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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

प्रधानमंत्री देशवासियों को गुमराह कर रहे हैं : अण्णा हज़ारे


सहयोगी दल का सहभाग न होने के कारण जनलोकपाल कानून बनवाने में देरी हो रही है. प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी का यह बयान देशवासियों को गुमराह करने वाला है.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंहजी ने कहा है कि लोकपाल बिल लाने में सहयोगी दलों का सहभाग न मिलने से यह कानून बनाने में देरी हो गई है. प्रधानमंत्री होने के नाते देश की जनता ने आपसे जनलोकपाल के लिए उम्मीद लगा रखी है. ऐसी स्थिति में जनता को भ्रमित करने वाला वक्तव्य देना ठीक नहीं है.

आपको याद होगा कि रामलीला मैदान में 27 अगस्त 2011 को आपने मुझे लिखित आश्वासन दिया था कि हर राज्य में लोकायुक्त बिल लाएंगे, जनता की सनद हम लायेंगे, हम दफ्तर में काम करने वाले नीचे से ऊपर तक सभी अधिकारी और कर्मचारी को लोकपाल के दायरे में लाएंगे. इन तीन मुद्दों को लेकर संसद में सर्वसम्मति से रिजोल्यूशन (प्रस्ताव) पास हो गया था. सभी पक्ष-पार्टी से सहयोग मिला था लेकिन अभी तक आपने जनता को जो वादा किया था वह नहीं निभाया है. सहयोगी दल का सहयोग नहीं मिल रहा, यह बात जनता को भ्रमित करने वाली है.

पिछले 44 साल में आठ बार लोकपाल बिल संसद में रखा गया था. इनमें से 40 साल आपकी पार्टी की सरकार सत्ता में होते हुए भी जनलोकपाल बिल पास नहीं हो पाया. क्या यह आपकी सरकार की इच्छाशक्ति का अभाव नहीं है? या ऐसा नहीं लगता कि आपकी सरकार की मंशा ही नहीं है? मंदिर में रहने वाला एक फकीर आदमी अन्ना हजारे, इस देश के प्रधानमंत्री से सवाल पूछ रहा है यह शायद मेरी गलती हो सकती है, लेकिन भ्रष्टाचार से सामान्य लोगों को जीना मुश्किल हो रहा है. भ्रष्टाचार के फलस्वरूप महंगाई बढ़ने के कारण जनता त्रस्त है. कोयला घोटाला, टूजी घोटाला, एयर इंडिया घोटाला जैसे कई घोटालों के कारण देश का विकास रूका है. मैंने अपना जीवन समाज औऱ देश के प्रति समर्पित किया है, इस कारण मुझे आपकी सरकार द्वारा जनता पर हो रहा अन्याय सहा नहीं जाता है. इसलिए मैं बार-बार आंदोलन करता हूं औऱ आगे भी आंदोलन करते रहूंगा.

आज भी आप कहते हैं कि लोकपाल बिल लोकसभा में पास हुआ है लेकिन वह कौन सा लोकपाल है?  वह निकम्मा सरकारी लोकपाल बिल है, जिसका देश की जनता को कोई लाभ नहीं होगा न ही देश का भ्रष्टाचार मिटेगा. ऐसा निकम्मा लोकपाल बिल लोकसभा से पास हुआ है. यह देशवासियों को गुमराह करने का प्रयास हो रहा है. आप अच्छी तरह जानते हैं कि हमारे बनाए हुए लोकपाल के ड्राफ्ट पर चर्चा करने के लिए आप ही की सरकार ने एक ज्वाइंट कमेटी बनाई थी जिसमें आपके पांच मंत्री औऱ हमारे पांच लोग थे और 10 सप्ताह तक हमारे ड्राफ्ट पर संयुक्त समिति में चर्चा चली. हमारे मसौदे के कई मुद्दों को आपकी सरकार ने मान भी लिया था और अचानक से आपकी सरकार बदल गई औऱ कहा कि कैबिनेट के सामने आपका ड्राफ्ट रखेंगे और कैबिनेट अपना निर्णय लेगी, हम निर्णय नहीं लेंगे. ऐसी बात थी तो कमेटी बनवाई ही क्यों ? ढ़ाई महीने क्यों मीटिंगें चलाईं? क्या यह देश की जनता को गुमराह करने का प्रयास नहीं था? कैबिनेट के सामने हमारा ड्राफ्ट न रखते हुए सिर्फ सरकारी ड्राफ्ट रखा गया. जनलोकपाल कानून लाने में क्या सरकार की यह धोखाधड़ी नहीं थी? यहां तो सहयोगी पक्ष का कोई सवाल ही नहीं था. सरकार ही ने फैसला करना था लेकिन नहीं किया क्योंकि इच्छाशक्ति का अभाव है. जनलोकपाल कानून बनाने की आपकी, आपके सरकार की, आपके पार्टी की मंशा ही नहीं हैं.

कैबिनेट के बाद संसद में चर्चा के लिए हमारा ड्राफ्ट रखना था लेकिन आपकी सरकार ने केवल सरकारी लोकपाल का ड्राफ्ट रखा था. हमारा मसौदा नहीं रखा था. क्या यह देश की जनता के साथ धोखाधड़ी नहीं थी. स्टैडिंग कमेटी में भी हमारा ड्राफ्ट रखना था पर वहां भी धोखाधड़ी कर आपकी सरकार ने अपना ही सरकारी ड्राफ्ट जो भ्रष्टाचार को नहीं रोक सकता, ऐसा ड्राफ्ट रखा था. परमाणु के प्रश्न पर सहयोगी दल का विरोध होते हुए भी आपकी सरकार बहुमत प्राप्त कर सकती है. राष्ट्रपति चुनाव के लिए सहयोगी दल का विरोध होते हुए भी बहुमत प्राप्त कर सकती है. लेकिन जनलोकपाल के बारे में आप कहते हैं कि सहयोगी पक्ष का साथ नहीं मिलता इसलिए जनलोकपाल कानून में देरी हो रही है. इससे यह स्पष्ट हो रहा है कि आप औऱ आपकी सरकार, आपका पक्ष जनता को गुमराह कर रहे हैं. अगर आपकी सरकार की जनलोकपाल कानून बनाने की और भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण की सचमुच मंशा होती तो असंभव जैसा कुछ भी नहीं था. जिस प्रकार परमाणु प्रश्न पर, राष्ट्रपति चुनाव के समय प्रयास किया, उतना ही प्रयास किया होता तो जनलोकपाल कानून बनाने में देर नहीं लगती. लेकिन आपकी और आपके सरकार की मंशा नहीं है. जनलोकपाल कानून बनाने में अन्ना हजारे का कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं है और जनलोकपाल के न आने से कोई नुकसान नहीं हैं. जनलोकपाल कानून बनाने की मांग अन्ना हजारे की ही नहीं हैं, देश की जनता की यह मांग है.

मैंने तो मात्र इतना तय किया है कि जब तक शरीर में प्राण है तब तक जनलोकपाल कानून बनवाने के लिए जनता की भागीदारी से कोशिश करता रहूंगा. आने वाले 2-3 महीनों में देशवासियों को जनलोकपाल कानून के बारे में सरकार का सच क्या है यह बताने के लिए देशभर में लोकशिक्षा औऱ लोकजागृति का काम करता रहूंगा और कभी चुनाव नहीं लड़ूंगा. न ही मैं कोई पक्ष और पार्टी बनाउंगा लेकिन जनता को विकल्प देने का प्रयास करते रहूंगा जो कि जीवन में 30 साल से करते आया हूं. जीवन में किसी भी फल की अपेक्षा न करते हुए निष्काम भाव से समाज और देश की सेवा करते रहूंगा.

एक बात का इंकार नहीं कर सकते हैं कि इतिहास में आप औऱ आपकी सरकार और आपके पक्ष के लिए जनलोकपाल कानून पर सरकार की नीयत पर हमेशा एक काला दाग रहेगा जिस प्रकार कि चंद्रमा पर दाग है. एक फकीर आदमी आंदोलन के सिवा कर ही क्या सकता है?

(सभी देशवासियों को ईद की शुभकामनाये)

भवदीय,

कि. बा. उपनाम अण्णा हज़ारे

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