी बिछी थी जो खाली थी। मेग्सेसे अवार्ड विजेता सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे रिंकू से मिलने आए थे। जिले के दलित संगठनों के लोग भी रिंकू से मिलने बड़ी तादाद में पहुंचे थे। मुलाकातियों के जाने के बाद में रिंकू सिंह राही के कमरे में पहुंचा।


सामने बिस्तर पर एक नौजवान लेटा था। आंखे लैपटाप में गढ़ी हुई, जैसे कुछ खास खोज रही हों। एक कोने में मां खड़ी थी जो बेबस आंखों से अपने पीसीएस अधिकारी बेटों को हक की लड़ाई में संघर्ष करते देख रही थी। उसके पास अपने बेटे का साथ खड़े होने से अलग और कोई विकल्प नहीं था। दीवार से सटकर पिता खड़े थे जिन्हें ईमानदारी और मेहनत में अपने बेटे से ज्यादा विश्वास है। शायद यह उनके सिद्धांतों की ही ताकत है कि इन हालातों में भी रिंकू अपनी लड़ाई जारी रखे हुए थे। पास में एक बैंच पर कुछ छात्र बैठे थे जो अपने साथ हुई ज्यादती की कहानी बयां करने रिंकू के पास आए थे।




मैंने रिंकू से बात शुरु की। यह उनसे मेरी पहली मुलाकात थी। एक और मुलाकात उनसे 15 अप्रैल की रात को दिल्ली में हुई। दो मुलाकातों में जो देखा महसूस किया वो लिख रहा हूं।


जिद्दीपनः रिंकू सिंह राही बचपन से ही ईमानदारी और पार्दर्शिता को लेकर जिद्दी थे। उन्होंने बताया कि एक बार गांव में बुजुर्गों की पेंशन के लिए फॉर्म भरवाने थे। वो फॉर्म लेकर आए और फॉर्म भरवाने से पहले उन्होंने आवेदनकर्ताओं से शपथ ली कि वो इस पेंशन को पाने के हकदार हैं। कुछ को यह बुरा लगा वो फॉर्म फाड़कर चले गए। कुछ को रिंकू में विश्वास हुआ उन्होंने फॉर्म भर दिए। लेकिन जिन लोगों ने अधिकारियों को रिश्वत दी और फॉर्म भरा उनकी पेंशन आ गई जबकि जिन हकदार आवेदनकर्ताओं के फॉर्म रिंकू ने भरवाए थे उनकी पेंशन नहीं आई। यह ईमानदारी और हक की लड़ाई में रिंकू की पहली हार थी। इस हार ने उनका हौसला नहीं तोड़ा बल्कि व्यवस्ता से लड़ने का उनका विश्वास और मजबूत हुआ।


लगनः रिंकू ने दसवीं और 12वीं की परीक्षा यूपी बोर्ड से पास की। इसके बाद उन्होंने में इंजीनियरिंग में एडमीशन लिया। इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के दौरान उन्होंने गेट की परीक्षा दी। इस परीक्षा में उन्होंने पूरे भारत में 17वीं रैंक हासिल की। इस रैंक के बल पर वो देश के किसी भी आईआईटी में अपने पसंद के विषय में मास्टर डिग्री ले सकते थे लेकिन उन्होंने सिविल परीक्षा देने का फैसला लिया। 2004 की पीसीएस परीक्षा उन्होंने उत्तीर्ण की। इसका नतीजा 2007 में आया और 2009 में उन्होंने सेवा शुरु कर दी।


ईमानदारीः रिंकू की पोस्टिंग मुजफ्फरनगर में जिला समाज कल्याण अधिकारी के तौर पर हुई। पहली पोस्टिंग के दौरान ही रिंकू पूरी ईमानदारी से अपने काम में जुट गए। जिले में तैनात भ्रष्ट अधिकारियों ने उनका सहयोग नहीं किया लेकिन फिर भी वो लगे रहे। जल्द ही जिला कार्यालय में 40 करोड़ रुपए का घोटाला उनकी नजर में आ गया। वो इसकी जांच में आगे बढ़ ही रहे थे कि उन्हें भी मोटी रिश्वत की पेशकश की जाने लगी। रिंकू बताते हैं कि जब उन्होंने 4 करोड़ की रिश्वत से इंकार कर दिया तब उन्हें जान से मारने की धमकी भी मिली। उन्हें अहसास हो गया था कि उन पर हमला होने वाला है। रिंकू ने अपने पिता को फोन करके बताया कि उनके पास दो विकल्प हैं एक तो मोटी रिश्वत लें और खामोश बैठ जाए या अकेले ही अपनी जान को खतरे में डालकर ईमानदारी से काम करते रहे। आटा चक्की चलाने वाले उनके पिता ने भी रिंकू को ईमानदार रहने के लिए ही कहा। रिंकू ने पुलिस अधिकारियों को भी खुद पर संभावित हमले के बारे में बताया था लेकिन वो भी उन्हें नहीं बचा सके और 26 मार्च 2009 को उन पर जानलेवा हमला हो गया। जो ईमानदारी चार करोड़ में नहीं बिकी वो अब उनकी जान पर बन आई थी।


हिम्मतः रिंकू को चेहरे पर सात गोलियां लगी। गोली एक ओर से दूसरी ओर पार हो गई। आंख की रोशनी चली गई लेकिन उनकी हिम्मत नहीं डिगी। इस हिम्मत ने ही उन्हें इस हमले के बाद भी ईमानदारी के लिए लड़ते रहने का हौसला दिया। रिंकू कहते हैं कि हमले के बाद की जिंदगी उनकी ईमानदारी का ही ईनाम है। अगर वो हमले में मर जाते तो यह इंसाफ और हक की लड़ाई में मैदान-ए-जंग में चंद्रशेखर आजाद जैसी मौत होती है। लेकिन लगता है उनकी किस्मत में भगत सिंह की मौत है। रिंकू कहते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में अब उन्हें ऐसा लगता है जैसे मौत का फंदा तैयार है। वो बस धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रहे हैं अपनी खुशी से। भगत सिंह की मौत मरने के लिए रिंकू तैयार है बस वो ये चाहते हैं कि भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई में उनकी जान जाए तो जाया न जाए। इसका नतीजा निकले। ईमानदार अधिकारियों की जान लेने वाले लोग चैन से न बैठ पाए। जिन लोगों के हक के लिए वो लड़ रहे हैं वो जाग जाए और अपना हक मांगना शुरु कर दें।


मेहनतः रिंकू के पिता सौदान सिंह राही अलीगढ़ में आटा चक्की चलाते हैं। वो महीने में दस से 15 हजार रुपए कमा लेते हैं। रिंकू के पिता से मैंने करीब आधा घंटा बात। इस दौरान शायद ही कोई वाक्य ऐसा हो जो मेहनत शब्द के बिना उन्होंने पूरा किया है। कई बार कहा कि पसीना बहाकर जो नींद आती है वो ऐसी कमरों में नहीं आती। रिंकू आज अपनी लड़ाई लड़ पा रहे हैं उसमें उनके परिवार के सहयोगा का भी अहम योगदान हैं। रिंकू के पीसीएस बनने के बाद भी उनके परिजनों की ख्वाहिशों कभी नहीं बढ़ी। उनका एक भाई और एक बहन हैं जो पढ़ाई कर रहे हैं।


बेबसीः पीसीएस अधिकारी होने, भ्रष्टाचार के खिलाफ जान की बाजी तक लगा देने के बाद भी रिंकू कभी-कभी खुद को बेबस महसूस करते हैं। उनके पिता भी कहते हैं कि मेहनत तक तो ठीक है लेकिन उन्हें नहीं पता था कि ईमानदारी ही उनके बेटे की जान की दुश्मन बन जाएगी। रिंकू पर गोलियां बरसी तब भी परिवार को न्याय व्यवस्था में भरोसा रहा। रिंकू की मां किरण राही कहती हैं कि अब उनके जीवन का एक ही सपना है कि उनके बेटे का सपना पूरा हो। बेटे के अधिकारी बनने के बाद उनकी भी ख्वाहिश थी की एक बहू घर आए और उनका बेटा गृहस्थी बसाए लेकिन ईमानदारी की राह पर चलते हुए रिंकू सब कुछ भूल गए। रिंकू के पिता कहते हैं कि जब उनपर हमला हुआ था तब भी उन्हें व्यवस्था में कुछ उम्मीद थी लेकिन लखनऊ में जब अनशन से उठा कर अधिकारी उनके पीसीएस बेटे को मेंटल हॉस्पिटल ले गए और पागल घोषित करवाने की कोशिश की तो उन्हें लगा जैसे पैरों के नीचे से जमीन निकल गई है। इतनी घुटन हुई की सांस तक लेना मुश्किल हो गया। वो कहते हैं कि इस व्यवस्था में ईमानदार होना ही पागल होने का सर्टिफिकेट है, इसके लिए डॉक्टरी जांच की जरूरत ही क्या है। रिंकू के साथियों पर लाठीचार्ज करके उन्हें लखनऊ से खदेड़ दिया गया। अपने हक की लड़ाई लड़ रहे एक अधिकारी के साथ यह सलूक हुआ, कुछ पल के लिए उसने बेबसी जरूर महसूस की लेकिन उसका हौसला नहीं डिगा।


सपनेः जब अस्पताल में रिंकू से मिला तब भी वो लैपटाप में डूबे थे। दूसरी मुलाकात उनसे दिल्ली में हुई। भगत सिंह की तस्वीर के नीचे लगे बिस्तर पर वो लेटे थे। इस बार भी उनका लैपटाप खुला था और वो समाज कल्याण विभाग की वेबसाइटों में कुछ खंगाल रहे थे। रिंकू कहते हैं कि उनका एक ही सपना है कि लोग जागरुक हो जाएं। लोग जागरुक हो जाएंगे तो किसी को ईमानदारी के लिए जान देने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। रिंकू अनशन पर अपनी 26 मांगों को लेकर बैठे थे जिसमें से अधिकतर जानकारियों को लेकर थी। रिंकू ने अपने केस और मुजफ्फरनगर समाज कल्याण विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार से संबंधित कुछ जानकारियां विभाग से मांगी हैं। यह इस व्यवस्था का खोखलापन ही है कि एक अधिकारी को अपने ही विभाग की जानकारियों के लिए अनशन करना पड़ रहा है।


खैर रिंकू का सबसे बड़ा सपना यही है कि देश में हालात ऐसे हो कि ईमानदार अधिकारी भी बिना अपनी जान गंवाए काम कर सके। वो कहते हैं कि मौजूद व्यवस्था में ईमानदारी से काम करना सबसे बड़ी चुनौती है। आप या तो जान का खतरा लेने के लिए तैयार रहें या फिर सब जैसे हो जाए।


उनकी लड़ाई अब भ्रष्ट और अपराधियों का हौसला तोड़ने के लिए हैं। रिंकू कहते हैं कि यदि वो न्याय पा सके और ईमानदारी की इस लड़ाई में जो लोग शहीद हो गए हैं उन्हें न्याय दिलवा सके तो आगे किसी की हिम्मत किसी ईमानदार अधिकारी को मिटाने की साजिश रचने की नहीं होगी। ईमानदार प्रशासनिक अधिकारी देश का सबसे बड़ा धरोहर हैं। शासन को उनकी रक्षा करनी चाहिए, लेकिन भ्रष्ट शासन से ये उम्मीद नहीं की जा सकती, अब लोगों को ही ईमानदार अफसरों की रक्षा करने के लिए जागरुक करना होगा।


रिंकू सिंह राही अब अपनी लड़ाई को दिल्ली से आगे बढ़ाने की तैयारी में हैं। वो 26 अप्रैल से दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन पर बैठ रहे हैं ताकि खुद पर हुए जुल्म का हिसाब मांग सके और ऐसा उदाहरण कायम कर सके कि आगे से किसी ईमानदार अधिकारी पर हमला करने की हिम्मत भ्रष्ट माफिया न कर सके।


बदन पर सात गोलियां खाने के बाद, घरवालों की बेबसी देखने के बाद, प्रशासन की गुंडागर्दी के बाद भी रिंकू का हौसला कम नहीं हुआ है। वो अब लंबी लड़ाई लड़ना चाहते हैं। रिंकू कहते हैं कि यह लड़ाई सिर्फ उनकी नहीं है, बल्कि पूरे समाज की है, खासकर वंचित समाज की जिसका हक मारा जा रहा है। रिंकू ने अपनी लड़ाई को जारी रखने के लिए फेसबुक पर एक पेज भी बनाया है। आप भी इस पेज से जुड़कर उनका सहयोग कर सकते हैं।
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