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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

भाजपा को रास नहीं आ रही टीम अन्ना की घोषणा

जनता को राजनीतिक विकल्प देने के ऐलान के बाद टीम अन्ना ने अपनी निगाहें अब 2014 के लोकसभा चुनाव पर टिका दी हैं। इस बीच, जनता को राजनीतिक विकल्प देने संबंधी अन्ना हजारे की घोषणा पर अगर सबसे ज्यादा कोई बेचैन है तो वह है देश का प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी। टीम अन्ना की राजनीतिक दल बनाने की मंशा ने भाजपा के अंदर परेशानी बढ़ा दी है।


अन्ना के आंदोलन से इस बार थोड़ी दूरी बनाकर खड़ी भाजपा को टीम अन्ना की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने आशंकित ही नहीं, बल्कि काफी हद तक बेचैन भी कर दिया है। शायद यही कारण है कि टीम अन्ना ने जनता से एसएमएस के जरिए राय मांगने की घोषणा की, तो भाजपा ने यह याद दिलाने में देर नहीं लगाई कि देश की साठ फीसदी आबादी गरीब है और उनके पास मोबाइल नहीं है। पार्टी ने परोक्ष रूप से जनता को यह भी याद दिलाया कि कांग्रेस का विकल्प भाजपा ही है। पिछले आंदोलन में भाजपा ने एक कदम आगे बढ़कर अन्ना और उनकी टीम का सहयोग किया था।


जाहिर तौर पर भाजपा कांग्रेस सरकार के खिलाफ उभरे आंदोलन में अपने लिए बड़ा अवसर देख रही थी, लेकिन बाद के दिनों में उसे यह अहसास होने लगा था कि जनता की नजरों में कहीं टीम अन्ना ही मुख्य विपक्ष की भूमिका न ले जाए। उल्‍लेखनीय है कि टीम अन्‍ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में मध्यवर्ग ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। यह वर्ग परंपरागत रूप से भाजपा का वोटर माना जाता है। टीम अन्‍ना की घोषणा के बाद भाजपा को इस वोट बैंक के खिसकने की चिंता सता रही है।


बाबा रामदेव खेमे में भी हलचल
टीम अन्ना की राजनीतिक विकल्प देने संबंधी घोषणा ने योग गुरू बाबा रामदेव तक को भी बेचैन कर दिया है। उनके भारत स्वाभिमान कार्यालय में भी हलचल मच गई है। बाबा रामदेव पहले से संकेत देते आ रहे हैं कि वह 2014 के आम चुनाव में 542 प्रत्याशी मैदान में उतार सकते हैं।


गौरतलब है कि बाबा रामदेव काला धन वापस लाने की मांग को लेकर 9 अगस्त से दिल्ली के रामलीला मैदान में अपना आंदोलन शुरू करने वाले हैं। अभी तक अन्ना और बाबा मिलकर आंदोलन चलाने की बात कर रहे थे लेकिन अन्ना और उनकी टीम ने तो अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं, ऐसे में बाबा के सामने यह सवाल खडा़ हो गया है कि अब वे क्या करें। क्या उन्हें भी अपनी पार्टी बना लेनी चाहिए।


हालांकि, टीम अन्ना के इस ऐलान के साथ ही उनके लिए चुनौतियां भी शुरू हो गई हैं। सबसे पहले टीम को तय करना होगा कि उनकी क्या विचारधारा है। राजनीति के जानकारों के मुताबिक बिना विचारधारा के कोई पार्टी नहीं हो सकती और अब तक टीम अन्ना में जिन मसलों पर मतभेद सामने आ रहा था, उनमें वह यह कहकर बचती रही थी कि यह निजी राय है, लेकिन अब ऐसे नहीं चल पाएगा। अब जो पार्टी के सदस्य होंगे, उन्हें हर मुद्दे पर एकमत होना पड़ेगा। चाहे वह कश्मीर का मसला हो, नक्सलवाद, आरक्षण या फिर धर्म निरपेक्षता का। इन सवालों पर उन्हें अपना राजनीतिक स्टैंड सार्वजनिक करना पड़ेगा।
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