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What is the mood of India? |
सर्वे के मुताबिक देश की जनता सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी से खासी नाराज है और अगर आज आम चुनाव हुए तो महज़ 18 फीसदी जनता ही कांग्रेस को अपना मत देगी, लेकिन इस कांग्रेस विरोधी लहर का फायदा मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी की झोली में जाता नहीं दिख रहा है, बल्कि इसकी लोकप्रियता भी घटी है. वहीं, अगर आज चुनाव हुए तो देश के 77 फीसदी लोग अन्ना की पार्टी को वोट देना चाहते हैं.
घोटाले के आरोपों और प्रत्यारोपों के बीच भ्रष्टाचार के खिलाफ समाजसेवी अन्ना हजारे और योग गुरु बाबा रामदेव की अगुवाई में देश का एक बहुत बड़ा तबका उठ खड़ा हुआ. भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते-लड़ते अन्ना की टीम के लोग अचानक राजनीति की राह पर चल पड़े. कोई हैरान है, कोई परेशान कि पार्टी का फैसला क्यों?
लेकिन इस हैरानी और परेशानी के बीच अन्ना और उनके सहयोगियों के लिए अच्छी खबर यह है कि 64 फीसदी लोग इसे सही फैसला मानते हैं. यही नहीं 77 फीसदी लोग अन्ना की पार्टी को वोट भी देना चाहते हैं.
देश के 28 शहरों में 8 हजार 833 लोगों से बात करके समझने की कोशिश की कि लोग अन्ना हजारे की राजनीतिक पार्टी बनाने के फैसले से कितना सहमत है.
22 अगस्त से 24 अगस्त के बीच लोगों से बात की गई. जनता से पूछा गया कि क्या वे अन्ना की पार्टी के उम्मीदवारों को वोट देंगे ? क्या अन्ना की पार्टी नक्सलवाद, देश के आर्थिक हालात, महंगाई और आतंकवाद जैस मुद्दों से निपट पाएगी?
जनता की पसंद अन्ना
हाल ही में लोकपाल बिल की मांग को लेकर अनशन पर बैठे अन्ना हजारे के आंदोलन के बारे में 95 फीसदी लोगों को पता था. हालांकि महाराष्ट्र के औरंगाबाद और तमिलनाडु के मदुरैई में यह प्रतिशत अपेक्षाकृत कम था. औरंगाबाद में 84 फीसदी और मदुरैई में 78 फीसदी लोग इस आंदोलन के बारे में जानते हैं.
सर्वे के मुताबिक 84 फीसदी लोग अन्ना और उनके आंदोलन का समर्थन करते हैं, जबकि 14 फीसदी इससे कोई सरोकार नहीं रखते हैं. हालांकि कोचीन (57 फीसदी) और मदुरैई (43 फीसदी) में यह प्रतिशत अपेक्षाकृत कम है.
सर्वे में पाया कि 73 फीसदी लोग अन्ना के राजनीतिक पार्टी बनाने के फैसले के बारे में जानते हैं, जबकि 20 फीसदी लोग इस बात से अंजान थे. हालांकि औरंगाबाद (50 फीसदी) में अन्ना की राजनीतिक पार्टी के बारे में अपेक्षाकृत कम लोगों को जानकारी थी.
सर्वे के मुताबिक अन्ना की राजनीतिक पार्टी के फैसले को 64 फीसदी लोग सही मानते हैं और उन्हें लगता है कि इससे साफ-सुथरी छवि वाले लोग सत्ता में आएंगे. वहीं, 22 फीसदी लोगों का कहना है कि राजनीतिक पार्टी बनाने का फैसला सही नहीं है और इससे टीम अन्ना अपने लक्ष्य से भटक जाएगी.
यही नहीं सर्वे में यह भी पाया गया कि लोग सिर्फ अन्ना के आंदोलन और राजनीतिक पार्टी बनाने के फैसले का समर्थन ही नहीं करते बलिक चुनाव में उन्हें वोट भी देंगे. सर्वे के मुताबिक 77 फीसदी लोग चुनाव में अन्ना की पार्टी के पक्ष में मतदान करेंगे, जबकि 16 फीसदी उनकी पार्टी को वोट नहीं देंगे. हालांकि कोचीन (38 फीसदी) में यह प्रतिशन अपेक्षाकृत कम है.
जब लोगों से यह पूछा गया कि क्या अन्ना हजारे की पार्टी नक्सलवाद, देश की अर्थव्यवस्था, महंगाई और आतंकवाद जैसे दूसरे मुद्दों से निपट पाएगी तो 65 फीसदी लोगों ने हां में जवाब दिया. सर्वे के मुताबिक 65 फीसदी लोगों का मानना है कि अन्ना की राजनीतिक पार्टी इन सभी मुद्दों से निपट सकती है. जबकि 24 फीसदी लोग सहमत नहीं है.
तीन महीने पहले मई में यूपीए-2 सरकार की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन अब हालात और बुरे हो गए हैं. मई महीने में यूपीए-2 के तीन साल पूरे होने के मौके पर कराए गए सर्वे में तो 21 फीसदी जनता कांग्रेस के साथ थी, लेकिन अब यह ग्राफ़ गिरकर 18 फीसदी पर पहुंच चुकी है.
मई में 28 फीसदी जनता बीजेपी की झोली में अपना मत डालना चाहती थी, लेकिन अब उसका मत प्रतिशत गिरा है, लेकिन महज़ एक फीसदी की ही गिरावट आई है. अब भी 27 फीसदी जनता बीजेपी के कमल को खिलाने चाहती है.
रामदेव से ज्यादा भरोसेमंद हैं अन्ना
भले ही इस बार अन्ना और उनकी टीम को जंतर मंतर में भीड़ जुटाने के लिए योग गुरु बाबा रामदेव का सहारा लेना पड़ा हो, लेकिन जनता की नजर में अब भी अन्ना हजारे ज्यादा विश्वसनीय है.
सर्वे में पाया कि रामदेव की तुलना में 75 फीसदी लोग अन्ना को ज्यादा भरोसेमंद मानते हैं.
हालांकि 85 फीसदी लोग काले धन के खिलाफ बाबा रामदेव की मुहिम के बारे में भी जानते हैं.
इसके साथ ही 49 फीसदी लोगों को लगता है कि जन लोकपाल बिल के लिए अन्ना हजारे का आंदोलन और विदेशों में जमा काले धन के खिलाफ बाबा रामदेव की मुहिम का मसद एक ही है, जबकि 43 फीसदी इससे इत्तेफाक नहीं रखते और उनका मानना है कि ये दोनों आंदोलन अलग-अलग हैं.