" "

भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

अन्ना हज़ारे चिट्ठी (२५/०४/२०१२ ) प्रधानमंत्री के नाम



दिनांक: 25/04/2012
सेवा में,
माननीय श्रीमान मनमोहन सिंह जी,
प्रधानमंत्री, भारत सरकार,
नई दिल्ली

विषय: दिनांक 31 अक्टूबर 2003 को संयुक्त राष्ट्र संघ के जिस भ्रष्टाचार विरोधी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किये गए थे, उस पर अमल करने के बारे में…

सम्मानीय महोदय,
सस्नेह वंदे !
संयुक्त राष्ट्र संघ की वर्ष 2003 में हुई परिषद में विचारार्थ मसौदे के आमुख में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्कालीन महासचिव श्री कोफी अन्नान का कथन था कि भ्रष्ट्राचार अत्यंत हानिकारक तथा सभी स्तरों पर समाज को व्यापक दुष्परिणाम पहुंचाने वाली घातक बीमारी है।
भ्रष्टाचार के कारण लोकतंत्र का तथा कानून व्यवस्था का ह्रास होता है, मानवी अधिकारों का उल्लंघन होता है, व्यापार विनिमय ध्वस्त होते हैं, इंसान का जीना दूभर होता है, सामूहिक अपराध वृत्ति को बल मिलता है, आतंकवाद व मानवीय जीवन को खतरा पहुंचाने वाली अनेक प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलता है, जनता को प्राथमिक सेवा सुविधा मुहैया करवाने की सरकार की क्षमता पर विपरीत असर पड़ता है। दरिद्रता निर्मूलन तथा विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार की ही है।
उक्त परिषद में इन सभी बातों को सोच समझ कर सरकार ने दस्तावेज़ पर सहमति निदर्शक दस्तखत किये थे।भ्रष्टाचार की वजह से लोकतंत्र, नैतिकता तथा न्यायपालिका खतरे में पड़ जाती है और आगे चल कर स्थायी विकास और कानून व्यवस्था चरमरा जाती है। संयुक्त राष्ट्र की इस महत्वपूर्ण परिषद् में भ्रष्टाचार जैसे मुखर दस्तावेज़ पर हमने दस्तखत किये हुए नौ वर्ष बीत चुके हैं। हमारा दुर्भाग्य है कि भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिये ठोस कार्रवाई होती नहीं दिखती। सन् 1993 में सरकार द्वारा नियुक्त एन.एन. वोरा समिति की रिपोर्ट भी सरकार को सादर हो चुकी है। इस रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के गंभीर परिणामों की ओर स्पष्ट निर्देश किया गया है। रिपोर्ट में यूं भी बताया गया है कि यह बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देता है कि देश के विभिन्न भागों में आपराधिक गिरोह, पुलिस, नौकरशाह तथा राजकर्ताओं के बीच सांठगांठ होती रही है।
व्यक्तिगत अपराध की रोकथाम के लिए बनी हमारी प्रचलित न्याय व्यवस्था इन संगठित अपराधियों का बंदोबस्त करने के मामले में नाकाफी साबित हो रही है। संगठित आपराधिक तत्व व माफिया गिरोह के पास बड़ी संख्या में गुंडे हैं, धन संपत्ति की कोई कमी नहीं, सरकारी यंत्रणा, राजनेता व सभी संबंधितों से सांठ-गांठ बनी है। भ्रष्टाचार का फैलाव खतरनाक मोड़ पर जा चुका है। भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए बनी विद्यमान सभी यंत्रणाएं भ्रष्टाचार का सामना करने में नाकाफी व नाकामयाब साबित हो रही है। इन यंत्रणाओं को तथा भ्रष्टाचार विरोधी कानून को जर्जर कर देने वाले इस भ्रष्टाचार रूपी राक्षस का डट कर मुकाबला करना जरूरी है। उक्त रिपोर्ट को दाखिल हुए बीस वर्ष होने में है, मगर उस पर अमल करने के बारे में एकदम कोरा चिट्ठा ही है।
यूएनसीएजी (संयुक्त राष्ट्र संघ का भ्रष्टाचार विरोधी दस्तावेज़) के परिच्छेद 6(2) के अनुसार हर राष्ट्र ने इस परिच्छेद के आरंभ में निर्देशित भ्रष्टाचार विरोधी यंत्रणा अथवा यंत्रणाओं को कानून यंत्रणा के मूलभूत तत्वों के बारे में स्वायत्तता देना जरूरी है। दस्तावेज़ पर दस्तखत करने के बावजूद हमारी सरकार भ्रष्टाचार की रोकथाम में लगे संस्थानों को स्वायत्तता देने को राज़ी नहीं है। फिर संयुक्त राष्ट्र संघ के दस्तावेज़ पर दस्तखत करने का मतलब ही क्या? मतलब साफ है कि भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की इच्छाशक्ति का सरकार में है नहीं। फिर सत्ता में बने रह कर सरकार चलाने का उद्देश्य ही क्या है? जब तक नहीं भ्रष्टाचार रुकेगा, तब तक देश का भविष्य उज्वल नहीं हो सकता। संयुक्त राष्ट्र परिषद भी यही बताती है और एन.एन. वोरा कमिटी भी यही तो बताती है। फिर भी इलाज नहीं होता है। बड़ी चिंता की बात है।
मैं आग्रह पूर्वक अनुरोध करना चाहता हूं कि संयुक्त राष्ट्र संघ के जिस दस्तावेज़ पर हमारी सरकार ने सहमति के हस्ताक्षर किये हैं उस दस्तावेज़ को आप तथा आप की सरकार के मंत्रीगण फिर से पढ़ें। संभव है, आपके व्यस्त कार्यकलापों में आपको उस दस्तावेज़ का विस्मरण हुआ हो। उसी प्रकार सरकार द्वारा नियुक्त एन.एन. वोरा कमिटी की वर्ष 1993 की रिपोर्ट भी पढ़ें तथा पढ़कर अह्वाल की सिफारिशों पर अमल करें।

भवदीय,
कि. बा. उपनाम अण्णा हज़ारे
" "