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anna hazare kiran bedi |
अन्ना ने आपसे जवाब मांगा है कि आप धरने में क्यों नहीं गईं?
मेरे पास कोई मेसेज नहीं आया है और न ही अब तक किसी ने मुझसे डायरेक्ट यह पूछा है। अगर मुझसे सीधे पूछा जाता है तो मैं अन्ना को मिलकर बताऊंगी कि क्या वजह थी और किन स्थितियों में मैंने यह फैसला किया। बिल्कुल। मुझे लगता है कि सत्ता पार्टी पर फोकस होना चाहिए। जिसकी कानून बनाने की जिम्मेदारी है। जो वाइस प्रेजिडेंट और प्रेजिडेंट इलेक्ट करवा सकती है तो कानून क्यों नहीं बना सकती। साथ ही हमें विपक्ष की चुनौती भी बढ़ानी चाहिए कि हम यह आपसे उम्मीद करते हैं कि सरकार से सवाल पूछें और दबाव बनाएं।
तो क्या आप बीजेपी से सपोर्ट लेने या बीजेपी को सपोर्ट करने के हक में हैं?
नहीं, मैं किसी पार्टी के हक में नहीं हूं, लेकिन हकीकत यह है कि कानून तो अभी इन 2 मेजर पार्टियों को ही बनाना है। जो पॉलिटिकल विकल्प की बात अरविंद कर रहे हैं, वह तो अगले साल आएगा और ऐसा चमत्कार तो मैंने सुना नहीं कि विकल्प बनाते ही इतनी पावर आ जाए कि कानून बनाने लगें। कानून तो अभी इन दो मेजर पार्टियों को ही बनाना है।
क्या आप कभी बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ेंगी?
मुझे चुनावी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है।
मतलब आप कभी चुनाव नहीं लड़ेंगी?
यह तो ऐसा सवाल हो गया कि आप कब तक जिंदा रहेंगे, कल नहीं रहे तो फिर क्या...बस यही मेरा जवाब है कि मेरी चुनावी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है।
अरविंद और आपके बीच पहले भी मतभेद रहे हैं। कई बार मीटिंग में आप उनकी बात से सहमत नहीं हुई हैं?
मैं हमेशा अपनी बात रखने का कर्तत्व निभाती हूं। सबके भले के लिए और मूवमेंट के भले के लिए ही सोचती हूं। जब भी किसी बात से असहमत होती थी तो अपनी असहमति हमेशा लिखवाती थी। अब जब बिल्कुल असहमत हो गई तो नहीं गई।
टीम अन्ना की जगह क्या अब टीम केजरीवाल बन गई है?
टीम अन्ना तो अब भंग हो गई है और अगर कोई टीम केजरीवाल बनती है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है। मैं पॉलिटिकल विकल्प में नहीं जाऊंगी और मैं अन्ना के आंदोलन के साथ हूं। अरविंद पॉलिटिकल विकल्प में जाएंगे। वह पार्टी के फाउंडर होंगे और पार्टी में सिसौदिया, भूषण और दूसरे लोग होंगे। अन्ना ने भी कहा है कि वह पक्ष पार्टी नहीं बनाएंगे। पार्टी केजरीवाल की होगी और आंदोलन अन्ना का होगा। मैं आंदोलन के साथ हूं।
क्या केजरीवाल फैसले थोपते हैं, घेराव को लेकर आपकी राय पर विचार क्यों नहीं किया गया?
ऐसा नहीं है कि फैसले थोपते हैं। सबकी बात होती है। वह फैसले लेते हैं। कई बार शॉर्ट नोटिस में फैसले लेने होते हैं। घेराव को लेकर भी शायद वह पहले फैसला कर चुके होंगे।
केजरीवाल का फैसला ही माना गया तो यह पार्टी या कार्यक्रम था या आंदोलन का?
मुझे नहीं मालूम कि यह किसका फैसला था और किन-किन ने मिलकर यह फैसला लिया। मुझे घेराव के बारे में दो दिन पहले ही पता चला तो मैंने अपनी राय बता दी। घेराव की प्लानिंग में मैं शामिल नहीं थी, उन लोगों की आपस में मीटिंग हुई होगी।
घेराव में 'मैं अरविंद हूं' की टोपी नजर आई, इस पर क्या कहेंगी?
मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि किसी के नाम की टोपी के बजाय 'मैं आईएसी हूं', 'मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ हूं' जैसी टोपी होनी चाहिए।
तो क्या आप घेराव को लेकर मतभेद पर खुद अरविंद या किसी टीम मेंबर से बात नहीं करेंगी?
जरूरत पड़ी तो मैं बात करूंगी। बात तो होती रहती है। घेराव के बाद से कोई बात नहीं हुई है। कोई पूछेगा तो जवाब दूंगी। मुझे कोई चिंता नहीं है क्योंकि मैंने कुछ गलत नहीं किया है।