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पांच कारण - क्यों सरकार CAG की रिपोर्ट को नज़रअंदाज नहीं कर सकती

कोयला आवंटन घोटाले को लेकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट पर बवाल मचा हुआ है। नीलामी के जरिए कोयला खदानों के आवंटन न होने और मनमाने आवंटन की वजह से सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का आकलन किया है। लेकिन सीएजी रिपोर्ट के सामने आने के बाद तीखी आलोचना का सामना कर रही केंद्र सरकार ने अपने बचाव में कहा है कि सीएजी संविधान में उनके लिए दिए गए दायरे में काम नहीं कर रहे हैं और उन्हें सरकार की नीतियों पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। इस बाबत प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री वी. नारायण सामी ने बीते शनिवार को कहा था, 'सीएजी के पास सरकार की नीतियों पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि सीएजी ने सरकार के इस अधिकार पर टिप्पणी की है, जो पूरी तरह से गैरजरूरी था। यह सरकार को मिले जनादेश के भी खिलाफ है।' केंद्र सरकार ने 1.76 करोड़ रुपये के 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले की रिपोर्ट सामने आने पर भी ऐसी ही बातें की थीं। 

आइए, उन 5 वजहों पर नज़र डालते हैं, जिनसे साफ हो जाता है कि सरकार के तर्क में दम क्यों नहीं है और क्यों सीएजी की रिपोर्ट को हल्के में नहीं लिया जा सकता है?

  1. दायरे में हैं सीएजी: सरकार का तर्क है कि उसकी नीतियों पर टिप्पणी करना सीएजी के संवैधानिक अधिकार के दायरे से बाहर है। लेकिन जानकारों के मुताबिक ऑडिटिंग करते समय फिजूलखर्ची, गलत खर्च और सरकारी खजाने को हुए नुकसान की बात सामने लाकर और नुकसान को बचाने के तरीके का जब सीएजी जिक्र करते हैं तो वह अपने संवैधानिक दायरे में होते हैं। सीएजी की वेबसाइट पर उनके अधिकारों के बारे में कहा गया है कि सीएजी की ऑडिटिंग रिपोर्ट का अहम हिस्सा सिफारिशें करना भी है। सीएजी के कर्तव्य और अधिकारों का उल्लेख संविधान की धारा 148 से लेकर 151 तक में है। हालांकि, कार्यपालिका सीएजी की सलाह का पालन करे, यह जरूरी नहीं है। लेकिन यह कहना है कि सीएजी को टिप्पणी तक करने का अधिकार नहीं है, गलत है क्योंकि सिफारिश करते समय सीएजी किसी न किसी खरीद फरोख्त या आवंटन की प्रक्रिया की खामी टिप्पणी के तौर पर जरूर सामने लाएंगे। ऐसे में अगर कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधन के आवंटन में सीएजी को खामी दिखती है तो यह उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह इस कमी को सामने लाएं।
  2. पीएसी ने भी बताई है सीएजी की जिम्मेदारी: कांग्रेस का तर्क है कि सीएजी की रिपोर्ट का बहुत मतलब नहीं है। सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के सांसद संजय निरूपम ने कहा है कि सीएजी की रिपोर्ट कितनी सही है, इसका आकलन लोक लेखा समिति (पीएसी) करेगी। सिर्फ सीएजी की रिपोर्ट का कोई विशेष मतलब नहीं होता है। लेकिन पीएसी ने ही लोकसभा में पेश अपनी चौथी रिपोर्ट में कहा था कि ऑडिटिंग के दौरान अगर सीएजी को यह पता चलता है कि किसी भी मद में सरकारी धन का दुरुपयोग हुआ है या गलत खर्च किया गया है तो उसका कर्तव्य है कि वह इस मुद्दे पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट के जरिए संसद का ध्यान आकर्षित करे। कोयला आवंटन में हुए कथित घोटाले और उससे नुकसान की बात कर सीएजी ने पीएसी की रिपोर्ट के मुताबिक ही काम किया है। 
  3. शपथ से न्याय: सुप्रीम कोर्ट के जज की तरह सीएजी अपना पद ग्रहण करते समय संविधान और विधि (कानून) का हर हाल में पालन करने की शपथ लेते हैं। जबकि केंद्रीय मंत्री अपनी शपथ में सिर्फ संविधान के 'अनुसार' काम करने की बात कहते हैं। ऐसे में अगर किसी खर्च या प्रक्रिया की ऑडिटिंग करते समय सीएजी को पहली नज़र में ही संविधान का पालन न होने या देश हित के खिलाफ काम किए जाने की बात पता चलती है तो क्या उनका यह कर्तव्य नहीं है कि वह अपनी रिपोर्ट में इसका जिक्र करें। क्या ऐसा न करके सीएजी अपनी शपथ के मूल भाव से समझौता नहीं करेंगे?
  4. जवाबदेही (आर्थिक) तय करने की जिम्मेदारी: बुनियादी तौर पर सीएजी सरकारी खजाने के खर्च और खर्च के तौर तरीकों की समीक्षा करता है। संविधान के मुताबिक सीएजी सरकार और उसकी संस्थाओं की संसद और विधानसभाओं के प्रति जवाबदेही (आर्थिक) सुनिश्चित करता है। ऑडिटिंग और अकाउंटिंग भी आर्थिक जवाबदेही के तहत ही आता है। ऐसे में अगर वह जवाबदेही तय करते समय नीतिगत फैसलों की खामियां सामने लाता है और यह बताता है कि कहां और कैसे गलती हुई और उसके चलते कितना नुकसान हुआ तो यह गलत या असंवैधानिक कैसे हो सकता है?
  5. बाबा साहब की भावना का आदर: संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में बहस के दौरान कहा था कि शायद सीएजी देश का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी होगा क्योंकि वह यह तय करेगा कि जनता के पैसे को उसी तरह से खर्च किया जा रहा है, जैसा जनादेश संसद को मिला है। तो क्या सीएजी ने देश को हुए संभावित नुकसान की बात सामने लाकर गलत किया है? सवाल है कि क्या सीएजी ने अपनी रिपोर्ट पेश कर बाबा साहब की भावना का आदर नहीं किया है? सीएजी ने कोयलों की खदानों या स्पेक्ट्रम के आवंटन में हुई खामियों को सामने लाकर देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई है?
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