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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

प्रशासन सुधारने के लिए भ्रष्टाचार खत्म करें: CAG


भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) विनोद राय ने आज कहा कि जब तक उच्च स्तर पर फैले भ्रष्टाचार को खत्म नहीं किया जाता, तथा भाई भतीजावाद और कालाबाजारी पर अंकुश नहीं लगाया जाता तब तक देश प्रशासन में दक्षता के मानकों में सुधार नहीं कर पाएगा। कैग ने यह भी कहा कि नागरिक समूह बहुत ज्यादा विवेकशील और मांग करने वाले हो गए हैं।

राय ने पहले उपराष्ट्रपति एस राधाकृष्णन द्वारा देश की आजादी से पहले, 14 अगस्त 1947 की आधी रात से कुछ पहले दिए गए भाषण को उद्धृत करते हुए कहा ‘उच्च स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद, सत्ता का लालच, मुनाफा की प्रवृत्ति और कालाबाजारी की वजह से हालिया समय में देश की प्रतिष्ठा पर धब्बा लगा है। जब तक इनको खत्म नहीं किया जाता तब तक हम न तो प्रशासन में दक्षता के मानकों में सुधार कर सकेंगे और न ही जीवन के लिए जरूरी वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण हो पाएगा।’ कैग ‘नॉर्थ ईस्टर्न हिल्स यूनिवर्सिटी’ के 20 वें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। संस्थान में 8,035 विद्यार्थियों को डिग्रियां प्रदान की गईं। इनमें से 34 को अलग अलग विषयों में डॉक्टरेट की डिग्री मिली। करियर में कई और बड़ी संभावनाएं होने का जिक्र करते हुए राय ने चेतावनी भी दी कि ‘जब योग्यता पर पद लालसा हावी हो जाती है तो हमारा पतन शुरू हो जाता है।’ 

राय ने कहा कि आज नैतिकता, जवाबदेही, शुचिता और पारदर्शिता के मुद्दे महत्वपूर्ण हो गए हैं। उन्होंने कहा ‘आज नागरिक समूह अधिक विवेकशील और मांग करने वाले हो गए हैं। पहले जो लोग चुप रह कर बर्दाश्त कर लेते थे वह अब बोलने लगे हैं।’ कैग ने कहा ‘समय आ गया है जब हम अपने किए धरे के लिए जवाबदेह ठहराए जाएंगे और एक आदर्श समाज की नींव इसी तरह रखी जाती है।’ राय ने कहा कि सार्वजनिक प्रशासन या कारपोरेट प्रशासन में सत्यनिष्ठा के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा कि दुनिया गहरे आर्थिक संकट से उबर रही है और खुद को नयी आर्थिक वास्तविकताओं का सामना करने के लिए तैयार कर रही है। ‘ऐसे में भारत बड़ी आर्थिक शक्ति बन रहा है।’ कैग ने कहा ‘इतिहास हमें बताता है कि कई देश बाहरी हमले से नहीं बल्कि अपने ही अंदरूनी कुप्रबंधन के कारण नष्ट हुए।’ ओलंपिक खेलों, नोबेल पुरस्कार और वैश्विक पेटेंट में देश के स्तर पर चिंता जताते हुए राय ने कहा कि हमारी आबादी, विश्वविद्यालयों की संख्या और वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान को देखते हुए यह शोचनीय है। 
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