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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

टीम अन्ना द्वारा गठित की जाने वाली पार्टी के समक्ष चुनौतियां


२५ जुलाई से १५ भ्रष्ट मंत्रियों की एस आई टी से जांच कराने तथा दागी सांसदों के लिए विशेष अदालत गठित करने के मुद्दों पर इंडिया एगेंस्ट करप्शन द्वारा किया जा रहा अनशन ३ अगस्त को समाप्त हो गया। न तो सरकार ने बातचीत की न ही विपक्ष ने मांगों का समर्थन किया।

देश के २३ गणमान्य नागरिकों के अपील पर अनशन समाप्त कर दिया गया। सरोकारी नागरिकों ने जारी वक्तव्य में कहा की राज्य व्यवस्था इन मांगों से मुंह मोड़ रही है। दोषियों पर कार्रवाई की राजनीतिक इच्छाशक्ति में कमी दिख रही है। उन्होंने अफसोस जाहिर किया कि मुख्यधारा की राजनीति भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की आकांक्षाओं को आवाज़ देने में अप्रसांगिक हो चली है। इन नागरिकों ने कहा कि वीर और नि:स्वार्थ स्वयं सेवकों को चाहिए की वे निष्ठूर की बेदी पर अपने सेहत व जान की बलि न चढ़ाएं। बल्कि राजनीतिक व्यवस्था को सुधारने उसे भागीदार परक, जवाबदेह और विकेन्द्रित बनाने के लिए और भारतीय लोकतंत्र में नई प्राण शक्ति फूंकने के लिए अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करें। नागरिकों की इस अपील में वैकल्पिक राजनीतिक ताकत गढ़ने की अपेक्षा अन्ना व उसके सहयोगियों से की गई है। स्पष्ट तौर पर पार्टी बनाने की अपील सरोकारी नागरिकों के वक्तव्य में नहीं है। लेकिन मीडिया, रानजीतिक दल तथा जनता यह मान रहे हैं कि अन्ना नई पार्टी का गठन करने जा रहे हैं। अरविंद जी ने तो अनशन तोड़ते वक्त लोगों से नई पार्टी का नाम संबंधी सुझाव भी मांगा है। हालांकि पार्टी का ऐलान नहीं किया गया है न ही इस संबंध में कोर कमेटी ने कोई निर्णय किया है।

अन्ना ने कहा कि गणमान्य नागरिकों की अपील पर उन्होंने वैकल्पिक राजनीति करने का फैसला किया है। सरकार ने कहा कि यह तो होना ही था शुरू से अन्ना टीम की महत्वाकंक्षाएं राजनीति करने की थी।
देश में कोई भी व्यक्ति या समूह को राजनीतिक दल बनाने का अधिकारी है। दल बनते भी रहे हैं, बनते भी रहेंगे लेकिन अन्ना द्वारा गत डेढ़ वर्ष नागरिक आन्दोलन करने के बाद राजनीतिक दल बनाने की घोषणा करना देश की राजनीति में मील का पत्थर कहा जायेगा। देश में जो भी पार्टियां बनी उन पार्टियों का गठन तत्कालीन चुनौतियों का मुकाबला करने के उद्देश्य से एक मंच के तौर पर हुआ। १८८५ में कांग्रेस का मंच के तौर पर गठन स्वतंत्रता हासिल करने के उद्देश्य से हुआ। १९२५ में गुरू गोलवरकर ने हिन्दु राष्ट्र गठित करने की उद्देश्य से पार्टी बनाई। १९३४ में समाजवादियों ने कांग्रेस के भीतर ही समाजवाद की स्थापना के उद्देश्य से कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया जो आजादी हासिल होने के बाद १९४८ में कांग्रेस से अलग होकर सोशलिस्ट पार्टी बनी। भारत में रूस क्रांति के बाद देश में सर्वहारा की तानाशाही स्थापित करने के लिए १९२५ में कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया।

पहली बार भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण के लिये नई पार्टी के गठन का ऐलान हुआ। भ्रष्टाचार पहले भी मुद्दा दो बार बन चुका है। भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर छात्र आन्दोलन की शुरूआत गुजरात व बिहार में हुई थी जो बाद में जेपी आन्दोलन में तब्दील हुआ। लेकिन जनता पार्टी का मूल उद्देश्य भ्रष्टाचार नहीं तानाशाही का खात्मा था। जिसमें उसे सफलता हासिल हुई। इसके बाद कांग्रेस में मंत्री रहते हुए बोफोर्स तोप खरीदी में दलाली का मुद्दा सामने आया तब श्री बी.पी. सिंह ने कांग्रेस से निकलकर पहले अपना मंच बनाया बाद में जनता दल का गठन किया। दोनों ही बार सत्ताा परिवर्तन हुआ तथा सत्ताा परिवर्तन के लिए कांग्रेस विरोधी पार्टीयां एकजुट हुई।
इस समय देश में किसी भी पार्टी के पास केन्द्र में अकेले सत्ताा हासिल करने की राजनीतिक ताकत नहीं हैै। देश के दोनों गठबंधन जो एक दूसरे को अपना विकल्प मानते हैं वे १५ से २५ पार्टियों के गठबंधन के साथ मिलकर सरकार बना व चला पाते हैं। ऐसी स्थिति में यह कल्पना करना की ५४५ सीटों पर लड़ने के लिए कोई एक पार्टी अकेली क्षमता रखती है या रख सकती है, दूर की कौड़ी दिखलाई पड़ती है। विशेष तौर पर तब जब इंडिया एंगेस्ट करप्शन की कोई सदस्यता नहीं है। जब से इंडिया एंगेस्ट करप्शन शुरू हुआ तभी से बार-बार कार्यकर्ताओं की ओर से यह मांग की जा रही थी कि आईएसी की सदस्यता बनाई जानी चाहिए, कई बार इस पर कोर कमेटी में भी विचार हुआ। लेकिन यह सोचा गया की यदि सदस्यता बनाई जायेगी तो संगठन बनाना पड़ेगा, पदाधिकारी नियुक्त करने पड़ेंगे। ऐसी स्थिति में आंदोलन की व्यापकता पर विपरीत असर पड़ेगा। अन्ना आंदोलन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसका संचालन पदाधिकारियों रहित कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया। पार्टी बनने के साथ ही पार्टी का ढांचा परम्परागत पार्टी ढांचे से अलग क्या हो इस पर अन्ना टीम को गंभीरता से विचार करना पड़ेगा।

पार्टी बनने से पहले तक मुद्दा केवल भ्रष्टाचार और जनलोकपाल बिल था। लेकिन पार्टी बनने के बाद समाज देश व दुनिया के सभी अहम मुद्दों को लेकर नीति बनानी पड़ेगी। पार्टी का अपना नीति वक्तव्य, कार्यक्रम, घोषणापत्र व संविधान बनाना होगा। खैर इन दस्तावेजों को तैयार बड़े पैमाने पर बुद्धिजीवी जुड़े हों। महत्वूपर्ण मुद्दा यह होगा की नई पार्टी के साथ जुड़ने वाले कार्यकर्ता दूसरे पार्टी के कार्यकर्ताओं से कैसे अलग होंगे? सदस्यता लेने के पहले तमाम शर्तों से जुड़े शपथ पत्र को हस्ताक्षर करने वाले कार्यकर्ताओं का मूल्यांकन करना दुरूह कार्य है। एक सवाल सामने यह भी आयेगा कि नई पार्टी, मास पार्टी होगी या कैडर आधारित पार्टी जिसमें सदस्यता देने के पहले एक लम्बी प्रक्रिया को अपनाया ाजयेगा जिसमें प्रशिक्षण से लेकर व्यक्तिगत तौर तरीकों पर फोकस होगा।

५४५ सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करना कतई कठिन नहीं हैं। तमाम लोगों को चुनाव लड़ने की खुजली रहती है जो पार्टी की तलाश करते रहते हैं। लेकिन यदि उम्मीदवार के चयन में जनता (मतदाताओं) की भागीदारी होनी हो तो यह कार्य न केवल समय लेने वाला होगा बल्कि इस कार्य को करने के लिए एक प्रशिक्षित ढांचे की जरूरत पड़ेगी।

जब राजनीतिक दल बन जायेगा तब गठन के बाद से होने वाले सभी चुनाव में उम्मीदवार मैदान में उतारने का कार्य पार्टी को करना होगा। जिसके लिए बड़े पैमाने पर प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं के तंत्र व साधन की जरूरत होगी।

यदि संगठन के अपने स्रोत नहीं हुए तो बहुत जल्दी नई पार्टी पर साधन समपन्न व्यक्ति तथा समूह कब्जा जमा लेंगे। विशेष तौर पर चुनाव के समय किसी भी क्षेत्र के इच्छुक उम्मीदवारों द्वारा क्रमानुसार ताकतवर पार्टियों का टिकट पाने की कोशिश की जाती है। मुख्यधारा के पार्टियों की टिकट न मिलने पर अन्ना ब्रांड की इस्तेमाल करने की ललक नई पार्टी बनने के बाद विशेष तौर पर चुनाव के आस-पास उम्मीदवारों की भारी भीड़-खड़ी कर सकती है। यह भी दावे से कहा जा सकता है कि अन्ना ने जिस तरह देश भर में दौरा करने की घोषणा की है उससे नई पार्टी की हवा बनना तय है। लेकिन भाषण सुनने आने वाली भीड़ को पार्टी के वोटों में तब्दील होने की गारंटी कोई नही दे सकता।

जब उम्मीदवार वायबल (वास्तविक विकल्प) होता है अर्थात् सत्ताारूढ़ पार्टी या जीते हुए उम्मीदवार को हराने वाले उम्मीदवार के तौर पर दिखलाई पड़ता है। तभी मतादाता अपना वोट डालता है अन्यथा वह अपना वोट बेकार नहीं करता। यही कारण है कि सिद्धांतवादी उम्मीदवार तथा पार्टियां वास्तविक विकल्प न होने के चलते बहुत कम वोट हासिल कर पाती हैं इसलिए पार्टियां जिताऊ उम्मीदवार की तलाश करती है। यहीं आकर पूरे चुनाव की विद्रुपता जन्म लेती है। आज तक चुनाव में केवल ईमानदारी के नाम पर मतदाताआें ने वोट डालने का काम नहीं किया है। वे कुल मिलाकर उम्मीदवार का मुल्यांकन करते हैं हर तरह से उम्मीदवार की वजनदारी तलाशते हैं। तब जातीय आधार, पार्टी का आधार, अपनी खुद का वोट बैंक, धार्मिक आधार महत्वपूर्ण हो जाता है।

जाति की इकाई के बारे में यह कहा जा सकता है कि कोई भी जाति केवल ईमानदारी के आधार पर किसी को नेता नहीं मानती है जो व्यक्ति जाति के हितों की रक्षा करने की सर्वाधिक सामर्थ रखता है, जाति के लोग उसी को नेता मानते हैं। इसी तरह आम तौर पर मतदाता नकारात्मक वोट देता है। यदि कांग्रेस व यूपीए के खिलाफ माहौल बनाने में अन्ना कामयाब हो जाते हैंं तो कांग्रेस तथा यूपीए के उम्मीदवार को हराने वाले उम्मीदवार को मतदाताओं का वोट मिलने की संभावना सर्वाधिक हो सकती है। वह उम्मीदवार नई पार्टी का होगा यह कहना कठिन है।

मतदाता अपने क्षेत्र में ऐसा नेता चाहते हैंं जो जरूरत पड़ने पर उसकी आर्थिक मद्द कर सके। हर तरीके से (सही गलत दोनों कार्यों के लिए) उसे संरक्षण दे सके। इन दोनों मापदण्डों की कसौटी पर खरे उतरने वाले उम्मीदवार कितने ईमनादार हो सकते हैं। यह भी एक अहम सवाल है। अब तक के अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि यदि अन्ना की पार्टी अपने मुद्दों को लेकर देश को गरमाने में कामयाब हो सकेगी तो चुनावी संभवनाएं प्रबल हो सकती हैं। यह गर्मी सशक्त जन आन्दोलन तथा सरकार से टकराकर ही पैदा हो सकती है।

पार्टी को खड़ा करने का सूत्र डॉ. राममनोहर लोहिया ने जेल, वोट, फावड़ा तथा सप्तक्रांति के सिद्धांत में निहित है। इस रास्ते पर चलकर ही व्यवस्था परिवर्तन की दिशा में आगे बढा जा सकता है। फिलहाल स्पष्ट नीति और सिद्धांत के आधार पर मजबूत संगठन बनाना तथा सहमना संगठनों की पहचान करना अन्ना के नेतृत्व में गठित होने वाली पार्टी का उद्देश्य होना चाहिए। अन्ना जी गांधीवादी हैं, अरविंद केजीरवाल ने सम्पूर्ण क्रांति की बात कही है, सरोकारी नागरिकों की ओर से अनशन तुड़वाने आये पूर्व सेनाअध्यक्ष वी.के. सिंह ने जे.पी. का बहुचर्चित वाक्य दोहराया है कि सिंहासन खाली करो की जनता आती है।

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