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कोई मुकाबला नहीं अन्ना हजारे के करिश्मे का


वैसे तो अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे के रास्ते अलग-अलग हैं , लेकिन उन दोनों में कौन लंबी रेस का घोड़ा होगा , इस बात पर सबकी नजर है। जानकारों की राय में केजरीवाल भले ही भीड़ जुटा लें , लेकिन अन्ना के करिश्मे का मुकाबला नहीं कर सकते। इस बात की भी संभावना है कि कुछ साल बाद केजरीवाल फिर वापस अन्ना की राह पकड़ लें। लेकिन टीम अन्ना की कॉर्डिनेशन कमिटी के लोगों के बीच जिस तरह मनभेद दिख रहा है , उससे टीम को एकजुट करना अन्ना के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। 

पॉलिटिकल एक्सपर्ट एस. पी. सिंह कहते हैं कि अन्ना की ताकत नैतिक है। जो साख अन्ना की है , वह केजरीवाल की नहीं है। पब्लिक में अन्ना का असर केजरीवाल से ज्यादा है। इसे भीड़ से नहीं आंकना चाहिए। केजरीवाल के पास इवेंट मैनेज करने और मीडिया मैनेजमेंट का तजुर्बा है , इसलिए वह शहरी इलाकों में नजर आते हैं। आम जनता आदर्श के साथ रही है , इसलिए अन्ना के साथ ज्यादा है। केजरीवाल के साथ पॉजिटिव यह है कि वह युवा हैं। अन्ना की टीम पूरी तरह उन पर निर्भर करती है और उनकी उम्र उनके साथ नहीं है। दोनों टीमों के मिलने की संभावना कम है। राजनीतिक तौर पर केजरीवाल ज्यादा मजबूत और नैतिक तौर पर अन्ना मजबूत हैं। असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के फाउंडर मेंबर जगदीप छोकर कहते हैं कि ऐसे वक्त में पॉलिटिकल पार्टी बनाना , जो दूसरी पार्टियों से अलग हो , और इसमें कामयाब होना 1-2 साल का खेल नहीं है , बल्कि इसमें 15-20 सालों का वक्त लग सकता है। तब तक पार्टी क्या रूप लेगी , यह देखनी वाली बात होगी। यह साहसपूर्ण काम है लेकिन यह लंबी रेस है। अन्ना का आंदोलन नैतिक ज्यादा है और केजरीवाल का एक्शन ओरिएंटेड। इसलिए दोनों की तुलना नहीं कर सकते। दोनों के साथ आने की संभावना अगर होगी भी तो लोकसभा चुनाव के बाद होगी। 


जेएनयू में पॉलिटिकल साइंस के प्रफेसर अश्विनी महापात्र कहते हैं कि सिविल सोसायटी मूवमेंट के नजरिए से देखें तो टीम अन्ना का लंबा असर होगा। केजरीवाल अभी खुलासे कर रहे हैं तो उनका आकर्षण है। लेकिन यह लंबे वक्त तक नहीं चलेगा। पॉलिटिकल पार्टी बनने से भी वह ज्यादा निशाने पर रहेंगे। वह जब दूसरी पार्टियों की बुराई निकाल रहे हैं तो दूसरी पार्टियां उन्हें भी टारगेट करेंगी। कुछ भी गलती करेंगे तो फिर किसी भी दूसरी पार्टी की तरह पब्लिक उन्हें भी उसी नजर से देखेगी। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि सिर्फ लोगों को इकट्ठा करके सत्ता में नहीं आ सकते। सरकार बनाना और उसे चलना बड़ा चैलेंज है। अन्ना का सोसायटी में अपना स्पेस है। अन्ना का मूममेंट सोसायटी के लिए अच्छा है। जब केजरीवाल का राजनीतिक मकसद पूरा नहीं हो पाएगा तो वह भी अन्ना के रास्ते पर ही लौट सकते हैं। लेकिन यह लोकसभा चुनाव के बाद ही हो सकता है। केजरीवाल की अपील शहरी इलाकों में ज्यादा है लेकिन अन्ना का जो करिश्मा है वह केजरीवाल के पास नहीं है। केजरीवाल भले ही भीड़ ज्यादा जुटा सकते हैं पर भारत भर में अन्ना की ही अपील है। 

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