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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

केजरीवाल की बड़ी कामयाबी


यह अरविंद केजरीवाल की बड़ी उपलब्धि है कि उन्होंने शीर्ष स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार को अपने निशाने पर लिया है। सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता तो इस देश में कई हुए हैं और हैं जिन्होंने अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। किसी ने गांव के स्तर पर तो किसी ने पूरे क्षेत्र में तो किसी ने खास विषय या विभाग से संबंधित भ्रष्टाचार को निशाना बनाया। अन्ना हजारे ने ग्राम पंचायत के स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी। एक ऐसी पारदर्शी व्यवस्था स्थापित करने की लड़ाई लड़ी जिसमें भ्रष्टाचार की संभावना काफी कम हो जाए। महाराष्ट्र के स्तर पर भी उन्होंने प्रभावी हस्तक्षेप किया और कई मंत्रियों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया। ऐसे कई लोगों को विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार से लड़ने में छोटी-बड़ी सफलता मिली है।

ग्राम, विकास खंड या तहसील स्तर तक तो लोग कई बार अपनी पहले पर ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में कुछ हद तक सफलता पा लेते हैं। जो लोग भ्रष्टाचार कर रहे होते हैं उनसे सीधे सवाल-जवाब किया जा सकता है, किंतु जिला या जिले के ऊपर स्तर के भ्रष्टाचार से कैसे लड़ें, यह उन्हें समझ नहीं आता। मालूम होता है कि अमुक अधिकारी या जन प्रतिनिधि भ्रष्ट है, किंतु उसके खिलाफ सबूत जुटाना मुश्किल होता है। फिर किसी रसूख वाले के खिलाफ आवाज उठाने पर तमाम किस्म के दबाव आने लगते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों के खिलाफ भय या प्रलोभन का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। कम लोग होते हैं जो इस किस्म के दबाव झेल पाते हैं। इसके लिए व्यवस्था की अच्छी समझ होना जरूरी है। अरविंद केजरीवाल को सरकारी सेवा के दौरान यह समझ प्राप्त हुई। यह समझ तो बहुत लोगों के पास होती होगी, लेकिन उन्होंने अरविंद की तरह कभी व्यवस्था बदलने का प्रयास नहीं किया। किया भी तो बहुत सीमित दायरे में या अपने को बचाते हुए। अरविंद की यह विशेषता है कि उन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है। चूंकि उन्होंने बहुत कम उम्र में ही नौकरी छोड़ दी इसलिए उनके अंदर व्यवस्था से लड़ने का जोश है। अच्छी बात यह है कि वह कोई भी कदम काफी सोच-विचार कर ही उठाते हैं। यानी उनके पास जोश के साथ-साथ होश भी है। दूसरा, ऐसा काम वही इंसान कर सकता है जिसका खुद का दामन साफ हो। अरविंद ने व्यक्तिगत या अपनी संस्था का हिसाब-किताब एकदम साफ रखा है ताकि कोई भी आरोप नहीं लगा सके। कांग्रेस ने अन्ना हजारे और केजरीवाल की संस्थाओं की सरकारी एजेंसियों से जांच करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यदि उन्हें थोड़ी भी कहीं कोई कमी पकड़ में आती तो अन्ना या अरविंद को बदनाम करने में सरकार को देर नहीं लगती।

दूसरी तरफ कांग्रेस व भाजपा के बड़े नेता केजरीवाल के सामने बौने नजर आ रहे हैं, चाहे वे सलमान खुर्शीद हों अथवा नितिन गडकरी। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि ये नेता इतनी सतही हरकतें भी करते होंगे। एक पर आरोप है कि उसने विकलांगों के नाम पर जनता के धन का दुरुपयोग किया तो दूसरे के संदर्भ में खबर आई है कि उसने किसानों की जमीन ही हड़प ली। रॉबर्ट वाड्रा की तो बात करने से लोग बच रहे हैं। पूरे मामले को दबाने के प्रयास किए जा रहे हैं। मीडिया के एख बड़े वर्ग ने भी जैसे तय कर लिया है कि गांधी परिवार को नहीं छेड़ना है। आखिर ऐसी कौन सी बात है कि हम गांधी परिवार की आलोचना करने से अपने आप को रोक लेते हैं? क्या इस परिवार के बिना भारत की राजनीतिक व्यवस्था नहीं चल पाएगी? हम अभी भी सामंती सोच से अपने आप को मुक्त नहीं कर पाए हैं। यह लोकतंत्र की सच्ची भावना को लोगों के अंदर उतारने के रास्ते में बाधा खड़ी करता है।

अरविंद केजरीवाल को इस बात के लिए धन्यवाद देना पड़ेगा कि उन्होंने इस देश के लोगों में हिम्मत भरी कि बड़े-बड़े नेताओं से डरने की जरूरत नहीं है। ये नेता बड़े राजनीतिक परिवारों से होंगे या दिखने में लगता होगा कि वे निजी स्वार्थो से ऊपर उठ कर देश हित में काम कर रहे होंगे। थोड़ा बहुत भ्रष्टाचार करते भी होंगे तो देश के प्रति उनकी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें माफ कर दिया जाना चाहिए, किंतु यह स्पष्ट चित्र अरविंद केजरीवाल ने ही देश के सामने रखा कि वे डंके की चोट पर सारे नियम-कानून ताक पर रख कर देश को लूट रहे हैं। फिर भी राजनीतिक दल गलत कामों के उजागर होने पर अपने नेताओं से इस्तीफा मांगना तो दूर उन्हें बचाने में लगे हुए हैं। इन नेताओं को अभी भी यह उम्मीद है कि वे जांच में बच जाएंगे। सलमान खुर्शीद की तो कांग्रेस ने पदोन्नति कर दी है। जिन मनीष तिवारी को अन्ना हजारे को अपमानित करने के लिए माफी मांगनी पड़ी थी उन्हें भी मंत्री पद से नवाजा गया है।

यानी राजनीतिक दल कह रहे हैं कि वे अपने तरीके नहीं बदलेंगे, जनता चाहे जो कर ले। उन्हें पूरा भरोसा है कि यह भ्रष्ट व्यवस्था वे ही चला सकते हैं। उनका शायद यह भी मानना होगा कि बिना भ्रष्टाचार यह व्यवस्था चल भी नहीं सकती। किसी इमानदार व्यक्ति की इसमें कोई भूमिका ही नहीं है। अब देखना यह है कि जनता किसका साथ देती है? अपने क्षुद्र स्वार्थ में इन्हीं भ्रष्ट राजनेताओं और उनके राजनीतिक दलों का या भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था को बदलने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देने वाले अरविंद केजरीवाल का। लड़ाई सिर्फ भ्रष्ट और ईमानदारों के बीच ही नहीं, बल्कि अहंकारियों और शालीन के बीच भी है।

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