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भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

याचना नहीं अब रण होगा

अन्ना को अनशन करते पांच दिन हो गए थे जबकि उनके सहयोगी अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, गोपाल राय और सैकड़ों अनशनकारियों ने नौ दिन पहले अन्न त्यागा था. जहां देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए इतने सारे लोग अपने जीवन के बलिदान को तैयार बैठे तिल-तिल घुल रहे थे वहीं देश की पूरी राजनीतिक व्यवस्था के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही थी. बड़ा सवाल था कि ये लोग आखिर कब तक यूं ही बैठे रहेंगे. अपने जीवन को होम क्यों करें? क्या इससे कुछ हासिल होगा?

अन्ना लगातार दबाव में थे. दबाव अनशनकारियों के बीच से नहीं आया था. यह दबाव जनता के बीच से उभरा था. सामाजिक संगठनों, समाज के लोगों और जनता सब तरफ से अन्ना पर दबाव था कि वह देश के सामने एक आदर्श राजनीतिक विकल्प रखें. यह दबाव समाज के प्रबुद्ध जनों से था जिनमें रिटायर्ड फौजी भी थे तो फिल्म स्टार भी, भूतपूर्व नौकरशाह थे तो सामाजिक कार्यकर्ता भी. अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले, काम के बदौलत अपनी पहचान रखने वाले 23 लोगों ने एक पत्र लिखकर अन्ना से गुजारिश की थी कि वह अपनी टीम समेत अनशन का रास्ता त्यागें और राजनीति के खिलाड़ियों को उनके घर में घुसकर मात दें.

अन्ना जनता के हीरो हैं. जनता के भीतर से उठ रही इस आवाज को कब तक अनसुना कर पाते. उन्होंने राजनीति के घाघ खिलाड़ियों को उनके अंदाज में चुनौती देने का फैसला कर ही लिया. अन्ना अपने सहयोगियों की दिन-ब-दिन बिगड़ती हालत से आहत थे. आज अन्ना ने मंच से राजनीतिक व्यवस्था को ललकारते हुए घोषणा की, “सरकार भ्रष्टाचार खत्म करने की इच्छाशक्ति ही नहीं रखती. सभी राजनीतिक दल राजनीति की चालें चल रहे हैं. अब मुझे जनता की बात सुननी ही होगी. देश के सामने राजनीतिक विकल्प पेश करना ही होगा. अब वह वक्त आ गया है जब हम राजनीति की गंदगी साफ करने के लिए खुद राजनीति में उतरें. ”

हालांकि अन्ना हजारे ने यह बात स्पष्ट तौर पर कही कि वह चुनाव नहीं लड़ेगें. राजनीतिक दलों की उदासीनता से आहत अन्ना ने घोषणा कर दी कि वह कल यानी 3 अगस्त की शाम पांच बजे अनशन त्याग दें.

अब टीम अन्ना तैयार है राजनीति के कुरुक्षेत्र में उतरने के लिए. टीम अन्ना का अनशन शुक्रवार शाम पांच बजे खत्म हो जाएगा. अब टीम अन्ना सरकार से रण के लिए मैदान में उतरने को तैयार है. अन्ना ने साफ कर दिया है कि वह अपने आदर्शों से कोई समझौता नहीं करेंगे. जो राजनीतिक विकल्प आएगा उसमें भ्रष्टाचार और नैतिकता से कोई समझौता नहीं होगा. यह लड़ाई सत्ता परिवर्तन की नहीं व्यवस्था परिवर्तन की होगी.

देश के राजनीतिक दल बार-बार यह अनर्गल प्रचार कर रहे थे अन्ना और उनके सहयोगी चुनाव नहीं जीत सकते. इस तरह आंदोलन को एक झटके में खारिज कर देने वाली पार्टियों को भी मुंहतोड़ जवाब देने के लिए राजनीतिक विकल्प की बात करना एक बड़ी जरूरत बन चुकी थी.

बहरहाल टीम अन्ना ने रणभेरी बजा दी है. राजनीति के मैदान में उतरने और तमाम राजनीतिक पार्टियों को टक्कर देने के लिए. अब जनता को तय करना है कि वह मौजूदा भ्रष्ट व्यवस्था के साथ खड़ी अपना शोषण कराती रहेगी या किसी आदर्श विकल्प को समर्थन देगी.
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