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केजरीवाल की IIT स्‍टूडेंट से IAC नेता बनने तक की पूरी कहानी


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जन लोकपाल आंदोलन के चलते देश-दुनिया में मशहूर हुए महाराष्ट्र से आने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने हाल ही में यह कहकर कई लोगों को चौंका दिया कि उनके सहयोगी रहे अरविंद केजरीवाल (अरविंद केजरीवाल: उम्‍मीदों और नाउम्‍मीदी के 9 कारण) को भले ही पैसे की चाहत न हो, लेकिन हो सकता है कि उनके भीतर सत्ता की लालसा आ गई हो। यह बयान इसलिए भी चौंकाने वाला है कि हजारे (इन 4 कारणों से अलग हुईं अन्‍ना-केजरीवाल की राहें) को महाराष्ट्र से बाहर निकलकर देश भर में अपनी नैतिक छवि बनाने में अरविंद केजरीवाल की भूमिका किसी से छुपी नहीं है। 

लेकिन आखिरकार सामाजिक आंदोलन से राजनीति की खुरदुरी ज़मीन पर उतरने वाले अरविंद केजरीवाल (5 मुश्किलें: ऐसे कैसे सिस्‍टम बदल पाएंगे केजरीवाल) के पीछे की शख्सियत कैसी है, आखिर उन्होंने एक प्रतिष्ठित नौकरी को छोड़ने का साहस कैसे किया, उनके परिवार में कौन लोग हैं, राजनीति (पढ़ें, क्या है केजरीवाल का एजेंडा)  में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए वे और उनका संगठन इंडिया अगेंस्ट करप्शन कैसे काम कर रहा है और लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं? आगे की स्लाइड में सलमान खुर्शीद को उनके गढ़ में चुनौती देकर लौटे केजरीवाल से जुड़े इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की एक कोशिश:



शख्सियत : अरविंद केजरीवाल ने पैन आईआईटी, 2011 में अपने भाषण में कहा था, '1985 से 1989 के बीच मैं आईआईटी, खड़गपुर का छात्र था। मुझे लगता है कि वह दौर मेरी ज़िंदगी का सबसे अहम हिस्सा था। वहां मैंने जो भी सीखा मेरे साथ अब तक है। मैं आईआईटी के सभी छात्रों से अपील करना करना चाहता हूं कि आप इस देश के सबसे प्रतिभाशाली लोगों में से हैं...इसलिए आप सब जन लोकपाल आंदोलन के लिए आगे आएं।' अरविंद का यह बयान उनकी शख्सियत के बारे में बताता है। आईआईटी जैसे संस्थान से पढ़कर निकलने वाले छात्र अक्सर विदेश चले जाते हैं या फिर देश में ही मोटी तनख्वाह की नौकरी करते हैं।

हरियाणा के हिसार में 16 अगस्त, 1968 को एक इंजीनियर पिता के घर जन्मे अरविंद ने भी मेकैनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद टाटा की नौकरी की। फिर, वे देश की सबसे प्रतिष्ठित नौकरियों में से एक भारतीय राजस्व सेवा में अधिकारी के तौर पर 1995 में चुने गए। लेकिन इसी दौरान उनका मन समाज सेवा की तरफ मुड़ गया।

शुरुआत सूचना के अधिकार के लिए लड़ने से हुई और फिर यह कारवां नहीं थमा। इस दौरान 2006 में अरविंद को मैगसेसे पुरस्कार से नवाजा गया, उनकी नौकरी छूटी, लोकपाल आंदोलन ने उन्हें देश के घर-घर में मशहूर कर दिया।     


बच्चे नहीं बनेंगे आंदोलनकारी  : अरविंद केजरीवाल के परिवार में एक बेटा, बेटी, पत्नी और माता-पिता हैं। अरविंद की पत्नी सुनीता खुद आईआरएस अधिकारी हैं और दिल्ली में तैनात हैं।

अरविंद और सुनीता की जान पहचान ट्रेनिंग के दौरान हुई थी। अरविंद का परिवार अक्सर पृष्ठभूमि में ही रहता है। अरविंद की पत्नी को देश ने तब पहली बार देखा था, जब वे जुलाई में दिल्ली में जंतर मंतर पर अनशन पर बैठे थे। एक मशहूर मैगजीन को दिए गए इंटरव्यू में अरविंद के बच्चों ने कहा था कि वे बड़े होकर आंदोलनकारी नहीं बनेंगे क्योंकि इसके लिए उनके पिता ही काफी हैं।


शुरुआती कॅरियर और जीवन : भारतीय प्रशासनिक सेवा की लिखित परीक्षा देने के बाद इंटरव्यू कॉल का इंतजार कर रहे अरविंद ने टाटा की नौकरी छोड़ दी और 6 महीने तक देश में घूमते रहे। बकौल अरविंद, 'मैं मदर टेरेसा से मिलने कोलकाता गया। मैं लाइन में खड़ा रहा और जब मेरी बारी आई तो मैंने कहा, मां मैं आपके साथ काम करना चाहता हूं। उन्होंने मेरे हाथ पकड़े और कहा, जाओ और कालीघाट में काम करो। हम लोग पूरे कोलकाता में घूमते थे। मैंने वहां कई लोगों को फुटपाथ पर गरीबी और बीमारी से जूझते हुए देखा। ऐसे लोगों को हम लोग कालीघाट आश्रम में लाते थे और उनकी सेवा करते थे। अगर ऐसे लोग मौत के करीब होते थे तो मदर टेरेसा का संदेश था कि ऐसे लोग सम्मानजनक मृत्यु के हकदार हैं। इसलिए उनके साथ कुछ वॉलंटियर्स होने चाहिए।'

इसके अलावा भी अरविंद कई जगहों पर घूमते रहे। उन्हीं के शब्दों में, 'मदर टेरेसा के लिए मैंने करीब 2 महीने तक काम किया और वह मेरे लिए संपूर्ण सेवा जैसा था। उससे पहले मैं बोडोलैंड के अंदरूनी इलाकों के साथ ही कई और जगहों पर भी गया। मैंने रामकृष्ण मिशन ज्वॉइन किया और फिर नेहरू युवा केंद्र। उन दिनों पूरे हरियाणा की यात्रा की। जब मुझे इंटरव्यू के लिए बुलावा आया तो मैं घर लौट आया। ज़िंदगी के उस दौर का मैंने बहुत लुत्फ उठाया क्योंकि उस दौरान मैंने तमाम तरह के लोगों से मुलाकात की। इसके बाद मेरा आईआरएस में चयन हो गया।' 

उस दौर के बारे में अरविंद ने कहा था, 'मेरे पिता ने ऐसी यात्रा के लिए मुझे राय नहीं दी थी। वे तो बहुत चिंतित थे। मैं अचानक लुप्त हो गया था और दौर में मोबाइल फोन नहीं होते थे। मेरे माता-पिता खुश नहीं थे और वे नहीं जानते थे कि उन यात्राओं से पहले तक ठीक तरह से रह रहा मैं उसके बाद क्या हो गया था।'

आईआरएस की नौकरी के बारे में अरविंद ने बताया, 'तमाम यात्राओं के बाद आईआरएस की नौकरी एक बड़ा और अचानक आया बदलाव था। इसलिए थोड़ा मुश्किल साबित हो रहा था। मैं हमेशा सोचा करता था, इस नौकरी में मैं खुश नहीं रहूंगा और 1995 में ट्रेनिंग ज्वॉइन करने के बाद मैंने अपने कुछ प्रोफेसरों से कहा भी था, मुझे लगता है कि मैं इस नौकरी के लिए फिट नहीं हूं और क्या मुझे यह नौकरी करते रहना चाहिए? उन लोगों ने मुझसे कहा कि मुझे यह नौकरी करते रहना चाहिए और जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहिए।'

सामाजिक कामों की शुरुआत : अरविंद केजरीवाल के मुताबिक साथी आईआरएस अधिकारियों के दायरे से बाहर उनके कई मित्र थे। बकौल अरविंद, '2000 में डिनर के दौरान हम लोगों ने परिवर्तन नाम की गैर सरकारी संस्था शुरू करने का फैसला किया। मेरे एक चाचा और मेरे एक भाई ने डोनेशन दिया। कुल मिलाकर 50 हजार रुपये इकट्ठा हुए। इन्हीं पैसों से सारी दिल्ली में कपड़े के बैनर और पैंफलेट बांटे गए। उन बैनरों पर लिखा था, आयकर विभाग में घूस मत दो। अगर आपकी कोई समस्या है तो परिवर्तन से संपर्क करो। हम लोग आपका काम बिना पैसे लिए करवाएंगे। हम लोगों ने अपने फोन नंबर और ईंमेल भी दिए।'  

अरविंद बताते हैं, 'करीब दो साल बाद मैं लगातार छुट्टी पर चल रहा था। उसके बाद पहले दो साल स्टडी लीव और फिर बिना मेहनताने के छुट्टी। मैं पृष्ठभूमि में रहता था। तब मेरे वॉलंटियर्स काम करते थे। पहले 18 महीनों में हमने 800 शिकायतें सुलझाईं। हमने आयकर विभाग के कामकाज में बड़े बदलाव के लिए जनहित याचिका भी दायर की। इसके बाद बिजली विभाग से जुड़ी शिकायतों को देखने और उनका हल खोजने का सिलसिला शुरू हुआ।' 


कैसे काम करती है टीम : दिल्ली-गाजियाबाद सीमा पर स्थित कौशांबी में मौजूद मकान ए 119 में इंडिया अगेंस्ट करप्शन का दफ्तर  है। इस इमारत के दो फ्लोर को अरविंद केजरीवाल की संस्था 'परिवर्तन' ने किराए पर ले रखा है। इन्हीं दो फ्लोर से पूरा आंदोलन चलता है। 

आईएसी सदस्य नीरज कुमार के मुताबिक 2 अक्टूबर को पार्टी बनाने की घोषणा के बाद से बड़ी संख्‍या में लोग यहां आते रहते हैं। इनमें से कई आंदोलन से जुड़ने के मकसद से आते हैं। ये सब केजरीवाल से मिल तो नहीं पाते हैं, लेकिन सबसे अहम बात यह होती है कि कोई व्यक्ति आंदोलन को कितना समय दे सकता है। इसी के हिसाब से उसे स्थानीय संपर्क सूत्र दे दिया जाता है या फिर कोई ठोस जिम्मेदारी थमा दी जाती है।

अरविंद केजरीवाल द्वारा चलाए जा रहे इंडिया अगेंस्ट करप्शन के धड़े में दिल्‍ली में 10-15 कर्मचारी हैं जो सैलरी पर काम करते हैं, जबकि करीब 1200 स्वयंसेवक हैं जो आंदोलन की गतिविधियों में लगे रहते हैं। केजरीवाल ने जहां पूरी तरह से दिल्ली की कमान संभाल रखी है वहीं उनके साथ पिछले 13 साल से जुड़े मनीष सिसौदिया अन्य राज्यों में स्वयंसेवक खड़े करने में जुटे हुए हैं। केजरीवाल को  उम्मीद है कि जल्द ही और स्वयंसेवक उनके साथ जुड़ेंगे।

गांधी परिवार के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी पर आरोप लगाने के बाद से ही आईएसी के दफ्तर में देशभर से फाइलें और रिपोर्टें आ रही हैं। जब टीम केजरीवाल को लगता है कि आरोपों में दम है तो वो उसे अपनी रिसर्च टीम (जिसमें अलग-अलग पेशे से जुड़े कई विशेषज्ञ शामिल हैं) के पास भेजते हैं जो आरोपों की पहले खुद जांच करती है। पूरे सबूत जुटाने के बाद ही प्रेस काफ्रेंस करके सबके सामने दस्तावेज लाए जाते हैं। 

यही नहीं पिछले मुद्दे की मीडिया कवरेज का भी आकलन किया जाता है। आरोपों में भ्रष्टाचार के स्तर से ज्यादा अहमियत लोगों को जोड़ने की क्षमता को दी जाती है। उदाहरण के तौर पर केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद पर लगाए गए आरोप सिर्फ 71 लाख रुपये के भ्रष्टाचार के थे लेकिन इन आरोपों ने विकलांगों को अरविंद केजरीवाल से जोड़ दिया। वहीं भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी और सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर किसानों की जमीन हड़पने के आरोप लगाकर अरविंद केजरीवाल ने किसानों का दिल जीतने की कोशिश की। 

कोई भी मुद्दा उठाने से पहले अरविंद केजरीवाल इस बात का पूरा आकलन करते हैं कि इस पर जनता और नेताओं की प्रतक्रिया कैसी होगी। नेताओं की प्रतिक्रिया का जवाब भी वे पहले से ही तैयार कर लेते हैं ताकि 'मौके पर चौका' मारा जा सके।

केजरीवाल ने भले ही पार्टी बनाने की घोषणा कर दी हो, लेकिन उनके दफ्तर में 'पार्टी' से ज्यादा 'आंदलोन' शब्द सुनाई देता है। आईएसी में मीडिया पर नजर रखने, केजरीवाल को मिल रही कवरेज का आकलन करने और हॉट टॉपिक्‍स की सूची तैयार करने के लिए मीडिया सेल काम करता है। आईएसी के सभी वरिष्ठ सदस्यों को यह मीडिया सेल अलर्ट भी भेजता है। सभी सदस्य एक ब्लैकबेरी बीबीएम ग्रुप के जरिए जुड़े हैं। मीडिया का ध्यान अपनी तरफ बनाए रखने के लिए एक बार में एक ही मुद्दा उठाया जाता है। 

आंदोलन का प्रमुख हथियार रही अन्ना टोपी को अरविंद केजरीवाल ने अन्ना से अलग होने के बाद भी अपना लिया है। पहले उन्होंने मैं केजरीवाल हूं की टोपी पहनी, लेकिन इसे जल्द ही उतार लिया गया। फिलहाल, उनकी पूरी टीम 'मैं आम आदमी हूं' की टोपी पहन रही है। यह टोपी आम जन मानस को उनसे जोड़ रही है। टोपी पर 'मैं आम आदमी हूं' लिखने का विचार प्रोफेसर योगेंद्र यादव का था।

केजरीवाल के बारे में कौन क्‍या कहता है : केजरीवाल ने जब लोकपाल और दिल्ली में बिजली का मुद्दा उठाया तो उन्होंने मध्य वर्ग की 'नब्ज' पकड़ ली। हरियाणा के इस उभरते राजनेता ने युवाओं और मध्य वर्ग पर खासा असर छोड़ा है। समाज, व्यवस्था और राजनीति में सकारात्मक बदलाव लाने की उनकी जिद उनकी सबसे बड़ी ताकत मानी जाती है। और शायद यही वजह है कि देश में युवा और मध्य वर्ग का एक बड़ा तबका उनके पीछे चल पड़ा है। लेकिन जहां उनके प्रशंसकों की एक लंबी फेहरिस्त है, वहीं आलोचक भी कम नहीं हैं। आइए, जानें कौन उनके बारे में क्या कहता है: 
 
 'वे बहुत जल्दी कन्विंस कर लेते हैं। आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों से पढ़े कई पेशेवर सामने आ रहे हैं और हमारी मदद कर रहे हैं।'  
कुमार विश्वास, केजरीवाल के सहयोगी  
 
'वह भ्रष्टाचारी राजनेताओं के चेहरे उजागर कर रहे हैं। लेकिन मुझे उनका तरीका पसंद नहीं है। यह सबको मालूम है कि राजनेताओं और उनके सगे संबंधी भ्रष्ट हैं। मुझे लगता है कि उन्हें सिस्टम में बदलाव के बारे में बात करनी चाहिए।' 
ऊषा कौशल, गृहणी 
 
'अगर आप कीचड़ उछालने वाले बयान देते हैं तो आपको सुनने वालों की कमी नहीं रहेगी। जब आप किसी को चोर कहते हैं तो लोग सुनते हैं। उन्हें 24X7 दिखाने के लिए मीडिया भी दोषी है। क्या और भी गंभीर मुद्दे नहीं हैं?'
हरीश साल्वे, मशहूर वकील 
 
'अरविंद बहुत महत्वाकांक्षी शख्स हैं जो बीजेपी के हाथों में खेल रहे हैं। वे भरोसे के लायक नहीं हैं।' 
राशिद अल्वी, प्रवक्ता (कांग्रेस)



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